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दो नावों पर सवार

by डॉ. सुषमा श्रीराव
in मई २०१७, महिला
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महिलाओं को सुपर वुमन बनने में और खुद को नजरअंदाज करने में महानता का अहसास होता है। यह सोच बदलनी होगी। कामकाजी महिला हो तो घर के सभी की मिलजुलकर काम करने की जिम्मेदारी बढ़ती है। इस नए परिवेश को अपनाए बगैर और कोई चारा नहीं है।

प्रिया की सुबह की गहमागहमी, अफरातफरी मची हुई है। ऑफिस के लिए तैयार होना, खाना बनाना, टिफिन लेना और भी अनगिनत काम। तभी उसकी तीन साल की बेटी दौड़ कर उसके पैरों में लिपट जाती है।
“मम्मा…आज ऑफिस मत जाओ ना” काम समेटते हुए हाथों और विचारों पर एकदम से ब्रेक लग जाता है। कैसे समझाए? उसे जाना ही होगा। दिल भर आता है। पूरे दिन ऑफिस में बेटी का मासूम चेहरा आंखों के सामने और उसके शब्द कानों में गूंजते रहते हैं। आजकल हर कामकाजी महिला केवल शारीरिक और मानसिक ही नहीं बल्कि इस तरह की भावनात्मक परेशानियों से भी जूझ रही है।

एक समय था, जब हम यह सोच भी नहीं सकते थे, कि हमारे समाज में महिलाएं पुरुषों की तरह कमाने लगेेंगी। लेकिन अब वक्त बदल गया है, महिलाएं उच्चशिक्षित होने लगी हैं। विभिन्न क्षेत्रों के विकास में उनका पूरा पूरा योगदान है।
भारत ने इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) मिशन के तहत एकसाथ १०४ सैटलाइट सफलता से लांच कर जो विश्व रिकार्ड कायम किया है, उसमें इसरो की उच्चपदस्थ महिला वैज्ञानिकों के साथ-साथ वहां कार्यरत अन्य महिलाओं का भी बड़ा योगदान है। सोशल मीडिया पर वाइरल होती उन ८ महिला वैज्ञानिकों के फोटो गर्व की अनुभूति कराते हैं।

पारंपारिक व्यवहार की उम्मीद
महिलाएं कमाने लगी हैं, ऊचे पदों पर आसीन हैं। लेकिन इसके बावजूद हम उनसे उसी पारंपारिक व्यवहार की उम्मीद करते हैं, जो हमें अपनी सुविधानुसार ठीक लगे। हमारे घरों में अभी भी कुछ नहीं बदला है। खाना बनाना, पति-बच्चों और सास-ससुर की देखभाल करना, महिलाओं का ही काम समझा जाता है। इतना ही नहीं आने वाले रिश्तेदारों की खातिरदारी, व्रत त्योहार उपवास आदि भी महिलाओं के ही जिम्मे हैं। महिलाओं के शिक्षित होने के कारण उनके काम का दायरा बढ़ा है और कामयाबी भी, लेकिन कामयाबी के बावजूद जो सहयोग उन्हें परिवार से मिलना चाहिए वह नहीं मिलता।
मीरा का संयुक्त परिवार है। वह कामकाजी है मगर घर के काम में उसकी आधी हिस्सेदारी है। ऑफिस से आने में भले ही उसे देर हो जाए या थकान हो जाए, उसे छुटकारा नहीं है। उसके काम से घर में सब को शिकायत है। मगर उसके आने वाले पैसे घर में कितनी मदद करते हैं यह कोई नहीं सोचता।
कामकाजी महिला इतनी मेहनत और निबाहने के बावजूद क्या वह स्वतंत्र है? अपने कमाएं पैसेे स्वेच्छा से खर्च कर सकती है? यह भी एक शोध का विषय है।

दोहरा बोझ
आफिस में अत्यंत कार्यकुशल समझी जाने वाली सीमा, घर की अतिरिक्त जिम्मेदारियों का बंटवारा चाहकर भी नहीं कर पाई है। बच्चों से लेकर ग्रॉसरी तक का ख्याल उसे ही रखना होता है। पति इसमें उसकी कोई भी मदद नहीं करते। उनकी सोच हैं कि ये सारे औरतों के काम हैं और ये सीमा को ही करने चाहिए। नौकरी वह अपनी खुशी के लिए कर रही है। उन पर कोई उपकार नहीं है, ना करना चाहे तो छोड़ दे। उस समय तो ये भूल जाते हैं कि सीमा की तनख्वह से मिलने वाले पैसे ने ही उनका जीवन स्तर बेहतर बनाने में मदद की है। घर और वाहन की मासिक किश्तें सीमा की तनख्वाह से जाती हैं। इसलिए नौकरी छोड़ने की बात कहना हास्यास्पद है।
महानगर की महिलाओं की समस्या ज्यादा गंभीर है। ८ घंटे आफिस में बिताना, उसके बाद और उसके पहले २-३ घंटे ट्रेन और आटो की जद्दोजहद उन्हें इतना थका देती है कि घर का कामकाज करना मुश्किल हो जाता है। इसी तरह का सफर पूरा करके आए पति थकान उतार रहे होते हैं पर पत्नी चाय, नाश्ते और खाने का इंतजाम कर रही होती है।
काम में मदद की अपेक्षा या ना कहने पर वे बुरी पत्नी या बहू साबित हो जाती है। इस वजह का दोहरा बोझ उनमें नकारात्मकता, नैराश्य के साथ- साथ जीने की लालसा भी कम कर रहा है।

