ईमानदारी को राष्ट्रीयचरित्र बनाने का लक्ष्य

कोई दायित्व सौंपते समय यदि कार्यकर्ता की सत्यनिष्ठा का स्तर भी देखा जाने लगे तो ईमानदारी को राष्ट्रीय चरित्र का हिस्सा बनते देर नहीं लगेगी। आज के दौर में सिर्फ भाजपा ही इस काम को बखूबी अंजाम दे सकती है। क्योंकि भाजपा के अधिकतर कार्यकर्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया में तप कर आते हैं।

2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDA) को एक बार फिर स्पष्ट जनादेश देकर जनता-जनार्दन ने अपना काम कर दिया है। दुबारा स्पष्ट जनादेश देने का अर्थ हुआ कि भारत की जनता ने भाजपा को भारत के स्वाभाविक शासकीय दल का दर्जा दे दिया है, स्वीकार कर लिया है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की बारी है कि वह जनता-जनार्दन की आशाओं, आकांक्षाओं के अनुरूप द्रुत गति से परिणाम दें।

25 मई को संसद के केंद्रीय कक्ष में एनडीए के नवनिर्वाचित सांसदों, मुख्यमंत्रियों एवं प्रमुख नेताओं के समक्ष अपने प्रथम सम्बोधन में स्वयं के लिए गए 3 संकल्प घोषित कर उन्होंने सफलता प्राप्त करने का रास्ता भी दिखा दिया है। वे तीन संकल्प हैं- 1. बद- इरादे से, बद-नियति से कुछ नहीं करूंगा 2. मैं अपने स्वयं के लिए कुछ नहीं करूंगा 3. समय का पल-पल और शरीर का कण-कण देश के लिए समर्पित कर दूंगा। वास्तव में देखा जाए तो 2001 में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से आज तक उनका सार्वजनिक जीवन इन तीनों संकल्पों का साक्षी रहा है। और परिणामकारी भी रहा है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज देश और दुनिया के दिलों-दिमाग पर छाये हुए हैं।

आगे देखना होगा कि भारत जैसे विशाल, विविधतापूर्ण और अनेक प्रकार की मुखर विभाजित मानसिकता से ग्रस्त देश को नया भारत, समृद्ध और शक्तिशाली भारत, हर क्षेत्र में दुनिया से आगे बढ़ता भारत बनाने के लिए वे किन उपकरणों का सहारा लेंगे, कौन से नए उपकरण गढ़ेंगे? सामान्य रूप से देखा जाए तो दो उपकरण सरकार और संगठन उनके पास हैं ही। चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर बात को, समस्या को, रुकावट को नए ढंग से देखने, सोचने, समझने के लिए जाने जाते हैं, भविष्य बताएगा कि वे अपना संकल्पित नया भारत बनाने के लक्ष्य को जल्द से जल्द पाने के लिए सरकार और संगठन दोनों का निवेश और दोनों में निवेश कैसे करते हैं?

इन प्रश्नों का उत्तर हम प्रधानमंत्री मोदी के वक्तव्यों में ही ढूंढने की कोशिश करेंगे। अनेक अवसरों पर  प्रधानमंत्री मोदी ने नौकरशाही की प्रवृति और कार्य-संस्कृति को बहुत ही सुंदर शब्दों  मेरा क्या? तो मुझे क्या? के रूप में अभिव्यक्ति दी है। इसी प्रकार देश के सामान्य नागरिक के बारे में वे कहते हैं कि वह ईमानदारी का परिश्रमी जीवन जीना चाहता है। तो यहां सौ टके का प्रश्न खड़ा हो जाता है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी सामान्य नागरिक को देश भर में ईमानदारी का वातावरण दे सकते हैं? हमें लगता है कि यही वह मूल कारण है जिसके अभाव में भारत को आज ये दुर्दिन देखने पड़ रहे हैं। एक बार देश में अपना काम ईमानदारी से करने की वृत्ति व कार्य-संस्कृति पनप जाए, रम जाए तो फिर ये देश देखते-देखते ही विश्व का सिरमौर देश बन जाएगा।

