देर से ही सही पर मिल गया न्याय
यह जीत एक उम्मीद जगाती है कि एक मां की जिद, एक पिता का हौसला और सीमा कुशवाहा जैसे वकीलों का जूनून जब एक साथ मिलता है, तो निर्भया की तरह देश की हर बेटी को न्याय मिल सकता है।
यह जीत एक उम्मीद जगाती है कि एक मां की जिद, एक पिता का हौसला और सीमा कुशवाहा जैसे वकीलों का जूनून जब एक साथ मिलता है, तो निर्भया की तरह देश की हर बेटी को न्याय मिल सकता है।
मानसिक तैयारी और शारीरिक तैयारी आपको बीमारियों के कष्ट को कम करने में बहुत मदद कर सकती है। खान - पान, नियमित व्यायाम शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने का पहला हथियार है। कष्ट को टाले नहीं, डॉक्टरी सलाह समय पर अवश्य लें।
भारतीय नारी के इस शक्ति स्वरूप की विषद् व्याख्या भारतीय वाङ्मय में मिलती है। ... पुराण काल से वर्तमान समय तक हमारी भारतभूमि तमाम ऐसी पुरुषार्थ साधिकाओं के शौर्य से गौरवान्वित होती आ रही है।
जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों विशेष कर महिलाओं में भी जागरूकता फैलें और वे अपनी परेशानियों में दब कर ना रहें। इसके लिए परिवार का संवेदनात्मक सहयोग जरूरी है।
महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग करियर की संकल्पना ही गलत है। आज कुछ ऐसे हटके करियर ऑप्शन्स उपलब्ध हैं, जिनमें पिछले कई सालों में महिलाओं का बोलबाला रहा है।
हम सभी के लिए शर्मसार होने वाली बात है कि ’घरेलू हिंसा’ को आज भी हर परिवार का आंतरिक मामला ही समझा जाता है। इन घटनाओं को रोकने के बजाय लोग इनसे दूरी बना लेना बेहतर समझते हैं। आखिर कब जागेगी दुर्गा?
महिला आंदोलनों में ग्रामीण महिलाओं की आवाज दब कर रह गई है। आज जो कुछ भी अधिकार मिल रहे हैं वे सिर्फ शहरी मध्यम वर्ग की महिलाएं प्राप्त कर रही हैं।
महिलाओं को मानसिक रूप से सशक्त और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ ही सकारात्मक, मितभाषी और मित्रवत बने रहना चाहिए, वरना उनमें और पुरुषों में फर्क ही क्या रह जाएगा। महिलाओं के इसी गुण की वजह से ही तो उन्हें ‘देवी’ की संज्ञा दी जाती है।
नारी की महान शक्ति स्रोत को पहचान कर ही भारत ने उसे सदा नमन किया है। वर्तमान सरकार ने भारतीय स्त्री को आर्थिक, शैक्षिक तथा भावनात्मक रूप से स्थिर और उन्नत बनाने के लिए सदैव ही प्रयास किए हैं और कई सहायता योजनाएं जारी की हैं।
अकसर लोग किसी की नज़र लग जाने से अपने आपको दुबला हुआ मान लेते हैं, पर इन मोटों को तो किसी की नज़र भी नहीं छूती। क्योंकि, तन तो मोटा हो गया, जिसने मन को दुबला बना दिया।
रेप’ या ’बलात्कार’... एक ऐसा शब्द, जो बोलने या सुनने में तो बहुत छोटा-सा लगता है, लेकिन इसकी पीड़ा कितनी लंबी और दुखदायी हो सकती है, इसका अंदाजा सिर्फ और सिर्फ वही लगा सकती है, जिसके साथ यह बर्बरता होती है। बाकी लोग बस इसके बारे में तरह-तरह की बातें ही कर सकते हैं।
वैदिक काल से लेकर आज तक महिलाओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में अभूतपूर्व काम किया है। सामाजिक प्रश्नों पर आंदोलनों के साथ-राजनीति में भी वे अगुवा रहीं। वे महिलाओं व बच्चों की सुरक्षा के उपाय लागू करने और कानून बनाने में सहायक रही हैं। भारतीय संस्कृति की उदारता के कारण यह संभव हो पाया है।