हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
बिहार रचेगा नया इतिहास

बिहार रचेगा नया इतिहास

by रामेन्द्र सिन्हा
in मई २०१९, राजनीति
0

सारे विरोधी, विपक्षी दल मोदी से लड़ रहे हैं। उनकी वापसी रोकने के मुद्दे पर सब एक हैं। भले ही महागठबंधन बनाने के उनके प्रयास निजी स्वार्थ और हितों की भेंट चढ़ गए। बहरहाल, उ.प्र. में बुआ-बबुआ का गठजोड़ नए समीकरण बना रहा है, जबकि बिहार एनडीए को इतनी सीटें देगा कि नया इतिहास रचेगा।

प्रचार शैली के निकृष्टतम इतिहास के साथ लोकसभा की एक तिहाई सीटों पर जनादेश ईवीएम में कैद हो चुका है। मीडिया मानने को तैयार नहीं है कि मोदी जैसी कोई लहर इस बार है। लेकिन मेरा आकलन है कि इस बार तो मोदी लहर वास्तव में है। सारे विरोधी, विपक्षी दल मोदी से लड़ रहे हैं। उनकी वापसी रोकने के मुद्दे पर एक हैं। भले ही महागठबंधन बनाने के उनके प्रयास निजी स्वार्थ और हितों की भेंट चढ़ गए हैं। यहां तक कि चौकीदार चोर है का नारा लगाने वाले प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को अमेठी के अतिरिक्त केरल की एक दूसरी सुरक्षित सीट चुननी पड़ी है।

लगे हाथ एक घटना का जिक्र कर दूं। हाल ही में भोपाल से लखनऊ-गोरखपुर-देवरिया ट्रेन से मेरा आना-जाना हुआ। लौटते वक्त डेढ़-दो घंटे राजनीति पर ही सहयात्री चर्चा करते रहे, खास बात यह थी कि मुझे छोड़ कर सभी बिहार के थे, 4 युवा, दो बजुर्ग। कोई मोतिहारी से, कोई मुजफ्फरपुर तो कोई सुगौली या किसी ग्रामीण क्षेत्र से। एक सुर से सभी का मानना था कि नरेन्द्र मोदी को एक और मौका मिलना ही चाहिए क्योंकि देश ही नहीं रहेगा तो बाकी बातों का क्या मतलब। सब यह मान रहे थे कि इस दौर में ऐसा ईमानदार साधारण सगे-संबंधी वाला नेता मिलना मुश्किल है। नोटबंदी से लेकर सड़कों, उज्ज्वला योजना, स्वच्छता अभियान और एअर स्ट्राइक आदि तक पर सब ने बहस की। बिहार के दूरस्थ क्षेत्रों के अंतर्मन की यह स्वतः स्फूर्त अभिव्यक्ति वाकई चौंकाने वाली थी क्योंकि क्षेत्र विशेष का उम्मीदवार पसंद न होने के बावजूद आम राय थी कि वोट तो राजग प्रत्याशी को ही देंगे।

2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की एक कमजोर सरकार के बेहतर विकल्प के रूप में मतदाताओं ने हाथोंहाथ लिया था। जनता केंद्र में एक मजबूत, टिकाऊ सरकार देखना चाहती थी। तब नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी में हिंदीभाषी राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश-बिहार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सबसे बड़े राज्य उप्र की 80 सीटों में से 71 सीटें भाजपा ने जीतीं, जबकि 2 सीटें कांग्रेस, 2 अपना दल और 5 सीटें प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी सपा के खाते में गईं। बहुजन समाज पार्टी की इससे बड़ी शर्मनाक हार कोई नहीं हो सकती थी, कि उसी के गढ़ में एक भी सीट हाथ नहीं लगी थी। बिहार में भाजपा रामविलास पासवान की लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरी थी। गठबंधन के तहत भाजपा ने बिहार की 40 सीटों में से 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 22 सीटों पर उसे जीत मिली थी। वहीं लोजपा 6 और रालोसपा 3 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। अर्थात, राजग को कुल 31 सीटें। तब संप्रग में शामिल जद यू को 2, कांग्रेस को 2, राजद को 4 और राकांपा को 1 सीट से संतोष करना पड़ा था।

उप्रः बुआ-बबुआ का गठजोड़

एक तरफ नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय राजनीति में अभूतपूर्व आगमन हुआ तो मुलायम परिवार में खटपट। अखिलेश ने सपा की बागडोर थाम ली, लेकिन तब तक मोदी लहर ने विधान सभा चुनाव में भी क्षेत्रीय दलों की तूती लगभग समाप्त कर दी। कहते हैं कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। अस्तित्व के संकट से जूझ रहे दोनों दलों के मुखिया बुआ-बबुआ को तब मिलाने का काम किया दोनों के प्रमुख सिपहसालारों ने। सतीश मिश्र और प्रो. रामगोपाल यादव ने इस मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया और ठीक 25 साल बाद 2019 में मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक दोबारा पहुंचने से रोकने और अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के उद्देश्य से सपा-बसपा सुप्रीमो अखिलेश-मायावती ने एक बार फिर हाथ मिला लिया। फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव की प्रतिष्ठापूर्ण जीत ने गठबंधन की पृष्ठभूमि तैयार की। प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को जितना वोट मिला, करीब उतना ही दोनों क्षेत्रीय दलों सपा और बसपा का संयुक्त रूप से रहा। अंतर सिर्फ इतना था कि दोनों दल साथ मिलकर नहीं लड़े थे।

