हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
महात्मा के पुत्र हरिलाल

महात्मा के पुत्र हरिलाल

by अमोल पेडणेकर
in मई २०१९, विशेष, सामाजिक
0

गांधीजी की अपने बड़े पुत्र हरिलाल से कभी नहीं पटी। इससे हरिलाल व्यसनों और नशे के अधीन हो गए। मां से उनके अंतिम क्षणों में मिलने आए हरिलाल के पैर इतने लड़खड़ा रहे थे कि दो लोगों को उन्हें पकड़कर बाहर ले जाना पड़ा। हरिलाल की मौत हुई तब उनकी पहचान थी- सिफलिस रोगी, मुर्दा नं.8। गांधीजी के जीवन की इससे बड़ी शोकांतिका और क्या होगी?

बहुत नामीगिरामी और प्रतिष्ठित व्यक्ति के परिवार के लोगों को बहुत बार बड़ी यातनाएं झेलनी पड़ती हैं। हर व्यक्ति का अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व होता है। यह व्यक्तित्व उसके स्वतंत्र स्वभाव के अनुकूल विस्तारित होते जाना चाहिए। यह स्वाभाविक क्रम है। लेकिन हमारी अपेक्षा होती है कि परिवार के सभी लोग उसी प्रसिद्ध व्यक्ति जैसे ही हों। स्वाभाविक रूप से हम परिवार के अन्य सदस्यों की उस प्रसिद्ध व्यक्ति से निरर्थक तुलना करने लगते हैं। परिवार के भावुक स्वभाव के व्यक्ति पर इसका गहरा आघात होता है। तब वह किसी घायल पंछी की तरह अंदर ही अंदर तड़पता रहता है। उसके घायल मन की चीत्कार सुनने वाला कोई नहीं होता।

यह घायल मन जीवन भर वेदना का व्यर्थ बोझ ढोता रहता है। जीवन के इस मोड़ पर ऐसा व्यक्ति फिर वाम मार्ग की ओर मुड़ जाता है। अपने इतिहास और आसपास में ऐसे अनेक उदाहरण दिखाई देंगे। महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित ‘गांधी एक सोच’ ग्रंथ का सम्पादन करते समय गांधीजी के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं का अध्ययन और आकलन करने का अवसर मिला। इस ग्रंथ में गांधीजी के जीवन के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत करते समय एक विषय को जानबूझकर छोड़ देना पड़ा। वह विषय था महात्मा गांधी और उनके सबसे बड़े बेटे हरिलाल गांधी के बीच पिता-पुत्र के रिश्तें।

‘गांधी एक सोच’ ग्रंथ का काम खत्म होने पर भी महात्मा गांधी और उनके पुत्र हरिलाल गांधी के बीच पिता-पुत्र के रिश्तें से मेरा मन हट नहीं सका। फिर हरिलाल के बारे में अधिक जानकारी पाने की कोशिश करने लगा। पत्नी कस्तुरबा व पुत्र हरिलाल के साथ गांधीजी के रिश्तों को जानने का प्रयास करने लगा। इसमें एक बात ध्यान में आई कि हम जब किसी को महात्मा मान लेते हैं तब यह भूल जाते हैं कि वह भी मनुष्य ही है। फिर भी हम उसे परमात्मा के स्थान पर विराजित कर देते हैं। यह मानकर चलते हैं कि वे जीवन में कभी भूल नहीं करेंगे। इस तरह अंधश्रद्धा केवल देवताओं के प्रति ही नहीं, प्रसिद्ध व्यक्तियों के बारे में भी होती हैं।

कहा जाता है कि गांधीजी केवल दो व्यक्तियों से हारे हैं- एक मुहम्मद अली जिन्ना और दूसरा उनका पुत्र हरिलाल। महात्मा गांधी सत्यवचनी और सिद्धांतवादी के रूप में सुपरिचित हैं। भारतीय स्वतंत्रता का संघर्ष उन्होंने अपने अनोखे सिद्धांतों के आधार पर किया। गांधीजी स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सहभागिता को सफल होते देखना चाहतेेे थे। लेकिन, उनकी यह सफलता घर की चारदीवारी के बाहर की थी। घरेलू मामले में वे विफल लगते थे।

