दिल्ली और हरियाणा में कांटे की टक्कर

दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी कांग्रेस से गठबंधन करने पर उतारू थी, पर खेल नहीं जम पाया। इसलिए वहां अब तिकोना संघर्ष है। उधर हरियाणा में भी कई सीटों के लिए कांटे की टक्कर होगी।

आजादी के 7 दशक बीत चुके हैं और आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन चुका है। वैसे आजाद भारत के इतिहास में कई बार छोटे और बड़े लोकतांत्रिक संकट आए लेकिन हर बार लोकतंत्र मजबूत होकर उभरा है। समय पर निष्पक्ष चुनाव का होना लोकतंत्र की सफलता की सबसे महत्वपूर्ण कुंजी है।

चुनाव आयोग के निर्देशन में 11 अप्रैल से 19 मई के दौरान 7 चरणों में चुनाव कराया जा रहा है और मतगणना 23 मई को होनी है। कई राज्य ऐसे हैं जहां सभी 7 चरणों में वोटिंग है जबकि कुछ राज्य ऐसे हैं जिनमें सीधे 1 चरण में मतदान होगा। एक चरण में मतदान होने वाले राज्यों में पंजाब, हरियाणा और दिल्ली शामिल हैं। हरियाणा की सभी 10 सीटों यानि अंबाला, कुरुक्षेत्र, सिरसा, हिसार, करनाल, सोनीपत, रोहतक, भिवानी, गुरुग्राम और फरीदाबाद में छठे चरण यानि 12 मई को वोट डाले जाएंगे। वहीं दिल्ली की भी सभी 7 सीटों यानि चांदनी चौक, उत्तर-पूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, नई दिल्ली, उत्तर-पश्चिमी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली में भी हरियाणा के साथ ही छठे चरण यानि 12 मई को ही वोटिंग होगी। जबकि पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों यानि गुरदासपुर, अमृतसर, खदूर साहिब, जालंधर, होशियारपुर, आनंदपुर साहिब, लुधियाना, फतेहगढ़ साहिब, फरीदकोट, फिरोजपुर, भटिंडा, संगरूर और पटियाला में अंतिम 7वें चरण यानि 19 मई को मतदान होगा।

इन दिनों एक बार फिर लोकसभा चुनाव को लेकर देश का माहौल गर्म है। कुछ महीनों पहले तक ऐसा लग रहा था कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को कांग्रेस से चुनौती मिल सकती है। क्योंकि पिछले साल हुए तीन प्रमुख राज्यों के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के सिर जीत का सेहरा सजा था, जिससे लगा कि कांग्रेस उबर रही है। लेकिन पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार के कड़े रुख ने अब 2019 का समीकरण बदल दिया है। इस चुनाव में अब राष्ट्रवाद के मुद्दे से मोदी सरकार ने चुनावी समीकरण अपने पक्ष में कर लिया है। इतना तो तय है कि हिंदी राज्यों में तो उसने अपने नुकसान को काफ़ी कम कर लिया है और कांग्रेस के साथ-साथ दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों को भी अपनी रणनीति पर दोबारा सोचने पर मजबूर किया है। बालाकोट एयरस्ट्राइक से भाजपा सरकार की छवि आमजन में मजबूत बनी है। मतदाताओं का मानना है कि ये पिछली सरकारों के मुकाबले यह सरकार कठोर निर्णय लेने और पाकिस्तान को जवाब देने में सक्षम है। इसके साथ ही भाजपा को इस बात से भी फ़ायदा मिलता दिख रहा है कि महागठबंधन में नरेंद्र मोदी का विकल्प नज़र नहीं आ रहा है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि विकास के मुद्दे पर भाजपा मीलों आगे दिखती है। कांग्रेस के सामने अभी सबसे बड़ा संकट खुद की जमीन बचाना है और बचे हुए कांग्रेसियों का भरोसा मजबूत करना है कि कांग्रेस ही भाजपा का राष्ट्रीय विकल्प बन कर एक बार फिर से आ सकती है। शायद इसी भरोसे को जीतने के लिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जनता से एक ऐसा वादा किया है, जो देश के सियासी समीकरणों को काफी हद तक बदल सकता है। ये वादा है- न्यूनतम आय योजना का। कई आंकड़े और तथ्य इस तरफ इशारा कर रहे हैं कि कांग्रेस के इस वादे से केंद्र की सत्ता में लगातार दूसरी पारी खेलने की कोशिशों में लगी भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

