हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

सर्वोपरि है प्रयाग कुंभ की महत्ता

by गोपाल चतुर्वेदी
in अध्यात्म, गौरवान्वित उत्तर प्रदेश विशेषांक - सितम्बर २०१७, सामाजिक
0

तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों ही नदियों का संगम है। इसके समान तीनों लोकों में न तो अभी तक कोई तीर्थ हुआ है और न ही होगा। इसकी अनेक विशेषताएं वेदों, पुराणों व महाभारत आदि ग्रंथों में बताई गई हैं। प्रयाग को प्रजापति की यज्ञभूमि कहा गया। यह देवों व चक्रवर्ती राजाओें की यज्ञभूमि रहा है। प्रयाग को तीर्थराज की उपाधि इसलिए प्रदान की गई है; क्योंकि विभिन्न पुराणों में यह उल्लिखित है कि प्रयाग में अंसख्य तीर्थ विराजते हैं। ‘मत्स्यपुराण’ के अनुसार पापों का हरण करने वाले प्रयाग जैसे तीर्थों की गणना सैंकड़ों वर्षों में भी नहीं की जा सकती है।

विभिन्न पुराणों के अनुसार माघ मास में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से प्रयाग में स्नान व दान आदि करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। क्योंकि उस समय समस्त तीर्थ, सभी पवित्र पुरीयां, समस्त देवता-देवियां-अप्सराएं और पितृगण आदि त्रिवेणी में स्नान करने आते हैं। प्रयाग उन चार (नासिक, उज्जैन, हरिद्वार, प्रयाग) में सर्व प्रमुख है जहां बारहवें वर्ष में कुंभ पर्व और उनके पश्चात छठे वर्ष में अर्ध कुंभ का पर्व आता है। कहा जाता है कि यहां आने वालों का स्वागत स्वयं भगवान करते हैं।

‘विष्णुपुराण’ में कुंभ स्नान की महत्ता का वर्णन इस प्रकार है:

अश्वमेघसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।
लक्षं प्रक्षिणा: पृथ्व्या:कुम्भस्न्नानेन तत्फलम।

अर्थात: सहस्त्र अश्वमेघ, शत वाजपेय और पृथ्वी की लक्ष प्रदक्षिणा करने से जो फल प्राप्त होता है, वही कुंभ स्नान से प्राप्त होता है।

कुंभ की परंपरा ऋग्वैदिक काल से प्रवाहमान भारतीय संस्कृति में छिपी चेतना व ऐक्य की भावना का प्रतिबिंब है। यह भारतीय चिंतनधारा का राष्ट्रीय पर्व है। यह परम्परा अपनी पहचान कई शताब्दियों पूर्व से बनाए हुए है। पौराणिक दृष्टि से कुंभ स्नान का महत्व हजारों वर्ष प्राचीन है। यह राष्ट्रीय भावनात्मक एकता के रूप में आध्यात्मिक, सर्व धर्म समभाव एवं अनेकता में एकता की भावना को विकसित करता है। वस्तुत: यह जीवन में समत्व, त्याग एवं उदारता व एकता आदि का पर्व है। यह समन्वय, सहिष्णुता व असाम्प्रदायिक संस्कृति का केन्द्र बिन्दु है। साथ ही यह भारतीय चिंतनधारा का राष्ट्रीय पर्व है।

‘पद्मपुराण‘ में तीर्थराज प्रयाग की महत्ता का गान करते हुए यह लिखा है:

ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी।
तीर्थानामुत्तमं तीर्थ: प्रयागारव्यमनुत्तमम।

मध्यकालीन भक्ति क्रांति के उद्गाता संत कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो त्रिवेणी के दर्शन मात्र को समस्त दु:ख दरिद्रता का भंजक बताया है:

चंवर जमुन अरु गंग तरंग।
देखि होहिदुख दारिद्र भंगा॥

वस्तुत: पृख्वी पर लगने वाले सभी कुंभों में प्रयाग कुंभ की महत्ता सर्वोपरि है। गंगा- यमुना का संगम स्वत: है और उसके ऊपर कुंभ का अत्यंत पावन अमृत समागम। कुंभ की महिमा और वह भी त्रिवेणी पर लगे कुंभ की महिमा का गान इस प्रकार किया गया है:

