विकास मजबूरी – संतुलन जरूरी

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कुछ न होने वाला, डराओ मत, हमेशा नकारात्मक ही क्यों सोचते व बोलते हो, प्रकृति के पास अपार संसाधन हैं इसलिए उनके उपयोग पर रोक टोक न लगाओ आदि आदि। प्रकृति प्रेमी और पर्यावरणविद् अधिकांश: इसी तरह के जुमले सुनने के आदि होते हैं। जब प्राकृतिक आपदाएं आती हैं और…

नहीं जागे तो जोशीमठ से भी बुरा नैनीताल का हाल होगा

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कल्पना कीजिए... जहां कोई आदमी सो रहा हो उसके बेड के नीचे ही जमीन पर मोटी मोटी दरारें पड़ी हों । रात में उन्हीं दरारों से गड़गड़ाने की जोर जोर की डरावनी आवाजें आ रही हों । और भी खतरनाक बात ये कि पूरा इलाका भूकंप के अतिसंवेदनशील जोन 5…

हिमालय क्षेत्र में प्रकृति संरक्षण एवं आपदा प्रबंधन

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पहाड़ी क्षेत्रों में बादल का फटना एवं भूस्खलन एक साधारण घटना है, लेकिन केदारनाथ क्षेत्र में इतनी बड़ी आपदा पहली बार हुई है। इसी तरह से बादल का फटना, भूस्खलन, नदी की धारा बाधित होना, अल्पकालिक झील का निर्माण, झील का ध्वस्त होना एवं त्वरित बाढ़ का आना एवं अवसाद के अपवहित होने की घटना पर गंगोत्री हिमनदीय क्षेत्र में शोध अध्ययन किए गए हैं।

प्राकृतिक आपदा और प्रशासन का ‘मिस मैनेजमेंट’

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मनुष्य होते हुए हमने नदियों, झीलों, तालाबों और जंगलों सबके साथ हर स्तर का दुराचार किया है तो प्रकृति किसी न किसी रूप में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगी ही। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग के चलते प्राकृतिक आपदाएं तो आती रहेंगी लेकिन इससे निपटने के लिए शासन-प्रशासन का मिस मैनेजमेंट भी काफी हद तक जिम्मेदार है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि आपदाओं से निपटने हेतु दूरदृष्टि का परिचय देते हुए जो सुरक्षा इंतजाम किये जाने चाहिए, उसकी पूर्व तैयारियां आज भी नहीं दिखाई देती।

प्रलय में नव निर्माण

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जून और जुलाई के बरसाती मौसम में प्रकृतिने फिर एक बार अपनी ताकत सभी को दिखा दी है। केदारनथ की दुर्दशा को हम सभी देख चुके हैं। एक-दो घण्टों में ही सब कुछ तबाह हो गया।

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