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कोविंद होंगे नए राष्ट्रपति

by डॉ.मनोज चतुर्वेदी
in जुलाई २०१७, राजनीति, व्यक्तित्व
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राजनीतिक दल भले ही आम सहमति की बातें करें परंतु यह चुनाव सदा से ही मुकाबले का रहा है। प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद का मुकाबला भी चार उम्मीदवारों के साथ हुआ। १९७७ में श्रीमती इंदिरा गांधी चुनाव हार गयी थी। केवल उसी समय पहली बार नीलम संजीव रेड्डी के मुकाबले कोई नहीं उतरा तथा वे निर्विरोध निर्वाचित हुए। डॉ.राजेन्द्र प्रसाद से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तक ने चुनावी मुकाबले का सामना किया है। भाजपा ने इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि उसकी तरफ से एक ऐसा उम्मीदवार हो जो कि सर्वसम्मति के लायक हो तथा भारतीय जनता में ‘सबका साथ-सबका विकास‘ रूपी नारे का सकारात्मक संदेश जाए।

स त्ता पक्ष और विपक्ष की तमाम दावेदारियों, उठापठक और विचार-विमर्श के बीच राजग ने बिहार के राज्यपाल ‘रामनाथ कोविंद‘ को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित कर पूरे विपक्ष के मुंह पर ताला जड़ दिया है। सौम्य, विद्वान और विवादों से दूर रहने वाले कोविंद की जीत लगभग तय है क्योंकि हाल फिलहाल के समय में मोदी सरकार की हर नीति का विरोध कर रही शिवसेना भी पक्ष में बोल रही है। मायावती की बोलती बंद है। नीतिश के भी साथ आने की संभावना प्रबल है। चूंकि इस चुनाव में पार्टी की व्हिप का बंधन नहीं होता अतः कुछ संसद अथवा विधानसभा सदस्य वयक्तिगत आधार पर भी मत प्रयोग कर सकते हैं।

वर्तमान में बिहार के राजभवन की शोभा बढ़ा रहे कोविंद दो बार राज्य सभा के सदस्य के साथ ही साथ भाजपा के दलित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। वर्तमान धुर राजग और मोदी विरोधी नीतिश कुमार द्वारा शासित राज्य का राज्यपाल होने के बावजूद पिछले दो वर्षों में पटना में उनके बीच कड़वाहट की कोई खबर नहीं आई बल्कि बिहार के मुख्यमंत्री मे अप्रत्यक्ष तौर पर उनकी दावेदारी का समर्थन भी किया। यह अंक आपके हाथों में पहुंचने तक शायद विपक्ष भी अपने उम्मीदवार की घोषणा कर चुका होगा पर, कोई बड़ा उलटफेर न हो तो, रामनाथ कोविंद के रायसीना पहुंचने की राह में कोई संकट नहीं दिखाई पड़ता है।

राष्ट्रपति चुनाव का इतिहास यह बताता है कि राजनीतिक दल भले ही आम सहमति की बातें करें परंतु यह चुनाव सदा से ही मुकाबले का रहा है। प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद का मुकाबला भी चार उम्मीदवारों के साथ हुआ। १९७७ में श्रीमती इंदिरा गांधी चुनाव हार गयी थी। केवल उसी समय पहली बार नीलम संजीव रेड्डी के मुकाबले कोई नहीं उतरा तथा वे निर्विरोध निर्वाचित हुए। डॉ.राजेन्द्र प्रसाद से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तक ने चुनावी मुकाबले का सामना किया है। भाजपा ने इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि उसकी तरफ से एक ऐसा उम्मीदवार हो जो कि सर्वसम्मति के लायक हो तथा भारतीय जनता में ‘सबका साथ-सबका विकास‘ रूपी नारे का सकारात्मक संदेश जाए।

वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी पहले ही अपने कार्यकाल के अगे बढ़ने की बात का बखूबी जवाब दे चुके हैं कि ‘मेरा कार्यकाल दो महीने तक रह गया है। २५ जुलाई से नए राष्ट्रपति का कार्यकाल शुरु हो जाएगा। मैं अपने साथ कार्य कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों को नई पोस्ंिटग के लिए बधाई देता हूं। पूरे कार्यकाल के दौरान संवैधानिक ढांचे की परिपाटी में वे कितना फिट साबित हुए इसका आंकलन वे खुद नहीं करेंगे। इसका आंकलन सरकार, अधिकारियों, कर्मचारियों एवं जनता द्वारा किया जाएगा।‘

भारतीय संविधान में संघीय भारत के तीन मुख्य अंग हैं-कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका। भारत सरकार में संसदीय सरकार की स्थापना की गयी हैैं। इसमें जनता और जनता के प्रतिनिधियों का ही शासन होता है। संसदीय सरकार में कार्यपालिका दो तरह की होती है। औपचारिक कार्यपालिका तथा अनौपचारिक कार्यपालिका। भारतीय संविधान में राष्ट्रपति औपचारिक कार्यपालिका है क्योंकि शासन के समस्त कार्य उसके द्वारा ही संपादित किए जाते हैं। इसके साथ ही प्रधानमंत्री (मंत्री परिषद) वास्तविक कार्यपालिका है क्योंकि वही शासन शक्तियों का प्रयोग करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद ५३ में कहा गया हैै,‘संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी तथा वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार एवं अधीनस्थ पदाधिकारियों द्वारा करेगा।‘ इसको स्पष्ट करते हुए डॉ.आंबेडकर ने कहा,‘भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को वहीं स्थिति प्राप्त है जो ब्रिटिश संविधान में सम्राट को प्राप्त है। वह राज्य का प्रधान है,परंतु कार्यपालिका का नहीं। वह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है, पर राष्ट्र पर शासन नहीं करता है। वह राष्ट्र का प्रतीक है। प्रशासन में उसका स्थान औपचारिक प्रधान का है।‘ लेकिन राष्ट्रपति के पास ऐसी बहुत सी शक्तियां हैं जिनको यहां पर देना संभव नहीं है।

राष्ट्रपति पद की अर्हताएं :-

१) वह भारत का नागरिक हो

२) वह ३५ वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

३) लोकसभा के लिए सदस्य निर्वाचित होने की अर्हता रखता हो और उसका नाम किसी संसदीय निर्वाचक मंडल में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिए।

४) भारत सरकार या किसी राज्य के अधीन या इन दोनों सरकारों में से किसी से नियंत्रित किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद ग्रहण न किए हो।

५) अनु. ५३ (२) की व्याख्या के अनुसार भारत संघ के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति अथवा किसी राज्य के रायपाल अथवा संघ राज्यों के मंत्रियों के पदों को लाभ का पद न मानते हुए उन्हें राष्ट्रपति के निर्वाचन में उम्मीदकर के योग्य माना गया है। किसी उम्मीदवार को राष्ट्रपति बननेे पर उस पद के अतिरिक्त अन्य पद को रिक्त करना होगा!

६) राष्ट्रपति सदन के दोनों सदनों तथा राय विधान मंडल का सदस्य नहीं हो सकता। यदि इन विधान मंडलों का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो, तो जिस तिथि से वह राष्ट्रपति का पद ग्रहण करेगा, उसी तिथि से उस सदन में उसकी सदस्यता का अंत हो जाएगा।

