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बर्फ की परी

बर्फ की परी

by हिंदी विवेक
in कहानी
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एक था किटी, एक थी गेर्डा। दोनों भाई-बहन नहीं थे, फिर भी दोनों में भाई-बहन जैसा प्यार था। दोनों साथ-साथ पढ़ते और साथ-साथ खेलते थे। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। दोनों एक बहुत बड़े, घनी आबादी वाले शहर में रहते थे।
शहर की आबादी इतनी घनी थी कि लोगों को छोटे-छोटे मकानों में रहना पड़ता था। मकान इतने छोटे-छोटे थे कि वे अपनी इच्छानुसार घर में एक छोटा-सा बगीचा तक नहीं लगा सकते थे। किटी और गेर्डा के मकान पास-पास बने हुए थे। इतने पास-पास कि दोनों खिड़कियां पार करके एक-दूसरे के घर में आ-जा सकते थे।
किटी और गेर्डा के घरवालों ने अपने मकानों की खिड़कियों के पास लकड़ी की पेटियों में कुछ पौधे लगा रखे थे, क्योंकि घर में और कहीं पौधे लगाने के लिए जगह ही नहीं थी। मकान बहुत छोटे-छोटे जो थे। लकड़ी की पेटियों में लगे पौधों में कुछ पौधे गुलाब के भी थे।किटी की दादी कभी-कभी दोनों को बर्फ की परी की कहानियां सुनाया करती थीं। वे दोनों दादी की कहानियां बड़े चाव और दिलचस्पी के साथ सुना करते थे।
सर्दियों के दिनों में जब बर्फ पड़ने लगती थी तो उन खिड़कियों पर भी बर्फ की मोटी परत जम जाती थी, जहां से किटी और गेर्डा एक-दूसरे से मिलने आते थे। तब उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती थी। वे एक-दूसरे से मिल भी नहीं पाते थे, लेकिन उन्होंने इसका एक रास्ता निकाल लिया था। वे अंगीठी में एक सिक्का खूब गर्म करते थे, फिर उसे खिड़की में लगी बर्फ पर चिपका देते थे। इससे बर्फ पिघल-पिघलकर वहां एक सुराख बन जाता था और इसी सुराख में से झांककर दोनों एक-दूसरे को देख लिया करते थे।

किटी एक दिन उसी प्रकार बनाए गए सुराख से उस पार देख रहा था। उस समय पौधों की पेटियों पर बर्फ गिर रही थी, तभी उसकी नजर बर्फ के एक गोले पर पड़ी। वह उस गोले की ओर देखता रहा। गोले का आकार बढ़ता जा रहा था।
देखते-ही-देखते वह बर्फ का गोला, बर्फ का एक बहुत बड़ा ढेर बन गया। किटी देखता रहा, तभी उसे वर्फ के उस ढेर पर एक सुंदर राजकुमारी बैठी नजर आई। वह सितारों का मुकुट पहने हुए थी। वह बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी कि उसकी दादी कहानियों में सुनाया करती थीं। कहानियों में बर्फ की परी ठीक ऐसी ही होती थी।
किटी उसकी ओर देखता ही रह गया। फिर उसने देखा कि बर्फ की परी उसे अपने पास बुलाने का संकेत कर रही थी। किटी डर गया। वह डरकर खिड़की से नीचे उतर आया, तभी अचानक एक सफेद चिड़िया उस खिड़की के पास से होकर उड़ी और बर्फ की परी गायब हो गई।

इस घटना को कई दिन बीत गए थे।
एक दिन किटी गेर्डा के पास बैठा हुआ एक किताब के पन्ने पलट रहा था। वे दोनों उस किताब में बने जंगली जानवरों तथा पक्षियों के सुंदर-सुंदर चित्र देख रहे थे। उन्हें इस तरह चित्रों को देखना बड़ा अच्छा लग रहा था कि तभी कहीं दूर से गिरजाघर के घंटे ने बारह बजाए। उसी समय किटी की आंख में कोई चीज गिर गई। वह आंख मलने लगा। उसके सीने में दर्द भी होने लगा।
उसने गेर्डा को बताया—‘‘मेरी आंख में कुछ गिर गया है। मेरे सीने में दर्द भी हो रहा है।’’ गेर्डा ने उसकी आँखों में खूब गौर से देखा ताकि उसकी आंख में जो भी गिरा हो, उसे निकाल सके, लेकिन गेर्डा को उसकी आंखों में कुछ भी नजर नहीं आया। वे फिर से उस किताब के पन्ने पलटते हुए उसके चित्र देखने में व्यस्त हो गए।

