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लालची कबूतर

लालची कबूतर

by हिंदी विवेक
in कहानी
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जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पर दिन भर पक्षी बैठा करते थे। सारा दिन उन पक्षियों की चहक और मस्ती रहती थी। उस पक्षियों के झुंड में एक कबूतरों का झुंड भी था
ये देख एक पक्षियों के व्यापारी ने उन कबूतरों को पकड़ने की योजना बनाई। एक दिन जब सारे पक्षी आसमान में उड़ रहे थे तब उस व्यापारी ने उस पेड़ के नीचे एक जाल बिछा दिया और उस पर खूब सारे चावल के दाने बिखरा दिए। ये सब कर वो एक पेड़ के पीछे छुप गया और कबूतरों के आने का इंतज़ार करने लगा।
कुछ देर में कबूतर आए और पेड़ पर बैठ गए। आपस में बातें करते हुए उनकी नज़र जब जमीन पर पड़े चावल के दानों पर पड़ी तो सबका मन उन्हें खाने को हुआ। और सब उन दानों पर टूट पड़े। ये देख उनके सबसे बूढ़े और समझदार कबूतर को कुछ शक हुआ।
उसने आवाज लगाई कि सब चावल छोड़ फ़ौरन वापिस आजाओ। लेकिन चावल खाने के लालच में किसी ने उसकी बात नहीं मानी और मजे से चावल खाने लगे।
तभी पेड़ के पीछे छिपे व्यापारी ने रस्सी खींची और सब के सब कबूतर उस जाल में फँस गए। व्यापारी खड़ा हसने लगा।
लालच करने और अपने बुजुर्ग की बात ना मानने का नतीजा देख सब चिल्लाने लगे।
तभी कबूतरों के उसी बुजुर्ग ने सबको एक ही दिशा में पूरे जोर से उड़ने का आदेश दिया। फिर क्या था, सबने जोर लगाया और सारे कबूतर उस जाल को ही ले हवा में उड़ने लगे।
उड़ते उड़ते वो सब अपने पुराने दोस्त चूहे के पास पहुंचे। चूहे ने उस जाल को अपने दातों से काट कर सब कबूतरों को आज़ाद करवा दिया।

तभी कहते हैं, लालच बुरी बाला है। और अपने से बड़े की बात ना मानना कोई अच्छी बात नहीं। अगर कबूतरों ने अपने बुजुर्ग की बात मानी होती तो क्या जाल में फंसते। अपने से बड़ों की बात ध्यान से सुनो और उस सुझाव के अनुसार कार्य करो तो कोई परेशानी नहीं होगी।

 

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