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नमामि देवि नर्मदे

by वीरेन्द्र याज्ञिक
in अध्यात्म, जुलाई २०१७
1

मध्यप्रदेश के १६ जिलों तथा ५१ विकास खण्डों से होती हुई १०७७ कि.मी. की नर्मदा सेवा यात्रा का १५ जून को अमरकंटक में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में समापन हुआ। लगभग १५० दिनों तक नर्मदा तट पर चली यह यात्रा विश्व का सबसे बड़ा नदी संरक्षण अभियान था, जिसमें समाज की भागीदारी को सुनिश्चित किया गया था।

भारत की सनातन परंपरा में नदियों का अतिशय महत्व है। देश की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार तथा लोकाचार के यदि दर्शन करने हों तो किसी भी नदी के किनारे जाइए आपको भारत की चिरंतन संस्कृति और संस्कार का साक्षात्कार हो जाएगा। ऐसा ही एक अवसर तब मिला जब मध्यप्रदेश के जन अभियान समिति के उपाध्यक्ष एवं नर्मदा सेवा यात्रा के अग्रणी नेता माननीय श्री प्रदीप पांडे के निमंत्रण पर हमें नर्मदा सेवा यात्रा में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

नर्मदा मध्यभारत की नहीं बल्कि संपूर्ण भारत की परम पुनीत नदी के रूप में समादृत है। भारत के किसी भी कोने में बसने वाला व्यक्ति जब स्नान करता है तो देश की सारी पवित्र नदियों का आह्वान और स्मरण करता है और उसका ध्यान करते हुए स्वयं को पवित्र और स्वच्छ करने की प्रार्थना करता है, नर्मदा उसमें एक है।

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन संनिधिम कुरू॥

उपयुक्त श्लोक न केवल नदियों के जल का आधाा मंत्र है बल्कि संपूर्ण देश की एकात्मता और सांस्कृतिक अस्मिता का जयघोष है। ऐसी जीवनदायिनी और समृद्धि प्रदायिनी नर्मदा मध्य भारत की जीवन रेखा है, जिसका उद्गम मध्य भारत के मेकल पर्वत श्रेणी स्थित अमरकंटक से होता है। पुराणों में नर्मदा का बड़ा ही सुंदर चित्रण मिलता है। महाभारत में महामुनि मार्कण्डेय युधिष्ठिर को नर्मदा के स्वरूप के बारे में बताते हुए कहते है-ं

इदं माहेश्वरी गंगा महेश्वरतनुदभवा।
प्रोक्ता दक्षिण गंगेति भारतस्थ युधिष्ठर॥

अर्थात, हे युधिष्ठिर! महेश्वर शिव के शरीर से उत्पन्न होने के कारण नर्मदा को माहेश्वरी गंगा के रूप में जाना जाता है। जिस क्षेत्र से नर्मदा प्रवाहित होती है, वह क्षेत्र इंद्रप्रस्थ के दक्षिण में स्थित होने के कारण इसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है। नर्मदा देश की सनातन परम्परा की प्रतिनिधि के रूप में प्राचीनतम नदियों में से एक है। नर्मदा मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर मध्यप्रदेश के १६ जिलों और ५१ विकासखंड से होती हुई १०७७ कि.मी. का मार्ग तय करते हुए महाराष्ट्र और गुजरात से होकर कुल १३१२ कि.मी का प्रवाह पथ पूरा करते हुए अंत में गुजरात में भरूच के आगे खंभात की खाड़ी में विसर्जित हो जाती है। नर्मदा का प्रवाह-पथ पहाड़ी होने के कारण कई स्थानों पर यह बड़े वेग से बहुत ऊंचाई से गिरती है और कई स्थानों पर यह प्राचीन और बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच गरजती हुई बहती है। अतएव अपने प्रवाह पथ पर बहुत उछल-कूद करते हुए बहती हुई होने के कारण इसको रेवा के नाम से भी जाना जाता है।

