हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
फिल्मों में बढ़ता देशभक्ति का ज्वार

फिल्मों में बढ़ता देशभक्ति का ज्वार

by pallavi anwekar
in फिल्म, मई २०१९
0

आज जिस प्रकार समाज में राष्ट्रीय विचारों की, देशभक्ति की, सेना के प्रति आदर की प्रबल भावना दिखाई देती है, उसका ही प्रतिबिम्ब फिल्मों में भी दिखता है।

क्या आपने गौर किया है कि पिछले कुछ सालों में देशभक्ति, राष्ट्रीयता, सेना या व्यक्ति विशेष पर पर केंद्रित फिल्में क्यों बन रही हैं? बॉलीवुड मसाला मूवीज का ट्रेंड कहां गायब हो गया? बॉर्डर, एलओसी, कारगिल, लक्ष्य जैसी कभी कभार बनने वाली फिल्मों का तांता कैसे लग गया? बर्फीली पहाडियों पर या झीलों पर चित्रित प्रेम गीत अचानक ए वतन वतन मेरे आबाद रहे तू……में कैसे बदल गए? हाउ इस द जोश सुनते ही सबका सीना गर्व से चौड़ा क्यों होने लगा? आइए जरा इन सभी पर विस्तार से सोचते हैं।

अगर सूक्ष्म निरीक्षण न भी किया जाए तो भी यह कहा जा सकता है कि भारतीय जनता का मानस बदलने में फिल्में सबसे ज्यादा प्रभावशाली रही हैं। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि समाज में घटित हो रही घटनाओं से प्रेरणा (या इसे फिल्मी भाषा में आइडिया भी कहा जा सकता है) लेकर फिल्में बनती हैं। हमने फिल्मी दुनिया की कई दिग्गज हस्तियों को यह कहते हुए सुना हैं कि फिल्में समाज का आईना होती हैं। जो भी कुछ समाज में घटित होता है, वो फिल्मों में दर्शाने का प्रयास किया जाता है। भारतीय सिनेमा, जिसमें हिंदी फिल्मों से लेकर अन्य भारतीय भाषाओं में बनने वाली फिल्में शामिल हैं, मूलत: भारतीय समाज व्यवस्था, यहां के रहन-सहन, रीति-रिवाजों, मान्यताओं और परम्पराओं पर ही आधारित होती हैं। इनसे अलग हट कर बनाई गई फिल्में दर्शकों को अधिक समय तक अपने से जोडकर नहीं रख पाईं। जैसे-जैसे समाज में परिवर्तन आया फिल्मों में भी परिवर्तन आया परंतु जिन फिल्मों की आत्मा भारतीय रही उसे दर्शकों ने खूब सराहा।

भारतीय सिनेमा विभिन्न दौर से गुजरता हुआ इस मुकाम तक पहुंचा है। आज उच्च तकनीकों पर आधारित फिल्मों का दौर है। अलग-अलग किस्म के इफेक्ट देकर फिल्मों को भव्य बनाने की कोशिश की जा रही है। दक्षिण भारत में बनने वाली फिल्मों में यह भव्यता कुछ अधिक ही होती है। वहां की फिल्मों में सब कुछ ‘एक्सट्रीम’ होता है। वहां के दर्शक तो यह भी पचा लेते हैं कि फिल्म के नायक की पिस्तौल में अगर एक ही गोली है और उसे दो खलनायकों को मारना है, तो वह एक गोली चलाकर बाद में ब्लेड फेंकता है, ब्लेड से गोली के दो टुकडे हो जाते हैं। दोनों टुकडे दोनों खलनायकों को लगते ही दोनों मर जाते हैं। इसके प्रस्तुतिकरण में भले ही इफेक्ट ने कमाल कर दिया हो परंतु तार्किक आधार पर यह कहीं फिट नहीं बैठता। क्रिश, रा.वन, रोबोट, 2.0 आदि फिल्मों में भविष्य की उन्नत तकनीकों के कारण होने वाले प्रभावों को दर्शाया गया है। इन सभी फिल्मों में उच्च तकनीकों और इफेक्ट का प्रयोग किया गया था। परंतु युवाओं के अलावा अन्य आयु वर्ग के लोगों को यह सिनेमा घरों तक नहीं खींच सकीं। वहीं जब इस तकनीक को ठेठ भारतीय कथानक का आधार मिला तो उसने ‘बाहुबली’ के रूप में इतिहास रच दिया। दक्षिण की विभिन्न भाषाओं में तथा हिंदी में बनी यह फिल्म भारतीय राजा-रानी की कहानी, महलों और युद्धों के इर्द-गिर्द घूमती है। महलों की भव्यता, वस्त्रों के रंग और युद्ध की तकनीकों को जब स्पेशल इफेक्ट मिले तो इसने हर आयु वर्ग के लोगों को सिनेमा घरों तक खींचा। अपवाद स्वरूप तार्किक आधार पर फिल्मों के कुछ सीन को छोड़ कर बाकी सभी वास्तविक प्रतीत होते हैं।

