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रिश्ते की डोर

by राजेंद्र परदेसी
in अगस्त २०१७, कहानी
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सौरभ और गीता की बातें सुन शांति की आंखों में आंसू आ गए। दिल बोल उठा, जिनका खून का कोई रिश्ता नहीं, वह भी आज राखी के ‘रिश्ते की डोर’ से एक हो गए। ’’

प्रवासी पिता हीरामन अपने देश की माटी और संस्कृति की याद को अब तक भूल नहीं पाए थे जिसे उन्होंने बचपन में पिता के साथ विदेशी धरती पर आने के पहले देखा था। इसीलिए उनके मन में सदा यह इच्छा पलती रही कि अपनी बेटी की शादी भारत में रह रहे किसी युवक से करेंगे। आनंद खन्ना जो आयात-निर्यात के व्यवसाय से जुड़े थे, अक्सर व्यापार के सिलसिले में विदेश जाया करते। अचानक एक व्यावसायिक मीटिंग में उनकी भेंट हीरामन से हो गई। दोनों एक दूसरे के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए। यह परिचय घनिष्ठता में बदल गया।

एक बार व्यापार के सिलसिले में आनंद खन्ना विदेश गए, तो हीरामन ने उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दिया। जब आनंद खन्ना उसके घर मिलने गए तो हीरामन ने उनके सामने अपनी बेटी के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा।
हीरामन की बेटी रेशमा सौंदर्य की मूर्ति ठहरी। उसे देखते ही आनंद खन्ना मोहित हो गए और स्वीकृती दे दी। आनंद का व्यक्तित्व भी कम आकर्षक नहीं था। तभी तो पिता ने बेटी से राय मांगी तो उसने भी अपनी सहमति जता दी।

रेशमा शादी के बाद मिसेज खन्ना बन कर भारत तो आईं पर जन्म से लेकर शादी के पहले तक, उनका सारा लालन-पालन विदेश में होने के कारण, वह पति के साथ स्वयं को भारतीय मान्यताओं और परिवेश में ढाल नहीं पा रही थी। इसीलिए शादी के बाद भी मां की ममता के सम्मुख अपनी फिगर को ही महत्व देती रहीं, एक दिन अस्वस्थ होने पर डॉक्टर के पास गईं। डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद कहा कि ‘बधाई हो, आप मां बनने वाली हैं। ’

डॉक्टर की बात सुनते ही वह चीख पड़ी-‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता, मैं मां नहीं बनना चाहती, इससे मेरी फिगर बिगड़ जाएगी।
मिसेज खन्ना की चीख और बात सुन कर डॉक्टर को आश्चर्य हुआ कि यह कैसी महिला है जो मां बनने की बात सुनने के बाद खुश होने के बजाय चीखती हुई अनापशनाप बोल रही है। डॉक्टर कोई प्रतिक्रिया करता, इसके पहले ही आनंद खन्ना बोल पड़े-‘‘रेशमा, तुम अस्वस्थ हो, अधिक बोलोगी तो तबीयत और खराब हो सकती है। घर चल कर आराम करो, फिर जो करना है करना। ’’
घर आने के बाद पति-पत्नी में कई दिनों तक बहस होती रही। दोनों अपना अपना तर्क देकर बात की पुष्टि करते। अंत में निर्णय हुआ कि मिसेस खन्ना मां तो बनेंगी पर बच्चे का लालन-पालन नहीं कर सकती। इसके लिए आनंद खन्ना आया रख लें।

उधर शांति गांव से पति के साथ शहर आई। साल भी न बीता था कि एक सड़क दुर्घटना में उसे अकेला छोड़ कर वह चल बसा। साथ में छोड़ गया उसकी गोद में दो माह की बेटी। ऐसी स्थिति में वह गांव लौट कर बूढे सास-ससुर के लिए बोझ ही तो बन जाएगी। यही सोचकर जिस महिला ने कभी घर की चौखट नहीं लांघी थी, वह अपनी और बेटी की परवरिश के लिए मिसेज खन्ना के पास काम मांगने गई। अंधे को क्या चाहिए दो आंख। उन्होंने उसे तुरंत काम पर रख लिया। रहने के लिए कोठी का सर्वेण्ट क्वार्टर भी दिया। शांति को बिन मांगे ही रहने की जगह भी मिल गई। मिसेज खन्ना ने वेतन के रुप में जो राशि देने को कहा, स्वीकार कर काम करने लगी।

