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सुपर फ़ूड मोटे अनाज की प्राकृतिक कृषि

Indian farmer plowing rice fields with a pair of oxen using traditional plough at sunrise.

सुपर फ़ूड मोटे अनाज की प्राकृतिक कृषि

by प्रवीण गुगनानी
in कृषि, ट्रेंडींग, सामाजिक
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23 दिसंबर: राष्ट्रीय किसान दिवस पर विशेष

सुपर कृषक बनने का मार्ग: सुपर फ़ूड मोटे अनाज की प्राकृतिक कृषि
देश में मोटे अनाजों की कृषि, उत्पादन व उपभोग को पर केंद्रित इस लेख के पूर्व यह कविता पढ़िए –
यह रागी हुई अभागी क्यों?
चावल की किस्मत जागी क्यों?
जो ‘ज्वार’ जमी जन-मानस में,
गेहूँ के डर से यह भागी क्यों?
यूँ होता श्वेत ‘झंगोरा’ है।
यह धान सरीखा गोरा है।
पर यह भी हारा गेहूँ से,
जिसका हर कहीं ढिंढ़ोरा है!
जाने कितने थे अन्न यहाँ?
एक-दूजे से प्रसन्न यहाँ।
जब आया दौर सफेदी का,
हो गए मगर सब खिन्न यहाँ।
अब कहाँ वो ‘कोदो’-‘कुटकी’ है?
‘साँवाँ’ की काया भटकी है।
संन्यासी हुआ ‘बाजरा’ अब,
गुम हुई ‘काँगणी’ छुटकी है।
अब जिसका रंग सुनहरा है।
सब तरफ उन्हीं का पहरा है।
अब कौन सुने मटमैलों की,
गेहूँ का साया गहरा है।
यह देता सबसे कम पोषण।
और करता है ज्यादा शोषण।
तोहफे में दिए रसायन अर
माटी-पानी का अवशोषण।
यह गेहूँ धनिया-सेठ बना।
उपभोगी मोटा पेट बना।
जो हज़म नहीं कर पाए हैं,
उनकी चमड़ी का फेट बना।
अब आएँगे दिन मक्का और ‘रागी’ के।
उस ‘कुरी’, ‘बटी’, बैरागी के।
जब ‘राजगिरा’ फिर आएगा
और ताज गिरें बड़भागी के।
जब हमला हो ‘हमलाई’ का।
छँट जाए भरम मलाई का।
चीनी पर भारी ‘चीना’ हो,
टूटेगा बंध कलाई का।

देश राष्ट्रीय किसान दिवस मनाता इसके ठीक एक दिन पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने संसद में मोटे अनाज से बने व्यंजनों का भोजन कार्यक्रम आयोजित करके किसान दिवस के महत्त्व को बढ़ा दिया। ऐसा करके केंद्र सरकार ने किसान दिवस व आने वाले वर्ष में मोटे अनाज के उत्पादन, मार्केटिंग व उपभोग के प्रति अपनी मंशा प्रकट कर दी है।

पिछले कुछ दशकों में गेंहू, चावल की कृषि ने मोटे अनाजों यथा मक्का, बाजरा, ज्वार, कोदो, कुटकी, रागी आदि को हमारी कृषि और थाली से लगभग बाहर कर दिया है। कृषकों और उपभोक्ताओं की मोटे अनाज (मीलेट्स) को भूलने की प्रवृत्ति ने हमारे देश के कृषकों की आय नागरिकों के स्वास्थ्य इंडेक्स दोनों को ही दुष्प्रभावित किया है। किंतु अब मिलेट्स के दिन फिर बहुरने लगे हैं। इनकी मांग पिछले एक साल के दौरान ही 129 प्रतिशत बढ़ चुकी है। खपत बढ़ने से किसानों ने खेती का रकबा भी 116 प्रतिशत बढ़ाया है। भारतीय कृषक मिलेट्स की कृषि में तकनीकी व प्राकृतिक उपायों के प्रयोग से प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने में सफल हुए हैं। विगत पांच वर्षों में मोटे अनाज का बाजार पांच गुना हो चुका है। मोटे अनाज अपने स्वाद, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ सातः कैल्शियम आयरन, फास्फोरस, मैग्नीशियम, जस्ता, पोटेशियम, विटामिन बी-6 और विटामिन बी-3 के प्रबल वाहक भी होते हैं।

