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अध्यात्म और सेवा का अद्भुत संगम क्रियायोग फाउंडेशन

by pallavi anwekar
in अध्यात्म, मार्च २०१८, साक्षात्कार
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इंट्रो : गीता के क्रियायोग को जनता तक पहुंचाने का कार्य पिछले ५० वर्षों से सद्गुरु मंगेशदा क्रियायोग फाउंडेशन निरंतर कर रहा है। मानवी मन के इस तरह उपचार के साथ समाज के दीनदुखियों की सेवा का कार्य भी चल रहा है। इस तरह मन और शरीर दोनों की सेवा का अद्भुत कार्य फाउंडेशन कर रहा है। उसके कार्यों के बारे में पल्लवी अनवेकर से हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत है।

सद्गुरु  मंगेशदा क्रियायोग फाउंडेशन की स्थापना का मूल उद्देश्य क्या है ?

आज से ५३०० साल पहले गीता के १८ अध्यायों के माध्यम से कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया, वही क्रियायोग है। वर्तमान समय में योग के अनेक अलग व कुछ भ्रष्ट तरीके आ गए हैं। इसलिए क्रियायोग को एक फाउंडेशन बना कर देश विदेश में लोकप्रिय बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं ; ताकि हमारी संस्कृति के मूल तत्व दुनिया के कोने – कोने में फैलें।

आपकी संस्था क्रियायोग के माध्यम से समाज की मानसिक व शारीरिक उन्नति के लिए कार्यरत है। क्रियायोग क्या है और आपने इसे ही अपने कार्य के रूप में क्यों चुना ?

क्रिया का मतलब है, निरंतर कार्य करते रहना। अर्थात् सुबह से लेकर रात्रि तक किए जाने वाले समस्त कार्य। परंतु अध्यात्म के क्षेत्र में इसके मायने अलग हैं। यहां ‘ क्रि ’ अर्थात् ‘ आत्मा ’। इसका तात्पर्य यह है कि हमारे स्थूल शरीर के अलावा भी एक सूक्ष्म शरीर है। इन दोनों का मिलाप ही ‘ योग ’ है। क्रिया योग के ५ अलग – अलग विभाग होते हैं।

पहला ‘ क्रिया हठयोग ’ है। हठयोग का मतलब हठी योग नहीं है ; बल्कि हमें अपने शरीर की ऊर्जा को निर्बाधित रखना है। इस हेतु पतंजलि योग सूत्र में ८४ आसन दिए गए हैं। परंतु क्रियायोग में १८ आसन होते हैं जिनका महत्व उन ८४ आसनों के बराबर ही होता है। परंतु इसे आप शार्टकट नहीं कह सकते। यदि एक आसन किया जाए तो उसमें दस से बारह आसनों का समावेश होता है। इसी के साथ शुद्धि की प्रक्रिया भी आवश्यक है। जितना आवश्यक ऊपरी शुद्धिकरण है, उससे अधिक आवश्यक होता है आंतरिक तौर पर शुद्ध होना।

दूसरा विभाग है, कुंडलिनी प्राणायाम प्रक्रिया। लोगों को पता नहीं चलता कि एक बार सांस लेने पर हम ४९ तरह की हवाएं अंदर लेते हैं जो कि अपांग, समांग, प्राण, व्यान व उड़ान के तौर पर निर्धारित होते हैं। कुंडलिनी का अर्थ है, सार्वभौमिक ऊर्जा जो कि मूलाधार चक्र के पास सुषुप्तावस्था में रहती है। श् ‍ वास लेना भी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। एक मिनट में हमें ८ से १२ बार सांस लेना चाहिए। पर वर्तमान जीवन शैली एवं मानसिक तनाव के कारण लोग चौबीस से तीस तक सांसें लेते हैं जिनके कारण बहुत सारी बीमारियां हो जाती हैं। इसके लिए क्रियायोग का कुंडलिनी योग कारगर है।

