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कूटनीति, मैत्री और रक्षा सौदें

कूटनीति, मैत्री और रक्षा सौदें

by अमोल पेडणेकर
in अनंत अटलजी विशेषांक - अक्टूबर २०१८, देश-विदेश, राजनीति, सामाजिक
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आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से विश्व के मंच पर उभर रहे भारत के साथ संबंध अच्छे रखना रूस और अमेरिका दोनों महाशक्तियों के लिए भी जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जरिये इन दोनों से दोस्ती की परंपरा आगे बढ़ाना भी भारत के हित में है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिल्ली के हैदराबाद हाउस में मुलाकात हुई।  द्विपक्षीय 19हवीं शिखर बैठक संपन्न हुई। इस बैठक में विभिन्न विषयों पर 8 करार दोनों देशों में हो गए। अंतरिक्ष, संशोधन, रेल, परमाणु ऊर्जा, संरक्षण और आतंकवाद का मुकाबला आदि विषय इस करार में सम्मिलित हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में, भारत के प्रस्तावित ’गगन यान’ के लिए इस्रो और रूसी अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन रॉक कॉसमॉस में भी परस्पर सामंजस्य व सहयोग का करार हुआ। ‘गगन यान’ भारत का अंतरिक्ष में मानव भेजने का महत्वाकांक्षी अभियान है।

शिखर बैठक की सब से बड़ी बात यह रही कि अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत और रूस के बीच एयर डिफेंस सिस्टम एस- 400 की खरीदी पर करार हुआ है। इस सौदे पर संपूर्ण विश्व की नजर टिकी हुई थी। विश्व भर में यह बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। भारतीय जनमानस में इस विषय पर एक संतोष का भाव है। इसे सरकार की राजनयिक जीत माना जा रहा है।

फिलहाल, वैश्विक राजनीति पर गौर करें तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, रूसी राष्ट्रपति पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी मजबूत वैश्विक नेता के रूप में उभरे हैं। जैसे और भी मजबूत नेता वैश्विक राजनीतिक मंच पर दिखाई दे रहे हैं। ईरान के साथ ओबामा राज में हुई परमाणु संधि डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी ओर से तोड़ दी है और 4 नवम्बर से ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लागू किये जा रहे हैं। अमेरिका चाहता है कि इस मामले में भारत भी उसकी हां में हां मिलाए। वह यह भी चाहता था कि रूस के साथ भारत कोई रक्षा सौदा न करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे नकार दिया। इससे उन्होंने विश्व को संकेत दे दिया कि दोस्ती में एक दूसरे की चिंताओं और हितों का एक हद तक ख्याल किया जाता है; पर जहां तक भारत की रक्षा एवं विदेश नीति का सवाल है, वह उसके राष्ट्रीय हितों के अनुसार ही होगी। भारत और रूस के बीच अत्याधुनिक  क्षेपणास्त्र प्रणाली एस- 400 के सौदे को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह भारतीय नेतृत्व की दृढ़ता का ही परिचय है।

भारत और रूस के बीच संबंध अत्यंत गहरे व महत्वपूर्ण रहे हैं। चाहे वे राजनीतिक स्तर पर हो या जन स्तर पर। रूस और भारत दोनों ही देशों का नेतृत्व समय की कसौटी पर खरी उतरी इस  परम्परागत मैत्री को और अधिक मजबूत करने की इच्छा रखता है। 19वीं शिखर वार्ता के समय भारत और रूस अपनी रणनीतिक भागीदारी को और मजबूत करने में सफल रहे हैं।

भारत और रूस दोनों देशों के संबंध बहुत पुराने हैं। रूस की जनता की भी दिलचस्पी हमेशा भारत के प्रति रही है। 1955 में  प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की पहली बार मास्को गए थे।  वहां उनका जोरदार स्वागत हुआ था। उसी साल मे रूस के तत्कालीन  राष्ट्रपति भारत आए थे। तब वे कश्मीर गए थे। उन्होंने तब यह बात कही थी कि, ’हम हिमालय की दूसरी ओर बैठे हैं। लेकिन, जब कभी हमारी जरूरत महसूस हो, हमें आवाज़ दो, हम हाजिर हो जाएंगे।’ जब राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में कश्मीर का प्रश्न आया था तब रूस ने भारत को समर्थन दिया था। आर्थिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और सामरिक क्षेत्रों में भारत के साथ रूस मजबूत रूप मे खडा रहा है। पिछले छह दशक से भारत और रूस के बीच संबंध है। निश्चित रूप से वह काफी लंबे समय से है। जहां तक अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बात है, उसमें तो यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण है कि, भारत और रूस के बीच कार्य का अच्छा अनुभव रहा है। दोनों के संबंध समय की कसौटी पर हमेशा खरे उतरे हैं। भारत और रूस के बीच संबंधों में बीच में कुछ खटास अवश्य आई थी, लेकिन अब वे पुनः अच्छे हो गए हैं।

1991 में जब सोवियत संघ टूट गया, उसके बाद वहां परिवर्तन का दौर प्रारंभ हुआ था। रूस भौगोलिक रूप से काफी सिकुड़ सा गया। अब रूस के संदर्भ में कई बातें कही जाती हैं। कुछ लोग रूस को आधुनिक अस्थिर गणराज्य के रूप में देखते हैं, जिसके भविष्य के और भी पतन को टाला नहीं जा सकता। अन्य लोगों का कहना है कि, सुधारों और आधुनिकीकरण के जरिए रूस अपनी समस्याओं पर काबू पाने में सफल हो जाएगा। रूस का नेतृत्व इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। रूस आज भी जो परमाणु ताकत है। कुशल श्रमशक्ति उसके पास है। साइबर टेक्नोलॉजी उसके पास है। इसी के कारण रूस की हैसियत पर ज्यादा आंच अब तक नहीं आई है और भविष्य में भी नहीं आ सकती है।

