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कांटों भरा गुलाब

कांटों भरा गुलाब

by आरती कदम
in महिला, मार्च २०१५
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म न की ताकत प्रचंड होती है। कोई चीज आपको यदि मन सेकरनी हो तो उस बारे में केवल पक्का निश्चय करना होता है। सभी अवरोधों को दूर कर आप उसे प्राप्त करके ही छोड़ते हैं। रोजमेरी सिगिंस का सम्पूर्ण जीवन ही मन की ताकत पर ही सब कुछ पाने की दास्तां है। जीने की परीक्षा में अपने को साबित कर प्राप्त हुई वह चमचमाती सफलता है।
रोज सिगिंस (Rose Siggins) केवल २ फुट की बौनी है। केवल धड वाली स्त्री। लेकिन वह समझदार लड़की है, ध्यान रखने वाली बहन है, प्रेममयी पत्नी है, कर्तव्यनिष्ठ माता है और सब से बड़ी बात यह कि वह एक स्वतंत्र व्यक्ति है। अपने तईं जीने वाली, प्राप्त करने वाली आत्मविश्वासू स्त्री है। उसे देखते हुए, सुनते हुए, उसके बारे में पढ़ते हुए क्षण-क्षण चकित हो जाना यही हमारे हाथ में है।
‘यू ट्यूब’ जब पहली बार उसका वीडियो देखा केवल धड़ वाली, अपने दोनों हाथों और स्केटबोर्ड के सहारे चलने वाली, सभी व्यवहार करने वाली रोज मन की गहराई में उतर गई उसकी प्रगल्भता के साथ। स्वयं को जैसा है वैसा स्वीकार करने और उसीको जीवन मानने के परिपक्व विचार का सार है उसका जीवन।
अमेरिका के पाब्लो कोलोरॅडो में रहने वाली ४१ वर्ष की रोज कहती है, ‘लोग मुझे पूछते हैं, आप किस तरह इस आधे शरीर के साथ जीती है? मुझे लोगों का अचरच लगता है, मुझ में क्या कमी है? किसी बार्बी डॉल के पैर काटे तो वह किस तरह दिखेगी वैसा ही मेरा है… पैरविहीन बार्बी डॉल! बाकी मेरे सभी स्त्री अंग साबूत हैं। फिर मैं अपने को कम क्यों मानूं?’ रोज की अपने बारे में, अपने शरीर के बारे में, जो है उसे पूर्णत्व से स्वीकार करने की प्रगल्भता दिखाई दी वह स्कूल में। रोज जन्मी पैरों के साथ ही, लेकिन उन। पैरों में मानो जान ही नहीं थी। केवल दिख रहे थे इसलिए पैर थे। सच कहें तो उनसे दिक्कत ही होती थी। उसके चलने-फिरने में उससे दिक्कत आने लगी। संवेदनहीन इन पैरों को कभी चोट पहुंचने का खतरा ध्यान में रखते हुए उसके मां-बाप ने डॉक्टर की सलाह पर पैर काट देनेे का निर्णय किया। तब वह २ साल की थी। वह कहती है, ‘‘माता-पिता का वह निर्णय सही ही था। इसलिए मैं अधिक मुक्त हो सकी।’’ लेकिन रोज जब स्कूल जाने लगी तब वह सामान्य बच्चों की तरह दिखे इसलिए उसे कृत्रिम पैर लगाने की सख्ती की गई। उससे बहुत दर्द तो होता ही था, चलने में भी दिक्कतें होती थीं। अंत में आठवीं कक्षा में उसने कृत्रिम पैर लगाने से इनकार कर दिया। शिक्षकों ने बहुत विरोध किया, लेकिन उसने एक न सुनी। उसने अपना दृढ़ निर्णय सुनाया, ‘यही मैं हूं। मुझे सामान्य रूप से जीने दें।’ और रोज मुक्त हो गई। हाथों के सहारे वह कहीं भी, कैसे भी चल सकती है। उसे व्हील चेयर भी नहीं चाहिए। क्योंकि इससे फिर उसकी गतिविधियों में रुकावटें आती थीं। इसलिए उसने सहायता ली स्केटबोर्ड की। वह इस स्केटबोर्ड पर अपना धड़ झोंक देती है और घूमती है मनमाफिक।