कुम्भे स्नात्वा च पीत्वा च त्रिवेण्यां च युधिष्ठिर।
सर्वपापविनिर्मुक्ताा: पुनाति सप्तमं कुलम॥

अर्थात: हे युधिष्ठिर! कुंभ में त्रिवेणी में स्नान करके तथा उसका जलपान करके व्यक्ति अपनी सात पीढ़ियों का उद्धार करता है।

‘ऋग्वेद’ में कहा गया है:

यत्र गंगा च, यमुना च यत्र प्राची सरस्वती।
यत्र सोमेश्वरी देवस्तत्र माममृतं कृधींद्रायेन्द्रो परिस्त्रव॥

अर्थात: हे सोम! जिस तीर्थ में गंगा, यमुना और सरस्वती तथा शिव विद्यमान हैं वहां आकर अमरता प्रदान करें।

ब्रज का पावनोत्सव वृंदावन महाकुंभ
श्रीधाम वृंदावन राधा-कृष्ण की दिव्य व चिन्मय लीला भूमि, रस भूमि और भक्ति भूमि है। यहां इन सभी की नित्य उपस्थित अनुभव में आती है। इस भूमि पर उपासना करने वाले संतों व रसिकों ने भक्ति रस को रस भक्ति में परिणत किया हुआ है। यहां के रस से बड़ा कोई भी अन्य रस नहीं है। ऐसे महिमामय श्रीधाम वृंदावन में प्रत्येक १२ वर्ष के पश्चात हरिद्वार में आयोजित होने वाले कुंभ मेले से पूर्व सर्व विध संकटहारिणी श्रीकृष्ण वल्लभा मां यमुना महारानी के पावन तट पर साधु संतों की पावन सन्निधि में महाकुंभ का मेला आयोजित किया जाता है। इसे गोलोकधाम का कुंभ माना गया है।

वृंदावन कुंभ श्रीमद्भागवत सम्मत परम भागवत पर्व है। श्रीमद्भागवत मघपुराण के दशम स्कन्ध के १६ वें अध्यायों में यह वर्णित है कि श्रीधाम वृंदावन वही पवित्र स्थान है जहां पर कि समुद्र मंथन के पश्चात गरुड़ भगवान अपनी मां विनिता को कद्रू की दासता से मुक्त कराने हेतु अमृत कलश को देवताओं से छीन कर और उसे राक्षसों से बचाते हुए यहां लाए थे। पक्षीराज गरुड़ ने यहां सौमरि ऋषि की तपस्थली कालिय दह पर खड़े विशाल कदम्ब के वृक्ष पर अमृत कलश को रख कर विश्राम किया। साथ ही उन्होंने अत्यंत भूख से व्याकूल होकर यमुना नदी में मछलियों का भक्षण किया। इस पर मछलियों ने यमुना के अंदर ही तपस्या कर रहे सौमरि ऋषि की शरण ली। सौमरि ऋषि ने क्रोधित होकर देव गरुड़ को यह श्राप दिया कि जिस श्रीधाम वृंदावन को तुमने अपने कृत्य से गंदा किया है वहां यदि तुम पुन: फिर कभी आए तो तुम्हारे पंख जल कर भस्म हो जाएंगे। यह सुन कर गरुड़जी तुरंत कदम्ब की डाल पर रखे अमृत कलश को लेकर उड़ गए। शीघ्रता में अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें कदम्ब के वृक्ष पर एवं यमुना नदी में जा गिरी। जिससे कदम्ब का वृक्ष अमर हो गया और वह आज भी हराभरा बना हुआ है। जबकि उसके निकट स्थित सभी कदम्ब के वृक्ष सूख चुके हैं। सौमरि ऋषि के द्वारा पक्षीराज को दिए गए श्राप के चलते गरुड़देव फिर कभी श्रीधाम वृंदावन की सीमा में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाये। भगवान विष्णु ने जब अपने परम भक्त बालक ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपने दर्शन देने हेतु ब्रज में आने को कहा तो उनके वाहक पक्षीराज गरुड़ ने श्रीधाम वृंदावन की सीमा में प्रवेश करने से इनकार कर दिया। इसी कारण भगवान विष्णु ने ध्रुव को अपना दर्शन मथुरा के निकट मधुबन में दिया। यह इस बात का प्रमाण है कि गरुड़ गोविन्द भगवान का एकमात्र मंदिर श्रीधाम वृंदावन की सीमा से बाहर छटीकरा ग्राम में है।

