वृथा है पश्चिमवालों की नकल करना

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हम लोगों को अपनी प्रकृति के अनुसार ही अपनी उन्नति करनी होगी। विदेशी संस्थाओं ने बलपूर्वक जो कृत्रिम प्रणाली हम पर थोपने की चेष्टा की है, तदनुसार काम करना वृथा है। वह असम्भव है। जय हो प्रभु! हम लोगों को तोड़-मरोड़कर नये सिरे से दूसरे राष्ट्रों के ढाँचे में गढ़ना…

भारतीय राष्ट्रभाव का मूल आधार हिन्दू संस्कृति है

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भारतीय राष्ट्रभाव अतिप्राचीन है। इसका मूल आधार हिन्दू संस्कृति है। सम्प्रति हिन्दू राष्ट्र पर विमर्श है। हिन्दू संस्कृति के कारण यह हिन्दू राष्ट्र है। कुछ लोग भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। उनका मंतव्य स्पष्ट नहीं है। राष्ट्र राजनैतिक इकाई नहीं है। यह सांस्कृतिक अनुभूति…

वैदिक साहित्य में सामाजिक समरसता

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भारतीय साहित्य का जहाँ से उद्गम हुआ, वह स्रोत निर्विवाद रूप से वेद है। वेद आर्ष काव्य की श्रेणी में आते हैं। हमारे प्राचीन ऋषि मनुष्य थे, समाज के साथ थे। वे आपसी प्रेम और सद्भाव को सबसे अधिक मूल्यवान समझते थे। इसीलिए मनुष्य की जिजीविषा, उसके सामाजिक सरोकार और…

ब्राह्मण ऋषियों की खोज और अविष्कार

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5000 साल पहले ब्राह्मणों ने हमारा बहुत शोषण किया ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने से रोका। यह बात बताने वाले महान इतिहासकार यह नहीं बताते कि 500 साल पहले मुगलों ने हमारे साथ क्या किया। 100 साल पहले अंग्रेजो ने हमारे साथ क्या किया।हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897…

“जीवन विद्या” को सीखें और जिंदगी का स्वरूप समझें

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"असुर", "मनुष्य" और "देवता" देखने में एक ही आकृति के होते हैं । अंतर उनकी प्रकृति में होता है। "असुर" वे हैं, जो अपना छोटा स्वार्थ साधने के लिए दूसरों का बड़े से बड़ा अहित कर सकते हैं, "मनुष्य वे हैं", जो अपना "स्वार्थ" तो साधते हैं पर "उचित अनुचित"…

भारतीय चिंतन में सूर्य ब्रह्माण्ड की आत्मा हैं

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सूर्य सभी राशियों पर संचरण करते प्रतीत होते हैं। वस्तुतः पृथ्वी ही सूर्य की परिक्रमा करती है। आर्य भट्ट ने आर्यभट्टीयम में लिखा है, ‘‘जिस तरह नाव में बैठा व्यक्ति नदी को चलता हुआ अनुभव करता है, उसी प्रकार पृथ्वी से सूर्य गतिशील दिखाई पड़ता है।" सूर्य धनु राशि के…

मृत देह को दक्षिणोत्तर क्यों रखते हैं ?

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जीव की प्रेतवत् अवस्था, पंचप्राणों एवं उपप्राणों के स्थूल देह संबंधी कार्य की समाप्ति दर्शाती है । जिस समय जीव निष्प्राण हो जाता है, उस समय जीव के शरीर में तरंगों का वहन लगभग थम सा जाता है व उसका रूपांतर ‘कलेवर’ में होता है । ‘कलेवर’ अर्थात स्थूल देह…

हमारे ऋषियों ने वेदों को कैसे सुरक्षित रखा ?

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जाने वेदों में रत्ती भर भी मिलावट क्यों नहीं हो सकी ? जब कोई सनातनी ये बताने की कोशिश करता हैं की हमारे ज्यादातर ग्रंथों में मिलावट की गई है तो वो वेदों पर भी ऊँगली उठाते हैं की अगर सभी में मिलावट की गई है तो वेदों में भी…

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