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फैशन उद्योग

फैशन उद्योग

by किरण बाला
in फ़ैशन, फैशन दीपावली विशेषांक - नवम्बर २०१८, विशेष
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भारतीय फैशन उद्योग का देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में 14 प्रतिशत हिस्सा है और सकल घरेलू उत्पाद का 8 प्रतिशत इसी उद्योग से प्राप्त होता है। इतना ही नहीं भारतीय फैशन उद्योग लगभग 38 मिलियन लोगों को स्वरोजगार एवं रोजगार प्रदान करता है। इस उद्योग में एक बार पहचान बन जाए तो अपार संभावनाओं के द्वार खुलते हैं।

फैशन से तात्पर्य है ढंग या शैली, जबकि लोक व्यवहार में फैशन का अर्थ वस्त्र पहनने की कला है। प्राचीन काल में ‘सादा जीवन-उच्च विचार’ की विचारधारा पर जीवन प्रणाली चलती थी और वस्त्रों का महत्व केवल शरीर को अच्छी प्रकार से ढांकने तक ही सीमित था। साफ-सुथरे वस्त्र होना ही पर्याप्त होता था, बहुत ज्यादा कपड़ों की आवश्यकता ही नहीं समझी जाती थी। चार जोड़े होने चाहिए, जब वे फट जाएं तो चार जोड़े और सिलवा लिए जाएं। किसी शादी या त्यौहार प

 

र ही अधिकांश नए कपड़े बनवाने का चलन था और एक कपड़े का अनेक बार प्रयोग करते थे। वन टाइम की कोई थ्योरी उस समय प्रचलन में नहीं थी। धन का अभाव भी इसका कारण माना जा सकता है और वस्त्रों पर इतना धन खर्च करना फिजूल खर्ची माना जाता था।

भारत अनूठी परम्पराओं और सांस्कृतिक विविधताओं वाला देश है। इसके प्रत्येक राज्य में वहां का पहनावा व कपड़ा एक विरासत के तौर पर मौजूद है। हर राज्य की अपनी शैली व फैशन के साथ-साथ परम्परागत उद्योगों, वस्त्रों, कढ़ाई के रूपों में समृद्धि व विविधता भी दिखाई पड़ती है।

आधुनिक फैशन की दुनिया इतनी अधिक परिवर्तनशील है कि जो पहनावे आज प्रचलित है पता नहीं उसकी कितनी उम्र है और नया क्या आने वाला है। वैश्वीकरण के इस दौर में पश्चिम के रहन-सहन के साथ-साथ पूरे विश्व में यूरोप के पहनावे को भी प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे में भारत जैसा विकासशील देश भला कैसे अछूता रह सकता है।

आज फैशन विश्वभर में एक उद्योग का रूप ले चुका है। भारतीय फैशन उद्योग का देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में 14 प्रतिशत हिस्सा है और सकल घरेलू उत्पाद का 8 प्रतिशत इसी उद्योग से प्राप्त होता है। इतना ही नहीं भारतीय फैशन उद्योग लगभग 38 मिलियन लोगों को स्वरोजगार एवं रोजगार प्रदान करता है। भारत के कुल निर्यात में भी फैशन उद्योग की 21 प्रतिशत की हिस्सेदारी है।

सर ‘फ्रांसिस बेकन’ के अनुसार ‘फैशन जीवित रूपों और सामाजिक व्यवहार में कला को साकार करने का प्रयास मात्र है।’ फैशन मात्र पहनावा ही नहीं बल्कि आचार एवं व्यवहार ( lifestyle ) भी इसमें समाहित रहता है। प्राचीन काल से ही भारत के दूसरे देशों के साथ हर प्रकार के व्यापारिक संबंध रहे हैं और उस समय में भी विदेशों में भारतीय कपड़े लोकप्रिय थे। भारतीय सूती, मलमल तथा रेशमी वस्त्र यूरोपीय देशों में लोकप्रिय थे। वैश्वीकरण के कारण तथा अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों के कारण एक देश की संस्कृति ने दूसरे देशों की संस्कृतियों को भी प्रभावित किया है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय पहनावे को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है। वर्तमान में भारतीय कपड़ों के मुख्य बाजार हैं- संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा तथा रूस।

दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरू, चैन्नई, पुणे, हैदराबाद एवं लखनऊ जैसे महानगर फैशन उद्योग के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। फैशन की कई शाखाएं हैं। इसमें फैशन डिजाइनिंग व टैक्सटाइल डिजाइनिंग जैसे कोर्स करने के बाद लगभग सभी को इसमें रोजगार उपलब्ध हो सकता है। फैशन व टैक्सटाइल के क्षेत्र में डिजाइनरों के लिए कपड़ा मिल, डिजाइन स्टूडियो तथा एक्सपोर्ट हाउस के साथ सरकारी व गैर सरकारी संगठनों में भी रोजगार के पर्याप्त अवसर सुलभ हैं।

रोजगार के तहत स्वतंत्र डिजाइनर के रूप में एक उद्यमी के तौर पर कैरियर बनाया जा सकता है। फैशन के बढ़ते प्रचार-प्रसार के चलते भारत सरकार के कई सरकारी व निजी संस्थानों में इससे संबंधित पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

वर्ष 2006 में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस ने फैशन व्यापार का पाठ्यक्रम आरम्भ किया था। इसी क्रम में फाउण्डेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना वर्ष 2008 में की गई। जिसका उद्देश्य भारतीय फैशन उद्योग को विश्वस्तरीय बनाना है।

भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के तत्वावधान में रार्ष्ट्ीय फैशन टैक्नालॉजी एवं इंडियन इस्टीटूयूट ऑॅफ फैशन टैक्नोलॉजी (आईआईएफटी) अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों की भांति फैशन प्रौद्योगिकी में शिक्षा के विकास और अनुसंधानों के लिए सांविधिक श्रेणी प्रदान की गई है। निफ्ट एक बहु शिक्षा प्रदान करने वाला बहुआयामी संस्थान है जो निरंतर पथप्रदर्शक की भूमिका का भी निर्वहन करता है। निफ्ट ने अपने इन केन्द्रों में फैशन, शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण के लिए एक मंच उपलब्ध कराया है। इतना ही नहीं निफ्ट ने अपना संस्थान भारत से बाहर मारीशस में भी स्थापित किया है जिससे भारतीय फैशन को प्रशिक्षण के माध्यम से और अधिक विस्तार मिल सके।

भारत वर्ष में पहली बार वर्श 1932 में ताज होटल में फैशन शो का आयोजन किया गया था। वर्ष 1982 में ‘फेमिना मिस इंडिया प्रतियोगिता की शुुरूआत हुई थी। और तब से लेकर आज तक भारत की अनेक सुंदरियों को मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स के खिताब से नवाजा गया है।

एक सर्वे के अनुसार भारत भी फैशन उद्योग में लगभग दो सौ करोड़ का कारोबार कर रहा है और बड़े फैशन डिजाइनरों की सालाना बिक्री लगभग दो करोड़ रूपए आंकी जा रही है। फैशन उद्योग को और अधिक विस्तार देने के लिए सरकार द्वारा (एफडीपीसी) फैशन एंड डिजाइन प्रमोशन कांउसिल का गठन भी किया गया है। लगातार विकसित होते फैशन उद्योग अब केवल भारत में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय फैशन के क्षेत्र में भी एक बड़ा उद्योग बनकर उभर रहा है।

फैशन जगत की शाखाओं की यदि बात की जाए तो इसमें अनेक विकल्प उपलब्ध है। छात्र अपनी रूचि के अनुसार विकल्प चुनकर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। फैशन कम्युनिकेशन, फैशन स्टाइलिंग, फैशन फोटोग्राफी, डिजाइन विभाग, फैशन-को-आर्डिनेटर, क्रिएटिविटी, मार्केट रिसर्च आदि अनेक शाखाएं उपलब्ध हैं जिसमें प्रत्येक का अपना अलग महत्व है और हर क्षेत्र में असीम सम्भावनाएं विद्यमान हैं मात्र आपको अपनी रूचि और क्षमता के अनुरूप सही विषय का चयन करना चाहिए।

फैशन स्टाइलिंग, भारत में अभी यह विषय नया अवश्य है लेकिन इसमें सम्भावनाएं तलाश कर इसे सफल कैरियर के रूप में अपनाया जा सकता है। इस कोर्स के तहत मेकअप, हेयर स्टाइलिंग, फोटोग्राफी, कम्प्यूटर के साथ-साथ टूल्स तथा टेक्नीक्स और स्किल्स में भी प्रशिक्षित किया जाता है।

इसी प्रकार फैशन पत्रकारिता में भी बेहतरीन विकल्प है क्योंकि फैशन उद्योग में टीवी प्रोग्राम बनाने तथा अच्छे लेखन में सम्भावनाएं हैं। फैशन पत्रकारिता में पूर्णरूपेण या फिर फ्रीलांस के रूप में भी काम किया जा सकता है। फैशन से जुड़े विज्ञापन, एजेंसी, इवेंट मैनेजमैंट आर्गेनाइजेषन भी अपने पैनल में फैशन पत्रकारों को शामिल करते हैं। कैरियर के लिए बहुत सम्भावनाएं हैं इसमें।