प्रधानमंत्री पूरी शिद्दत से देश में ईमानदारी को प्रोत्साहित करने में जुटे हैं। फिर वह चाहे अनावश्यक कानून खत्म करने की बात हो या बेईमानी पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी नए कानून बनाने हों। नोटबंदी हो या जीएसटी लागू करनी हो या फिर समुचित टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए पारदर्शी प्रशासन व्यवस्था खड़ी करनी हो। परिणाम दिखने भी शुरू हो गए हैं। परंतु ये सब प्रयास सरकारी स्तर पर ही चल रहे हैं। हमें लगता है कि कम समय में अधिक और स्थायी परिणाम लाने के लिए ईमानदारी को राष्ट्रीय चरित्र में शामिल करना ही होगा जो प्रशासन को चाक-चौबंद बनाने मात्र से सम्भव नहीं हो सकता।

ईमानदारी को राष्ट्रीय चरित्र बनाने के लिए देश के सामान्य नागरिक को अपने व्यवहार में, स्वभाव में ईमानदारी को अपनाना होगा, दर्शाना भी होगा। यही वह क्षेत्र है जहां संगठन और कार्यकर्ता महती भूमिका निभा सकते हैं। आरटीआई से मिली जानकारी से सर्वविदित है कि नरेंद्र मोदी रसोई खर्च सहित अपना व्यक्तिगत खर्च स्वयं अपने वेतन से वहन करते हैं। ज्ञात नहीं कि मोदी सरकार के कितने केंद्रीय मंत्री, भाजपा की राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री एवं मंत्री अपने सर्वाधिक लोकप्रिय नेता का इस मामले में अनुसरण करते हैं। अब समय आ गया है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस दिशा में कारगर प्रयास करें।

2019 के चुनाव में परिवारवाद के घातक परिणामों को राजनीतिक विमर्श में लाकर और पार्टी में उस पर प्रभावी अंकुश लगाने को प्राथमिकता देकर भाजपा ने इस दिशा में उल्लेखनीय काम किया है। क्योंकि परिवारवाद में किसी भी राजनेता को भ्रष्ट बनाने की ताकत अंतर्निहित होती है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले राजनीति से परिवारवाद समाप्त करने की बात सोचना भी गुनाह बन गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी लाग-लपेट स्पष्ट कहा है कि राजनीति का अभीष्ट केवल और केवल विशुद्ध जनसेवा है, अन्य कुछ नहीं। इस बार भाजपा ने उड़ीसा के बालासोर संसदीय क्षेत्र से एक ऐसे शख्स को न केवल जिताकर लोकसभा में भेजा है वरन उसे मंत्रिपरिषद में भी स्थान दिया है जिसके पास विशुद्ध जन सेवा के अलावा सम्पत्ति के नाम पर रहने को केवल एक झोपड़ी और चलने को एक साइकिल मात्र है। ईमानदारी को राष्ट्रीय चरित्र बनाने की दिशा में यह एक अच्छी शुरुआत है। 

दूसरा पहलू है कि ईमानदारी को राष्ट्रीय चरित्र बनाने में भाजपा संगठन की भी कुछ भूमिका हो सकती है क्या? चूंकि भाजपा साल में 365 दिन काम करने वाली पार्टी है, इस नाते भाजपा के पदाधिकारी गण व सार्वजनिक जीवन में अन्य कोई जिम्मेदारी निभाने वाले कार्यकर्ता समाज में अपने व्यवहार व आचरण से ईमानदारी को राष्ट्रीय चरित्र बनाने की दिशा में समाज के बीच उपयुक्त माहौल बनाने में सहायक हो सकते हैं। बशर्ते पार्टी में पद और सरकार में दायित्व देने के लिए कार्यकर्ता का चयन करते समय कार्यकर्ता के अन्यान्य गुणों पर विचार करने के साथ-साथ यदि कार्यकर्ता की सत्यनिष्ठा का स्तर भी देखा जाने लगे तो ईमानदारी को राष्ट्रीय चरित्र का हिस्सा बनते देर नहीं लगेगी। आज के दौर में सिर्फ भाजपा ही इस काम को बखूबी अंजाम दे सकती है। क्योंकि भाजपा के अधिकतर कार्यकर्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया में तप कर आते हैं।

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