डॉक्टर द्वारा निर्धारित समय पर मिसेज खन्ना नर्सिंग होम में एडमिट हो गई। दो दिन बाद उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया तो आनंद खन्ना खुशी से फूले नहीं समाए। वह नवजात शिशु और पत्नी को अस्पताल से लेकर आए परंतु मिसेज खन्ना बिना विलम्ब किए नवजात शिशु को शांति को देकर बोली- ‘‘लो, इसे भी अपनी बेटी के संग पालो। ’’

आनंद खन्ना को पत्नी का यह व्यवहार अच्छा न लगा। पूरब और पश्चिम की संस्कृति की बात और सोच के कारण यह अंतर दिखा। मिसेज खन्ना के कृत्य से उनके पति के साथ शांति को भी आश्चर्य हुआ। कोई मां नवजात शिशु को कैसे अपने से ऐसे दूर कर सकती है। गरीब और असहाय यह करता, तो शायद संभव होता, पर इनको क्या कमी जो स्वयं के जन्मे बेटे से ऐसा व्यवहार किया। पर सच तो सच ही होता है। नवजात शिशु शांति को ऐसे देख रहा था, जैसे अपनी मां को ही देख रहा हो। शांति गोद में लिए शिशु का मुख कुछ पल देखती रही और फिर उसे ऐसे सीने से लगा लिया जैसे उसी का ही जन्मा बेटा हो।

शांति के सम्मुख आनंद खन्ना ने पत्नी से कुछ नहीं कहा, पर शायद बाद में उनके पौरुष ने ललकारा होगा कि उनका बेटा सर्वेण्ट क्वार्टर में कैसे पलेगा, तभी तो मिसेस खन्ना ने शांति को सर्वेण्ट क्वार्टर से निकल कर अपनी कोठी के गेस्ट रुम में रहने को कह दिया।

शांति भी मिसेस खन्ना के बेटे की अपनी बेटी के साथ ही यह सोच कर परवरिश करने लगी जैसे उसकी केवल एक बेटी ही नहीं बल्कि एक बेटा भी है। तभी तो जब मिसेज खन्ना के बेटे सौरभ को भूख लगती और वह रोने लगता तो बेटी गीता को हटा कर बिस्तर पर डाल देती और सौरभ को गोद में लेकर अपना स्तन उसके मुख में लगा देती। मां का पूरा फर्ज ईमानदारी से निभाती, दोनों में कभी अपना पराया का भेद नहीं करती। यानि शांति कहने भर को ही सौरभ की आया थी पर वह मां की तरह ही एक बेटी और बेटे का लालन-पालन कर रही थी।

मिसेज खन्ना को शायद बच्चे को जन्म देने तक ही याद था कि वह मां है। उसके बाद उन्होंने कभी यह भी नहीं देखा और न शांति से ही कहा कि मेरा बेटा कैसा है और कहां है। मेरे पास उसे लाओ। पर शांति ने जब स्वयं ही मिसेज खन्ना से कहा -‘‘मेम साहब, सौरभ छह माह का हो गया है, मैं तो दिन भर इसका ख्याल रखती हूं, आप भी इसे रात में अपने साथ सुला लिया करें। इस तरह वह अपनी मां को भी जानने पहचानने लगेगा। ‘‘
शांति अपनी बात पूरी भी न कर पाई थी कि मिसेस खन्ना बोल पडी-‘‘एक दिन तुम्हारे ही कहने पर अपने साथ सुलाया था। उसने सारा बिस्तर गिला कर दिया था। रात भर रोता रहा और मुझे सोने नहीं दिया। इस तरह तो मेरी सेहत खराब हो जाएगी। ‘‘

