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कंधार कांड के प्रतिशोध की ओर बढ़ते मोदी 

कंधार कांड के प्रतिशोध की ओर बढ़ते मोदी 

by प्रवीण गुगनानी
in राजनीति
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दुर्योग ही है कि इस्लाम के धार्मिक स्थानों व प्रतीकों में जिस चांद को दिखाया जाता है उसे ही अजहर कहते हैं. अजहर मसूद यानि हंसता हुआ चांद !! किंतु इस अजहर मसूद में तो चांद जैसे कोई भी लक्षण न थे, यह तो शीतलता व मुस्कान से मीलों दूर पाप, आतंक, मार काट व भारत विरोध का पर्याय बन गया है.

कहा जा सकता है कि अंततः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रथम कार्यकाल का चिर प्रतीक्षित मिशन सीरिज का एक और मिशन पूर्ण कर लिया.  निस्संदेह मोदी जी की मिशन सूचि में अभी बहुत कुछ करना बाकी है जिसके लिए उन्होंने जमीन बना रखी है, किंतु अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की उनके महत्वाकांक्षी अभियान का पूर्ण होना अपने आप में एक अभिनंदनीय उपलब्धि है.

भारत में भीषण तपती गर्मी व उसके ऊपर चुनाव की गर्मी ने पुरे भारत को इन दिनों उद्वेलित किया हुआ है, इस सब के मध्य भारत के बड़े दुश्मन, अपराधी व नासूर बनते जा रहे जहरीले अजहर मसूद का ग्लोबल आतंकी घोषित होना एक शीतल बयार की तरह है, जो आनंदित कर रहा है!!

चीन ने मार्च में भी अजहर मसूद पर प्रतिबंध लगाने के एक नये प्रस्ताव पर तकनीकी रोक लगा दी थी, वह भी तब जबकि मसूद के जैश संगठन ने दुर्दांत पुलवामा आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली थी. इसके बाद मसूद पर प्रतिबन्ध को रोकने के लिए पाकिस्तान के इमरान खान ने चीन जाकर शिनपिंग से भेंट भी की थी. इसके पूर्व चीन अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित करने की दिशा में चार बार बाधा बन चुका था. भारत सरकार के सतत गंभीर प्रयासों व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की गई कुशल घेराबंदी से ये परिणाम मिल पायें हैं.  इसके पूर्व इस मुद्दे को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने सीधे संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में ले जा कर बीजिंग पर दबाव बढ़ा दिया था. यद्दपि इस दबाव के बढ़ने के साथ-साथ इस प्राप्त परिणाम के आसार दिख गए थे किंतु चीन की हठधर्मिता व वीटो पावर के चलते भारत का निश्चिन्त होना मुश्किल ही नहीं बल्कि दुश्वार भी था.

अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित होने के बाद अब मसूद अजहर संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्र देशों की यात्रा नहीं कर पाएगा. मसूद की चल-अचल संपत्ति जब्त की जाएगी और यूएन से जुड़े देश उसकी किसी भी प्रकार की मदद नहीं कर पाएंगे.

पाकिस्तान से निरंतर पनाह, पैसा व पावर पाने वाला यह दुर्दांत आतंकी भारत के लिए एक बड़ा सिरदर्द और हमारे कश्मीर के लिए तो नासूर बन गया था. ९० के दशक से आतंक की दुनिया में सक्रिय हुए मसूद ने कश्मीर को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.  १९९४ में उसे श्रीनगर से गिरफ्तार किया गया था और कंधार कांड में भारत सरकार को उसे रिहा करना पड़ा था. भारत के माथे पर उस शर्मनाक निशान को लगाने वाले अजहर मसूद को भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित न करा पाना भारत की वैश्विक नीति की विफलता का पर्याय बनता जा रहा था. नरेंद्र मोदी की सरकार ने बड़ी कुशलता, श्रम व बुद्धिमानी से इस विफलता को सफलता में बदला और अपने देश को एक उपहार दिया है.

भारत से रिहा होने के बाद ही मसूद ने जैश ए मोहम्मद नामक बदनाम संगठन बनाया था, जिसने भारत में कई वारदातों को अंजाम दिया है. 2001 में संसद पर हमला, 2016 में पठानकोट हमला, 2018 में पठानकोट हमला और 2019 में पुलवामा आतंकी हमला. ये तो वो आतंकी हमले हैं, जिसने सम्पूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था और भारत को शर्मिंदगी की स्थिति में ला खड़ा किया था.   १९९४ में अजहर मसूद ने विभिन्न भारत विरोधी आतंकी संगठनों में परस्पर समन्वय स्थापित करने के प्रयास किये थे और उसमें वह सफल रहा था. इसी के बाद भारत सरकार ने अजहर को श्रीनगर से गिरफ्तार कर लिया था.