बदल रही है, सोच
बदलाव की शुरुआत हो गई है, आज की युवा पीढ़ी इन सब मामलों में ज्यादा मुखर है और मिलजुल कर काम करने में विश्वास रखती है। आजकल लड़कों को पढ़ने के लिए घर से बाहर छात्रावास और विदेशों में रहना पड़ता है। जहां उन्हें अपने सभी काम स्वयं ही करने पड़ते हैं। कई बार खाने के लिए छोटी मोटी चीजें भी बनानी पड़ती हैं। कामकाजी पत्नी को आफिस से थकाहारा आते देख चाय बना कर पिलाने में उन्हें कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं होती। बच्चों का होमवर्क, उनकी जरूरतें व अन्य छोटे मोटे काम सहजता से निपटा लेते हैं। इससे महिला अतिरिक्त दबाव से मुक्त हो जाती है साथ ही उनके आपसी रिश्ते भी मजबूत होते हैं।

देखा गया है कि एैसे परिवार जिनमें सास कामकाजी महिला थी, अपनी कामकाजी बहू को काफी सहयोग करती है। क्योंकि वे भुक्तभोगी होती है और उस दोहरे बोझ वाले कठिन दौर से गुजर चुकी होती है। मदद करने के मामले में वे अपने परिवार वालों और बेटे को भी डांटने से गुरेज नहीं करती। फलस्वरूप सास-बहू के रिश्ते में मिठास और परिवार में सुखशांति बनी रहती है।

रिश्तों में बढ़ता प्यार..
हर महिला की प्राथमिकता उसका पति, बच्चे और परिवार वाले होते हैं। वह सब से बहुत प्यार करती है परंतु चाह कर भी उन्हें समय नहीं दे पाती। रिया ने अपनी समझदारी से पति, बच्चों, सास-ससूर और कामवाली बाई की मदद से सब कुछ इस तरह संभाला कि अब वह सब को समय दे पाती है। यही नहीं उसके परिवारजन भी उपेक्षित महसूस नहीं करते। अब छुट्टी वाले दिन रिश्तेदारों से मिलना या उन्हें अपने घर बुलाना भी संभव हो गया है। उनके रिश्तों में अपनापन और प्यार बढ़ गया है और सभी काम के बंटवारे के महत्व को समझ गए हैं।
रश्मि, उसकी बहू और बेटा तीनों कामकाजी हैं। रश्मि ने नियम बनाया है कि जो आफिस से पहले आएगा, खाने की शुरुआती तैयारी करके रखेगा। बाद में सब मिल कर चुटकियों में सब निपटा देते हैं।

टिप्स…
* सारे काम अकेले करके वाहवाही लूटने की कोशिश न करें। पति-पत्नी घर के कामों के अलावा, आर्थिक जिम्मेदारी भी आपस में बांट लें। इससे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रुप से कोई एक नहीं थकेगा। सब कुछ सरल हो जाएगा।
* घर के बड़े बुर्जुगों को भी किसी ना किसी काम से जोड़े रखें, इससे उनका अकेलापन भी दूर होगा और वे स्वस्थ भी रहेंगे। यह सब उनकी भावनाओं को ध्यान में रख कर आदर से करें, उन्हें अपेक्षाओं और जिम्मेदारियों में ना जकड़े तभी वे कामकाजी बहू की समस्याओं को समझेंगे और स्वयं आपके पास आएंगे।
* शोध बताते हैं कि घर और आफिस के काम में महिलाएं, इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि खुद की सेहत का ध्यान नहीं रख पाती। स्वास्थ्य सबंधी समस्याएं घेर लेती हैं और वे ठीक तरह से अपनी जिम्मेदारयां नहीं निभा पातीं। अत: महिलाओं के लिए आवश्यक है कि वे पौष्टिक आहार, दूध और फलों को खानपान में शामिल करें।
* ज्यादातर महिलाओं को परिवार के लिए त्याग करते हुए और परिवार वालों के लिए खुद की खुशी को त्याग करते हुए देखा गया है। इसलिए अन्य भी जाने अनजाने खुद को भी उसी तरह ढाल लेती हैं। जिंदगीभर दूसरों का सम्मान, दूसरों के लिए त्याग और समर्पण करती रहती हैं। शायद यह भी एक कारण हो सकता है कि अभी भी पुरुषों की घर के रोज के कामों में सहभागिता ना के बराबर है। अत: यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इन तमाम परिस्थितियों के लिए कुछ हद तक महिलाएं खुद ही जिम्मेदार हैं। उन्हें सुपर वुमन बनने में और खुद को नजरअंदाज करने में महानता का अहसास होता है। पहले महिलाओं को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। उन्हें घरवालों को अहसास दिलाना होगा की जितनी जिम्मेदारी वह उठाती हैं, प्यार और अपनापन सब को देती है, उतना उन्हेंे भी चाहिए।
* इसी तरह परिवार भी समझें कि किसी भी रिश्ते में एकतरफा जिम्मेदारी संभव नहीं, कामों को बांट कर सामंजस्य बिठाना होगा। पति भी पत्नी का सहयोग करें और अपनी परंपरागत छवि से निकल कर गृहस्थी चलाने में अपना सहयोग दें।
* याद रखें, किसी भी घर में जहां मिलजुलकर कार्य किए जाते हैं वहां जिम्मेदारी तो बढ़ती ही है, आपसी समझ और प्यार भी बढ़ता है।

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