‘‘मेम साहब, सभी छोटे बच्चे ऐसे ही बड़े होते हैं। ’’ शांति ने बच्चों की आदतों की चर्चा की।
परन्तु मिसेज खन्ना पश्चिमी सभ्यता की पौध थी। उनको शांति की ममता भरी बातें अर्थहीन लगीं। उन्होंने कहा-‘‘शांति, यह सब मुझे न बताओ, बल्कि उसे अपने साथ रखा करो। वैसे ही डिलीवरी के कारण मेरा फिगर बिगड़ गया है। उसे ठीक करने के लिए जिम में अधिक समय देना होता है। ’’
इसके बाद तो शांति भूल ही गई कि सौरभ मिसेज खन्ना का बेटा है। धीर-धीरे अब यह डर लगा कहीं मिसेज खन्ना सौरभ को किसी दिन उससे अलग न कर दें। इस डर की छांव में बेटी को पालने लगी। समय भी अपनी गति से बीतता गया। गीता और सौरभ पांच वर्ष के होने को हुए, उनके अंदर कुछ समझ भी पनपने लगी। गीता को एक दिन काफी खुश देखा तो सौरभ ने उससे पूछा-‘‘क्या बात है, गीता तू आज बहुत खुश है। ’’
‘‘हम लोग आज मामा के यहां जा रहे हैं। ’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मां राखी बांधने मामा के पास जा रही हैं। कल रक्षाबधंन जो है। ’’
‘‘मां ने तो मुझे बताया नहीं, क्या तुम ही उनके साथ जाओगी?’’
‘‘हां, मां के साथ मैं ही जाऊंगी, तुम नहीं। ’’
‘‘मैं क्यों नहीं?’’
‘‘क्योंकि, तू मेरा भाई नहीं। इसलिए मामा भी तुम्हारे नहीं। फिर तुम्हें क्यों ले जाए मां। ’’
‘‘तू झूठ बोलती है। ’’
‘‘मैं झूठ नहीं बोलती। तू मेरा भाई होता तो आनंद अंकल तुझे ही क्यों प्यार करते। मुझे भी तो करते। ’’
‘‘अंकल की मर्जी, हम क्या करें? रही बात मां की तो वह मुझे तुझ से अधिक प्यार करती है। तुझे तो डांटती भी है। पर मुझे नहीं डांटती। ’’
‘‘लेकिन जब से तुमने बिस्तर गीला करना छोड़ दिया, मां तुझे रात में अंकल के साथ सोने के लिए क्यों भेज देती है। ’’
‘‘मां कहती है बेटा, उनका मन नहीं लगता और हम लोगों का बेड़ छोटा भी है। इसलिए रात को उनके साथ भेज देती है। ’’
‘‘मां तुमसे झूठ कहती है। ’’
‘‘तो चल, मैं मां से अभी पूछता हूं, ऐसा क्यों कहती है। ’’ इतना कह कर सौरभ गीता का हाथ पकड़ कर शांति के पास पहुंचा और बोला-‘‘मां, तुम गीता को लेकर मामा के यहां कल जा रही हो, मुझे नहीं ले जा रही हो, क्यों?’’
‘‘बेटा, मामा का घर छोटा है। हम सब साथ जाएंगे तो उन्हें परेशानी होगी। ’’
‘‘नहीं, मां तुम झूठ बोल रही हो’’, उसने अपने मन की भावना व्यक्त की, ‘‘मैं तुम्हारा बेटा नहीं हूं, इसलिए नहीं ले जा रही हो। ’’
यह सुन कर शांति को बहुत बड़ा आघात लगा। उसे लगा, जैसे कोई उसे सौरभ से दूर कर रहा है। तभी तो कहा-‘‘यह बात तुझसे किसने कही कि तू मेरा बेटा नहीं है?’’
‘‘गीता ने कहा कि मैं मेमसाहब का बेटा हूं। तुम्हारा नहीं। इसलिए साहब और मेमसाहब मुझे ही गिफ्ट और खिलौने देते हैं। गीता को नहींं। ‘‘
