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समझदार ऊंट

समझदार ऊंट

by हिंदी विवेक
in कहानी
1

एक अरब तपते हुए रेगिस्तान में यात्रा कर रहा था। साथ में था उसका ऊंट और ऊंट पर लदा था ढेर सारा सामान। ऊंट और अरब दोनों ही पसीने से तर बतर थे। गरमी से थक कर अरब ने फैसला किया कि अब वह कहीं आराम करेगा। इसलिए यात्रा बीच में ही रूक गई। ऊंट की पीठ से अपना तंबू उतारकर अरब ने एक जगह गाढ़ दिया और उसके अंदर जाकर सुस्ताने लगा।

ऊंट भी छाया चाहता था मगर अरब ने डपटकर उसे धूप में ही खड़े रहने का हुक्म सुना दिया। अरब ने तंबू में दो तीन घंटे तक आराम किया। जब सूरज थोड़ा सा ढल गया और उमस कम हो गई, तब अरब ने भोजन किया और ऊंट पर सवार होकर यात्रा के लिए चल पड़ा। ऊंट बेचारा मन मसोसकर रह गया। उसे गुस्स तो बहुत आ रहा था अपने निर्दयी मालिक पर।

रात हो गई। मौसम ठण्डा होने लगा था। रेगिस्तान में दिन जितने गरम होते हैं, रातें उतनी ही ठण्डी होती हैं। आधी रात होते होते अरब के दांत ठंड से किटकिटाने लगे तो उसने फिर ऊंट को रोका और उसकी पीठ से तंबू उतराकर रेत में ही लगाया तथा उसके अंदर घुसकर आराम करने का विचार किया।

इस बार ऊंट पहले से ही तैयार था। उसने कहा, ”मालिक, मुझे भी ठंड लग रही है।“

”तो….?“ अरब ने घूरकर उसकी ओर देखा और टैंट में घुस गया। ऊंट बार बार तंबू में सिर घुसेड़कर पूछता, ”मालिक मैं भी अंदर आ जाऊं….?“

अरब ने सोचा कि ऐसे तो यह बेहूदा ऊंट मुझे सोने ही नहीं देगा। इसलिए उसने कहा, ”ठीक है, तुम भी अपना सिर तंबू के अंदर कर लो।“ ऊंट खुश हो गया। वह मन ही मन मुस्करा रहा था।

कुछ ही समय गुजरा था कि ऊंट ने फिर कहा, ”वाह मालिक, मजा आ गया। अब मेरे सिर को ठंड नहीं लग रही है। आप बुरा न मानें तो अपनी अगली टांगें भी तंबू के अंदर कर लूं।“

अरब ने सोचा इसमें बुराई क्या है? उसने अपने पैर सिकोड़ लिए और ऊंट ने गरदन और अगली टांगें भी टैंट में कर लीं।

अरब की आंखें झपकी ही थी कि ऊंट जोर जोर से कराहने लगा। अरब ने पूछा, ”अब क्या हुआ?“

ऊंट बोला, ”ऐसे तो मैं बीमार हो जाऊंगा मालिक! आधा शरीर गरम और आधा ठंडा हो रहा है। देख लीजिए, अगर मैं बीमार हो गया तो आपको भी यात्रा बीच में ही छोड़नी पड़ेगी।“

अरब बेचारा सोच में पड़ गया। फिर बोला, ”तो क्या करूं?“

”करें क्या मालिक? मैं अपना बाकी शरीर भी अंदर कर लेता हूं।“ ऊंट बोला।

”नहीं, नहीं! इस तंबू में दो की जगह नहीं है।“

”हां, यह बात तो है मालिक।“ ऊंट बोला, ”ऐसा कीजिए, आप बाहर निकल जाइए। मैं अंदर लेट जाता हूं।“ यह कहकर ऊंट तंबू में घुस गया और अरब को सारी रात रेगिस्तान की ठंड में गुजरानी पड़ी।

इस तरह समझदार ऊंट ने अपना बदला चुकाकर सारा हिसाब किताब बराबर कर लिया।

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Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywriting

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Comments 1

  1. Debobrata Sunil Sen says:
    6 years ago

    ये आज हमारा हालात है ,,, भगवान ने सब को अपना जगा दिया है हम चहके भी बदल नहीं सकते,,,, ,,तम्बू उट के लिए नहीं इंसान के लिए बना है,,, ,,, आज रोहिंगा समाज जितना भी तकलीफ मै है ये उनके लिए ही हुआ है उनके साथ ,,,, अगर दिन की तरह रात मै ,, मयानमर ने जो किया हमें भी ओहि करना है ,,,, नहीं तो हमे अपने ही घर से निकाल ना पड़ेगा ,,,,,,,,,

    Reply

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