फिट है तो हिट है…

व्यक्ति के फिट रहने के लिए शरीर और मन दोनों फिट रहना आवश्यक है। इसलिए शरीर और मन दोनों की सेहत पर बराबर ध्यान दिया जाए। आज मुख्य प्रश्न है, लोगों में फिटनेस के प्रति जागरूकता लाना और जो जागरुक हैं उन्हें बाजार के बहाव में बहने से रोकना।

लगभग अड़सठ साल के एक जवान ने आजकल मीडिया को अपने नियंत्रण में कर रखा है। अखबारों, समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं आदि सभी में वह सुर्खियों में है। घर में पति-पत्नी की, परिवार की, दोस्तों की, ऑफिस में कर्मचारियों की चर्चा का विषय यही जवान है। लोकसभा चुनावों के समय तो जैसे उनकी तूती बोल रही थी। दिन के अठारह घंटे काम करना हो, केवल नींबू पानी पीकर ताबड़तोड़ रैलियां करना हों या चिलचिलाती गर्मी में लाखों की भीड़ को सम्बोधित करना हो, यह युवा कहीं भी थका हारा नहीं दिखा। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि यहां किसकी बात की जा रही है। जी हां, हम बात कर रहे हैं भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की।

अड़सठ साल की उम्र में जहां लोग घुटनों और जोड़ों के दर्द की शिकायत करने लगते हैं, कुछ समय तक तेज रफ्तार से चलते ही हांफने लगते हैं, वहीं हमारे प्रधान मंत्री हवाई जहाज की सीढ़ियां भी रफ्तार से चढ़ जाते हैं। उनकी इस फिटनेस का राज किसी से छुपा नहीं है। योग, प्राणायाम, नियमित व्यायाम, सात्विक और संतुलित भोजन, नियमित जीवन शैली ये कुछ कारक हैं जो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को फिट रखते हैं।

फिटनेस आईकॉन

यहां फिटनेस के लिए नरेंद्र मोदी का उदाहरण दिए जाने से कुछ लोग यह समझ सकते हैं कि आजकल हर बात में उनका नाम लेने का फैशन हो चला है परंतु यह किसी फैशन के तहत नहीं किया गया है। फिटनेस का नाम सुनते ही हमारे सामने जिन लोगों के चेहरे घूमने लगते हैं वे सभी या तो कलाकार हैं या खिलाड़ी हैं। ऐसे लोगों का शारीरिक रूप से फिट होना तो स्वाभाविक ही है क्योंकि यह उनके प्रोफेशन का अहम हिस्सा है। स्थूल, बेडौल कलाकारों को इक्का-दुक्का कैरेक्टर के अलावा कहीं पसंद नहीं किया जाता और खिलाड़ियों का तो सारा दारोमदार ही फिटनेस पर है। अगर खिलाड़ी फिट नहीं है तो वह अपने खेल के साथ न्याय नहीं कर सकता। परंतु राजनीति कोई ऐसा प्रोफेशन नहीं है जो फिटनेस की मांग करता हो। मेरे विचार में तो अगर सभी राजनेताओं पर नजर डालें तो कुछेक लोगों को छोड़कर सभी किसी न किसी बीमारी से ग्रसित मिलेंगे। इसलिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण देना मुझे उचित लगा क्योंकि वे अपनी फिटनेस पर इसलिए ध्यान नहीं देते क्योंकि यह उनके प्रोफेशन की मांग है, बल्कि इसलिए ध्यान देते हैं क्योंकिवे जानते कि शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्। अर्थात हमारे द्वारा जो भी कार्य किए जाने हैं इस शरीर के द्वारा ही किए जाने हैं इसलिए शरीर और मन का स्वस्थ रहना आवश्यक है और स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। अत: हम सभी लोगों को भी जिनके प्रोफेशन की मांग भले ही फिटनेस न हो, फिट रहना जरूरी है।

फिटनेस क्या है?

कुछ दिनों पहले ही हमारी सोसायटी में रहने वाली 20 वर्षीय लड़की को अचानक देर रात अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। वह परिवार से दूर मुंबई पढ़ने के लिए आई हुई है। अपनी चार-पांच सहेलियों के साथ एक फ्लैट में रहती है। अत्यंत तेज, होशियार, मिलनसार और पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने वाली वह लड़की पिछले कुछ दिनों से अपने बढ़ते वजन को लेकर चिंतित थी। सुबह शाम जिम, न्यूनतम भोजन और दिनभर पढ़ाई के व्यस्त कार्यक्रम ने उसे इतना कमजोर कर दिया कि उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।

क्या आपको दबंग मुंबई पुलिस ऑफिसर हिमांशु रॉय याद हैं? कई नामी अपराधियों को जेल की हवा खिलाने वाले हिमांशु रॉय बलिष्ठ शरीर के सभी मापदंडों को पूर्ण करने वाले व्यक्ति थे। परंतु उन्होंने अवसाद के कारण आत्महत्या कर ली।