अचानक गेर्डा किसी बात पर हंसने लगी। सुंदर तो वह थी ही, लेकिन हंसते हुए तो वह और भी सुंदर लग रही थी, लेकिन किटी ने उसकी ओर देखते हुए कहा—‘‘ओह गेर्डा, तुम्हारा चेहरा कितना भद्दा लगता है और तुम रो क्यों रही हो ?’’
गेर्डा ने हैरत से उसकी ओर देखा !
‘‘मैं रो कहां रही हूं ?’’ उसने हैरत से कहा तो किटी उससे झगड़ने लगा।
फिर किटी ने कहा—‘‘देखो ये गुलाब के पौधे कितने भद्दे लग रहे हैं।’’ ऐसा कहकर उसने पौधों की पेटी को ठोकर मारी और पौधों पर लगे खूबसूरत फूलों को नोचने लगा।
‘‘ओह किटी !’’ गेर्डा चिल्लाई—‘‘यह क्या हो रहा है ? यह तुम क्या कर रहे हो ? देखो यह फूल कितने सुंदर लग रहे थे। तुमने इन्हें नोंच डाला।’’

लेकिन इसके बाद भी वह फूलों को नोचता रहा। गेर्डा ने उसे रोकने की कोशिश की तो किटी ने उसे धक्का मारकर गिरा दिया और वहां से भाग गया।
गेर्डा आश्चर्यचकित रह गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि किटी को आखिर क्या हो गया है। वह ऐसा तो नहीं था। अचानक ही वह इतना कैसे बदल गया।
लेकिन गेर्डा यह नहीं जानती थी कि किटी के साथ क्या घटना घट चुकी थी और यह तो वह सोच भी नहीं सकती थी कि यह सब उस चीज का प्रभाव था जो उसकी आंख में गिर गई थी।
आखिर वह क्या चीज थी ? और उसके प्रभाव से किटी इस कदर कैसे बदल गया ?

इस कहानी को आगे बढ़ाने से पहले उसी रहस्यमय चीज के बारे में जानना ज्यादा ठीक रहेगा, क्योंकि यह कहानी तभी समझ में आ सकती है, लेकिन इसके पीछे भी एक कहानी है।
बहुत पुरानी बात है—उतनी ही पुरानी, जितनी गेर्डा और किटी की कहानी।
एक जादूगर था। वह जादूगर बड़ा दुष्ट था, पूरा राक्षस था। लोगों को सताने में उसे बड़ा मजा आता था। दूसरों को तंग करने का कोई भी मौका वह हाथ से जाने नहीं देता था।

एक बार उसने एक दर्पण तैयार किया। उस दुष्ट जादूगर का वह दर्पण भी जादुई था। उसमें सब कुछ उल्टा नजर आता था। यदि कोई सुंदर व्यक्ति उस दर्पण में देखता तो उसमें वह बहुत ही भद्दा और बदसूरत नजर आता। किसी के हाथ-पैर टेढ़े-मेढ़े तो किसी की तोंद बाहर को अजीब ढंग से निकली हुई। किसी का सिर बहुत बड़ा और भारी नजर आता तो किसी की नाक टेढ़ी-मेढ़ी। हां, कुरूप आदमी उसमें बहुत सुंदर नजर आता था।

