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मोहे अपने ही रंग में रंग दे

by सुनीता माहेश्वरी
in कहानी, मार्च २०१८
1
निकिता बहुत उमंग में थी, क्योंकि उसके पति नितिन ने एक लम्बे अरसे बाद उसे सिनेमा ले जाने की बात कही थी। अतः वह ऑफिस से जल्दी अपना काम पूरा कर के घर आ गई थी। उसने आकर खाना बनाया और तैयार होकर नितिन के आने की प्रतीक्षा करने लगी। उन्हें नौ बजे का शो देखने जाना था। नितिन के आने की प्रतीक्षा में वह दरवाजे पर आंख लगाए बैठी थी। बहुत देर तक नितिन नहीं आए तो वह सोफे पर पसर गई। उसने घड़ी देखी। घड़ी में साढ़े नौ बज रहे थे, पर नितिन अभी तक ऑफिस से घर नहीं आए थे। उसे चिंता होने लगी थी। उसने नितिन से बात करने के लिए मोबाइल उठाया ही था कि दरवाजे पर घंटी की आवाज सुनाई दी। उसने झट से दरवाज़ा खोला और नितिन को सामने देख कर बोली, ‘‘अरे क्या हुआ! आज तो आपको बहुत देर हो गई। सब ठीक है न? मैं तो कब से तैयार बैठी हूं, सिनेमा जाने के लिए।’’
नितिन दिन भर के काम से बहुत थका हुआ था। वह कुछ नहीं बोला और सीधे अपने कमरे में चला गया। निकिता उससे पूछती रही, ‘‘आखिर क्या बात है, कुछ तो बताओ।’’ नितिन ने छोटा सा उत्तर दिया, ‘‘कुछ नहीं।’’ निकिता का उत्साह पूरा ठंडा हो चुका था। फिल्म के टिकिट भी बेकार हो चुके थे। निकिता ने खाना लगाया। दोनों ने चुपचाप खाना खाया और फिर सोने चले गए। दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ कर के सोने का नाटक करते रहे। निकिता की आंखों से आंसू गालों को भिगोते हुए तकिये पर गिरते जा रहे थे। उसके मन में नितिन की उदासी तीर बन कर चुभ रही थी। यह कोई एक दिन की बात नहीं थी, यह तो रोज की आदत बन चुकी थी।
उन दोनों का प्रेम विवाह हुआ था। वह सोच रही थी, शादी के पहले तो नितिन न जाने कैसे मेरे सपनों को अपनी आंखों से देख लेते थे और मेरे सारे अरमान मेरे कहने से पहले पूरे कर देते थे। पर अब उन्हें ऐसा क्या हो गया है कि अब वह मेरी तरफ भी नहीं देखते। बस काम ही काम और धन और पद की लालसा ने उनके अंदर की सरसता को जैसे मार कर ही रख दिया है। जल्दी से बड़ा घर, बड़ी गाड़ी और सारे सुख साधनों को जुटाने की चाह ने जीवन के रंगीन पलों को ही चुरा लिया है। उसे पुराने दिन याद आने लगे जब नितिन उसको बिना देखे एक दिन भी नहीं रह पाते थे। शादी से पहले उसने नितिन से एक बार कहा था, तुम मुझे दुनिया घुमाओगे न।
तब नितिन ने तुरंत ही दोनों के लिए अमेरिका से एम.ए.में प्रवेश लेने के लिए कार्यवाही शुरू कर दी थी। जब फॉर्म भरने लगे तो निकिता ने अपने मम्मी, पापा को बताया था। नितिन ने उन्हें भी बड़ी आसानी से अमेरिका में रह कर पढ़ाई के लिए तैयार कर लिया था। धन की कोई कमी नहीं थी, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई। उसके बाद दोनों ने अमेरिका से एकसाथ एम.ए.किया था। हर पल आनंद से लबालब भरा हुआ था।
