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मैं स्वतंत्र भारत बोल रहा हूं

मैं स्वतंत्र भारत बोल रहा हूं

by pallavi anwekar
in अगस्त २०१९, विशेष
1

“जिस स्वतंत्रता ने हमें अधिकार दिए हैं उसी स्वतंत्रता ने हमें दायित्व भी दिए हैं। हमारा पहला दायित्व है कि हम स्वयं को मानसिक गुलामी से स्वतंत्र करें। सम्प्रदाय, जाति, पंथ से परे होकर संगठित हों। अपने इतिहास, अपनी परंपरा, अपने महापुरुषों पर गर्व करना सीखें और अपनी नई पीढ़ी को भी सिखाए।”

नमस्कार, मैं वही हूं …आपका स्वतंत्र भारत, जिसे 72 वर्षों पूर्व कई लोगों ने अपनी प्राणों की आहूतियां देकर स्वतंत्र कराया था। स्वतंत्र कराया था अंग्रेजों से, अंग्रेजी राज से, अंग्रेजी शासन से। स्वतंत्रता के साथ मुझे उपहार स्वरूप विभाजन भी मिला था। विभाजन जमीनों का भी हुआ था और मनों का भी। मनुष्य के शरीर के अंग जब कट जाते हैं तो वे कटे हुए अंग उन्हें दोबारा कभी परेशान नहीं करते, क्योंकि शरीर से कटने के बाद उनका कोई अस्तित्व नहीं होता। परंतु विभाजन के बाद मुझ से कटे हुए अंगों की न केवल टीस मेरे मन में अभी तक है, बल्किमैं आज भी उन कटे हुए अंगों के आघातों का दर्द सहन कर रहा हूं, क्योंकि मेरे शरीर से कटने के बाद आज भी उनका अस्तित्व कायम है।

स्वतंत्रता के 72 वर्षों के बाद जब मैं आत्मावलोकन करता हूं तो मुझे कई सारी सकारात्मक और नकारात्मक बातें दिखाई देती हैं, जिनकी मैं आज आपके साथ चर्चा करना चाहता हूं।

मेरी स्वतंत्रता के साथ ही समाज में कई अन्य स्वतंत्रताओं ने भी जन्म लिया। उदाहरणार्थ- व्यक्ति स्वतंत्रता, सामाजिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता इत्यादि। मैं इन सभी स्वतंत्रताओं का पूर्ण समर्थन करता हूं। परंतु इन स्वतंत्रताओं की अपेक्षा रखने वाले आप सभी से मैं कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूं। आप स्वतंत्रता को किस दृष्टिकोण से देखते हैं? क्या आपको लगता है कि स्वतंत्रता केवल अधिकार नहीं कर्तव्य भी है? क्या आपको लगता है कि आपको मिली हुई स्वतंत्रता का उपयोग आप सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों में कर रहे हैं?

क्या आप स्वतंत्रता, स्वच्छंदता और उच्छृंखलता में अंतर जानते हैं? इन प्रश्नों के उत्तर देने के लिए निश्चित रूप से मेरे साथ-साथ आपको भी आत्मावलोकन करना चाहिए। आत्मावलोकन करने के लिए पहले आप एक व्यक्ति के रूप में सोचें और फिर समाज के रूप में, क्योंकि व्यक्तियों से मिल कर ही समाज बनता है।

आपको स्वतंत्रता मिली है देश भर में कहीं भी आने-जाने की, घूमने-फिरने की, पर्यटन स्थलों पर जाने की, ऐतिहासिक इमारतों को देखने की। आप वहां जाते भी हैं, परंतु प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने की जगह आप कचरे के अंबार लगा देते हैं। वनों में विभिन्न पेड़-पौधों को देखने, उनके गुण दोषों को जानने की जगह उन पर अपना नाम कुरेदते रहते हैं। पशु-पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को देखने और सहजीवन का आनंद लेने की जगह उनका शिकार करने लगते हैं। इमारतों, किलों, मंदिरों को देखते समय उनके इतिहास और वास्तुकला को जानने की जगह उनका प्लास्टिक की खाली बोतलों और पान-गुटके की पीक से सौंदर्यीकरण कर देते हैं। क्या इसीलिए आपको घूमने-फिरने की स्वतंत्रता मिली है?