बाहुबलि की कहानी पूर्णत: काल्पनिक थी। परंतु आजकल बायोपिक तथा वास्तविक घटनाओं पर आधारित फिल्मों का दौर है। पिछले तीन-चार वर्षों पर अगर गौर किया जाए तो बायोपिक की बाढ़ सी आ गई है। मैरी कॉम, भाग मिल्खा भाग, एमएस धोनी, मणिकर्णिका, पद्मावत, एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी ये सभी फिल्में वास्तविक जीवन के किसी एक व्यक्ति पर केंद्रित करके बनाई गई हैं। इनके कारण उठे विवादों की यहां चर्चा करने की आवश्यकता नहीं लगती क्योंकि मुख्य मुद्दा यह है कि अब भारतीय समाज कल्पना आधारित फिल्मों के साथ-साथ वास्तविकता आधारित फिल्मों को न सिर्फ स्वीकार रहा है बल्कि उससे प्रभावित भी हो रहा है। काल्पनिक कहानियों के पात्रों में अपने ‘आइकॉन’ ढूंढ़ने वाले युवाओं के सामने इस प्रकार के वास्तविक तथा प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत करना फिल्मों की जिम्मेदारी भी है।

फिल्मों में परिवर्तन की बात हो रही है तो इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि आज जिस प्रकार समाज में राष्ट्रीय विचारों की, देशभक्ति की, सेना के प्रति आदर की प्रबल भावना दिखाई देती है, उसका ही प्रतिबिम्ब फिल्मों में भी दिखता है। परंतु क्या समाज में राष्ट्रभाव पहले नहीं थे? क्या सेना के प्रति आदर नहीं था? अवश्य था, परंतु वह जागृत नहीं था। क्रिकेट मैच जीतने के बाद या पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को यह राष्ट्रभक्ति जागृत होती थी और शाम होते-होते ढल भी जाती थी। परंतु अब ऐसा नहीं है। सरकार द्वारा पिछले पांच वर्षों में लिए गए निर्णयों ने समय-समय पर देश की जनता का राष्ट्राभिमान जागृत रखने का कार्य किया है। और चूंकि समाज में देशप्रेम की भावना है इसलिए देशभक्ति से प्रेरित फिल्में बनाना व्यावसायिक दृष्टि से भी लाभदेय है और भावनात्मक दृष्टि से भी। हॉली डे, बेबी, राजी, द गाजी अटैक, ऊरी जैसी फिल्में हमारी तीनों सेनाओं और सैनिकों की वीरता को दर्शाती है। ऊरी ने तो उन लोगों को भी करारा जवाब दिया है जो सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठा रहे थे। सेना और केंद्र सरकार से जवाब मांगने वाले लोगों को इस फिल्म ने काफी जवाब दे दिए होंगे। फिल्म केसरी पंजाब के उन सरदारों पर आधारित है जो अंगे्रजों से भिड़ गए थे। यह भी सत्य घटना पर आधारित फिल्म है। हाल ही में निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म आई है ताश्कंद। इसमें पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की राहस्यमय मृत्यु से सम्बंधित कई प्रश्न उपस्थित किए गए हैं। हमारे समाज का एक वर्ग ऐसा है जो महात्मा गांधी की मृत्यु पर तो खूब आंसू बहाता है परंतु शास्त्री जी की रहस्यमय मृत्यु के विषय पर चूं तक नहीं करता। ऐसे लोगों से यह फिल्म कई सवाल पूछती है।

हाल ही में एक और फिल्म आई है नो फादर इन कश्मीर। कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता का तो इसमें भरपूर प्रयोग किया गया है परंतु फिल्म की पटकथा के लिए जो विषय चुना गया है वह पूर्णत: राष्ट्रविरोधी है। फिल्म कश्मीर की तथाकथित ‘हाफ विडो’ पर आधारित है। यह शब्द कश्मीर में सेना को बदनाम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। ‘हाफ विडो’ उन महिलाओं को कहा जाता है जिनके पति गुमशुदा होते हैं उन्हें यह नहीं मालूम होता कि वे जीवित हैं या नहीं। इसलिए वे किसी विधवा की तरह जीवन जीने को मजबूर होती हैं। भावनात्मक रूप से यह विषय मन को कचोटने वाला अवश्य है। उन महिलाओं से लोगों को सहानुभूति भी होती है। परंतु जब यह पता चलता है कि उनके पतियों के गुम होने का कारण भारतीय सेना के जवानों को माना जाता है और उनकी दुरावस्था के लिए भारतीय सेना को दोषी ठहराया जाता है तो फिल्म बनाने वालों की नीयत पर कई प्रश्नचिह्न खड़े हो जाते हैं। नो फादर इन कश्मीर भी इसी तरह के कई प्रश्न खड़े करती है।

कहते हैं साहित्य, कला, मनोरंजन को किसी विशिष्ट विचारधारा से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए परंतु जब बात राष्ट्रविरोधी बातों के प्रदर्शन की हो तो निश्चित ही फिल्मी दुनिया में काम करने वाले लोगों का भी यह कर्तव्य बन जाता है कि वे लोग विषयों का चुनाव करते समय इससे होने वाले नकारात्मक प्रभावों का भी ध्यान रखें वरना अब दर्शक इस प्रकार के लोगों की नीयत पर भी संदेह करने लगेंगे।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: actorsbollywooddirectiondirectorsdramafilmfilmmakinghindi vivekhindi vivek magazinemusicphotoscreenwritingscriptvideo

pallavi anwekar

Next Post
मध्य भारत  भाजपा  के लिए मशक्कत का मैदान

मध्य भारत  भाजपा के लिए मशक्कत का मैदान

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0