हर बुरी चीज उस दर्पण में सुंदर दिखाई पड़ती थी और हर अच्छी चीज बुरी नजर आती थी। जब लोग उस दर्पण को देखते और उन्हें अपनी शक्लें बिगड़ी हुई नजर आतीं, तो दुष्ट जादूगर को बड़ा आनन्द आता था। वह खूब हंसता था।
उस दुष्ट जादूगर ने अपने बहुत सारे शिष्य बना लिए थे। उसकी वह शिष्य-मंडली भी उसी की तरह दुष्ट और राक्षस थी। वे लोग उस जादुई दर्पण को लेकर घूमते और लोगों को उनकी शक्लें दिखाया करते थे। जब उनकी शक्लें बिगड़ी नजर आतीं तो वे उन्हें चिढ़ाकर खूब मजे लिया करते थे।

एक बार उस दुष्ट जादूगर की शिष्य-मंडली को एक नई शरारत सूझी। उन्होंने सुन रखा था कि स्वर्ग के देवता तथा अप्सराएं बहुत सुंदर होते हैं और उन्हें अपनी सुंदरता पर बड़ा घमंड है। जादूगर की शिष्य-मंडली ने सोचा कि क्यों न देवताओं व अप्सराओं को इसी जादुई दर्पण में उनकी शक्लें दिखाई जाएं, ताकि अपनी बदली हुई शक्लें देखकर उनका घमंड चूर हो जाए और वे उनका मजाक उड़ाएं तथा उन्हें चिढ़ाकर आनन्द लें।

यही सोचकर वे उस दर्पण को लेकर जादू के जोर से स्वर्ग पहुंचने के इरादे से आसमान में उड़ने लगे। ऊंचे और ऊंचे वे उड़ते ही चले गए। जब वे बहुत ऊंचाई पर पहुंच गए। इतनी उंचाई पर की पृथ्वी उनसे बहुत दूर रह गई, तो तभी अचानक जादू का वह दर्पण उनके हाथ से छूट गया। उनके हाथ से छूटते ही वह दर्पण टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया।
उसके कुछ बड़े-बड़े टुकड़े वापस धरती पर आकर गिरे। उन्हें कुछ लोगों ने उठाकर चश्में बनवा लिए। अब तो उन्हें सब कुछ उल्टा-पुल्टा नजर आने लगा।

दर्पण के शेष टुकड़े और छोटे टुकड़ों में टूट गए। छोटे टुकड़े उनसे भी छोटे टुकड़ों में। यहां तक कि पूरा दर्पण बहुत ही महीन-महीन कणों में टूटकर धूल के कणों में मिलकर पूरे वातावरण में फैल गया।
वे कण कुछ लोगों की आंखों में गिर गए। उन्हीं के कारण लोगों को हर अच्छी चीज बुरी नजर आने लगी। उसके कुछ कण धूल के साथ मिलकर कुछ लोगों के मुंह से होते हुए उनके दिल पर जाकर बैठ गए।
वे सभी लोग पत्थर-दिल हो गए। उनके दिलों से दया, ममता, प्यार सब कुछ गायब हो गया। वे अत्यंत क्रूर और राक्षस की तरह हो गए।
किटी के साथ भी यही हुआ।

उसी जादुई दर्पण का एक कण उसकी आंख में गिरा। इसी तरह कुछ कण उसके दिल में भी चले गए। उसी के प्रभाव से वह एक अच्छे लड़के से बुरा, बहुत बुरा लड़का हो गया। वह झगड़ालू हो गया, वह हर किसी से ही बात-बात पर झगड़ने लगता था।
अपनी दादी को वह बहुत तंग करने लगा था। वह किताबें फाड़ देता था। फूल तोड़कर उन्हें नष्ट कर डालता था। पड़ोसियों को तरह-तरह से परेशान करने लगा था। गेर्डा को तो वह इतना तंग करता कि वह रो पड़ती थी, लेकिन बेचारी गेर्डा क्या जानती थी कि किटी उस जादुई दर्पण के कारण इतना बुरा लड़का हो गया था। वह तो बहुत अच्छा लड़का था।
किटी का मेल-जोल भी अब मोहल्ले के शरारती लड़कों के साथ हो गया था। वह उन्हीं के साथ खेलता-कूदता रहता था। उसे अपनी पढ़ाई-लिखाई की जरा भी परवाह नहीं रहती थी।

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