शादी के बाद भी दिल्ली में एक साल बहुत ही प्यार भरा बीता पर उसके बाद न जाने कौन सा ग्रहण लग गया। जिंदगी को नीरसता ने पूरी तरह जकड़ लिया था। सब से परेशानी की बात तो यह थी कि दोनों मिल कर उसका कारण खोजना ही नहीं चाहते थे। चुप्पी से कैसे समस्याएं हल होतीं? रोज रोज की ऐसी बेरुखी से वह तंग आ गई थी। निकिता और नितिन अपने अपने सोच विचार में मग्न न जाने कब निद्रा की गोद में सो गए। फिर सुबह हुई और अपने अपने ऑफिस चले गए। जब शाम को निकिता और नितिन चुपचाप चाय पी रहे थे, तभी निकिता के घर से स्काइप पर कॉल आया। निकिता की मां ने बड़े आग्रहपूर्वक कहा, बेटा हमारी बहुत इच्छा है कि इस बार तुम और नितिन होली हमारे साथ मनाओ।
निकिता तो मां का प्रस्ताव सुन कर बहुत प्रसन्न हो गई किन्तु नितिन ने कहा, ‘‘तुम चली जाओ। कुछ दिन सबके साथ रहोगी तो तुम्हें भी अच्छा लगेगा। मुझे तो बहुत काम है। मैं नहीं जा सकूंगा।’’ निकिता की छोटी बहन मिनी ने कहा, ‘‘जीजाजी, आपको होली पर आना ही है। मुझे आपके साथ होली खेलनी है। आप मना नहीं करेंगे।’’ नितिन ने कहा, ‘‘नहीं मिनी मुझे बहुत जरूरी काम है। मैं नहीं आ सकूंगा। प्लीज बात को समझो।’’ मिनी बोली, ‘‘जीजाजी होली पर सब जगह छुट्टी होती है। काम तो होते रहेंगे पर साली का ऐसा ऑफर बार बार नहीं मिलेगा आपको।’’ निकिता के पापा भी बोले, ‘‘बेटा पूरा परिवार होली में साथ होगा तो बहुत अच्छा लगेगा। आ जाओ आप लोग। काम तो जिंदगी भर चलते ही रहेंगे।’’ पिताजी के आग्रह के बाद नितिन को निकिता के साथ उसके घर मथुरा जाना ही पड़ा। जब नितिन और निकिता मथुरा पहुंचे तो पूरे परिवार में एक उल्लास भर गया। वैसे भी मथुरा में तो होली के त्यौहार की अलग ही धूम होती है। पूरे शहर में होली के उत्सव की निराली छटा थी।
निकिता के नीरस जीवन में होली के उत्सव ने कुछ सरस पल भर दिए थे। सब होली की तैयारी में लगे थे। निकिता वहां भी नितिन की चुप्पी से परेशान थी। उसने अपने कमरे में नितिन से धीरे से कहा, ‘‘नितिन प्लीज, आप घर में सब से बात करिए न। मुझ से भी वैसे ही बात करिए जैसे आप पहले किया करते थे। आपकी चुप्पी से मम्मी, पापा समझ जाएंगे कि हम लोगों के बीच कुछ अनबन है। उन्हें बहुत दुःख होगा।’’ नितिन ने झुंझलाते हुए रूखा सा उत्तर दिया, ‘‘ठीक है, बाबा।’’ तभी मिनी आ गई और बोली, ‘‘चलो दीदी, जीजाजी के पास ही बैठी रहोगी या कुछ काम भी करोगी?’’ दोनों बहने उठीं और आंगन में आकर रंगोली बनाने लगीं। मिनी ने दीदी और जीजाजी के बीच की लड़ाई को भांप लिया था। वह निकिता से बड़े प्यार से बोली, ‘‘दीदी, क्या बात है, आप और जीजाजी खुश से नहीं लग रहे हैं?’’
मिनी के प्यार भरे स्वाभाविक से प्रश्न पर निकिता की आंखों से दो मोती अनायास ही लुढ़क गए। उसने अपनी आंखों के पानी को तुरंत ही पोंछ लिया। वह उत्सव के उल्लास में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं बनना चाहती थी। रंगोली बनाने बाद दोनों बहनों ने पारम्परिक सुंदर परिधान पहने। दोनों का सौंदर्य अद्भुत लग रहा था। इसके बाद उन्होंने अपने भाई सागर को तिलक लगाया और ईश्वर से कामना की कि उनके भाई को कभी किसी की बुरी नज़र न लगे।
होलिका दहन के लिए मोहल्ले के सभी लोग एकत्रित हो गए थे। भक्त प्रह्लाद की पूजा का पावन वातावरण था। ढोलक की थाप पर होली के गीत गूंज रहे थे। होलिका दहन हुआ और फिर सब मिल बांट कर प्रसाद खाने लगे। सभी लोग बहुत खुश थे पर नितिन मात्र दिखाने को ही खुश था। ऐसे उमंग भरे वातावरण में भी उसके मन में कोई प्रेम, कोई उल्लास का भाव नहीं जगा था।