आपको स्वतंत्रता मिली है अभिव्यक्त होने की, अपनी बात कहने की, अपनी बात उठाने की। अगर कहीं किसी महिला पर अत्याचार हो रहा है, समाज के किसी वर्ग पर अन्याय हो रहा है, कहीं कोई गलत कार्य हो रहा है तो आवाज उठाना लाजमी है। परंतु आप आवाज उठाते हैं आतंकवादियों के समर्थन में? आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते हैं नक्सलवाद के समर्थन में? आप हस्ताक्षर अभियान चलाते हैं ऐसे लोगों के विरुद्ध जो दोषियों को सजा दिलवाते हैं? क्या इसलिए आपको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है?

स्वतंत्र भारत का हर नागरिक अपनी पसंद का पेशा चुन सकता है। वह डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, शिक्षक, व्यापारी, उद्योगपति, राजनेता चाहे जो बन सकता है और बन भी रहा है। परंतु बनने के बाद क्या कर रहा है? डॉक्टर इलाज के नाम पर लाखों के रुपयों के बिल फाड़ रहे हैं। इंजीनियर ऐसी इमारतें और पुल बना रहे हैं जिनकी आयु कुछ साल ही होती है। सड़कों के हाल तो और भी खराब होते हैं। एक बारिश के बाद ही इनमें जो ग- े होते हैं वे किसी दुर्घटना को सीधे आमंत्रण होते हैं। वकील अपनी दलीलें आतंकवादियों और अपराधियों के पक्ष में रख रहे हैं। उनके लिए रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवा रहे हैं। शिक्षक, जिनके हाथ में नई पीढ़ी का भविष्य हैं वे अपनी विद्या को पैसों से तौल रहे हैं। व्यापारी और उद्योगपति व्यापार में मुनाफा कमाने के लिए गलत तरीके अपना रहे हैं। राजनेताओं के विषय में मैं क्या कहूं। जिनके कंधों पर मुझे संभालने का दायित्व था वे लोग अपनी चिंता में इतने मशगूल हो गए हैं कि लगने लगा है उन्हें मेरी चिंता ही नहीं है। क्या इसके लिए ही सभी को अपनी पसंद का पेशा चुनने की स्वतंत्रता मिली है?

स्वतंत्रता की मांग आज सबसे अधिक युवा वर्ग उठा रहा है। परंतु आज का युवा ही सबसे अधिक गुलाम दिखाई दे रहा है। एक तरफ वो मोबाइल, सोशल मीडिया, मोबाइल गेम आदि का गुलाम दिख रहा है और दूसरी ओर कम उम्र में ही नशे का भी गुलाम दिखाई दे रहा है। अगर वह खुद को मोबाइल और नशे का गुलाम बनाना चाहता है, तो क्यों चाहिए उसे स्वतंत्रता?

आपको अपना मत देकर सरकार बनाने की स्वतंत्रता मिली है। परंतु स्वतंत्रता के बाद से आज तक कभी भी मतों का प्रतिशत औसत 70% से अधिक नहीं गया। कई जगहों पर तो न्यूनतम भी रहा। मतदान करके देश के लिए और अपने लिए एक सक्षम नेतृत्व खड़ा करने की जिम्मेदारी आप पर होती है, परंतु मुझे बहुत दुख होता है जब आप कुछ रुपयों, कपड़ों और शराब जैसी वस्तुओं के लिए अपना कीमती वोट बेच देते हैं। क्या इसलिए आपको अपनी इच्छा के अनुरूप मतदान करने की स्वतंत्रता चाहिए?

आपकी ही तरह मुझे भी ईर्ष्या होती है जब मैं अपने साथ स्वतंत्र हुए देशों को प्रगति करते हुए देखता हूं। प्राकृतिक संसाधनों के अभाव में भी सम्पन्न होते हुए देखता हूं। रेगिस्तान को नंदनवन बनते हुए देखता हूं। दांतों तले उंगली दबाने के लिए विवश करने वाले आविष्कार करते हुए देखता हूं। मुझे लगता है स्वतंत्रता के 72 सालों के बाद भी मेरा विकास इन देशों की तरह क्यों नहीं हो पाया? क्यों आज भी मेरे निवासियों को पिछड़ा कहा जाता है? वैश्विक महासत्ता बनने की सभी क्षमताएं होने के बावजूद भी क्यों मैं अभी भी विकासशील देशों की श्रेणी में खड़ा हूं?

