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युवाओं के संदर्भ में भविष्य चिंतन

युवाओं के संदर्भ में भविष्य चिंतन

by प्रशांत बाजपेई
in जनवरी २०१८, युवा, सामाजिक
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यह लेख युवाओं के बारे में है, लेकिन सिर्फ युवाओं को संबोधित नहीं करता. क्योंकि अकेला अस्तित्व किसी का भी नहीं है.
ऊर्जा, आकांक्षाएं, संभावनाएं, तकनीक और पहले से कहीं बड़ा आसमान. २१वीं सदी का युवा अपने भाग्य से पिछली पीढ़ियों को ललचा रहा है. आज युवाओं के पास पहले से कहीं अधिक शक्ति है. सृजन के बहुआयामी अवसर हैं. आज से दस वर्ष बाद करोड़ों ऐसे रोजगार होंगे जो आज अस्तित्व में नहीं हैं. अब विचार होता है कि इंटरनेट, व्हाट्सएप और स्काइप के बाद अगला क्या होगा जो दुनिया को और करीब ले आएगा. व्यक्तिगत स्वतंत्रता, कम से कम पिछले हजार-डेढ़ हजार वर्षों की तुलना में, आज कहीं ज्यादा है. जाति-प्रांत-भाषा के बंधन टूट रहे हैं. संभावनाओं का असीम आसमान है. ऐसे में युवा भारत की दिशा सारी मानवता को प्रभावित करने वाली है.
सबसे प्राचीन और युवा राष्ट्र. सबसे बड़ा लोकतंत्र. भारत की आज यह पहचान है. आज भारत में पचास प्रतिशत आबादी पच्चीस से कम आयु की, और ६५ प्रतिशत जनसंख्या ३५ से कम उम्र की है. यह महाशक्ति है, लेकिन इस शक्ति को भारत कैसा मोड़ देता है इस पर ही सब कुछ निर्भर करेगा.
चुनौतियों और संभावनाओं की चर्चा युवा भारत के विस्तार और विविधता से प्रारंभ होनी चाहिए. जब हम युवा कहते हैं तो उसमें दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों के साथ मंझोले शहरों, कस्बों, गांवों और जनजातीय पट्टियों तक फैले युवाओं का चिंतन करना होगा. सभी को संतुष्ट कर सके, न्याय दे सके, ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना होगा. यहां बहुत बड़ा अंतर अभी शेष है. तकनीक उसकी भरपाई कर सकती है. उदाहरण के लिए इंटरनेट की अच्छी रफ्तार, सोलर पैनल्स और विकेन्द्रित विपणन खाई को काफी हद तक पाट सकते हैं.
तकनीक से जन सशक्तिकरण का एक उदाहरण देखें- यूरोप में आप घूमने निकलें तो भाषा की समस्या अब नहीं रही. आपके स्मार्टफोन में गूगल ट्रांसलेट और स्पीक एंड ट्रांसलेट जैसे एप हैं. आप अपनी भाषा में इनपुट दीजिए और लक्षित भाषा में सटीक अनुवाद आपको मिलेगा. टेक्स्ट में और इलेक्ट्रॉनिक वॉइस में. इलेक्ट्रॉनिक पॉकेट ट्रांसलेटर आपको कितनी ही भाषाओें को ट्रांसलेट करने, इनबिल्ट स्पेल चेकर, ग्रामर गाइड, और ऑडियो हेल्प सही उच्चारण के लिए उपलब्ध हैं. इसके लिए आपको इंटरनेट की भी जरुरत नहीं. यदि यह सुविधा हम भारत के छात्र, किसान, व्यापारी को दे सकें तो कितना बड़ा बदलाव संभव है.
संसाधनों के सही उपयोग, जलपर्यावरण संरक्षण के अनुकूल नई जीवनशैली का विकास भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती साबित होने वाली है. लाखों उद्यामी चाहिए, जो कचरे से बिजली बनाएं. पॉलीथिन की सड़क बनाए. जमीन कम है, ईंट बनाने को मिट्टी नहीं है, रेत निकाल-निकालकर नदियां खोखली-बेजान हो रही हैं, अब नई निर्माण सामग्री चाहिए. हाइब्रिड बांस से आधुनिक सुविधाओं युक्त घर बनाने वाले विशेषज्ञ चाहिए. तेजी से बन सकने वाले घर चाहिए. पॉलीथिन और प्लास्टिक की पैकिंग धरती का दम घोंट रही है नई पैकिंग चाहिए, जो जैव उत्पादों की तरह गलकर मिट्टी में मिल सके. हाइड्रोजन वाले वाहन चाहिए. अपनी बिजली खुद बनाने वाले घर, अपने कचरे का प्रबंधन कर सकने वाले घर चाहिए. कम पानी से तैयार हो सकने वाले कपड़े की ज़रुरत पड़ने वाली है. संचार और ज्ञान के लाभ को नीचे के स्तर तक ले जाने के लिए अपनी भाषा में कौशल विकास, अपनी भाषा में न्याय चाहिए.