रात्रि में सभी ने बातचीत के संग स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद उठाया। मिनी तो बार बार नितिन को रंगोत्सव की याद दिलाते हुए कह रही थी, ‘‘जीजाजी सुबह होली खेलने के लिए तैयार रहना।’’ वह नितिन के साथ जम कर होली खेलने के लिए तैयार थी।
धुरखेल यानि रंगोत्सव का समय भी आ गया। जिसका मिनी को बहुत इंतजार था। सुबह से ही मिनी की सहेलियों ने नितिन को घेरना प्रारंभ कर दिया था। वे कह रही थीं, ‘‘जीजाजी, आज हम आपको नहीं छोड़ने वाले हैं। इतना रंग लगाएंगे कि आप परेशान हो जाएंगे।’’
नटखट मिनी सब की नेता बनी हुई थी। सागर के मित्र भी आ गए। फिर क्या था होली का रंग पूरी तरह ज़मने लगा था। नितिन होली खेलने से बच रहा था पर मिनी और उसकी सहेलियां उसे छेड़ छेड़ कर बार बार उकसा रही थीं। राधा कृष्ण की पावन भूमि मथुरा में चारों ओर राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम के गीत गाए जा रहे थे। लोग मस्ती से झूम,नाच,गा रहे थे। तरह तरह के गुलाल से वातावरण इंद्रधनुषी रंगों से सज गया था। आंगन में टेसू के फूलों से बने रंग से एक हौद भरी हुई थी। मिनी की सब सहेलियां एक दूसरे को रंग लगा रही थीं, फिर उस रंग भरी हौद में एक दूसरे को डुबा कर जीवन के अलौकिक आनंद ले रही थीं।
निकिता चुपचाप सहमी सहमी खड़ी थी। मिनी की सहेलियों ने मिल कर निकिता को खूब रंग लगाया और फिर उन्होंने निकिता को उठाया और उसे रंग की हौद में डाल दिया। निकिता की ऐसी हालत देख कर नितिन को हंसी आ गई। मिनी की सहेलियों तथा सागर के दोस्तों ने आंख का इशारा किया और फिर नितिन को ‘जीजाजी की जय’ बोलते हुए पूरे जोर शोर से हौद में डाल दिया। मिनी अपनी सहेलियों के साथ जीजाजी को रंग लगाने लगीं। अब नितिन को भी जोश आ गया था। नितिन ने आगे बढ़ कर मिनी को रंग लगाया। वह फिर दुबारा मिनी को रंग लगाना ही चाहता था, पर मिनी ने जल्दी से निकिता को आगे कर दिया। मिनी निकिता और नितिन की दूरियां मिटाना चाहती थी। नितिन निकिता से जा टकराया और उसके हाथ सीधे निकिता के गालों पर आ गए। होली की उस अनोखी मस्ती में, भीगे तन, मन से दोनों को प्रेम की एक नवीन अनुभूति होने लगी थी। उस मधुर, मदिर स्पर्श से नितिन के मन की जो प्रेम -बेल सूख सी गई थी, वह फिर से हरी हो गई। दोनों के मन में फिर प्यार की मधुर कलियां फूट पड़ी थीं।
मिनी और उसकी सहेलियां बहुत खुश थीं। उन्होंने नितिन और निकिता को बीच में रख कर एक गोला बना लिया। सब सहेलियां राधा कृष्ण का प्रेम भरा गीत गा कर मस्ती से झूमने, नाचने लगीं। अद्भुत दृश्य था वह।
नितिन और निकिता का तन मन होली के रंग में पूरी तरह भीग चुका था। वे अपनी सारी नीरसता होली के रंगों में ही उड़ा देना चाहते थे। दोनों एक दूसरे को अपलक निहार रहे थे। दोनों के मन बस यही कह रहे थे, ‘मोहे अपने ही रंग में रंग दे।’

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सुनीता माहेश्वरी

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Comments 1

  1. Hari says:
    7 years ago

    जीवन में त्योहारों का महत्व बताया गया है होली का आनंद आ गया।

    Reply

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