मध्य भारत के मेकल पर्वत से तीन नदियों का उद्गम है। पहली नर्मदा, दूसरी सोन या शोणमद्र तथा तीसरी नदी जोहिला, जिसका पुराणों में ज्योतिरथा के रूप में उल्लेख मिलता है। ये तीनों मध्य भारत की महत्वपूर्ण नदियां हैं, किन्तु तीनों नदियां का एक ही पठार से निकलने के बावजूद प्रवाह पथ बिलकुल विपरीत है। नर्मदा पश्चिम की ओर प्रवाहित है और गुजरात में अरब सागर को मिलती है। सोननद पूर्ववाही होकर पटना के समीप गंगा में मिल जाती है वहीं जोहिला छोटी नदी होने के कारण पूर्वी मध्यप्रदेश के शहडोल के निकट दशरथ घाट के समीप सोन नदी में ही विलीन होती है। यह दशरथ घाट वही स्थल है, जहां अयोध्या नरेश राजा दशरथ ने शब्दवेधी बाण से जंगली जानवर के धोखे में श्रवण कुमार की हत्या कर दी थी। पूरे अमरकंटक क्षेत्र तथा नर्मदा पर बसे गावों-कस्बों में एक अत्यंत सुरुचिपूर्ण लोककथा प्रचलित है। जिसे मध्यप्रदेश की ग्राम्य परंपरा में आज भी बड़े ही चाव-भाव से सुना और सुनाया जाता है। वास्तव में यह लोक कथा भारत की सांस्कृतिक तथा सामाजिक सोच का अनुपम उदाहरण है, जिसमें हम प्रकृति के सभी तत्वों का मानवीकरण कर उसे कथा रूप देकर अपने जीवन में स्वीकार करते हैं।

वास्तव में अमरकंटक क्षेत्र (मेकल पर्वत) से निकलने वाली नर्मदा तथा जोहिला को नदी अर्थात् स्त्री माना गया है, वहीं सो अर्थात शोणभद्र को नद पुल्लिंग कहा गया है, जिस प्रकार असम में ब्रह्मपुत्र भी नदी नहीं नद है, उसी प्रकार सोन भी पुरुष है। कथा इस प्रकार है कि मेकलसुता नर्मदा जब विवाह योग्य हुई तो उसके विवाह के लिए एक बड़ी विचित्र शर्त रखी गई कि जो व्यक्ति अमरकंटक के क्षेत्र से नेत्र रोग का उपचार करने वाला ‘बकावली’ फूल लेकर आएगा उससे नर्मदा का विवाह होगा। इस कठिन शर्त को पूरा किया शोणभद्र अर्थात सोन ने और शर्त के अनुसार दोनों का विवाह निश्चित हो गया। मेकलराज ने विधिवत विवाह के लिए सोन को बारात लेकर आने के लिए आमंत्रित किया। निश्चित समय पर शोणभद्र बारात लेकर नर्मदा का वरण करने के लिए उसके घर आया। देहरी पर बारात आई और सोन की नजर नर्मदा की निकटतम सखी जोहिला अर्थात ज्योतिरथा पर पड़ी और पहली नजर में ही सोन ने जोहिला से प्रणय निवेदन किया और जोहिला ने उसे स्वीकार भी कर लिया। विवाह से ठीक पहले नर्मदा ने जोहिला और सोन को परस्पर प्रेमपाश में बंधे देख लिया। कथा आगे बढती है अपने विवाह के लिए आई बारात में पति की ऐसी हरकत से नर्मदा स्तब्ध रह गई। जोहिला और सोन को रंगरेलियां मनाते देख नर्मदा क्रोध से आग बबूला हो गई। विवाह वेश में सजी-संवरी नर्मदा से रहा न गया और क्रोधित होकर सोन को वहीं बड़ी जोर से धक्का दिया। निराश नर्मदा ने उसी समय अपने पिता मेकलराज का घर छोड़ा और पश्चिम की ओर वेग से बह चली। नर्मदा के धक्के से सोन पूर्व की ओर भाग खड़ा हुआ और उधर नर्मदा की सखी जोहिला भी सोन के पीछे-पीछे भाग चली और बाद में उससे ब्याह करके सुहागन हो गई। उधर सबके प्रति वत्सल भाव रखने वाली विनम्र नर्मदा अनब्याही रह गई। नर्मदा जो सबकी दुलारी, सबकी प्यारी, सभी का दुख: निवारण करने वाली थी, वही प्रणय वंचिता नर्मदा करोड़ों-करोड़ों लोगों की प्राणदायिनी बन गई। दूसरी ओर जोहिला सुहागन तो हो गई लेकिन उसको समाज ने कलंकित के रूप में ही स्वीकार किया।