फिर मैं जब अपनी आदत के अनुसार आत्मावलोकन करता हूं तो धीरे-धीरे मुझे मेरे ही प्रश्नों के उत्तर मिलने लगते हैं। मुझे समझ में आने लगता है कि मेरे निवासी 72 वर्षों पूर्व केवल कागजों पर ही स्वतंत्र हुए। उनकी मानसिकता अभी भी वही गुलामी वाली ही है। उनको अभी भी यही लगता है कि कोई बाहर से आकर उनके लिए सब ठीक कर देगा या दिल्ली में बैठ कर सरकार चलाने वाले लोग ही उनका भला करने का ठेका लेकर बैठे हैं। ये लोग भूल गए हैं कि जिस स्वतंत्रता ने उन्हें अधिकार दिए हैं उसने उन्हें दायित्व भी दिए हैं। उनका दायित्व है कि वे सबसे पहले स्वयं को मानसिक गुलामी से स्वतंत्र करें। सम्प्रदाय, जाति, पंथ के कारण विभाजित समाज संगठित होना सीखे। अपने इतिहास, अपनी परंपरा, अपने महापुरुषों पर गर्व करना सीखे और अपनी भावी पीढ़ी को भी सिखाए।

आप लोगों में से कुछ मुझे मातृभूमि कहते हैं, कुछ भारत माता और कुछ राष्ट्र पुरुष। सच कहूं तो इनमें से किसी भी शब्द या भावना से मुझे कोई परहेज नहीं है। परंतु मुझे देवता की श्रेणी में बिठा कर कृपया अपनी अन्य देवताओं की तरह मेरी केवल पूजा न करें। बल्कि मेरे प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी समझें। आप जिम्मेदार हैं मुझे स्वच्छ रखने के लिए। आप जिम्मेदार हैं मुझे हरा-भरा रखने के लिए। आप जिम्मेदार हैं मेरे संसाधनों का सदुपयोग करके विकास करने के लिए और भावी पीढ़ी के लिए वे संसाधन बचाने के लिए। आप जिम्मेदार हैं मुझ पर हर प्रकार से हो रहे बाहरी आक्रमणों से मेरी रक्षा करने के लिए और इसके लिए आपको सीमा पर बंदूक लेकर लड़ने की आवश्यकता नहीं है, अपने आंख-कान खुले रखकर, चौकन्ना रह कर अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर नजर रख कर भी आप मेरी रक्षा कर सकते हैं। आप जिम्मेदार हैं अपनी आवश्यकता के अनुसार अनुसंधान करने के लिए। आप जिम्मेदार हैं स्वयं को केवल एक बाजार बनने से रोकने के लिए। ध्यान रखिए मेरे पास अर्थात आपके पास वह सबकुछ था और है जो शक्तिसम्पन्न देशों के पास होना जरूरी है और इसलिए ही आज तक मुझ पर कई बार आक्रमण हुए। अब नए समय के आक्रमण भी नए होंगे। इन आक्रमणों से स्वयं को बचाने और उसका जवाब देने के लिए स्वयं को तैयार करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।

अपने 73वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मैं फिर एक बार आप सभी से व्यक्ति और समाज के रूप में आत्मावलोकन करने की आशा करता हूं। मैंने आपकी कई पीढ़ियों को देखा है। कहते हैं मानव की हर नई पीढ़ी पिछली पीढ़ी से प्रगत होती है। निश्चित रूप से आप भी अपनी पुरानी पीढ़ियों से प्रगत हैं, केवल अपने दायित्वबोध से जरा दूर हैं। अपनी स्वतंत्रता को अपने अधिकार के साथ-साथ अपना कर्तव्य समझिए, फिर आपको सम्पन्न और विकसित राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकेगा।

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Tags: hindi vivekhindi vivek magazineindependence dayselectivespecialsubjective

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Comments 1

  1. prof. s. r.agarwal says:
    6 years ago

    each and every letter, word and sentence is perfect in communicating true spirit of the independence and for ones own retrospection. wonderful. one of the rare exposure of inner most thoughts. salutes to the author

    Reply

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