शस्त्रों के व्यापार के संदर्भ में भारत और रूस के संबंध एक दूसरे से अभिन्न स्वरूप में जुड़े हैं। भारत में अब तक जो शस्त्र आयात हुए हैं उनमें से कुल आयात हुए शस्त्रों में से रूस का हिस्सा 70% है। पिछले कुछ सालों में भारत ने सामरिक सामग्री के लिए इजरायल एवं अमेरिका जैसे देशों की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया था। रूस की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से पहले जैसा करने के लिए रूस भारत जैसे देशों को सामरिक सामग्री देने का व्यवहार जारी रखना चाहता है।                रूस पाकिस्तान को भी हथियार बेचने को इच्छुक है। हाल में दोनों देशों की सेनाओं ने पहली बार संयुक्त युद्धाभ्यास भी किया है। जितनी तेजी से भारत अमेरिका, इजरायल, फ्रांस जैसे देशों के नजदीक जा रहा था उतनी ही  गति से रूस पाकिस्तान से अपने सबंध जोड़ रहा था। भारत के पास जो संरक्षण सामग्री उपलब्ध है, उसमें 70% संरक्षण सामग्री रूस से आई है। ऐसे समय में भारत के पास उपलब्ध संरक्षण सामग्री की गोपनीय जानकारी पाकिस्तान को उपलब्ध होना हमारे लिए अत्यंत खतरनाक बात थी।

पिछले कुछ सालों से भारत के रडार से हटे रूस को नरेंद्र मोदी के मास्को प्रवास से फिर से गति मिलने लगी। मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान हुए उसके बाद उन्होंने अमेरिका, फ्रांस, इजराइल, कनाडा जैसे देशों से ज्यादा नज़दीकियां बढाईं। उससे भी रूस भारत से नाराज था, इस प्रकार का माहौल निर्माण किया गया था। हथियारों के मामले में एक देश पर निर्भर रहना, यह कदापि राष्ट्रहित की बात नहीं हो सकती। मोदी जी के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के कारण एक देश पर हथियारों के लिए निर्भर रहना अब कम हुआ है। यह अत्यंत अच्छी बात है। भारत जैसी बड़ी सैन्य शक्ति के लिए जरूरी हथियारों के देश मेंं ही उत्पादन करने के लिए और समय देना अत्यंत आवश्यक है। 1953 से रूस और भारत के संबंधों की शुरुआत हुई है, तब से जब जब भारत और रूस के संबंध में दूरियां बढ़ाने वाला या तनाव निर्माण करने वाला माहौल पैदा हुआ, तब ,तब अत्यंत तेजी से कार्यवाही कर दिल्ली और मास्को के संबंध फिर से सुस्थिति में लाने के प्रयास होते रहे हैं। विश्व राजनीति में एक दूसरे की मर्यादाओं को समझ कर द्विपक्षीय विश्वास का वातावरण निर्माण होना चाहिए। इस बात को ध्यान में रख कर 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मास्को का प्रवास किया। सोवियत संघ के पतन के बाद भारत और रूस के संबंधों को पुनर्जीवित करने में रूस के वर्तमान राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दो दशकों से वे रूस की बागड़ोर संभाल रहे हैं। सन 2000 में पुतिन के भारत प्रवास में पहली बार वार्षिक शिखर बैठक हुई थी। इस तरह की बैठकें अब अविरत चल रही हैं।

ईरान को घेरने की अमेरिका की एकतरफ़ा कोशिश से सारी दुनिया के सामने दुविधा पैदा की है। भारत ने ईरान से तेल खरीदने पर अमेरिका सवाल उठा रहा है। इस पर भारत ने अपने देशहित को ध्यान में रख कर ईरान से तेल खरीदना जारी रखा है। ऐसी स्थिति में हमें अमेरिका से नाराजगी भी नहीं लेनी है। वैसे अमेरिका के साथ जुड़े रहने से हम अमेरिका के जरिए पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों पर दबाव रख सकते हैं। यदि इस सामरिक विषय के महत्व पर ध्यान  दिया जाता है तो, अमेरिका का अपने साथ रहना अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज के समय में भारत दुनिया की उभरती शक्ति है। रूस और ईरान के संदर्भ में भारत अपने राष्ट्रहित को ध्यान में रख कर निर्णय ले रहा है। यह भारत का विश्वास दर्शाने वाली बात है।

अमेरिका, रूस और भारत के संबंधों के विकास का आकलन करते समय अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के माध्यम से हमें सोचना अत्यंत आवश्यक है। आज की स्थिति में आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से विश्व के मंच पर उभर रहे भारत के साथ संबंध अच्छे रखना रूस और अमेरिका दोनों महाशक्तियों के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। इन दोनों देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से दोस्ती की परंपरा को भारत किस प्रकार से आगे बढ़ाता है, यह इस बात पर निर्भर है कि हमारे संबंध इन दोनों देशों के साथ किस प्रकार से बेहतर होते हैं।

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