यह कहानी या लोककथा समाज को बड़ा संदेश देती है कि यदि अपने स्वार्थ में अंधा होकर कोई व्यक्ति दूसरे को धोखा देता है तो सब कुछ मिल जाने के बाद भी समाज में उसको कोई स्वीकृति नहीं मिलती है। दूसरी ओर जो विनम्र भाव से सभी की सेवा में स्वयं को अर्पित कर दे, उसको समाज स्वीकार ही नहीं करता बल्कि सिर पर बैठा लेता है। ऐसी सदा नीरा नर्मदा को मां का दर्जा मिला, तथा संपूर्ण हिन्दू समाज जिसकी परिक्रमा और प्रदक्षिणा करके स्वयं के जीवन को धन्य करता है।

ऐसा माना जाता है कि नर्मदा तट पर भारत की ऋषि परंपरा के अनेक तपस्वी महर्षियों ने अपनी आराधना और तपस्या से भारत की ज्ञान-विज्ञान परंपरा को समृद्ध किया। भार्गव वंश के प्रतिष्ठाता, प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र परम तेजस्वी महर्षि भृगु, ज्योतिष शास्त्र तथा धनुर्विद्या के जनक माने जाते हंैं। उन्होंने नर्मदा के तट पर ही तपस्या की थी। वैदिक साहित्य में जिन ऋषियों का नाम बड़ी ही श्रद्धा से लिया जाता है ऐसे महर्षि आंगीरस तथा सांख्य दर्शन के जनक महर्षि कपिल की साधना स्थली नर्मदा तट ही रहे। सप्तकल्पांतजीवी अजर-अमर महर्षि मार्केणडेय ने भी अपनी साधना को नर्मदा के तट पर ही पूर्णता प्रदान की थी। कालान्तर में भगवान आद्य शंकराचार्य ने नर्मदा तट पर ही तपस्या की थी और अपनी तपस्या के तेज से बौद्ध मत का प्रतिकार करके संपूर्ण देश में सत्य सनातन हिन्दू धर्म को पुन: प्रतिष्ठापित किया था। ऐसी पुण्य सलिला मां नर्मदा, जिसके दर्शन मात्र से जीवन धन्य होता है, उसके सेवा के संकल्प की यात्रा थी। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पोषित और प्रायोजित नर्मदा सेवा यात्रा वास्तव में जल, जंगल, जमीन, जानवर और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति जागरुकता पैदा करने की यात्रा थी।

विगत ११ दिसम्बर २०१६ को अमरकंटक के दक्षिणी तट से यह यात्रा प्रारंभ हुई थी और मध्यप्रदेश के १६ जिलों तथा ५१ विकास खण्डों से होती हुई १०७७ कि.मी. की यात्रा तय करते हुए विगत १५ जून को पुन: अमरकंटक में ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की गौरवमयी उपस्थिति में इसका समापन हुआ था। लगभग १५० दिनों तक नर्मदा तट पर चलने वाली यह यात्रा विश्व का सबसे बड़ा नदी संरक्षण अभियान था, जिसमें समाज की भागीदारी को सुनिश्चित किया गया था। इस यात्रा के दौरान नर्मदा के किनारे -किनारे अनेक स्थानों पर संगोष्ठी, लोक-संस्कृति के अनेकानेक कार्यक्रम, चौपाल तथा अन्य विविध गतिविधियों के माध्यम से प्रदूषण को समाप्त करने तथा पर्यावरण को शुद्ध रखने के अनेकानेक शैक्षणिक कार्यक्रमों कोे आयोजित किया गया था।

११५ दिनों की इस नर्मदा सेवा यात्रा में शामिल होने का अवसर वास्तव में हमारे लिए अविस्मरणीय बन गया। मध्यप्रदेश सरकार के आमंत्रण पर हम चार जन सर्व श्री एस.पी. गोयल, श्री चंद्रकांत जी जोशी, श्री सुरेंद्र विकल दि ८ मई २०१७ को इस सेवा यात्रा में शामिल होने के लिए जबलपुर पहुंचे। नर्मदा सेवा यात्रा का यह १४५ वां दिन था। सेवा यात्रा अपने अंतिम चरण में अनूपपुर जिले में पहुंच चुकी थी। सायंकाल नर्मदा तट पर विशाल कार्यक्रम था, अनूपपुर जिले के खेतगांव में। सभी ग्रामों से छोटी-छोटी यात्राओं द्वारा सभी ग्रामवासी, आबाल-वृद्ध, नर-नारी एकत्र हुए थे, ‘नमामि देवि नर्मदे’, के जयघोष से आकाश निनादित था। संपूर्ण पंडाल में भक्तिमय वातावरण था। कीर्तन संकीर्तन से वनवासी-ग्रामवासी लोग नर्मदा मैया का स्तवन कर रहे थे। निश्चित समय पर नर्मदा मैया के जयघोष के बीच सभी अतिथिगण मंच पर पधारे। श्री प्रदीप पांडे उपाध्यक्ष जन अभियान समिति के साथ-साथ इस यात्रा समिति के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने जन समूह को संबोधित किया तथा अंत में सबने नर्मदा के संरक्षण-संवर्धन की, नर्मदा तट पर बसे गांवों में स्वच्छता बनाए रखने की तथा अपने-अपने गांवों में प्रकृति संरक्षण तथा पर्यावरण को बनाए रखने की शपथ ली।