इन दिनों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान जैसे जनजातीय बहुल प्रदेशों में तो जनजातीय बंधुओं द्वारा प्राकृतिक कृषि से उपजाएं जाने वाले मोटे देशज अनाजों की मांग महानगरों से व विदेशों से भी आने लगी है। जनजातीय क्षेत्रों में उगने वाले ये कोदो, कुटकी आदि अनाज कई बीमारियों के निदान का प्रतीक बन गए हैं। ये जनजातीय मिलेट्स महानगरों और विदेशों में सैकड़ों रूपये किलो तक हाथोहाथ लिए जाते हैं। जहाँ देश के बड़े वर्ग ने अपनी थाली में स्वास्थ्य कारणों से मोटे अनाजों को स्थान देना प्रारंभ किया है वहीं विभिन्न प्रकार के उद्योगों में, बायोडीजल हेतु व एथेनाल हेतु भी मोटे अनाजों की खपत बड़ी मात्रा में होने लगी है। खपत बढ़ने के कारण मोटे अनाज के बाजार भाव भी आकर्षक व लाभकारी मिलने लगे हैं। एक गाय के गोबर से 30 एकड़ भूमि पर मोटे अनाज की प्राकृतिक खेती हो जाती है। देशज गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ तक उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले व मिट्टी की जल संधारण बढ़ाने वाले बेक्टीरिया होते हैं।

आज भारत विश्व मिलेट (मोटे अनाज) के उत्पादन में विश्व भर में सर्वाधिक अग्रणी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, झारखण्ड, तमिलनाडु, और तेलगांना आदि प्रमुख मोटे अनाज उत्पादक राज्य हैं। आसाम और बिहार में सबसे ज्यादा मोटे अनाजों की खपत होती है। देश में पैदा की जाने वाली मुख्य मिलेट फसलों में ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी का स्थान आता है। जनजातीय समाज के बंधू कोदों, कुटकी, सावां आदि की खेती की कृषि परंपरागत रूप से प्राकृतिक रीति नीति से सैकड़ों वर्षों से करते चले आ रहे हैं। जनजातीय बंधुओं द्वारा उत्पादित ये मोटे अनाज बड़े ही स्वास्थ्य वर्द्धक व आयुष वर्द्धक होते हैं। इन मोटे अनाजों की फसल का एक विशेष गुण होता है कि इनकी कृषि जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से भी बड़ी जीवट होती हैं। सूखा, अधिक तापमान, कम पानी की भूमि, कम उपजाऊ जमीन आदि आदि की परिस्थिति में भी इनका अच्छा उत्पादन किया जा सकता है।

मोटे अनाज की कृषि को गरीब किसान की कृषि इसलिए ही कहा जाता रहा है। मोटे अनाजों की इस जिजीविषा पूर्ण कृषि, उत्पादन अनुपात, लागत अनुपात, पौष्टिकता, बहु उपयोगिता और पर्यावरण मित्र स्वभाव के कारण इन फसलों को सुपर फ़ूड कहा जाने लगा है। निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि पांरपरिक भारतीय अनाजों में स्वास्थ्य का खजाना छुपा है। यही कारण है कि बीते वर्षों में में मोटे अनाजों की बुवाई का क्षेत्रफल सतत बढ़ता ही जा रहा है और फलस्वरूप मनुष्य और पशु दोनों के उदरपोषण में मोटे अनाजों का समावेश बड़े स्तर पर बड़े प्रतिशत के साथ हो गया है।