‘‘तो ठीक है। आज से उनका सामान मैं नहीं लूंगा और अंकल मुझे कहीं घुमाने ले जाने को कहेंगे तो मैं नहीं जाऊंगा, गीता जाया करें। ’’
‘‘बेटा हम लोग साहब और मेम साहब की बात नहीं मानेंगे तो वह हम लोगों को घर से निकाल देंगे। ’’
‘‘ठीक है निकाल दें हम लोग कहीं और जगह रहेंगे। क्या तुम उनकी नौकर हो। ’’
शांति क्या कहे। सच तो यही है कि सौरभ उसका बेटा नहीं है। मेमसाहब का बेटा है और वह इस परिवार की सदस्य नहीं बल्कि एक नौकर है। पर वह इस सच्चाई को सौरभ को कैसे बताए। क्या कोई मां अपने बेटे के दिल को इतना बड़ा आघात पहुंचाने का साहस जुटा सकती है। बात की दिशा को मोड़ते हुए बोली, ‘‘दो दिन की ही तो बात है। फिर तो अपने बेटे के पास आ जाएंगे। ’’
‘‘मां, मामा आपके क्या है’’ जो उन्हें राखी बांधने जा रही हो’’, सौरभ ने पूछा।
‘‘तुम्हारे मामा मेरे भाई हैं। रक्षाबंधन के दिन बहन ही भाई को राखी बांधती है। ’’
‘‘तब तो तुम गीता को लेकर मामा के यहां नहीं जा सकती। ’’
‘‘क्यों बेटा?’’
‘‘गीता चली जाएगी तो मुझे रक्षाबंधन के दिन राखी कौन बांधेगा, आखिर वह मेरी बहन ही तो है?’’
शांति इस प्रश्न का क्या उत्तर दे, सोच ही रही थी कि पास खड़ी गीता बोल पड़ी-‘‘ मैं तुझे राखी कैसे बांध सकती हूं। तू मेरा भाई थोड़े न है। ’’
‘‘हम लोगों की मां जब एक है तब भाई बहन नहीं तो और क्या हुए?’’
‘‘तू मां का बेटा नहीं है। मेम साहब का बेटा है। ’’
शांति दोनों के बीच मध्यस्थता कैसे करे, राह निकालने की सोच भी नहीं पाई कि सौरभ बोला-‘‘गीता तू झूठी है। अगर मैं मेमसाहब का बेटा हूं तो मां ने मुझे अपना दूध क्यों पिलाया। कोई दूसरे के बेटे को अपना दूध पिलाता है? नहीं न। इसीलिए मेमसाहब ने कभी नहीं पिलाया। ’’
सौरभ की बात में गीता को सच्चाई का आभास सा हुआ। वह पल भी याद याद आने लगा जब उसकी आवश्यकता को नकार कर सौरभ की आवश्यकता को पूरा करती। अगर यह मेरा भाई न होता तो मां ऐसा कभी न करती। शायद मां मुझे चिढ़ाने के लिए कह देती है कि सौरभ मेरा भाई नहीं है। मेमसाहब का बेटा है।
मां की ओर से आश्वस्त होकर सौरभ को परखने के उद्देश्य से पूछने लगी-’’तो क्या तू मुझसे राखी बंधवाएगा?’’
‘‘भाई बहन से नहीं तो किससे बंधवाएगा?’’
‘‘तो ठीक है, मैं कल मां के साथ मामा के यहां नहीं जाऊंगी। यहीं अपने भाई को राखी बाधूंगी। ‘‘साथ ही मां से भी कहा- ‘‘मां तुम अकेले मामा के यहां जाना चाहती हो तो जा सकती हो।

दोनों की बातें सुन शांति की आंखों में आंसू आ गए। दिल बोल उठा, जिनका खून का कोई रिश्ता नहीं, वह भी आज राखी के ‘रिश्ते की डोर’ से एक हो गए।

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