स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में बैठकें, आंदोलन खत्म कर मध्यरात्रि तक जब गांधीजी घर लौटते थे तब मन को डंख मारने वाली हरिलाल की किसी चिट्ठी से उन्हें दो-चार होना पड़ता था। कभी अखबार में हरिलाल के संदर्भ में मन को बेचैन करने वाली  बातें छपती थीं… जैसे महात्मा गांधी के पुत्र हरिलाल को शराब पीकर भरी सड़क पर हुड़दंग मचाते हुए पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया आदि। कभी स्वयं हरिलाल का बयान अखबार में छपा होता था कि उनके पिता महात्मा गांधी ने उन पर किस तरह जुल्म किया है।

मन को चोट पहुंचाने वाली ये बातें घर से बाहर की दुनिया को पता चलती थीं। महात्मा गांधी को तब क्या लगता होगा? पिता-पुत्र के बीच इस तरह की तकरार को कस्तुरबा कैसे झेल पाती होगी? इसका मूल्यांकन करने वाला कोई लेखन बहुत छपा नहीं है। दोनों में सही कौन था? इस प्रश्न का उत्तर बहुत मुश्किल है। बापू को कुल चार पुत्र थे। गांधीजी चाहते थे कि सभी उनके मार्ग पर ही चलें। कस्तुरबा और बच्चों का कोई विचार किए बिना बापू अपनी राह चलते थे। बापू के जीवन के इस पक्ष से लोग विशेष परिचित नहीं हैं।

गांधीजी को लगता था कि उन्होंने अपने बच्चों को पारम्परिक शिक्षा दी है। लेकिन हरिलाल मानता था कि यह पर्याप्त नहीं है। पूरक शिक्षा के रूप में वह ठीक हो सकता है; लेकिन व्यक्तित्व विकास के लिए औपचारिक शिक्षा आवश्यक है। गांधीजी को यह मंजूर नहीं था। वे औपचारिक शिक्षा को निरर्थक मानते थे। इसलिए गांधीजी ने हरिलाल व अन्य भाइयों को इस शिक्षा से वंचित रखा था। हरिलाल के पत्रों से पता चलता है कि सारी दुनिया को पिता का ममत्व देने वाले गांधीजी का बर्ताव हरिलाल व अन्य पुत्रों के साथ रिंग मास्टर की तरह था। हर रिंग मास्टर को लगता है कि उसने अपने जानवरों के हिंस्र स्वभाव को काबू में कर लिया है। लेकिन यह जीत हाथ के हंटर की होती है, रिंगमास्टर की नहीं। गांधीजी अहिंसा को मानते थे। हंटर उनके हाथ में नहीं, जबान में था। हरिलाल का कहना है कि जब जब उन्होंने महात्मा गांधी की शिक्षा का विरोध किया तब तब उसे तुच्छ करार देकर उनके विचारों को दबाने का प्रयास किया गया।

महात्मा गांधी की लगातार घुमक्कड़ी के कारण उनका परिवार भी भटकता रहा। इस भटकने के कारण उनके चारों पुत्र कहीं जड़ें नहीं जमा सके। हरिलाल चार पुत्रों में सबसे बड़े थे। उम्र के 19वें वर्ष में हरिलाल ने अजीज होकर, रोते हुए अपनी उच्च शिक्षा का आग्रह किया था। हरिलाल अपने पिता से हमेशा कहते रहे कि उन्हें आगे पढ़ना है। लेकिन, सिद्धांतवादी गांधीजी ने उनकी बात नहीं मानी। इस अवसर पर हरिलाल बापू से पूछते हैं- इसी तरह का प्रसंग आपके जीवन में भी 19वें वर्ष में ही आया था तब आप सबका विरोध झेलकर विदेश क्यों गए थे? अपने महान सिद्धांत अपने बच्चों पर लादते समय गांधीजी अपने जीवन की यही बात क्यों भूल गए थे? हरिलाल का यह प्रश्न हमारे मन को भी कचोटता है।

सम्पूर्ण भारतीयों की बात सहिष्णुता से सुनने वाले गांधीजी ने हरिलाल के सैद्धाांतिक और औपचारिक अधिकारों का भी विरोध किया है। सत्याग्रही हरिलाल जब जेल गए तब उन्हें इसका सर्वंकष विचार करने का मौका मिला। तब हरिलाल को पता चला कि गांधीजी के पुत्र के रूप में उनका हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। गांधीजी के पुत्र के रूप में गांधीजी ही उन्हें दबा रहे हैं। शिक्षा के मेेरे मूलभूत अधिकार से ही मुझे वंचित रखा जा रहा है। हरिलाल का विवाह भी गांधीजी को मान्य नहीं था। गांधीजी अहिंसावादी होने से यह विचार उन्होंने अपनी बहु के समक्ष कभी उजागर नहीं किया। इस विषय पर गांधीजी को लिखे पत्र में हरिलाल पूछते हैं- मैंने विवाह किया याने ऐसा क्या कर दिया? आपके फीनिक्स आश्रम में हम दम्पति बैरागी जीवन जीयें?