१९९५ में जम्मू और कश्मीर में कुछ विदेशी पर्यटकों के अपहरण के बाद आतंकी संगठनों ने भारत सरकार से मसूद की रिहाई की मांग रखी थी और अंततः यह मामला विफल रहा व आतंकियों ने इन विदेशी पर्यटकों को मार डाला था. आईसी ८१४ नामक विमान का अज़हर समर्थकों द्वारा अजहर के भाई इब्राहिम अतहर व अब्दुल रऊफ असगर के नेतृत्व में हाइजैक किया जाना व उस विमान को कंधार ले जाया जाना भारत को बहुत अपमानित करने वाला अध्याय था. इस घटना के बाद बंधक यात्रियों को छुड़ाने के लिए भारत को अजहर व उसके दो साथियों को छोड़ना पड़ा था. अजहर अपनी इस हरकत के बाद पाकिस्तान का हीरो बन गया था.  अजहर ने भारत से इस प्रकार बलात रिहा होने के बाद पाकिस्तान में एक बड़ी सभा को संबोधित किया था और वहां का नेता बन गया था, कहा जा सकता है कि  पाकिस्तानी लोकतंत्र को अपनी जेब में रखता था अजहर मसूद.

मसूद के संदर्भ में विश्व के अनेकों देशों को भारत अपने कुशल राजनयिक अभियान के कारण अपने पक्ष में लामबंद कर चुका था. फ्रांस ने तो 15 मार्च को ही मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगा दिया था. भारत के प्रभाव से ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव दिया था व इस प्रस्ताव को 21 देशों ने अपना समर्थन दिया था. यहाँ यह महत्वपूर्ण है भारत की इस सफलता में अजहर मसूद को या पाकिस्तान को मात नहीं मिली है बल्कि यह चीन को भी एक बड़ी मात है. चीन भारत के लोकसभा चुनाव में आ रहे मोदी समर्थक परिणामों की आशंका से घबराकर इस प्रतिबंध को मई अंत तक खीचना चाह रहा था किंतु टीम मोदी ने ऐसा गजब दबाव बनाया कि उसे मजबूरन तय की हुई डेडलाइन ३० अप्रैल को मानना पड़ा.

वैसे चीन के साथ भारत हाइड एंड सीक का जो गेम खेल रहा था वह उस समझ का परिणाम था जो मोदी ने चीन के इतिहास से समझी थी. १९४९ में आज़ाद के बाद चीन  १९५० में कोरिया युद्ध में अमेरिका से उलझ गया, और इसके बाद द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी और जापान को पराजित कर चुका परमाणु शक्ति सम्पन्न अमेरिका भी चीन को झुका नहीं पाया. जो काम 1950 में अमेरिका के डेमोक्रेटिक व वामपंथी झुकाव राष्ट्रपति  हैरी ट्रूमैन नहीं कर सके वह काम 1972 में घोर दक्षिणपंथी रिपब्लिकन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने कर दिखाया था. अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की पिंगपोंग डिप्लोमेसी ने ऐसा खेल रचा कि उसने कम्युनिस्ट चीन को घोर कम्युनिस्ट रूस से अलग करके पूंजीवाद के पुरोधा देश अमेरिका के साथ ला खड़ा किया. वस्तुतः मोदी ने अपनी वैश्विक नीति विशेषतः चीन के संदर्भ वाली नीति में इस तथ्य से काम लिया कि चीन एक विशेष प्रकार के दबाव के आगे ही झुकता है. मोदी ने चीन के इस मानस को समझा और इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए चीन व भारत के हितों को साझा मंच पर लाकर खड़ा कर दिया. जब चीन को  भारत व चीन के हित एक दिशा में खड़े दिखाई दिए तब यह परिणाम आया है. चीन झुक गया है किंतु मोदी ने चीन को बड़ी चतुराई से यह आभास करा दिया है कि भारत ने चीन को झुकाया नहीं है, बल्कि उसके हितों में हमने अपने हित पंक्तिबद्ध कर दिए है. चीन पाकिस्तान भारत के इस मसूद प्रकरण ने यह सिद्ध किया है कि मोदी ने वह करने की कोशिश नहीं की, जिसे करने में ट्रूमैन के दांत खट्टे हो गए थे बल्कि मोदी ने वह किया जो निक्सन ने किया था. इस काम को करने के लिए मोदी की राजनयिक टीम ने सर्वप्रथम चीन के उस मानस को समझा और वहां चोट की थी जहाँ चीन पाकिस्तान को Financial Action Task Force (FATF)  में ब्लैक लिस्ट होने से बचाना चाहता था.  चीन के पाकिस्तान में लगे अरबो डालर के निवेश को चीन अब मोदी के माध्यम से पाकिस्तान को दबाव में लाकर सुरक्षित करेगा. दूसरी बात यह भी है कि भारतीय शेयर मार्केट की विश्व भर में दर्ज हो रही उपस्थिति से भी चीन प्रभावित हो रहा है और उसे यह भी आभास हो गया है कि भारत में पुनः मोदी के नेतृत्व में एक बड़ी मजबूत सरकार बनने जा रही है जिसका सामना करने के लिए उसे अभी से सकारात्मक राजनयिक संकेत देनें आवश्यक थे.

 

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