६मार्च १९७४ को संसद ने राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संबंधी (संशोधन) विधेयक,१९७४ को पारित किया। इसके अनुसार जो व्यक्ति राष्ट्रपति का उम्मीदवार होगा, राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल के दस सदस्य उसके प्रस्तावक होंगे और दस सदस्य ही अनुमोदन करेंगे। इसका उद्देश्य अंवाछनीय प्रत्याशियों पर प्रतिबंध लगाना है। जून,१९९७ में एक अध्यादेश जारी करके राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव से गैर गंभीर प्रत्याशियों को हतोत्साहित करने के लिए प्रत्याशी के प्रस्तावकों व अनुमोदकों की संख्या बढ़ा दी गयी है। यह आवश्यक व सराहनीय कदम है। राष्ट्रपति पद के प्रस्तावकों और अनुमोदकों की संख्या १० से बढ़ाकर ५० कर दी गयी है। उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के लिए प्रस्तावकों और अनुमोदकों की संख्या १० से बढ़ाकर २० कर दी गयी है।

कार्यकाल –

यह पांच वर्षों के लिए है । यह पद रिक्त होने की तिथि से किसी भी दशा में ६ माह पूर्व भरा जाना चाहिए

वेतन और भत्ते –

राष्ट्रपति का पद अत्यधिक सम्मान तथा गौरव का है। उसे नि:शुल्क सरकारी निवास के अतिरिक्त प्रतिमाह वेतन मिलता है। अवकाश ग्रहण करने पर, सचिवालय सहायता, मुक्त आवास तथा नि:शुल्क चिकित्सा दी जाती है।

निर्वाचन –

अनुच्छेद ५४ तथा ५५ के अनुसार, राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा होता है, प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा नहीं।

निर्वाचक मंडल –

अनुटछेद-५४ के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन एक ऐसे निर्वाचक मंडल द्वारा करने की व्यवस्था है जिसमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं-
(क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य
(ख) राज्यों की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य

संसद या विधान सभाओं के मनोनीत सदस्य, विधान परिषद सदस्य तथा विधान सभाओं के मनोनीत सदस्य वोट नहीं कर सकते हैं। इसमें राजनीतिक दल सांसदों व विधायकों को व्हिप जारी नहीं कर सकेंगे। तथा वे गोपनीय ढंग से वोट देंगे।
युगानुकूल राष्ट्रपति की अर्हता एवं कार्य में सुधार जरुरी- हमारे देश में चपरासी से लेकर, आइएएस से लेकर कुलपति तक के लिए योग्यता का निर्धारण किया गया है, पर राष्ट्रपति पद के लिए क्यों नहीं । वैसे तो हमारे देश के ज्यादातर राष्ट्रपति विद्वान और गरिमाशील वयक्तित्व के धनी रहे हैं पर यह सवाल तो प्रासंगिक है ही कि राष्ट्रपति पद के लिए शैक्षणिक अर्हता होनी चाहिए।

राजनीति विज्ञान विभाग कभी हिन्दू विश्वविधालय के पूर्व विभागाध्यक्ष, समाजसेवी तथा विश्लेषक प्रो.कौशल किशोर मिश्र कहते हैं,‘राष्ट्रपति पद को राजनीतिक झंझावातों से मुक्त किया जाए तथा इसके लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति मिले तो चुनाव को कटुता से मुक्त रखा जाए।’ कहां एक तरफ डॉ.सर्वपल्ली राधा कृष्णन तथा दूसरी ओर सरदार ज्ञानी जैल सिंह, चुनाव में वोट बैंक की राजनीति नहीं होनी चाहिए। कहॉं ए.पी.ज।े कलाम साहब तथा कहां पर श्रीमती प्रतिभादेवी पाटील। यह आकाश-धरती का अंतर है। राष्ट्रपति चुनाव का राजनीतिकरण कांग्रेस ने किया है तथा उसकी गरिमा को गिराने का कार्य कांग्रेस ने किया है। वह नेहरू परिवार के समर्थन से ही राष्ट्रपति बनाता रहा जबकि उसको जातिवाद, परिवारवाद से मुक्त होना चाहिए। नरेन्द्र मोदी सरकार की पारदर्शिता से यह आशा बंधती है कि इस चुनाव में गंभीर लोकतांत्रिक मूल्यों का दिग्दर्शन होगा।‘

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