गांधी पिता-पुत्र में ये मतभेद बचपन से उत्पन्न मनमुटाव से निर्माण हुए थे। गांधीजी के भारत आगमन के बाद यह हुआ है, ऐसा नहीं है। जब गांधीजी अफ्रीका में थे तब भी ये मतभेद बढ़ते ही जा रहे थे। अफ्रीका में एक बार अब आपके साथ रहना संभव नहीं है, यह चिट्ठी लिख कर वे घर से चले गए थे। हरिलाल के इस पत्र से गांधी स्तब्ध रह गए। यह खबर गांधी के अनुयायियों तक भी पहुंच चुकी थी। गांधीजी के एक अनुयायी और धनी व्यक्ति दाऊद सेठ ने गांधीजी से मिलकर पूछा कि ऐसा क्या हो गया कि हरिलाल घर छोड़कर चला गया। तब महात्मा गांधी ने कहा था कि, हरिलाल विलायत में जाकर बैरिस्टर बनना चाहता है, लेकिन हरिलाल का बाप आर्थिक दृष्टि से कमजोर है। हरिलाल को विलायत भेजकर शिक्षा मैं न दे सकूँगा। और, मेरी राष्ट्रसेवा का लाभ उठाकर किसी अमीर के जरिए उसकी पढ़ाई करवाना मेरे सिद्धांतों में नहीं बैठता। गांधी के सिद्धांतों और हरिलाल के सपने के बीच अनजाने पैदा हुआ पिता-पुत्र का यह संघर्ष था। मन चंचल होने और स्वयं पर विश्वास न होने के कारण हरिलाल विनाश के मार्ग पर चल पड़ा।

हरिलाल के स्वतंत्र व्यक्तित्व को गांधीजी लगातार नकारते जा रहे थे। हरिलाल के मन का विस्फोट गांधी विरोध के रूप में हुआ होगा। यह विस्फोट धीरे-धीेरे विकृत होता चला गया। हरिलाल ने पिता के खिलाफ बगावत कर दी। गांधीजी का पुत्र होने के कारण छोटे काम मिलते नहीं थे, और औपचारिक शिक्षा के अभाव में बड़ा काम किया नहीं जा सकता था। विफलता की फिसड्डी राह पर हरिलाल के जीवन की यात्रा शुरू होती है। व्यसन, धोखाधड़ी, वेश्यागमन जैसे मार्गों की ओर हरिलाल मुड़ा। महात्मा गांधी की देश और अपने जीवन के बारे में कुछ निश्चित और दृढ़ भूमिका थी। हरिलाल की पक्की भावना थी कि इसी भूमिका के कारण उन पर अन्याय हो रहा है। यह महात्मा गांधी और हरिलाल के बीच वैचारिक संघर्ष था। जीवन के अनेक प्रसंगों में महात्मा गांधी और हरिलाल के मन की दयनीय अवस्था हुई होगी। कस्तुरबा की मां के रूप में खिंचतान जैसे अनेक अज्ञात विषयों से उन्हें भी सामना करना पड़ा होगा।