वर्ष 2018 को भारत में “ईयर ऑफ मिलेट्स” के रूप में मनाया गया था। अब इस स्थिति में एक और गुणात्मक परिवर्तन आ गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के आग्रह पर वर्ष 2023 को “इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स” के रूप में मनाने का निर्णय किया है। वर्ष 2023 में देश भर में कृषकों को इन अनाजों के सन्दर्भ में हजारों कार्यशालाओं व अन्य माध्यमों से मोटे अनाज की प्राकृतिक कृषि के संदर्भ में समझाया जाएगा। आगामी वर्ष में मोटे अनाजों के प्रयोग से होने वाले स्वास्थ्य लाभ के विषय में देश के नागरिकों में जागरण अभियान भी चलाया जायेगा। मोटे अनाज कम उपजाऊ मिट्टी में भी अच्छी उपज दे सकते हैं और तुलनात्मक रूप से इनकों कीटनाशकों की उतनी जरूरत नहीं होती है। मोटे अनाजों को अधिक पानी-सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यह अधिक तापमान में भी आसानी से पैदा किये जा सकते हैं। यह फसलें किसानों के लिए अच्छी हैं, क्योंकि उनकी खेती करना दूसरी फसलों की तुलना में आसान है। यह कीट पंतगों से होने वाले रोगों से भी बचे रहते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा मिलेट उत्पादन करने वालों में भारत, नाइजीरिया और चीन प्रमुख देश हैं जो कि दुनियां का 55 फीसदी उत्पादन करते हैं।

देश में राजस्थान सबसे ज्यादा बाजरा पैदा करने वाला राज्य है जहां 7 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती की जाती है। मध्य प्रदेश में छोटे मोटे अनाज की सबसे ज्यादा क्षेत्रफल में खेती की जाती है। जिसमें मध्य प्रदेश 32.4, छत्तीसगढ़ 19.5, उत्तराखण्ड 8, महाराष्ट्र 7.8, गुजरात 5.3 और तमिलनाडु 3.9 फीसदी क्षेत्रफल में छोटी मिलेट फसलों की खेती की जाती है। देश में की जाने वाली ज्वार की खेती का 50 फीसदी रकबा अकेले महाराष्ट्र से आता है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा रागी की खेती की जाती है। सामान्यतः मोटे अनाजों की सभी फसलों की कीमत सामान्य धान से अधिक ही रहती है। रागी में पोटेशियम एवं कैल्शियम अन्य मिलेट फसलों की तुलना में ज्यादा है। कोदों में प्रोटीन 11, हल्की वसा 4.2, बहुत ज्यादा फाइवर 14.3 फीसदी के अलावा विटामिन-बी, नाइसिन, फोलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम मैगनीशियम, जिंक आदि महत्वपूर्ण पौषक तत्व पाये जाते हैं।

इसी प्रकार से बाजरा में प्रोटीन, फाइवर, मैगनीशियम, आयरन एवं कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। बाजरा मधुमेह को नियंत्रित करता है और कोलेस्ट्रोल के स्तर को नियंत्रित करता है। मोटे अनाज कैल्शियम, आयरन और जिंक की कमी को दूर करते हैं। सबसे जरूरी बात यह है कि मोटे अनाज गेंहू के ठीक विपरीत ग्लूटेन फ्री होते हैं और इस कारण मनुष्य को मोटापे से बचाते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि हरित क्रान्ति के कारण जैसे-जैसे गेहूँ और धान की पैदावार बढ़ी वैसे-वैसे भारतीय थालियों से मोटे अनाज गायब हुए और पौष्टिकता कम होते चली गई थी। अब भी हमारे देश में धान और गेंहू के सामने मोटे अनाजों का उत्पादन अब भी बहुत कम है।

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Tags: farmersfarmers lifefarmingfarming landfarming producegreen revolutionhardworkhindi vivekhindi vivek magazinemilletsnarendra tomarnational farmer dayorganic farmingpm narendra modisuper foodtrending

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