सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की छाया में गणतंत्र

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बदलाव की चेतना स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी देखने में आई थी। इसीलिए इसे भारतीय स्वाभिमान की जागृति का संग्राम भी कहा जाता है। राजनीतिक दमन और आर्थिक शोषण के विरुद्ध लोक-चेतना का यह प्रबुद्ध अभियान था। यह चेतना उत्तरोतर ऐसी विस्तृत हुई कि समूची दुनिया में उपनिवेशवाद के विरुद्ध मुक्ति का स्वर मुखर हो गया। परिणाम स्वरूप भारत की आजादी एशिया और अफ्रीका की भी आजादी लेकर आई।

लोकतांत्रिक चेहरों पर एकशाही की मासूमियत

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लोकतंत्र का शिखर तलहटी को थोड़ा-थोड़ी सरकाता रहता है। न बर्फ खिसके, न वोट बैंक। परिवार उठता चला जाए। साधारण सीं झोंपड़ी से निकलकर हजारों करोड़ की मिलकियत कैसे बन जाती है! पर चेहरे पर जनवाद लहलहाता है।   

गणतंत्र को चिरायु करनेवाली शक्ति

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26 जनवरी, 2013 को भारतीय गणतंत्र अपने 64 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है। 26 जनवरी 1950 से संविधान पर अमल किया जाने लग् और भारत एक लोकतांत्रिक देश बन गया। सन् 1947 के बाद जिन लोगों का जन्म हुआ है उन्हे जन्म से ही लोकतांत्रिक शासन प्राप्त है। लोकतंत्र के पहले का शासन कैसा था? इस शासन में जनता को क्या अधिकार प्राप्त थे?

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