दिल्ली के राजनीतिक समीरणों पर नजर डालें तो देखेंगे कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में राजधानी दिल्ली में भाजपा ने सभी सात सीटों पर कब्जा कर लिया था। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली विधान सभा चुनाव में जबर्दस्त प्रदर्शन करने वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में इस बार मतदाता किस पार्टी के सिर पर जीत का ताज पहनाते हैं यह दिलचस्प होगा। क्योंकि एक तरफ दिल्ली के मुखिया अरविंद केजरीवाल हैं जो हर हाल में भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए कांग्रेस से गठबंधन के लिए लालायित दिख रहे हैं जबकि कांग्रेस पार्टी अरविंद केजरीवाल की पार्टी से गठबंधन में खास दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। हालांकि अब यह तय हो गया कि कांग्रेस पार्टी अपने दम पर ही दिल्ली के चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है। पिछले दिनों जिस तरह दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर प्रयास चल रहे थे और उनके नेताओं के बयानों आ रहे थे उससे यह स्पष्ट हो चला है कि कहीं न कहीं उनके मन में हार का डर बना हुआ है। गठबंधन न होने पर आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री का यह बयान कि गठबंधन को लेकर हमने सभी प्रयास कर लिए, मगर कांग्रेस पार्टी मोदी-अमित शाह की जोड़ी को सत्ता से दूर करने को तैयार नहीं है। हम यह बात बार-बार कह चुके हैं कि आम आदमी पार्टी का जन्म कांग्रेस के भ्रष्टाचार के चलते हुआ था, मगर जिस तरह का देश में माहौल है उसे दूर करने के लिए मोदी और शाह को जोड़ी को सत्ता से दूर करना जरूरी है, बताता है कि मात्र कुछ सीटों के लिए आम आदमी पार्टी हर स्तर पर समझौते के लिए तैयार बैठी है।

इधर हरियाणा लोकसभा चुनाव में गठबंधन की राजनीति एक बार फिर चरम पर है। हरियाणा में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन की माहिर रही भाजपा जहां इस बार अकेले चुनावों में उतरी है, वहीं आम आदमी पार्टी और जननायक जनता पार्टी अपने गठबंधन में अभी तक कांग्रेस को लाने में सफल नहीं हो पाईं। जबकि लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का अलग गठबंधन है। भाजपा को पंजाब में अपनी साथी शिरोमणि अकाली दल का हरियाणा में भी समर्थन मिल गया है। इंडियन नेशनल लोकदल को जोड़ीदार नहीं मिलने से मजबूरी में अकेले चुनाव मैदान में उतरना पड़ा।2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर एक ही चरण में मतदान हुए थे। जिसमें भारतीय जनता पार्टी को 7, इंडियन नेशनल लोक दल को 2 और कांग्रेस को 1 सीट पर जीत हासिल हुई थी। हरियाणा में इस बार कुछ सीटों पर कांटे की टक्कर होने की प्रबल संभावना है। सभी दलों द्वारा प्रत्याशी घोषित करने के बाद इन सीटों की तस्वीर साफ हो जाएगी। लेकिन इन सीटों पर प्रत्याशियों के लिए चिंता का विषय यह बनेगा कि कड़े मुकाबले के बीच कहीं ‘नोटा’ उनका गणित न बिगाड़ दे।

 

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