हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
विदेश नीति: बदलती कूटनीति

विदेश नीति: बदलती कूटनीति

by अमोल पेडणेकर
in देश हित में मतदान करें -अप्रैल २०१९, राजनीति, विशेष
0

नरेंद्र मोदी ने भारत की विदेश नीति का प्रवाह ही बदल दिया। दूर की कौड़ी नांपते समय अपने आसपड़ोस पर भी अधिक ध्यान दिया। इससे अपना सामर्थ्य भूल चुका भारत विश्व पटल पर अपनी ताकत के सहारे जोरदार दस्तक देता रहा है। …जो कभी हमसे मुंह मोड़ लेते थेे, वे आज गले मिल रहे हैं। यह कूटनीति की ही विजय है।

फिलहाल देश में जिस विषय पर अधिक चर्चा हो रही है वह है हमारी विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से सुधरती भारत की छवि। किसी देश का अंतरराष्ट्रीय स्थान उस देश की विदेश नीति पर निर्भर करता है। किसी भी देश की विदेश नीति में उस देश के व्यापक राष्ट्रीय हितों को वरीयता होती है। राष्ट्र के रूप में आम आदमी का सम्मिलित हित विदेश नीति से भले साध्य हो; फिर भी आम आदमी विदेश नीति को समझने से दूर ही रहता है। इसी कारण अब तक विदेश नीति आम आदमी के आकलन का विषय ही नहीं रहा।

लेकिन देश में 2019 के चुनाव आने के पूर्व भारत, पाकिस्तान और आतंकवाद को लेकर जो घटनाक्रम हुआ, उसमें भारत ने जो कूटनीतिक परिपक्वता दिखाई, उससे देश में ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत का लोहा माना जाने लगा। विदेश नीति कई बार हमारे रोजमर्रे के जीवन पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रभाव डालती है। इसीलिए चाणक्य ने राष्ट्र अपनी विदेश नीति किस तरह रखें और पड़ोसी देशों से किस तरह सम्पर्क बनाए इसका अपने अर्थशास्त्र में जिक्र किया है। किसी भी दो पड़ोसी देशों में बहुत बेहतर सम्बंध अधिकतर नहीं हुआ करते। किसी उपजाऊ जमीन के टुकड़े अथवा नदी के प्रवाह को लेकर उनमें सदा झगड़े चलते रहते हैं। इसलिए विदेश नीति यथार्थपरक होनी चाहिए।

व्यक्ति के लिए जिस तरह दूरवर्ती अमीर रिश्तेदार से स्नेहपूर्ण सम्बंध जरूरी है, उसी तरह पड़ोसियों से भी अच्छे रिश्ते जरूरी होते हैं। परंतु, पड़ोसी पड़ोस-धर्म के अनुसार ही आचरण करेगा, इसकी कोई आश्वस्ति नहीं होती। इसकी बेहतर मिसाल पाकिस्तान है। पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है, लेकिन उसने अपने पड़ोस-धर्म का जब से अस्तित्व में आया तब से कभी पालन नहीं किया। भारत के प्रति पाकिस्तान के इन उपद्रवों को ध्यान में रखकर पिछले साठ वर्षों में अपने आस-पड़ोस के देशों में भारत के प्रति विश्वास का माहौल पैदा करने के कोई राजनयिक प्रयास नहीं हुए हैं।

इस तरह का माहौल हमारे समक्ष था। पिछले पचास वर्षों में चीन ने इसका लाभ उठाया और हमारे अनेक पड़ोसियों को साम, दाम, दण्ड, भेद नीति का इस्तेमाल कर अपनी ओर मोड़ने के प्रयत्न किए। स्वाभाविक रूप से हम अपने पड़ोसियों के साथ प्रतिकूल परिस्थिति की गिरफ्त में रहे और अनावश्यक अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उलझे रहे। पाकिस्तान जैसा बेभरोसे का दोस्त दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। इसका सारी दुनिया ने अनुभव लिया है। फिर भी, भारत ने पाकिस्तान का पड़ोसी के रूप में सम्मान किया है। भारत और पाकिस्तान एक ही भूमि से उत्पन्न हुए दो राष्ट्र हैं। पाकिस्तान के अलावा भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, चीन जैसे एशियाई देश भी हमारे पड़ोसी हैं। वे केवल पड़ोसी के रूप में ही नहीं तो हमारे अच्छे दोस्त के रूप में हमसे बर्ताव करें, यह आरंभ से ही हमारी इच्छा थी। लेकिन, एकाध-दो अपवाद छोड़ दें तो इन देशों से भारत के मधुर सम्बंध स्थापित नहीं हो सके।