क्रियायोग का अगला विभाग है, क्रिया भक्ति योग। भक्ति का अर्थ केवल मंदिर अथवा गुरु की शरण में जाना मात्र नहीं है। हर मनुष्य के अंतर्मन में सात्विक एवं तामसिक प्रवृत्तियों के बीच युद्ध चल रहा है। इसलिए सर्वप्रथम स्वयं से भक्ति करो। हमारी प्रवृत्ति में परिवर्तन आना ही ‘ भक्ति योग ’ है।

इसके पश् ‍ चात आता है, क्रिया ध्यान योग अर्थात् मेडिटेशन। बिना कोई प्रतिक्रिया दिए निरीक्षण करना। सामान्यतः लोगों को लगता है कि उनसे मेडिटेशन नहीं हो सकता क्योंकि उनके मन में तमाम विचार आते रहते हैं पर क्रिया योग द्वारा कोई भी व्यक्ति आसानी से मेडिटेशन कर सकता है।

अंतिम है, क्रिया मंत्र योग। मंत्रों के तीन प्रकार होते हैं। बीज मंत्र, जिसे हमारे ॠषि मुनियों ने ध्यान के दौरान सुना और लिखा। वैदिक मंत्र, बीज मंत्र जब वेदों मे लिखे गए तो वे वैदिक मंत्र कहलाए। शाबरी मंत्र, शाबर ॠषि द्वारा लाए गए मंत्र, इनकी तीव्रता सर्वाधिक होती है। इन मंत्रों का ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य तक पहुंचता है।

क्रियायोग को लेकर किए गए आपके प्रवास से आप कितने संतुष्ट हैं और कहां तक आपकी साधना का लाभ आम लोगों तक पहुंच पाया ?

जब मैं चला तब अकेला था ; पर अब पीछे मुड़ कर देखता हूं तो लाखों लोगों की भीड़ खड़ी पाता हूं। शुरू शुरू में लोग मेरी बात को हवा में उड़ा देते थे। पर अब विश् ‍ व भर में ९३ से भी अधिक केंद्र हो चुके हैं। इसके पीछे मेरे साथ काम करने वाले लोगों की मेहनत है। पर यह सब अभी नाकाफी है। इसलिए तमाम मीडिया माध्यमों से लोगों तक यह बात पहुंचनी चाहिए कि वास्तविक ‘ क्रियायोग ’ क्या है ! यह एक अनुशासन है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति से सद्गुरु तक का आपका प्रवास कैसा रहा ?

मेरा बचपन काफी अभावों के बीच गुजरा। नौ बच्चों में सब से छोटा था। मैं ठीकठाक नाच लेता था तो सबको लगा कि मुझे कथक सिखाया जाना चाहिए। ९ साल की उम्र में मैंने ७० – ७५ लोगों के ग्रुप के साथ ‘ राशि चक्र ’ पर आधारित बैले प्रस्तुत किया। आगे चल कर मेरा यह कार्यक्रम दिल्ली, आगरा तथा लंदन के अल्बर्ट हॉल में भी किया गया। घर के बड़ों की देखादेखी योग करना शुरू किया तथा योग की बारीकियां सीखते – सीखते जिम्नास्टिक के प्रति आकर्षित हुआ। उस समय उसका कोई स्कोप न था। बैले में भी शास्त्रीय भाव डाला जो कि उस समय कुछ लोगों को नागवार भी गुजरा। दस साल की उम्र में पेपर डालने का कार्य भी किया। बारह साल की उम्र में कुछ लोगों के साथ चार धाम की यात्रा कर लिया और वहीं से मुझे ट्रैकिंग का शौक चढ़ा। कॉलेज में काफी माउंटेनिंग की। एवरेस्ट फतह करने वाले एडमंड हिलेरी सर मेरे गुरु थे। कंचनजंघा के बेस कैंप का हिस्सा बना, सह्याद्रि का भी। आगे चल कर तीन साल तक राष्ट्रीय चैम्पियन रहा तथा टोकियो की एशियन कराटे चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। यह इस स्पर्धा में देश का पहला गोल्ड था।

आपने अपने अनुयायियों के बीच सेवा के बीज रोपित करने हेतु कुछ ‘ सेवा उपक्रम ’ शुरू किए हैं। उन पर प्रकाश डालिए।