द्वापार युग में भगवान श्रीकृष्ण ने उक्त कदम्ब के वृक्ष से ही छलांग लगा कर कालिया नाग का मान मर्दन किया और यमुना को भयंकर विष से बचाया। क्योंकि कालिया नाग के भयंकर विष वमन की ज्वाला से यमुना नदी में रह रहे जीव जन्तु एवं आसपास के क्षेत्र में विष के प्रभाव से वहां कोई भी जीवित नहीं रह पाता था। साथ ही यमुनातट की सारी वनस्पति तक भस्म हो गई थी। तभी से श्रीधाम वृंदावन में कुंभ पर्व को स्वीकारते हुए उसके मेले का शुभारंभ हुआ, जो कि अपनी सनातन परम्परा को आज भी निभा रहा है। विद्वानों का मत है कि वृंदावन में आयोजित होने वाला कुंभ मेला ही सही अर्थों में वास्तविक कुंभ है। क्योंकि यह उस समय आयोजित होता है जब कि पूरे एक माह तक सूर्य व बृहस्पति कुंभ राशि में स्थिर रहते हैं तथा फाल्गुनी अमावस्या को चन्द्रमा भी उसमें प्रवेश कर जाता है।

पुराणों में यह भी वर्णन है कि त्रेतायुग में देवताओं व दानवों के द्वारा किए गए समुद्र मंथन में से जो अमृत कलश निकला था उसे देवताओं ने दानवों की पकड़ से बचाने के दौरान सर्व प्रथम श्रीधाम वृंदावन की पुण्य भूमि पर ही रखा था। इसीलिए विनम्र धर्मग्रंथ वृंदावन की महिमा से ओतप्रोत हैं। कहा गया है:

‘भारत ब्रज भू: श्रेष्ठ तत्र वृंदावनं परम।
पंच योजनमेवास्ति वनं मे देह रुपकम॥

अर्थात: भारत में ब्रजभूमि श्रेष्ठ है, उसमें भी वृंदावन श्रेष्ठ है। पंच योजन वाला जो वृंदावन है वह मेरा शरीर है अर्थात जो वृंदावन में निवास करता है वह भगवान की गोद में बैठा हुआ हैं।

यह भी कहा गया है-

‘वृंदावन वैकुण्ठ को तौल्यो तुलसीदास।
मारी रह्यो सो भू रह्यो, अल्के गयो अकास॥

ऐसे दिव्यातिदिव्य श्रीधाम वृदांवन में महाकुंभ का पर्व सर्वदेवमय व सर्वतीर्थमय परात्पर परब्रह्म परमात्मा के रूप में अंगीकृत किया जाता है। सनातन धर्म की यह मान्यता है कि इस पुण्य काल में यहां कल-कल करती यमुना महारानी के पवित्र जल में अमृत की धारा बहती है। जिसमें स्नान करने से जीव धन्य हो जाता है। यही कारण है कि इस समय स्नान हेतु ब्रम्हा, विष्णु, महेश आदि ३३ करोड़ देवी देवता तक पधारते हैं।