उदाहरण के लिए, मध्यप्रदेश- महाराष्ट्र- आंध्र की गोंड आबादी के लिए सरकार के पास योजनाएं हैं, पर वे समझ सकें ऐसी भाषा में, सरल करके उन तक पहुंचाने वाले लोगों का अभी भी अभाव है. तकनीक के हानिकारक पहलुओं का निराकरण, और बाजार को जीवन पर हावी होने से रोकना भी भविष्य एक बड़ी चुनौती है. युवा को इस दिशा में सोचना होगा. संचार के नए-नए साधनों और सोशल मीडिया के आभासी जगत और वास्तविक जीवन के बीच संतुलन साधना भविष्य में एक आवश्यक कला साबित हो सकती है.
एक सदी से, शिक्षा में एक असंतुलन पैदा हुआ है. सारी शिक्षा तर्क और बुद्धि केंद्रित हो गई है. बुद्धि केंद्रित शिक्षा सुविधाओं का अविष्कार तो कर सकती है, लेकिन सृजनात्मक व्यक्तित्व उत्पन्न नहीं कर सकती. स्पर्धा सिखा सकती है, प्रकृति और मानवता से एकात्मता नहीं. देव और दानवों में यही अंतर हमारे शास्त्रों में बतलाया गया है. दोनों के पास शक्ति है, लेकिन असुर वो हैं जिनका सुर या लय बिगड़ी हुई है . तादात्म्य नहीं है.
नई पीढ़ी में संस्कृति की शक्ति, संस्कृति का अहसास जगाना एक बड़ी जिमेदारी है. युवाओं में राष्ट्रीय भावनाओं को प्रज्ज्वलित रखने के लिए जितना महत्व राष्ट्रीय चरित्रों का है, उतना ही महत्व हमारे राष्ट्रीय-सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के प्रति गहरा रागात्मक भाव उत्पन्न होने से भी है. सकारात्मक दिशा और अवसरों की समान उपलब्धता भी उतनी ही आवश्यक है. भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद से भावनात्मक स्तर पर जुड़ने के बावजूद भी जिन परिस्थितियों ने इन क्रांतिकारियों को प्रेरित किया, उसका अनुभव आज नहीं किया जा सकता, परन्तु अपने जीवन मूल्यों और जीवन पद्धति के प्रति अनुभवजन्य लगाव, इनकी रक्षा करने की अदम्य इच्छाशक्ति को उत्पन्न करता है. इतिहास समाज की स्मृति है, जिसके कारण उसका जीवन-यापन होता है. उचित इतिहास बोध कैसे हो, इस दिशा में निरंतर सोचना होगा.
इतने संचार साधनों के बीच, संवाद कैसे बढ़े, ये भी सोचने का आज समय आ गया है. जिस देश के पास अपने बच्चों की पीठ थपथपाने और युवाओं के साथ सामंजस्य बिठाने की समझ एवं उन पर गर्व करने के अवसर और बहाने हैं, उस देश का भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है. पिछले पचास वर्षों में दुनिया इस कदर बदली है, जितनी पिछले हजार सालों में भी नहीं बदली. जीवन के अनुभवों और मान्यताओं को चुनौती देता ज्ञान और विश्लेषण का युग आ पहुंचा. तिस पर एक आम छात्र-छात्रा की शिक्षा की अवधि बढ़ने से, बाल विवाह की प्रथा समाप्त होने से, युवा पैदा हुआ, जिसे जीवन की आपाधापी से दूर, स्वास्थ्य और संचार के साधनों के बीच स्वयं को गढ़ने का मौका मिला. इस युवा के पास अपने बाप-दादाओं से अधिक एक और चीज है, विशाल वैश्विक दृष्टिकोण. इन सबके सामंजस्य का उपयोग एकात्म भाव के दृढ होने में हो सके तो बहुत कुछ सहज ही हो सकेगा. तकनीक हो या राजनीति अथवा बाजार. शक्ति, एकात्म तथा संवेदनशील समाज के हाथों में केंद्रित हो, तभी कल्याण की आशा की जा सकती है.
युवाओं से परिवर्तन की अपेक्षा की जाती है, लेकिन परिवर्तन का अहसास तब होता है जब उम्र रफ्तार पकड़ती है. बचपन, जवानी, प्रौढ़ …सबके लिए समय की रफ्तार अलग-अलग होती है. बचपन अबोध मान्यताओं में बीतता है, तो युवा स्वयं को किसी तल पर मानो अनश्वर मानकर चलता है. प्रौढ़ इन दोनों को दूर से खड़ा होकर, मुस्कुराते हुए देखता है. ये साथ कैसे आ सकें, इनमें आदान-प्रदान कैसे हो सके इसके लिए वैदिक काल से प्रयास और प्रयोग हो रहे हैं. अकेला कोई भी न खड़ा हो सकेगा, कोई भी फल-फूल न सकेगा, ऐसा समझकर, एकांगी चिंतन से बाहर आकर, समग्रता से प्रयास करने की आवश्यकता है.

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