2014 के चुनाव परिणामों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में ही विदेशों के प्रति हमारे बदलते दृष्टिकोण का संकेत दे दिया था। भारतीय विेदश नीति में बड़े बदलाव को शपथ ग्रहण समारोह में ही देश ने अनुभव किया। इस समारोह के लिए दक्षेस देशों के सभी राष्ट्र प्रमुखों को निमंत्रित किया गया था। इसी समय स्पष्ट हो गया था कि भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं। इस शपथ ग्रहण समारोह को अंतरराष्ट्रीय जगत में एक ऊंचाई प्राप्त हो गई थी।

इसके पूर्व हम अमेरिका, यूरोप, रूस और चीन से रिश्तों के प्रति जितने जागरूक थे, उतने पड़ोसी राष्ट्रों से रिश्तों के प्रति नहीं। इस बारे में कुछ लापरवाही दिखाई दे रही थी। सार यह कि दूर का देखने की धुन में अपने पैरों तले की बातों को नजरअंदाज किया जा रहा था। इसी का लाभ चीन की दानवी महत्वाकांक्षा ने उठाया। चीन ने पड़ोसी राष्ट्रों में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए। यह बात नरेंद्र मोदी सरकार पहले दिन से ही अनुभव करती थी। इसीलिए नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देशों का महत्व और उनसे रिश्तें सुधारने की जरूरत मानकर पड़ोसी राष्ट्रों की यात्राएं आरंभ कीं। श्रीलंका, मॉरिशस, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल की यात्राएं बड़ी तत्परता से कीं।

वर्तमान में विदेश नीति पर देश का आंतरिक और बाह्य माहौल निर्भर होता है। अपने पड़ोसी को चुनने का किसी को अधिकार नहीं होता। अतः इस पड़ोसी के साथ सहजीवन मधुर मानकर, जितना संभव हो उतना मधुर बनाना राष्ट्रों के सहजीवन के लिए आवश्यक होता है। इसलिए नरेंद्र मोदी ने अपनी विेदेश नीति में बड़े राष्ट्रों के साथ ही अपने पड़ोसी राष्ट्रों को भी महत्व दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि के कारण ही भारत और बांग्लादेश के बीच चार दशकों से चले विवाद खत्म हो गए हैं। दोनों देशों ने 162 गांवों की मुक्ति का करार कर अन्य पड़ोसी देशों के समक्ष मिसाल पेश की है।

श्रीलंका भावनात्मक रूप से भी हमारे लिए महत्वपूर्ण देश है। 2009 में तमिल ईलम का खात्मा होते तक पिछले 26 वर्षों के संघर्ष में एक लाख से अधिक तमिल मारे गए हैं। इसलिए हमारे यहां तमिलनाडु की सहानुभूति श्रीलंकाई तमिलों के साथ रही है। इस मसले में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हमें झेलनी पड़ी। इसलिए श्रीलंका के साथ रिश्ते बनाते समय एक तरह की कसरत करनी होती है। मोदी ने यह कसरत बेहतर ढंग से की है। श्रीलंका के तमिल बहुल इलाके की यात्रा करने वाले नरेंद्र मोदी प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री हैं। विशेष यह कि तमिल इलाके में जाकर भी उन्होंने तमिलों के समर्थन में कोई खुला भाष्य नहीं किया, केवल इतना ही कहा कि श्रीलंका सरकार सभी नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करें।

भौतिक व आर्थिक दृष्टि से देखें तो भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा और शक्तिशाली देश है। इसलिए चीन व अमेरिका जैसे बड़े देशों ने भारत के पड़ोसी देशों को पुचकारकर भारत के समक्ष बड़ा संकट पैदा करने के प्रयास किए। इंदिरा गांधी के जमाने में इन दांवपेंचों को मात दे दी गई थी। बांग्लादेश की समस्या निर्माण होने पर किसी की परवाह किए बिना इंदिरा गांधी ने युद्ध का साहस दिखाया।