हरिद्वार कुंभ से पूर्व श्रीधाम वृंदावन की चिंतन भूमि में कुंभ का मेला आयोजित करने की नींव वैष्णव संतों ने ही डाली है। उसके मूल में शुरू से यह भावना भी रही है कि धाम सम्राट श्रीधाम वृंदावन को लांघ कर हरिद्वार कैसे जाया जाय। इसलिए हरिद्वार कुंभ से पूर्व माघ शुक्ल पंचमी से फाल्गुण शुक्ल पूर्णिमा तक वृंदावन में यमुना तट की कई एकड़ भूमि पर होने वाले इस दिव्य समायोजन में चारों सम्प्रदायों (रामानंद सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय, गांड़ीय सम्प्रदाय, राधा वल्लभ सम्प्रदाय) और तीनों अनि अखाड़ों (निर्वाणी, अनि, दिग्बर अनि, निर्मोही अनि) के अनेक खालसों के संत, वैष्णवाचार्य, धर्माचार्य, श्रीमहंत, महामण्डलेश्वर व जगदगुरु आदि के अलावा देशविदेश के असंख्य भक्त, श्रद्धालु अत्यंत उत्साह व श्रद्धा के साथ भाग लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रीधाम वृंदावन का महाकुंभ अत्यंत मंगलमय है। इसमें नियम पूर्वक कल्पवास करते हुए साधन भजन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वृंदावन में सर्वप्रथम कुंभ मेला सन १७२३ में लगा था। वृंदावन कुंभ का शुभारंभ ब्रज विदेही महंत काण्यि बाबा के द्वारा यमुना तट पर भूमि पूजन व ध्वजारोहण के साथ किया जाता है। तत्पश्चात यहां आए असंख्य संत महात्मा व श्रद्धालु भक्त मेले की सम्पूर्ण अवधि में यमुना किनारे अत्यंत संयम से रहते हुए व साधना सत्संग करते हुए कल्पवास करते हैं। यह १८ अखाड़ों की देश भर में फैली तमाम जमातों के असंख्य संत हरिद्वार कुंभ के पहले शाही स्नान में शामिल नहीं होतेे हैं। वे कुंभ के अपने सभी शाही स्नान वृंदावन कुंभ में ही करते हैं। वृंदावन कुंभ समाप्त होने के बाद ही वे अपने सारे लाव-लश्कर के साथ हरिद्वार कुंभ के लिए प्रस्थन करते हैं। यहां यमुना के दोनों किनारों की लगभग ४० हेक्टर भूमि को कई जोनों व सॅक्टरों में विभाजित किया जाता है, जिस पर कि विभिन्न सम्प्रदायों, अखाडों, मठों, मंदिरों और समाजसेवी संस्थाओं आदि के अनगिनत व कैम्प आदि लगाए जाते हैं जिनमें कि आवास, भोजन, चिकित्सा व सुरक्षा आदि की समुचित व्यवस्था रहती है। यहां नित्य प्रति श्रीमदभागवत, रामचरित मानस, श्रीमदभागवत गीता के सत्संग -प्रवचन, रासलीला व रामलीला के मंचन, हरिधाम संकीर्तन यज्ञ एवं विभिन्न मार्मिक अनुष्ठान आदि के अनेकानेक कार्यक्रम होते रहते हैं। समूचा यमुना परिसर विभिन्न सम्प्रदायों व आखाडों के संत-महात्माओं से सुशोभित हो उठता है। इस अवसर पर साधु- संन्यासी न केवल अपने विचारों का मंथन करते हैं अपितु महत्वपूर्ण निर्णय भी लेेते हैं। साथ ही इसमें महामण्डलेश्वर का चयन भी किया जाता है। इसमें विभिन्न जाति, वर्ग, सम्प्रदाय के व्यक्ति भाग लेकर सनातन धर्म की परम्परा को सजीव करते हैं। चहुंओर धर्म व संस्कृति का अद्भुत समागम देखने को मिलता है। दूरदराज से आए जनता-जनार्दन को संत दर्शन, सत्संग-प्रवचन एवं यमुना स्नान आदि का पुण्य भी अर्जित होता है। वस्तुत: यह मेला ब्रज संस्कृति का विराट पावनोत्सव है। इसलिए यह वृंदावन रस से सरोवर रहता है। मेले में मनोरंजन, वाहन पार्किंग, पुरुष व महिला थानों, फायर ब्रिगेड, गोताखोरों, पुलिस व पीएसी के जवानों, खोया-पाया केन्द्रों आदि की व्यवस्था रहती है। मथुरा व हरिद्वार आदि स्थानों से मेला स्थल तक यू.पी. रोडवेज की बसों का संचालन होता है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu faithhindu traditionreligiontradition

गोपाल चतुर्वेदी

Next Post

हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है..

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0