आप उपरोक्त में से किसे फिट मानेंगे? शायद दोनों को ही नहीं। क्योंकि एक का शरीर कमजोर है तो दूसरे का मन। व्यक्ति के फिट रहने के लिए शरीर और मन दोनों फिट रहना आवश्यक है। इसलिए यह जरूरीहै कि शरीर और मन दोनों की सेहत पर बराबर ध्यान दिया जाए।

बदलता नजरिया

आज से लगभग दस से पंद्रह वर्ष पूर्व धीरे-धीरे लोगों की यह समझ में आने लगा था कि हमारे शारीरिक और मानसिक अस्वास्थ्य का कारण हमारी बदलती जीवन शैली है। मशीनों  और फिर कम्प्यूटर के आ जाने के कारण मनुष्य के शारीरिक कार्य बहुत कम हो गए थे। काम करने के दौरान होने वाले शारीरिक व्यायामों में काफी कमी आ गई थी। अत: लोगों ने व्यायाम करने के लिए अलग से समय निकालने की शुरुआत की। सुबह खुली हवा में टहलना, योगासन, कसरत आदि करना लोगों ने अपनी जीवनशैली में ढाल लिया।

जैसे-जैसे समय बीता लोग अधिक व्यस्त होते गए। सुबह-शाम का समय न मिल पाने के कारण, घूमने, कसरत करने की जगहों में कमी के कारण लोग कोई ऐसा विकल्प खोजने लगे जो उन्हें उनके समय के अनुरूप चलने और कसरत करने की सुविधा देता हो। इसी ने धीरे-धीरे व्यायाम शालाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी की। पहले केवल पहलवानों की वर्जिश करने की जगह पर अब सामान्य आदमी भी डम्बल उठाता नजर आने लगा। धीरे-धीरे समय की मांग को देखते हुए व्यायाम शालाओं ने भी प्रगति की। इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक मशीनों ने अब इन व्यायाम शालाओं को ‘जिम’ जैसा ‘सॉफिस्टिकेटेड’ नाम दे दिया है।

दो धाराएं

फिलहाल समाज में फिटनेस से सम्बंधित दो धाराएं दिखाई देती हैं। एक अभी भी पर्यावरण से सामंजस्य बनाकर, नैसर्गिक आहार के माध्यम से सेहत बनाने की ओर अग्रसर है और दूसरी जिम, मशीनों और अप्राकृतिक तत्वों जैसे डिब्बाबंद प्रोटीन आदि की ओर अग्रसर है। सुविधायुक्त होने के कारण दूसरी धारा की ओर लोग आजकल अधिक आकर्षित हो रहे हैं। जिम जाने वालों की संख्या में जितनी बढ़ोत्तरी हो रही है उतनी ही तेजी से जिम भी बढ़ रहे हैं। जिम में उपयोग होने वाली मशीनों में हो रहे तकनीक के विकास ने अब फिटनेस को और अधिक आकर्षक बना दिया है। आज कई लोग इस आकर्षण के कारण भी जिम जाना शुरू कर देते हैं।

फिटनेस का बाजार

नैसर्गिक रूप से जिसे दिनचर्या का एक भाग होना चाहिए वह फिटनेस आज आकर्षण का केंद्र बन रही है। अत: इसका बाजारीकरण भी अधिक हो रहा है। आज की तारीख में यह एक उद्योग बन चुका है और लोग उपभोक्ता। भारत में फिटनेस उद्योग के विकास पर नजर डालें तो यह देखना दिलचस्प होगा कि पिछले दशक में फिटनेस उत्पादों और सेवाओं की मांग कैसे बढ़ी है। प्रौद्योगिकी का आगमन और तकनीक का विकास कई महत्वपूर्ण कारकों में से एक रहा है जिसके कारण उपभोक्ताओं की फिटनेस में अधिक रुचि रही और उनके द्वारा फिट रहने में मदद करने वाले उत्पादों और सेवाओं की मांग निरंतर की जाने लगी। आज बाजार में ऐसे विभिन्न उत्पाद और सेवाएं हैं जो नए और रोमांचक तरीके के साथ उपभोक्ताओं को फिटनेस प्रदान करने की दिशा में सक्षम हैं। हालांकि अभी हमारे देश में फिटनेस उद्योग काफी हद तक असंगठित है और विविध उत्पादों और सेवा क्षेत्रों के बीच अंतर करने के लिए एक निश्चित संरचना का भी अभाव है।

कुछ साल पहले तक फिटनेस उद्योग में कुछ बड़ी कंपनियों का दबदबा था। लेकिन यह स्थिति धीरे-धीरे बाजार  में आई नई छोटी कम्पनियों के प्रवेश के साथ बदल रही है। फिटनेस के क्षेत्र में कई स्टार्ट-अप अब विभिन्न आयु समूहों के शहरी उपभोक्ताओं को लक्ष्य बना रहे हैं। ये स्टार्ट-अप उनकी आवश्यकता के आधार पर समाधानों की एक श्रृंखला का निर्माण करते हैं। फिटनेस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण के प्रवेश ने इस बाजार का रूप ही परिवर्तित कर दिया है। आज आप कुछ उपकरणों के माध्यम से आपके उत्सर्जित कैलोरी को गिन सकते हैं। दिन भर में आप कितने कदम चले हैं इसका हिसाब रख सकते हैं। अब तो मोबाइल ऐप-आधारित सेवाएं लोगों को अपने कसरत के सत्रों को निर्धारित करने की सुविधा भी देती है। इन सभी सुविधाओं के कारण युवा शहरी महिलाओं और पुरुषों के बीच फिटनेस के प्रति जागरुकता बढ़ी है।