मुझे बचपन से ही समाज के निचले तबके को देखने का मौका मिला। जिन बच्चों के हाथों में किताबें होनी चाहिए, वे बचपन से ही कमाने लगते हैं। स्वच्छता को लेकर लोग जागरुक नहीं हैं। इसलिए मैंने स्वच्छता को लेकर कार्य शुरू किया। कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए कार्य किया तथा उनके माता – पिता की काउंसलिंग की। स्वाइन फ्लू के प्रकोप के समय लगभग १० लाख घरों में तुलसी बांटी ताकि लोगों के फेफड़े मजबूत करने की दिशा में कार्य किया जा सके। निर्भया कांड के बाद आत्मरक्षा के लिए सजग करने हेतु देश भर में महिलाओं के लिए आत्मरक्षा केंद्र खोले जहां महिलाओं को कराटे तथा आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दी जाती है।

आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी माने जाते हैं। क्या इसे चमत्कार कहा जा सकता है ?

जी नहीं। इसका सारा श्रेय मेरे शिक्षकों को जाता है। बहुधा सराहना काफी कार्य करती है। मुझे वक्ता के तौर पर बाल भवन भेजना, नाटकों में कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करना, चिंचड़ी के विज्ञान सम्मेलन में तीन से चार हजार लोगों के सामने भाषण देने के लिए प्रेरित करना जैसे कार्यों ने मेरे भविष्य की नींव को मजबूत किया। मुझे लगता है कि आपका जिस क्षेत्र से लगाव हो, वहां सौ प्रतिशत देने पर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

आपने कार्निया दान के क्षेत्र में काफी काम किया है। अंधेपन के निर्मूलन हेतु काम किया है। इसकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।

इस तरह के लोगों के लिए ‘ अंध ’ शब्द सही नहीं है। इनके लिए अंग्रेजी में शब्द प्रयोग किया जाता है, vigibally challenged. हम इनके साथ पिछले पचीस – छब्बीस सालों से कार्य कर रहे हैं। ये आवाज के आधार पर योग करते हैं। ये पूरी तरह स्वावलंबी होते हैं। इन्हें लोगों की सहानुभूति की आवश्यकता नहीं है। इनको सामने रख कर मैंने एक नाटक ‘ आंधळी कोशिंबिर ’ लिखा जो कि राज्य स्तर पर पुरस्कृत हो चुका है। २०१२ में जे . जे . अस्पताल के डीन डॉ . तात्याराव लहाने ( जिन्होंने एक लाख से अधिक कार्निया प्रत्यारोपण का विश् ‍ व रिकार्ड बनाया था तथा हाल ही में उनके जीवन पर मराठी में एक फिल्म भी आई थी ) ने कार्निया की खासियत बताई कि इसकी उम्र लगभग दो सौ साल होती है। आज भारत में ३३ लाख कार्नियल ब्लाइंड हैं। एक कार्निया दो लोगों को ज्योति दे सकता है, अर्थात् एक व्यक्ति की कार्निया से चार लोगों के जीवन में उजाला आ सकता है। इसे लक्ष्य बना कर हमने १२ मार्च २०१२ को मुंबई के रंग शारदा हॉल में इस अभियान की शुरुआत की। अब तक ४९ लाख लोगों ने कार्निया दान देने की प्रतिज्ञा की है। यह वर्ष मेरी योग साधना का पचासवां वर्ष है। जल्द ही इस संख्या को पचास लाख तक पहुंचा कर मैं इसे अपने गुरुजी के चरणों में समर्पित करने वाला हूं।

क्रियायोग पर आधारित आप द्वारा विकसित तकनीक पर प्रकाश डालिए।

सामान्य व्यक्ति अपने मस्तिष्क के ज्यादातर हिस्से का उपयोग ही नहीं करता। दिनभर में व्यक्ति को लगभग डेढ़ लाख विचार आते हैं। हमने इनमें से सचेतन मस्तिष्क के उद्गम स्थान का पता लगाने की कोशिश की। क्रियायोग के दस मिनट के चिंतन के बल पर मस्तिष्क के बीटा लेवल को अल्फा लेवल पर लाने की दिशा में कार्य किया।

