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नीला सियार

नीला सियार

by हिंदी विवेक
in कहानी
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एक जंगल में एक बहुत ही दुष्ट सियार रहता था. जंगल के सभी जानवर उससे बेहद परेशान थे. यहां तक कि बाकी के सियार भी उससे तंग आ चुके थे, क्योंकि वो ख़ुद को सबसे श्रेष्ठ समझता था और यहां कि बात वहां लगाकर सब में फूट डालता था. एक दिन दुष्ट सियार शिकार की तलाश में जंगल से काफ़ी दूर निकल आया और एक बस्ती में जा पहुंचा. वहां कुत्तों की टोली सियार के पीछे पड़ गई. दुष्ट सियार जान बचाने के लिए भागा और भागते-भागते वो एक रंग से भरे ड्रम में जा गिरा. वो चुपचाप उस ड्रम में ही पड़ा रहा. जब उसे लगा कि ख़तरा टल गया, तो वो ड्रम से बाहर आया, लेकिन तब तक उसका पूरा शरीर ड्रम में भरे नीले रंग से रंग चुका था. वो जंगल में आया, तो उसने देखा कि उसके नीले रंग को देखकर सभी जानवर उससे डरकर भाग रहे हैं. सबको ख़ुद से यूं डरता देख दुष्ट सियार के मन में एक योजना आई.

डरकर भागते जानवरों को रंगे सियार ने आवाज़ दी, “भागो मत, मेरी बात सुनो. मेरी तरफ़ देखो. मेरा रंग कितना अलग है. ऐसा रंग किसी जानवर का नहीं है? दरअसल, भगवान ने मुझे यह ख़ास रंग तुम्हारे पास भेजा है. मैं तुम सबको भगवान का संदेश सुनाऊंगा. ब्रह्माजी ने मुझे स्वयं अपने हाथों से यह अनोखा रंग देकर रचा है. उन्होंने मुझसे कहा कि संसार में जानवरों का कोई राजा नहीं है, इसलिए तुम्हें जाकर जानवरों का राजा बनकर उनका कल्याण करना है. सभी वन्य जीव तुम्हारी प्रजा होंगे. अब तुम लोग अनाथ नहीं रहे. मेरी राज में निडर होकर रहो. लेकिन ध्यान रहे, जो भी मेरी बात नहीं मानेगा, वो भस्म हो जाएगा.”

सभी जानवरों पर सियार की जादुई बातों का बहुत असर हुआ, यहां तक कि बाघ, शेर, चीता तक उसकी बातों में आ गए. सभी जानवर उसके चरणों में लोटने लगे और बोले, “हम आपको अपना सम्राट स्वीकार करते हैं, आप ब्रह्मा के साक्षात दूत बनकर आए हैं, हम भगवान की इच्छा का पालन.”

रंगा सियार पंजा उठाकर बोला, “तुम्हें अपने सम्राट की सेवा और आदर करना चाहिए. हमारे खाने-पीने का शाही प्रबंध करो.”
बस, सम्राट बने रंगे सियार के शाही ठाठ हो गए और वो राजसी शान से रहने लगा. सियार जिस जीव का मांस खाने की इच्छा ज़ाहिर करता, वो उसे परोस दिया जाता. शेर, चीता और हाथी जैसी शक्तिशाली जानवरों को उसने अपना सेनापति बना रखा था और सियरों की टोली व जिन जानवरों को वो नापसंद करता था, उनको उसने जंगल से बाहर करवा दिया था. उसे अपनी जाति के सियारों द्वारा पहचान लिए जाने का ख़तरा भी था.

एक दिन नीला सियार खूब खा-पीकर अपने शाही मांद में आराम कर रहा था कि बाहर उजाला देखकर बाहर की ओर चला आया. चांदनी रात थी और पास के जंगल में सियारों की टोलियां अपनी आवाज़ में ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थीं. उनकी आवाज़ को सुनते ही रंगा सियार भी भूल गया कि उसने क्या कपट किया है और उसके अदंर के जन्मजात स्वभाव ने ज़ोर मारा. वो भी चांद की ओर मुंह उठाकर सियारों के स्वर में स्वर मिलाकर ज़ोर-ज़ोर से अपनी बोली में चिल्ला पड़ा.

बाकी के जानवारों सहित शेर और बाघ ने उसे देख लिया, तो वो चौंक गए और उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह कोई और नहीं, सियार ही है, जो धोखा देकर सम्राट बना रहा. शेर और बाघ उसकी ओर लपके और देखते ही देखते उसका तिया-पांचा कर डाला.

सीख: जैसी करनी, वैसी भरनी. छल, कपट, झूठ और धूर्तता का फल एक न एक दिन ज़रूर मिलता है.

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