क्या कहते हैं आंकड़ें

सन 2018 के अंत तक भारत में फिटनेस बाजार की कुल आय या राजस्व 908 मिलियन डॉलर था। जिसमें 2018 से 2022 के बीच 9.3% की वृद्धि होने की आशा है। यहां एक तथ्य ध्यान देने योग्य है कि इस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा फिटनेस उत्पादों की खपत के कारण होगा।

ये उत्पाद अब धीरे-धीरे फिर एक बार परिवर्तन की ओर हैं। चूंकि लोग कई कारणों से जिम में जाकर या घर के बाहर खुले वातावरण में कसरत नहीं कर पा रहे हैं, अत: अब ऐसी मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं, जिनका आकार छोटा है और उनके माध्यम से आसानी से घर पर ही कसरत की जा सकती है। इन मशीनों और उपकरणों की मांग और खपत दिन-ब-दिन बढ़ रही है। आज अधिकतर लोग मोबाइल और कम्पूटर का उपयोग करते हैं। इन पर आने वाले विज्ञापनों में से अधिकतर विज्ञापन फिटनेस से सम्बंधित उत्पादों के ही होते हैं।

क्या खाएं क्या नहीं

फिट रहने के लिए केवल व्यायाम करना ही काफी नहीं है। उसी मात्रा में आहार लेना भी आवश्यक है। आज बाजार में ‘डायट फूड’ की बाढ़ आ गई है। परंतु ये ‘डायट फूड’ सभी के लिए उचित है या नहीं ये देखे बिना इनका सेवन करना बीमारी का स्वागत करने जैसा है। आपके शरीर को जिन चीजों की आवश्यकता है वे आपके आहार में शामिल होना जरूरी है। पथ्य-अपथ्य हमारी जीवनशैली का भाग रहे हैं। परंतु आम व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं होती। अत: अपने आहार में किसी भी प्रकार का बड़ा परिवर्तन करने के पूर्व विशेषज्ञों से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

मानसिक स्वास्थ्य

जैसा कि पहले भी उदाहरण के रूप में स्पष्ट किया गया है कि केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही काफी नहीं है। मानसिक स्थिरता भी आवश्यक है। ध्यान, ओमकार, प्राणायाम के विभिन्न प्रकार मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने वाले उत्तम कारक हैं। नियमित रूप से इनका अभ्यास करने वाला साधक अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने में सक्षम होता है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इसका जीता जागता उदाहरण है। उन पर आरोपों की बौछार होने के बावजूद भी उन्होंने अपना मानसिक संतुलन खो कर कभी कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की। वरन उन पर हुए आघातों को भी उन्होंने अवसरों में परिवर्तित कर दिया। शांत मस्तिष्क ही यह परिवर्तन संभव बनाता है।

आज फिटनेस को लेकर समाज के सामने जो मुख्य प्रश्न हैं वे ये हैं कि लोगों को फिटनेस के लिए जागरूक कैसे किया जाए और जो जागरुक हैं उन्हें बाजार के बहाव में बहने से कैसे रोका जाए। सबसे पहले तो लोगों में यह जागरूकता लानी आवश्यक है कि फिटनेस आपकी जीवनशैली से जुड़ा मुद्दा है, अत: आपकी जीवन शैली में परिवर्तन कर आसानी से फिट रहा जा सकता है। दूसरा यह कि व्यक्ति को फिट स्वयं के लिए रहना है दिखावे के लिए नहीं। अत: किसी की देखादेखी या किसी को दिखाने के लिए कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। तीसरा प्रत्येक व्यक्ति का शरीर और मन अलग है। अपने शरीर और मन के अनुरूप किए गए कार्य निश्चित रूप से आपको फिट रखेंगे।

सुबह की सैर, जिम में किया जाने वाला व्यायाम या घर में किसी उपकरण की सहायता से की जानेवाली कसरत तीनों ही आपको फिट रखने का ही कार्य करेंगे बशर्ते आप अपने शरीर के अनुरूप व्यवहार करें। अत: फिट रहिए क्योंकि फिट है, तो हिट है।

 

This Post Has 3 Comments

  1. Anonymous

    खूूब सही और सधी भाषा में फिट रहने का मंत्र दिया है.आपका लेख हिट है.

  2. प्रोफेसर श्री राम अग्रवाल।

    बहुत सुन्दर, सटीक, समयानुकूल।

  3. Abhishek Vishwakarma

    Amazing article

    Change my view about fitness.

    This gives a motivation to work on my inner health and mental strength .

    Thanks and waiting for next article.

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