पिछले तीन दशकों में अस्थिर सरकार होने से कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री दुनिया में अपने नेतृत्व का दबदबा निर्माण नहीं कर पाया। इसलिए दुनिया तो छोड़िए अपने पड़ोसी देशों के साथ भी बड़े भाई की तरह बर्ताव करना भारत को संभव नहीं हुआ। पिछले दस वर्षों के कांग्रेस के शासन में विदेश नीति लगभग टूट-फूट चुकी थी। इसी कारण छोटा-सा पड़ोसी भी भारत को आंखें दिखाता था। ऐसे राष्ट्रों को पहली ही यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी ने उन्हें उनकी जगह दिखाने का दांव खेला। अब तक अनेक प्रधानमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह हुए, लेकिन किसी ने भी पड़ोसी देशों को इस तरह निमंत्रित करने का विचार भी नहीं किया था। मोदी का ऐसा करने के पीछे बदलते भारत की उत्साही और आक्रामक मानसिकता पड़ोसी राष्ट्रों को दिखा देनी थी। पूरा भारत किस तरह उनके साथ खड़ा है यह पड़ोसी राष्ट्रों को दिखाना था। विदेश नीति बनाते और संचालित करते समय उन्होंने इसका उपयोग किया। एक तरह के प्रभाव से पड़ोसी और अन्य अंतरराष्ट्रीय नेता भारत की ओर देखने लगे। नरेंद्र मोदी ने कुछ न मांगते हुए, कुछ न कहते हुए अपने पड़ोसी राष्ट्रों के बीच भारत के प्रति आदरयुक्त खौफ उत्पन्न किया। इसे ही कूटनीति कहते हैं।

पड़ोसी राष्ट्रों के साथ रिश्तें कायम करते समय जो नीति अमल में लाई, उसी तरह की नीति विश्व की महाशक्तियों के साथ भी बड़ी चतुराई से अपनाई। 42 वर्षों के अंतराल के बाद कनाड़ा का दौरा करने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री थे। परमाणु ऊर्जा, व्यापार, निवेश जैसे विभिन्न मुद्दों पर कनाड़ा से नजदिकी बनी। अपने को विश्व की एकमात्र महाशक्ति समझने वाली अमेरिका की भूमि पर नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि, भारत की युवा शक्ति और अमेरिका में बसे अनिवासी भारतीयों के बल पर भारत 21वीं सदी में विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता उत्पन्न कर रहा है। इस वाक्य से भारत के साथ सम्पूर्ण विश्व को एक संदेश गया। लोग अनुभव करने लगे कि अपना सामर्थ्य भूल चुका भारत आज विश्व पटल पर अपनी ताकत के सहारे जोरदार दस्तक दे रहा है। यह निश्चित रूप से कूटनीति ही थी। इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व के अनिवासी भारतीयों और भारत के निवासियों पर पड़ा।

म्यांमार में भारतीयों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था, जो कभी नमस्ते नहीं कहते थे, वे आज भारत के गले मिल रहे हैं। मोदी प्रवासी भारतीयों को सम्बोधित करते हुए कहा करते थे कि पहले वे जिस देश में हैं उस देश के प्रति निष्ठा रखें। वे उस देश की प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए योगदान करने का आवाहन किया करते थे। इसके बाद अपने भारत देश के प्रति विश्वास निर्माण करने का काम किया करते थे। यह करते समय में देश में आकार ले रही योजनाओं, विकास और उससे होने वाले उल्लेखनीय परिवर्तन के बारे में आप्रवासियों से संवाद कायम करते थे। वे भारतवंशी लोगों के साथ सम्पूर्ण विश्व को भी आगाह करते थे कि अब भारतीय व्यवस्था व भारतीय क्षमता के बारे में मन में संदेह रखने की आवश्यकता नहीं है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि, मैं भविष्य का भारत देख रहा हूं। मेरी भारत माता, जो विश्व गुरु के स्थान पर आसीन होगी, वह विश्व की आशा-आकांक्षाओं का केंद्रबिंदु होगी। यही बात अमेरिका के मेडिसन स्क्वेयर पर नरेंद्र मोदी ने दूसरे शब्दों में कही थी। सम्पूर्ण विश्व के पास जितना है उतना अकेले भारत के पास है यह अमेरिका के मेडिसन स्क्वेयर पर खड़े होकर कहना आसान बात नहीं थी। मोदी ने वैश्विक स्तर पर समर्थ भारत की छवि प्रस्तुत करने की भरसक कोशिश की। साथ में अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तें कायम करने के प्रयत्न किए। इससे विश्व भर में फैले भारतीयों को एक सूत्र में बांधने का, उनके मन में भारतीय के रूप में आत्मविश्वास उत्पन्न करने का प्रयास हुआ, यह बड़ी अलौकिक बात है।

भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, मॉरिशस, नेपाल जैसे पड़ोसी राष्ट्रों के साथ सम्बंध स्थापित किए। उन्होंने अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, कनाड़ा, इजरायल, जापान, इंग्लैण्ड जैसे राष्ट्रों में प्रवास के दौरान एक ‘वैश्विक राजनेता’ के रूप में अपनी छवि पैदा की। इसी कारण अंतरराष्ट्रीय रिश्तों, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय बाजार, राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण आदि के बारे में भारतीय विचारों को महत्व दिया जाने लगा। कुल मिलाकर, नरेंद्र मोदी विेदेश नीति के प्रति अत्यंत सजग दिखाई देते हैं। अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया जैसे देशों की यात्राएं कीं और रूस, चीन से संवाद स्थापित कर उनसे समझौते किए। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय राजनीति के साथ अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर चर्चा की।

इसी तरीके से भारत सरकार ने विश्व के विविध राष्ट्रों के साथ अत्यंत राजनयिक तरीके से दोस्ताना रिश्तें कायम किए। यह सब करते समय भारत-पाक सम्बंधों में पाकिस्तान की बेईमानी को भी उजागर करते चले गए। विश्व पटल जितना संभव हो उतना पाकिस्तान को नंगा करने के नरेंद्र मोदी व सुषमा स्वराज ने प्रयास किए। आतंकवाद के पनाहगार पाकिस्तान की दोगली नीति को विश्व के सामने लताड़ा। पाकिस्तान के भारत विरोधी प्रचार पर कोई ध्यान नहीं देता, लेकिन आतंकवाद रोकने के लिए कोई कुछ नहीं करता। यह बात लगातार विश्व के समक्ष रखी। पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर आतंकवादी राष्ट्र स्वीकार करनेे के बावजूद विश्व के देश इस मामले में कुछ नहीं करते। यह सच्चाई दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने में भारत ने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। चीन ने अजहर मसूद नामक पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी सरगना को आतंकवादी घोषित कर पाबंदी लगाने का विरोध किया। तब सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान किस तरह आतंकवाद को पनाह देता है यह बताते समय याद दिलाया कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में ही मिला और मुंबई हमले का सरगना हाफिज पाकिस्तान के चुनाव में हिस्सा ले रहा है, सभाएं कर रहा है। चीन ने राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद द्वारा अजहर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने पर फिर एक बार वीटो का इस्तेमाल किया है। अबकी बार यह प्रस्ताव अमेरिका, फ्रांस व रूस ने पेश किया था। हमारी विदेश नीति एक बार फिर दांव पर लग गई।

इसके पूर्व भी विदेश यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्रियों के भाषण होते रहे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी ने उसमें प्राण फूंक दिया। पूर्व के प्रधानमंत्री औपचारिक रूप से कार्यक्रम पूरा कर लेते थे, लेकिन नरेंद्र मोदी ने ये सारे बंधन तोड़ दिए। उन्होंने विदेश यात्राओं को इतना रोचक और रंजक बना दिया कि दुनिया भर में फैले आप्रवासी भारतीयों के साथ स्वयं भारत में भी एक रोमांच महसूस किया जाने लगा। इससे विश्व में भारतीय नागरिकों को एक अलग पहचान मिली। उनका प्रभाव बढ़ा। उनका व्यवसाय बढ़ा। व्यावसायिक लेन-देन बढ़ा। नरेंद्र मोदी ने इन सब को अनजाने में कहें या सहजता से कहें, अपनी कूटनीति का अंग बना लिया।