‘यू ट्यूब’ के वीडियो में भी स्केटबोर्ड से आगे जाने वाली रोज हमें दिखाई देती है। हाथ के सहारे स्केटबोर्ड ढकेलते हुए रोज अपनी कार के पास जाती है। कार का दरवाजा खोलती है। दोनों हाथों के पंजे रास्ते पर मजबूती से रखती है, दरवाजे की ओर मुंह करती है और अपना धड़ कार की सीट पर लगभग झोंक देती है।, सीट पर जम जाने के बाद वे स्केटबोर्ड को उठा लेती है। कार का दरवाजा लगा लेती है। इंजन शुरू होता है और गाड़ी तेजी से दौड़ने लगती है… उसके जीवन की तरह…
गाडियां, कार, वी-८ इंजन उसकी पैशन है। वह किसी भी गाड़ी की मरम्मत कर सकती है। उम्र के तीसरे वर्ष से यह धुन उस पर सवार हुई। पिता के टुल बॉक्स के साथ खेलते-खेलते वे गाड़ियों की भी मरम्मत करने लगी। यह धुन इतनी बढ़ गई कि कुछ वर्ष पूर्व १९८६ मस्तांग (फोर्ड) कार उसने नए सिरे से बनाई। किसलिए? कार रेसिंग में भाग लेने के लिए! बिना पैर की रोज केवल गाड़ी ही नहीं चलाती, स्पर्धा में भाग लेने जैसी चलाती है। उम्र के सोलहवें साल में उसके पिता ने उसे कार खरीदवा दी। सेकेंड हैण्ड। वह इसे कैसे चलाएगी यह प्रश्न भी किसी को नहीं सताया। उसने और उसके पिता ने गाड़ी में कुछ सुधार किए। ब्रेक और क्लच की इकट्ठी व्यवस्था स्टीअरिंग के पास की। बिना पैर के केवल हाथ से गाड़ी चलाने के लिए यह जरूरी था। उसे इसका अगले जीवन में बहुत लाभ हुआ।
गाड़ियों की इस धुन के कारण उसके जीवन में एक और चमत्कार हुआ। यह चमत्कार था उसके मन की प्रचंड शक्ति का प्रत्यक्ष में अवतीर्ण होना। वह एक सामान्य व्यक्ति है, महिला है, फिर उसकी भी शादी होनी चाहिए यह उसकी इच्छा भी पूरी हुई। जुलाई १९९९ में सफेद वेडिंग गाऊन पहनकर, उससे अधिक ऊंचाई का केक काट कर उसका समारोहपूर्वक विवाह हुआ। पति का नाम है डेव। गाड़ी के कलपुर्जों ख्रीदने के बहाने डेव अर्थात डेविड सिगिन्स का उससे परिचय हुआ। डेव स्पेअर पाट्र्स की एक दुकान में काम करता था। रोज को कलपुर्जोकी जरूरत हुआ करती थी। फोन पर बातचीत होते-होते दोस्ती हो गई। जब वे दोनों एक-दूसरे से मिले तब भी उसकी विकलांगता उनकी दोस्ती के आड़े नहीं आई। बाद में यही दोस्ती प्यार में बदल गई। पांच फुट ग्यरह इंच ऊंचा डेव का प्यार परवान चढ़ने लगा। वह कहती है, ‘मैंने उसे देखा और उसी क्षण हमारे ं बीच आकर्षण पैदा हो गया।’ डेव कहता है, ‘रोज से मैं ही क्यों कोई भी मिले तो उसके साथ बात करने पर उसे पैर नहीं है यह किसी के ध्यान में ही नहीं आता। वह है भी बहुत खूबसूरत।’ दोनों के बीच डेटिंग शुरू हुआ और एक दिन उसे पता चला कि वह गर्भवती है। रोज सैकरल एनेन्सी की शिकार है। उसकी पीठ की रीढ़ में व्यंग है। इस तरह की बीमारी से पीड़ित किसी ने भी तब तक बच्चों को जन्म नहीं दिया। उसे भी डॉक्टरों ने गर्भपात की सलाह दी, लेकिन उसने उसे नहीं माना। अत्यंत प्रतिकूल परिस्थिति में उसने बच्चे को जन्म दिया। छह वर्ष बाद सेल्बी नामक कन्या पैदा हुई। दूसरे प्रसव के समय वह शब्दशः मौत के द्वार से लौट आईं। बच्चों का लालन-पालन आसान काम नहीं था। डेव दिन भर काम के कारण बाहर होता था। वह बताती है, मेरे स्केटबोर्ड की तरह बच्चों के लिए भी स्केटबोर्ड बनाया और उसे लेकर वे घूमा करती थी। बाहर जाते समय वह बच्चे को झोली में डालकर पीठ पर बांध लेती थी। उसी अवस्था में वे कार भी चलाती थी। बाद में बच्चे बड़े होने पर बच्चों को स्कूल लाना ले जाना उसीने किया। घर में भोजन बनाने से लेकर बर्तन मांजने तक सभी काम वही करती है। तलुओं का उपयोग कर घर भर में घूमते हुए वे काम निपटाती है। किचन प्लेटफार्म पर अपने घड़ को पहुंचाकर बर्तन मांजने का काम सहजता से करती है। वाशिंग मशीन पर चढ़कर उसमें जरूरी पावडर, पानी डालती है। बच्चों को परोसना, कहानियां सुनाना, उनके साथ खेलना, उन्हें गोद में लेकर सहलाना वह आसानी से कर लेती है। गाड़ी के नीचे अपने हाथ काले करने वाली रोज भी हमें दिखाई देती है।
लेकिन फिर भी बच्चों का लालन-पालन उसके लिए चुनौती ही रही, क्योंकि ल्यूक का जन्म हुआ तब उसे सम्हालने की जिम्मेदारी उसकी मां ने ली। बचपन से ही मां उसके साथ दृढ़ता के साथ खड़ी रही। वह कहती है, मेरी मां परिवार की रीढ़ थी। पूरे परिवार को बांधे रखती थी। मेरी जैसी विकलांग लड़की व मतिमंद पुत्र को सम्हालना उसके लिए बड़ी चुनौती थी। लेकिन उसे उसे पूरी तरह सम्हाला। वह हमेशा मेरे साथ खड़ी रही। मैं उसीका आदर्श निभा रही हूं।
लेकिन रोज का जीवन इतना सरल नहीं था। उसे जीवन की एक और परीक्षा अकेले ही देनी थी। उसका पुत्र ल्यूक जब २ वर्ष का था तभी उसकी मां कैंसर से चल बसी। अब उसे पुत्र, पति व मतिमंद भाई जैक व बीमार पिता को भी सम्हालना था। पिता अलजायमर व स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित हो गए थे। वे सिगरेट बहुत पीते थे और इसलिए उन्हें ओषजन की आपूर्ति पर बहुत ध्यान देना होता था। रोज के समक्ष कोई विकल्प नहीं था… चारों को सम्हालने की जिम्मेदारी उसकी थी…
मां के चले जाने से अकेलापन अनुभव कर रहा जैक खूब चिड़च़िड़ा हो गया था। उसकी डेव से नहीं पटती थी। पिता तो इस दुनिया में है या नहीं इसका ही पता नहीं था। घर में परेशानी बढ़ गई। तभी बच्चे भी बड़े हो रहे थे। सौभाग्य से दोनों बच्चे स्वस्थ हैं। मां की विकलांगता उन्हें कभी महसूस ही नहीं हुई। क्योंकि इसके कारण कोई काम रुकता नहीं था।
लेकिन अब दिन-ब-दिन रोज का स्वास्थ्य गिर रहा है। ताउम्र दोनों हाथों पर चलने के कारण उसके दोनों कंधे डिस्लोकेट होने के कगार पर हैं। दो गर्भधारणाओं के कारण उस पर तरह-तरह की शल्यक्रियाएं हो चुकी हैं।
Tags: empowering womenhindi vivekhindi vivek magazineinspirationwomanwomen in business

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