इसी क्रम में फैशन फोटोग्राफी, जिसे फैशन जर्नलिज्म भी कहते हैं, कपड़ों की खूबसूरत तस्वीरों के माध्यम से बाजार को लुभाने में सफल होती है। फैशन फोटोग्राफी में रोजगार की असीम सम्भावनाएं दिखाई पड़ती हैं। मैन्युफैक्चरिंग तथा डिजाइन विभाग के तहत डिजाइनर, कटिंग असिस्टेंट, स्केचिंग आदि काम करके पहला नमूना तैयार करते हैं। मैन्यफैक्चरिंग इकाई का मुख्य उत्पादन प्रबंधक होता है और प्रोडक्शन मैंनेजर हर चरण के कार्यों की निगरानी अपने सहायक के माध्यम से करते हैं। इसके पश्चात ग्राहक और उत्पादन प्रबंधक के बीच तालमेल बैठाने वाले का काम फैशन को-ऑर्डिनेटर को करना होता है। कपड़े के सही रंग, डिजाइन तथा क्वालिटी की पहचान कर फैशन ट्रेंड के विषय में अग्रिम जानकारी, खरीदारों के साथ मीटिंग करवाना होता है।

समय के साथ बदलते वैश्वीकरण के बाजार में कौन सा ट्र्र्र्र्र्रेन्ड लोगों को पसंद आ रहा है, किस कलर की डिमांड ग्राहकों में ज्यादा है इसे मार्केट के मिज़ाज को देखते हुए तय किया जाता है। फैशन उद्योग में विशिष्ट और साधारण होने के बीच सबसे बड़ा अंतर नकल और दूसरों के कथन अनुसार कार्य करना है। रचनात्मक व सबसे अलग कुछ करने की भावना ही इसमें सफलता के लिए आवश्यक है। एक सफल उद्यमी की पहली और आवश्यक शर्त ही यही है कि वह पहले के निर्धारित मानदण्डों से बाहर निकल कर अपनी रचनात्मकता दर्शाए न कि कॉरपोरेट के आदेशों को आंख मूद कर स्वीकार करे।

फैशन के क्षेत्र में स्वयं को स्थापित करने के लिए फैशन संबंधी आधारभूत जानकारी, बाजार की मांग, ग्राहकों की पसंद तथा वर्तमान में प्रचलित रंग, टैक्सचर की पहचान होना बहुत आवश्यक है। एक फैशन डिजाइनर अपनी दूरदर्शिता व रचनात्मकता से कपड़ों का एक नया संसार बना सकता है। चुनौतियों का सामना डटकर करें, तप कर सोना खरा होता है। हर काम में मेहनत, लगन, जोश और होश कायम रखना अतिआवश्यक है। काम घर से सीखकर नहीं आता, दुनिया के थपेड़े व संघर्ष एक व्यक्ति को उसकी मंजिल तक पहुंचाने का कार्य करते हैं।

वर्तमान में युवा वर्ग फैशन उद्योग व ग्लैमर से जितना प्रभावित है उतना ही उसमें आने की भी उसे जल्दी है। अब पहनावा केवल शरीर ढंकने और सुंदर दिखने के लिए ही नहीं बल्कि स्टेटस व फैशन का सिंबल बन चुका है। खुदरा बाजार में आज भारतीय परिधानों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है। विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में खुदरा बाजार में भारत की भी हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से अधिक हो सकती है। कपड़ा मंत्रालय ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं जिससे वैश्विक कपड़ा बाजार में भारत की भागीदारी में तेजी आने की सम्भावनाएं मौजूद हैं।

फैशन उद्योग में वेतन भी अच्छा खासा मिल जाता है। इस क्षेत्र में एक बार पहचान मिल जाने पर नाम, शोहरत और सफलता हासिल की जा सकती है। कुछ वर्षोंं के अनुभव के पश्चात खुद का फैशन हाउस या बुटीक खोलकर अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। वर्तमान में फैशन के प्रति लोगों का आकर्षण बहुत बढ़ गया है, कपड़ों के साथ मैंचिंग ज्वैलरी की भी जबरदस्त मांग है। जैसा कि अधिकतर टीवी एवं सिनेमा में दिखाई पड़ता है केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरूष वर्ग भी फैशन के क्रेज से अछूता नहीं है।

 

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