पिता-पुत्र के इस संघर्ष में आगे गांधीजी ने हरिलाल का पूरी तरह त्याग कर दिया। इसके बाद उसे कोई अपने दरवाजे पर भी खड़ा नहीं करता था। क्योंकि, गांधीजी की नाराजी कोई नहीं लेना चाहता था। हरिलाल का जीवन मात्र अपमान और वेदना का जीवन बन गया। इसी कारण वह व्यसनों के प्रति और झुकता चला गया और उसमें संलिप्त हो गया। इस संघर्ष में जीवनभर हिंदू तत्वज्ञान के समर्थक रहे महात्मा गांधी के इस पुत्र ने इस्लाम में धर्मांतरित होने का पागलपन किया। हरिलाल के जीवन के इन प्रसंगों ने उसे परिवार से और दूर फेंक दिया। हरिलाल जब हिंदू धर्म त्यागकर मुसलमान बना तब उसका मुस्लिम नाम था ‘अब्दुल्ला’। हरिलाल से अब्दुल्ला बनने पर भी एक बात उनके मन को लगातार सालती रही कि मुसलमानों की धर्म के बारे में कल्पना है वह मूल इस्लाम से मेल न खाने वाली और अत्यंत उग्रवादी है। महात्मा गांधी के पुत्र के रूप में मुस्लिम उनका उपयोग भर कर लेना चाहते हैं। अतः ‘अब्दुल्ला’ कहलवाना हरिलाल को अब निरर्थक लगने लगा। आर्य समाज की सहायता से हरिलाल पुनः हिंदू बन गए।

हरिलाल की पत्नी का असामयिक निधन हो गया। इसके बाद हरिलाल के जीवन में पारिवारिक संगत और स्नेह कहीं नहीं बचा। असंतोष की लपटों, और उससे होने वाले विचित्र बर्तावों, बुरी आदतों और लगातार प्रताड़ना से हरिलाल मानसिक और शारीरिक रूप से थकते जा रहे थे। अपना इस तरह का बर्ताव क्यों है यह भविष्य में दुनिया को पता चले अथवा मन के तूफान को राह देने के लिए हरिलाल अखबारों को ‘मेरी पिता के बारे में मेरी शिकायतें’ इस तरह की चिट्ठियां लगातार लिखा करते थे।

कस्तुरबा के अंतिम क्षण में उनसे मिलने हरिलाल आए। नशे में बिलकुल धुत थे। पैर लड़खड़ा रहे थे। तब कस्तुरबा ने बड़ी  अजीजी से पूछा, “तू इतना निष्ठुर क्यों हो गया रे? मेरे जीवन का यह अंतिम क्षण है। मैं अब किसी भी समय अंतिम यात्रा पर निकलूँगी। फिर भी तू इस तरह का दुःख मुझे क्यों दे रहा है?”

उस समय गांधीजी के अनुयायियों ने नशे में धुत हरिलाल के दोनों हाथ पकड़कर उसे सहारा दिया और बाहर ले गए। तब लड़खड़ाते पैरों से घसीटते से जा रहे हरिलाल को देखकर कस्तुरबा का विलाप महात्मा गांधी अत्यंत हताशा से देखते रहे। सारा देश असंख्य समस्याओं पर मार्ग की गांधीजी से अपेक्षा करता था, उनके शब्दों पर तुरंत अमल होता था; लेकिन उन्हीं गांधीजी की वाणी अपने परिवार की इस अवस्था में खो गई थी।

महात्मा गांधी के मौत के बाद सालभर में जेष्ठ पुत्र हरिलाल का जब निधन हुआ तब उनकी पहचान केवल यही बची थी- ‘सिफलिस रोगी, मुर्दा नं. 8।’ पुत्र की इतनी दुखदायी मौत से बड़ा दुर्भाग्य गांधीजी के लिए और क्या होगा? नियति के चक्र में फंसे महात्मा गांधी और हरिलाल के जीवन के ये प्रसंग पढ़ने के बाद भी मन को झकझोर देते रहते हैं। इसलिए महात्मा गांधी और उनके पुत्र हरिलाल की व्यथा-वेदनाओं को जान लेने की उत्कंठा निर्माण हुई। यहां गांधीजी की ऊंचाई बढ़ाकर हरिलाल की प्रताड़ना करने का कोई इरादा नहीं है। इसी तरह हरिलाल की व्यथा प्रस्तुत कर गांधीजी के सिद्धांतों पर अनावश्यक टिप्पणियां करने का भी प्रयास नहीं है। गलती किसकी है, इसका निर्णय भी नहीं करना है। गांधी ग्रंथ का काम खत्म होने पर भी एक उपेक्षित विषय में मन उलझता रहा। अनेक प्रश्न भी मन में निर्माण हो रहे थे। मन की इसी उलझन और प्रश्नों आड़ी-तिरछी राह से यह लेख लिखने का प्रयास किया।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubjective

अमोल पेडणेकर

Next Post
फिल्मों में बढ़ता देशभक्ति का ज्वार

फिल्मों में बढ़ता देशभक्ति का ज्वार

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0