आप देश – विदेश की बहुत सारी संस्थाओं में मार्गदर्शक वक्ता के तौर पर जाते रहे हैं। ऐसी कुछ प्रमुख संस्थाओं के नाम बताएं।

२०११ में लिस्बन में ‘ विश् ‍ व योग दिवस ’ पर मुख्य वक्ता के तौर पर बुलाया गया। वहीं पर पहली बार मैंने आवाहन किया था कि अलग दिनों पर मनाए जाने की बजाय २१ जून को पूरे विश् ‍ व में एक साथ विश् ‍ व योग दिवस मनाया जाना चाहिए क्योंकि वह साल का सब से बड़ा दिन होता है। बेंगलुरू में आयुष मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय नेचरोपैथी संगठन की ओर से मुख्य वक्ता के तौर पर बुलाया गया था। इसके अलावा दिल्ली, बैंकाक, मारीशस, अहमदाबाद समेत तमाम जगहों पर अपने मंतव्य रख चुका हूं। १६ मार्च को बोध गया में लगभग पांच हजार विद्यार्थियों के बीच पांच घंटे का व्याख्यान देने वाला हूं।

आपने स्वच्छ भारत अभियान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कृपया अपनी ‘ मुंबई से मानसरोवर तक ’ यात्रा के बारे में भी बताएं।

मानसरोवर में मैंने देखा कि वहां पर काफी मात्रा में लोग अंधश्रद्धावश अपना कोई सामान छोड़ आते हैं। इस दिशा में काफी कोशिशें कीं पर सब बेकार था। आखिर २००८ में ‘ मुंबई से मानसरोवर तक ’ यात्रा निकाली जिसमें वहां से २ टन कचरा नीचे लाए। इस यात्रा में आस्था चैनल हमारे साथ था। हमने लोगों से आवाहन किया कि, इतनी पवित्र जगह पर अपवित्रता न फैलाएं।

ज्यादातर धर्मगुरु लोगों को अंधश्रद्धा की ओर प्रेरित करते हैं पर आप उसके खिलाफ बोलते हैं। यह चीज आप में कैसे पनपी ?

मैं ईश् ‍ वर में विश् ‍ वास रखता हूं पर उससे बढ़ कर मेरा स्वयं पर विश् ‍ वास है। अंधश्रद्धा इंसान को कमजोर कर देती है। डर और अध्यात्म एकसाथ नहीं पनप सकते। यदि लोग मानसिक तथा शारीरिक तौर पर मजबूत हों तभी हमारा राष्ट्र सशक्त हो सकेगा।

आध्यात्मिक गुरु ग्राम शुरू करने के पीछे आपकी क्या मंशा थी ?

मैं एक ऐसा ग्राम बनाना चाहता था जहां दैनंदिन के शोर – शराबे से दूर बैठ कर लोग चिंतन कर सकें। उस समय लोग मुझ पर हंसे थे। पर मुझे जमीन ऐसी चाहिए जहां नदी हो, खुली हवा हो, जड़ी – बूटियां लगाई जा सकें। वहां पर हम लोगों को सुबह उठने से लेकर खाने, पीने जैसे तमाम उपक्रमों का सही संयोजन बताते हैं।

आपके फाउंडेशन की ओर से कुछ पुरस्कार भी दिए जाते हैं। ये पुरस्कार किस प्रकार के उल्लेखनीय कार्यों के लिए दिए जाते हैं ?

हमारी संस्था द्वारा काफी सालों से ‘ क्रियाशील ग्लोबल अवार्ड ’ दिया जा रहा है। डॉ . रघुनाथ माशेलकर, गान साम्राज्ञी किशोरी आमोणकर, विजय भटकर, मोहन धारिया, केसरी पाटिल, विट्ठल कामथ, भंवरलाल जैन जैसी बहुत सारी महान हस्तियां पुरस्कृत हो चुकी हैं।

आप नौ सालों तक संन्यास ग्रहण करने के बाद फिर गृहस्थ आश्रम में आए। इसके पीछे क्या कारण थे ?