विभिन्न देशों के औपचारिक कार्यक्रमों में उपस्थित रहते समय वहां के भारतीयों से संवाद स्थापित करने पर मोदी ने बल दिया। बेहतर वक्तृत्व कौशल, संवादी भाषाशैली का विदेश में सर्वत्र प्रभाव दिखाई दिया जाने लगा। इन सभी बातों से वैश्विक स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ा। यहीं नहीं, नरेंद्र मोदी की ओर वैश्विक नेता के रूप में देखा जाने लगा।

आज वैश्वीकरण के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक दांवपेंच लड़े जाते हैं और किसी देश की ताकत और क्षमता का अंदाजा लगाया जाता है। पुलवामा हमले के बाद भारत ने जिस तरह से पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकाने पर हमला कर भारत की रक्षा व प्रतिरक्षा क्षमता को विश्व के सामने साबित कर दिया है, उससे भारत की रक्षा नीति के साथ विदेश नीति में भी भारत का महत्व बढ़ गया है। इसके पूर्व भारत की विदेश नीति यह कहती थी कि पाकिस्तान किस तरह अन्याय करता है और हमें न्याय नहीं मिलता, जो मिलना चाहिए। यह भावुक होकर बताने में विदेश नीति का उपयोग होता था। लेकिन अब नरेंद्र मोदी ने कूटनीति का उपयोग कर यह स्पष्ट कर दिया है कि यह नया भारत है। वह किसी पर अन्याय नहीं करेगा और कोई अन्याय करें तो सहन भी नहीं करेगा। मसूद अजहर को आतंकवादी साबित करने में चीन का अडियल रवैया होने के कारण भारत की बात बनते बनते रह गई। पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान को चेताया है कि पाकिस्तान मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों पर नियंत्रण रखे। अगर भारत पर फिर से आतंकवादी हमला हुआ तो पाकिस्तान को इसकी भारी कीमत चुकानी पडेगी। अमेरिका की इस तरह की चेतावनी देना आंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढती हुई साख को साबित करता हैं। इसी के साथ अपने पड़ोसी राष्ट्रों के साथ विश्व के मुस्लिम राष्ट्रों समेत महासत्ताओं को भी भारतीय नीतियों से अवगत कराने में सरकार सफल रही है।

मोदी की विदेश यात्राओं को लेकर उन पर गलत दोषारोपण करने के प्रयास होते रहे। लेकिन यह बचकाना हरकतें थीं। पुलवामा हमले के बाद यह साबित हो चुका है। लेकिन, इन सब बातों की नींव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 का जो चुनावी घोषणा-पत्र जारी हुआ था उसीमें है। उसमें कहा गया था कि, भाजपा सत्ता में आने पर शक्तिशाली, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी भारत की निर्मिति की जाएगी, जो वैभवशाली ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की परम्परा निर्देशित करेगा। इसीके साथ विदेश नीति सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय हितों पर आधारित होगी। पड़ोसी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बंध स्थापित करेंगे। एशिया में भारत को सम्माननीय स्थान दिलाने की दिशा में काम किया जाएगा।

1990 से भारत की विदेश नीति एक ही दिशा में प्रवाहित होती दिख रही थी। भारत को अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करनी थी। आधुनिकता की दिशा में कदम उठाने थे। इसलिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं से अधिकाधिक समझौते करने के प्रयास किए। लेकिन आर्थिक सहमति करार तभी सफल होते हैं जब भारत राजनीतिक स्तर पर अपनी ताकत को प्रदर्शित करें। स्वतंत्रता को सार्थक बनाने के लिए शक्ति का आधार जरूरी होता है। इस तरह भारत द्वारा कदम उठाए जाने पर पड़ोसी देशों के साथ विश्व के अनेक बड़े देशों ने भारत पर विश्वास जताना शुरू किया और मैत्रीपूर्ण सम्बंध बनाने में सहयोग दिया।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubjective

अमोल पेडणेकर

Next Post
सबके हित का निर्णय लें

सबके हित का निर्णय लें

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0