इस गठबंधन में अजीत सिंह का राष्ट्रीय लोकदल भी शामिल है। दूसरी ओर प्रदेश में लंबे समय से हासिए पर पड़ी कांग्रेस अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश की बागड़ोर सौंपने के बाद कांग्रेस अपनी महत्वाकांक्षी ’न्यूनतम आय योजना’ (न्याय) के वादे को गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचाने के अभियान के साथ ही सपा-बसपा की तरह मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण में भी लगी है। वहीं, मंदिर-गुरुद्वारा-चर्च में भी मत्थे टेक रही हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया है कि सरकार बनने पर वह ’न्याय’ के तहत देश के पांच करोड़ सबसे गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रुपए देगी। यह लुभावना वादा कितना कारगर होगा ये तो 23 मई को ही पता चलेगा। लेकिन पहले चरण के मतदान के बाद चर्चा है कि कांग्रेस अब जहां जीतने की स्थिति में नहीं है वहां गठबंधन की मदद करने की रणनीति पर उतर आई है। गाजीपुर का उदाहरण काफी है। कांग्रेस मुख्तार अंसारी के बड़े भाई बसपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी के लिए कोई मुश्किल नहीं खड़ा करना चाहती थी, जिनकी अपने समुदाय में काफी अच्छी पैठ है। कांग्रेस ने अफजल की मदद करने के लिए अजीत कुशवाहा को टिकट दिया। गाजीपुर में कुशवाहा मतदाताओं की तादाद भी काफी अच्छी है और यह परंपरागत तौर पर भाजपा का वोटर माना जाता है। अब अजीत को जितना भी वोट मिलेगा, उससे सिर्फ भाजपा को ही नुकसान होगा।

बिहार नया इतिहास लिखेगा

24 जनवरी को एबीपी न्यूज़ के सर्वे में ये बात सामने आई थी कि अगर चुनाव हुए तो बिहार में राजग को 40 में से 35 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं महागठबंधन को बची पांच सीटें मिलने का अनुमान था। लेकिन बाद के सर्वे में राजग की सीटें बढ़कर 36 हो गईं और महागठबंधन की एक सीट कम हो गई। अब सवाल ये है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ‘मुनिया’ अर्थात् मुस्लिम-निषाद-यादव गठबंधन राजग को कितनी चुनौती दे पाएगा। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने बॉलिवुड फिल्मों के मशहूर सेट डिजाइनर रहे मुकेश सहनी की नई-नवेली ’विकासशील इंसान पार्टी’ (वीआईपी) के लिए तीन सीटें छोड़ीं तो उसके इस ़फैसले से सबको हैरानी हुई। ये राजद की दलितों और पिछड़ों को अपने साथ जोड़ने की एक और कोशिश है जो पिछले कुछ सालों में किसी न किसी वजह से राजद को छोड़ गए हैं। दूसरी ओर, बिहार में भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक सवर्ण हैं। उनके अतिरिक्त कुछ गैर यादव पिछड़ी जातियों और आदिवासियों में भी भाजपा की पैठ रही है। भाजपा की सहयोगी जदयू की ताकत नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग की वजह से है।

नीतीश कुमार जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपने दो धुर विरोधियों – लालू यादव और राम विलास पासवान के जनाधार में सेंध लगाने की रणनीति तैयार की। उसी रणनीति के तहत उन्होंने पिछड़ों में अति पिछड़ा का दायरा बढ़ाया और मजबूत किया, साथ ही दलितों में महादलित का वर्गीकरण किया। 2013 में जब सियासी समीकरण बदले तो नीतीश अलग हो गए और राम विलास पासवान राजग में शामिल हो गए। अब इस चुनाव में नीतीश कुमार और रामविलास पासवान दोनों राजग में हैं। इससे राजग की ताकत काफी बढ़ गई है। अब इसके पाले में सवर्ण, अति पिछड़ी जातियां, आदिवासी, दलित और महादलित सभी शामिल हो गए हैं। यह बेहद मजबूत किलेबंदी है। बिहार में राजद-कांग्रेस की जाति-धर्म की रणनीति को राजग की उसी रणनीति से चुनौती तो है ही, मोदी फैक्टर भी काम करता नजर आ रहा है, जैसा कि जन-भावनाओं से संकेत मिल रहे हैं। लहर तो मोदी की ही चल रही है जिसे रोकने की कोशिश में विपक्ष के पसीने छूट रहे हैं।

बढ़े मतदान का लाभ भाजपा को!

18 मई को हुए दूसरे चरण के मतदान में 2014 के मुकाबले 3 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ। 2014 में इस चरण की 95 सीटों पर 65 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि 2009 में इन सीटों पर 62.49 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2009 में भाजपा को इन 95 सीटों में 20 और कांग्रेस को 24 पर जीत मिली थी। अन्य दलों के खाते में 51 सीटें गई थीं। 2014 में इन 95 सीटों पर मतदान ढाई प्रतिशत बढ़ने पर भाजपा ने 27 सीटें जीत लीं, जबकि कांग्रेस 12 पर सिमट गई। अन्य को 56 सीटें मिली थीं। तो क्या इन 95 सीटों पर मतदान में 3 प्रतिशत की वृद्धि का सीधा लाभ भाजपा को मिलने जा रहा है? क्या यह रुझाान शेष पांच चरणों में भी बरकरार रहेगा?

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

रामेन्द्र सिन्हा

Next Post
दिल्ली और हरियाणा में कांटे की टक्कर

दिल्ली और हरियाणा में कांटे की टक्कर

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0