दि. ९ मई २०१७ को उक्त यात्रा आगे बढ़ी। युवराजगढ, अनूपपुर के भीमकुण्डी से लगभग ४४ कि.मी. बस से यात्रा तय करके दमेहड़ी पहुंची थी। यहां आसपास के गावों से लगभग २५ हजार लोग इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए थे। यहीं पर मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पोषित सामूहिक विवाह का कार्यक्रम भी रखा गया था। विशाल पंडाल में हजारों की संख्या में आए ग्रामवासियों-वनवासियों के बीच ३२१ वनवासी जोड़ों का विवाह बड़े ही धूमधाम से संपन्न हुआ। निश्चित समय पर दोपहर के ३.०० बजे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री श्री अर्जुनराम जी मेघवाल, सुप्रसिद्ध नृत्यांगना सुश्री सोनल मानसिंह, सुप्रसिद्ध अभिनेता श्री राजा मुराद, श्री प्रदीप पाण्डे आदि मंच पर थे। उसी समय तेज तूफान और बारिश भी आर्ई लेकिन उससे किसी भी प्रकार से जनसंवाद कार्यक्रम में व्यवधान नहीं पड़ा।

गरजते और बरसते बादलों के बीच हजारों लोगों ने मुख्यमंत्री को बड़े ध्यान से सुना। मुख्यमंत्री ने कहा कि, ‘नर्मदा मैया मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी और संपन्नता की जननी है। इसकी सेवा हमारा धर्म है और इसका संरक्षण हम सभी का कर्तव्य है। नर्मदा मैया का जल प्रदूषित न हो इसके लिए हम सबको पहले शुद्ध होना पड़ेगा। स्वच्छता का अभियान चलाना होगा ताकि नर्मदा मैया अविरल निर्मल होकर बहती रहें और अपनी करुणा से हम सबको समृद्धि प्रदान करती रहें।’ मुख्यमंत्री ने आगे बताया कि आगामी २ जुलाई को आषाढ़ी एकादशी के उपलक्ष्य में संपूर्ण मध्यप्रदेश में नर्मदा के किनारे ६ करोड़ पेड़ लगाए जाएंगे। साथ ही नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक को देश के सुंदर तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। नर्मदा के तटों पर जैविक खेती कराई जाएगी और नदी में सीवेज का गंदा पानी न गिरे इसके लिए शोधन संयंत्र लगाए जाएंगे। बाद में मुख्यमंत्री ने सभी सम्मानीय अतिथियों के साथ सिवनी संगम पर मां नर्मदा की आरती की और वहीं पर यात्रा ने रात्रि विश्राम किया। नर्मदा मैया को प्रणाम करके हम भी मुंबई वापस लौटे। लेकिन यह यात्रा वस्तुत: यादगार बन गई और शास्त्रसम्मत बात गले उतर गई कि नर्मदा के दर्शन मात्र से मोक्ष मिलता है।

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Comments 1

  1. V K Shrivastava- / watsApp- 8827017527 says:
    5 years ago

    अति सुन्दर, भारत सर्वेक्षण विभाग के टोपोशी ट तथा क्षेत्रीय अध्ययन सो न नदी का उद्गम बिलासपुर के पेंड्रा नगर के पास सोंबछरवार ग्राम के एक कुंड से बतलाया है जो सोन मु डा स्थल, जोकि अमरकंटक शिखर का भाग है, से बहुत दूर एक पथरी भाग है, कृपया सुधार kare- मेरे अपने के शोध कार्य में उल्लिखित है।
    सुधार, पुनः परीक्षण के बाद, किया जा सकता है, आगे चर्चा हेतु स्वागत।

    Reply

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