विकसित भारत में महिलाओं की भूमिका

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देश की आधी जनसंख्या कही जानेवाली महिलाएं यदि घरेलु कार्यों के साथ ही उद्योग, व्यवसाय, स्वयं रोजगार आदि क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाने लगे तो विकसित भारत का सपना जल्द साकार हो जाएगा। आवश्यकता बस इतनी है कि उनके शक्ति सामर्थ्य और क्षमता के अनुरुप अवसर, प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया जाए।

सक्षम होंगी तभी सुरक्षित होंगी बेटियां

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कुछ चुनिंदा विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को आत्मरक्षा के गुण भी सिखाए जाते है लेकिन यह सभी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अनिवार्य किया जाना चाहिए, जिससे वे शारीरिक व मानसिक रुप से अपनी आत्मरक्षा करने में समर्थ हो और उनका मनोबल बढ़े। जागरुकता की दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर आत्मरक्षा अभियान चलाना आवश्यक है।

राम मंदिर से बढ़ती समृद्धि और समरसता

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500 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद हुए राम मंदिर के पुनर्निर्माण ने न केवल भारतीय समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक आधारशिला को मजबूत किया है बल्कि उसकी प्राण प्रतिष्ठा ने सम्पूर्ण देश में अभूतपूर्व समृद्धि और समरसता का मार्ग प्रशस्त किया है। आज पुनर्निर्मित भव्य राम मंदिर न केवल धार्मिक या ऐतिहासिक संदर्भ में महत्वपूर्ण बन गया है, बल्कि यह समृद्धि, समरसता और एकता के प्रतीक के रूप में भी स्थापित हो गया है।

अयोध्या और अबुधाबी का शांति संदेश- मधुभाई कुलकर्णी

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भारत के अयोध्या और अरब के अबुधाबी में सर्वधर्म समभाव एवं सहिष्णुता के प्रतीक बने हिंदू मंदिर पूरी दुनिया को ‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दे रहे हैं। यदि मजहबी टकराव, कट्टरता, आतंकवाद, हिंसा और युध्द से बचना है तो सनातन संस्कृति में निहित सहअस्तित्व के  विचारों को आत्मसात करना ही होगा।

 वोक कल्चर भारतीय संस्कृति पर आक्रमण

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किसी भी देश की अपनी एक विचारधारा होती है अपनी एक संस्कृति होती है, लेकिन जब इस पर वोक कल्चर हावी होने लगे तो संस्कृति दरकने लगती है। वोकिज्म की अजगरी बांहों में युवा पीढ़ी समाने लगी है और उनकी विचारधारा भी विषाक्त होने लगी है। अब वे ‘हेलोवीन’ पार्टी मना रही है। ‘वोक’ संस्कृति की आड़ में कहीं हमारी संस्कृति पर प्रहार तो नहीं। 

महिला अधिकारों एवं कानूनों का दुरुपयोग

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महिलाओं के उत्पीड़न, उनकी सुरक्षा और अधिकार के लिए कानून तो बनाए गए है लेकिन बड़ी संख्या में महिलाएं इस कानून का दुुरुपयोग करने लगी हैं। झूठे मामले में वो अपने पति या ससुराल वालों को यौन उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना या घरेलू हिंसा में फंसा देती है। इसलिए अब समय की मांग है कि झूठे आरोप लगाने वाली महिलाओं को भी दंडित किया जाए।

महिलाओं के लिए सरकारी योजनाएं

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महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने हेतु वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं, जिसमें लखपति दीदी योजना, ड्रोन योजना, सहायता का सीधा हस्तांतरण, मुद्रा लोन योजना, उज्जवला गैस योजना आदि शामिल है। इन योजनाओं के अंतर्गत महिलाओं की दशा और दिशा दोनों में बदलाव आ रहा है।  

पत्रकारिता में महिलाओं की दशा और दिशा

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पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तो बढ़ी है लेकिन अभी भी वो हाशिए पर है। लेकिन कई ऐसी जुझारु पत्रकार हैं जो अपनी कार्य-कुशलता के बल पर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करती हैं और उन क्षेत्रों में जाकर साहसिक रिर्पोटिंग करती हैं जहां पुरुषों का क्षेत्र  माना जाता था।  

नशे की अजगरी बांहों में महिलाएं

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फैशन के नाम पर सिगरेट, शराब, ड्रग्स का नशा करना और इसके साथ ही तस्करी एवं अन्य अपराधिक गतिविधियों में महिलाओं की संख्या में लगातार वृद्धि होना चिंता की बात है। संवेदनशील भारतीय महिलाएं संवेदनहीन व दिशाहीन होकर विकृति की ओर बढ़ती जा रही है।

राजनीति में मजबूत दावेदारी

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वर्तमान मोदी सरकार ने महिलाओं को विकास के पंख दिए तो महिलाओं ने भी सपनों की ऊंची उड़ान भरनी शुरु की। राजनीति की पुरपेंच गलियों से होते हुए वो राष्ट्रपति और राज्यपाल के पद पर स्थापित हैं। वह क्षेत्र जहां अब तक केवल पुुरुषों का वर्चस्व था, उन क्षेत्रों में भी महिलाओं ने स्वयं को स्थापित किया है।

शौर्य की प्रतिमूर्ति रानी दुर्गावती

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इतिहास के पन्नों में अलग से रेखांकित है महानतम वीरांगनाओं में रानी दुर्गावती का नाम। इस साल उनका शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा हैं। जिन्होंने देश की रक्षा और आत्मसम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दीं। राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी और मुगलों से युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुईं।

राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड प्रस्थापित करती पुस्तक ‘मुद्दा’

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लेखन के विविध प्रकारों में से पत्रकारिता को सर्वथा उपयुक्त माना जाता है. पत्रकारिता से राष्ट्रीय विचारधारा को बल मिलना चाहिए. समाज को जागरूक कर उसे सही दिशा देना ही वैचारिक पत्रकारिता है. यही कार्य विगत एक दशक से अमोल पेडणेकर अपनी लेखनी से सतत करते आ रहे है. दिग्भ्रमित, फेक न्यूज और गुमराह करनेवाली पत्रकारिता के दौर में अमोल पेडणेकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘मुद्दा’ सही अर्थों में राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड कही जा सकती है.

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