जगह – जगह पर बड़े – बड़े कार्यक्रम करने के बावजूद मेरे काम को सम्मान नहीं मिलता था जबकि बड़े भाई के डॉक्टर बनने पर सब लोग उसे मिलने हवाई अड्डे तक चले गए थे। मैंने घर वालों के सामने प्रतिवाद किया कि इस तरह का भेदभाव क्यों ? पिताजी ने मारने के लिए डंडा निकाल लिया तो मैंने हाथ पकड़ लिया। उसी समय मैं घर से निकल गया। मेरी जेब में मात्र सोलह रुपए थे। भटकते – भटकते एक जगह पर मुझे एक व्यक्ति मिले जिनके प्रति मैं आकर्षित हुआ और उनके साथ त्र्यंबकेश् ‍ वर चला गया। वहां से पहले बंगाल के एक गांव में लेकर गए फिर हम हिमालय चले गए। इस प्रकार मैं संन्यासी बन गया। वे महावतार बाबाजी थे। उनके बारे में बहुत सारी किताबों में भी उल्लेख है। उन्हें ‘ चिरायु ’ या ‘ शाश् ‍ वत ’ कहा जाता है। उस समय मैं ये सब बातें नहीं जानता था। पर उनके विषय में सुन रखा था क्योंकि मेरे पहले गुरु ‘ गोलोनी ’ महाराज थे। उन्होंने कहा था कि, सही समय पर तुम्हें गुरु लेकर जाएंगे। नौ साल बाद गुरुजी का आदेश मिला कि, अब सांसारिक जीवन जिओ।

एक बहुआयामी व्यक्ति के रूप में वर्तमान भारत के विषय में आपके क्या विचार हैं ?

मैं आशावादी हूं पर मेरे मन में मिश्रित भाव आते हैं। कभी – कभी पढ़ता हूं कि किसी ढोंगी बाबा के आश्रम में बहुत सारे गलत कार्य किए जाते हैं। लोग उनके चंगुल में फंस जाते हैं। इसलिए लोगों को विज्ञानवादी होना चाहिए। अच्छी बात यह है कि नौजवान पीढ़ी आध्यात्मिक क्षेत्र में आगे आ रही है जो कि भविष्य के लिए बेहतर संकेत है।

आपको योग करते ५० साल हो चुके हैं। संस्था को भी २५ साल हो गए। आपकी उम्र क्या है ?

यह सवाल मुझसे बहुत सारे लोग पूछते हैं। अभी अहमदाबाद में भी कुछ लोगों ने पूछा था। मैं कहूंगा, हजार साल है। आप बहुत सारी चीजें पिछले जन्म से ही सीख कर आते हैं। इसलिए उस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन आज भी मैं एक विद्यार्थी हूं। बहुत कुछ सीखना चाहता हूं।

वर्तमान युवा देश – समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहता है। उस स्वप्न को सार्थक करने की दिशा में आपके क्रियायोग का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है ?

हमारी चार प्रकार की भावनाएं होती हैं – क्रोध, डर, दुःख और खुशी। इनमें से तीन नकारात्मक तथा इकलौता सकारात्मक है। तीनों नकारात्मक परे हटा कर सकारात्मकता के पथ पर अपनी शक्तियों को संग्रहित करने की आवश्यकता है जो राष्ट्र के निर्माण में सहायक सिद्ध होगी।

‘ हिंदी विवेक ’ के माध्यम से संसार को क्या संदेश देना चाहेंगे ?

आपके अंदर बहुत सारे अच्छे गुण होते हैं इसलिए बुरे गुणों को देख – परख कर बगल में रख दो। पर अच्छे गुणों को विकास का भरपूर मौका दो। दिनभर के क्रिया कलापों की सारणी होनी ही चाहिए। दफ्तर की परेशानियां घर तक मत लेकर आओ। सारी चीजों का घालमेल मत करो। ऊर्जा अपने उच्च स्तर पर रहेगी।

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