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संक्रांति पर्व

by डॉ. सुषमा श्रीराव
in जनवरी २०१८, संस्कृति, संस्था परिचय
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नव वर्ष के स्वागत के बाद जनवरी में मकर संक्राति साल का पहला त्यौहार है. इसलिए इस त्यौहार का महत्व बहुत बढ़ जाता है. यही एक ऐसा त्यौहार है, जो निश्चित तिथि अर्थात १४ जनवरी को मनाया जाता है, परंतु कभी-कभी यह १५ जनवरी को भी पड़ता है.
हमारे सारे पर्वों में मकर संक्राति ही ऐसा पर्व है जिसे सूर्य की स्थिति के अनुसार मनाया जाता है. इस दिन सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करते हैं. इस दिन से ही शुभ कार्यों का मुहूर्त समय आरंभ होता है.
बहुरंगी पहलू
संक्राति का पर्व ऐसा पर्व है, जिसमें हमारे देश की बहुरंगी संस्कृति के दर्शन होते हैं. यह पर्व भारत के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न नामों और तरीकों से मनाया जाता है. तमिलनाडु में पोंगल के नाम से, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में संक्रांति के नाम से जाना जाता है. पंजाब में लोहड़ी के नाम से, असम में बीहू, उत्तर भारत और महाराष्ट्र में मकर संक्राति के नाम से मनाया जाता है. इस दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ हो जाती है, इसलिए इसे गुजरात में उत्तरायण और उत्तराखंड में उत्तरायणी कहते हैं. गढ़वाल में यह खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है.
धार्मिक/पौराणिक पहलू
पुराणों में मकर संक्रांति के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं. मकर संक्राति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. इसी दिन महाराज भगीरथ ने तर्पण किया था. इसीलिए मकर संक्राति पर गंगा सागर में मेला लगता है. भीष्म पितामह ने भी संक्राति के दिन ही देहत्याग किया था. इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत किया था, अत: इसे बुराइयों पर अच्छाई की विजय का दिन भी माना जाता है. संक्राति के दिन हरिद्वार, काशी और इलाहाबाद जैसे तीर्थों में स्नान का विशेष महत्व है. स्नान के बाद जप, तप, दान और अनुष्ठान का भी विशेष महत्व है.
आर्थिक पहलू
संक्राति पर्व का संबंध कृषि से भी है. वैसे देखा जाए तो संक्राति वसंत ॠतु के आरंभ का संकेत है और पूरे देश में फसल के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. संक्राति पर्व के समय खरीफ की फसल कट चुकी होती है और रबी की फसल खेतों में लहलहा रही होती है. इस समय सभी किसानों के पास फसल का पैसा आ जाता है. आर्थिक समृद्धि होती है. इससे घर-घर में खुशी का माहौल होता है.
वैज्ञानिक पहलू
संक्राति में सर्दी का मौसम होता है. इस मौसम में शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी लग जाती हैं. इसलिए संक्राति के दिन और बाद में भी तिल गुड़ चांवल और उड़द का खूब प्रयोग किया जाता है. महाराष्ट्र में इस दिन खासकर तिल लगा कर बाजरे की रोटी और मिक्स सब्जी (कई तरह की सब्जियां मिलाकर) बनाई जाती है. साथ ही तिल गुड़ की रोटी, तिल के लड्डू, चिक्की आदि बनाई जाती है. मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में तिल के लड्डू, रेवड़ी, गजक आदि बनाई जाती है. इन्हें खाने का वैज्ञानिक कारण यह है कि उपरोक्त पदार्थ शरीर को गर्माहट तो देते ही हैं. साथ-साथ पौष्टिकता भी प्रदान करते हैं. इस दिन दाल और चावल की खिचड़ी खाई जाती है. इसका वैज्ञानिक आधार यह है कि इसमें शीत को शांत करने की शक्ति होती है.
संक्राति में रंगबिरंगी पतंगों को उड़ाने की प्रथा दशकों से चली आ रही है. इस समय पूरा आसमान पतंगों से रंगीन हुआ लगता है. बच्चे बूढ़े सभी पतंगबाजी का मजा लूटते हैं.
हमारे ऋर्षि-मुनियों ने बहुत सोच समझ कर त्यौहार मनाने की परंपरा का गठन किया है. पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है, कुछ समय सूर्य के प्रकाश में बिताना. सुबह की धूप में विटामिन डी होता है, जो हडि्डयों के स्वस्थ रहने के लिए बेहद आवश्यक है. पतंग उड़ाने में मनोरंजन के साथ-साथ अनायास ही स्वास्थ्य लाभ हो जाता है.
मकर संक्राति के बाद मौसम बदलने लगता है. रातें छोटी और दिन लंबे होने लगते हैं. गर्मी और तपन बढ़ने लगती है.

सामाजिक पहलू

महाराष्ट्र में मकर संक्राति में हल्दी कुंकुम का पर्व मनाया जाता है, जो संक्राति से लेकर रथसप्तमी तक चलता है. इसे विवाहित महिलाएं मनाती हैं. यह पर्व नवविवाहित स्त्री के लिए विशेष महात्व रखता है. इसमें तिल से बने पदार्थ जिसे मराठी में ‘हलवा’ (चिरौंजी से बने गहने) कहते हैं, से गहने बनवाकर नवविवाहिता का शृगांर किया जाता है. विवाहित महिलाओं को बुला कर हल्दी कुंकुम का कार्यक्रम मनाया जाता है. तिल के लड्डू, खानपान, अन्य पदार्थों और भेंटवस्तु जिसे ‘वाण’ कहते हैं, देकर उनका स्वागत किया जाता है. इस कार्यक्रम को महिलाएं बहुत पसंद करती हैं, और आपस में मिलजुलकर हंसी मजाक में अपनी परेशानियां भूल जाती हैं. महाराष्ट्र में संक्राति में एक दूसरे को तिल गुड़ दिया जाता है और ‘तिळ गुळ घ्या, गोड गोड बोला’ (तिल-गुड़ लीजिए और मीठी मीठी बात कीजिए.) कह कर कड़वी बातें भुलाकर मिठास भरी शुरुआत करने की अपेक्षा की जाती है. यह त्यौहार एक तरह से, सामाजिक संबंध दृढ़ करने, आपस में मिलने जुलने, तनाव दूर कर, खुशियां फैलाने वाला त्यौहार है.
संक्राति का पर्व केवल भारत ही नहीं, थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया और श्रीलंका में भी पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है.

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