पी चिदम्बरम ही नहीं पूरा परिवार भ्रष्टाचार का आरोपी

कांग्रेस पार्टी जिस तरह पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम की गिरफ्तारी को राजनीतिक रंग देने पर तुली है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। आईएनएक्स मीडिया मामले में कल तक उन्हें अग्रिम जमानत मिल रही थी तो वे गिरफ्तार नहीं हुए। अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनको अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया तो उसके बाद या तो वे स्वयं जांच एजेंसियों के समक्ष चले जाते या फिर जांच एजेंसियां उनको पकड़कर ले जाती। वे स्वयं नहीं गए तो सीबीआई को उनके पास आना पड़ा। गिरफ्तारी में कितनी समस्याएं हुई यह देश के सामने हैं। इसमें राजनीति कहां है ? डॉ.मनमोहन सिंह सरकार में औसत 70 मंत्री थे पूरे दस साल। उनमें कितने पर इस तरह के मामले चल रहे हैं ?

24 पृष्ठ के अपने फैसले में दिल्ली उच्च न्यायानय ने अत्यंत ही कड़ी टिप्पणी की। न्यायालय ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के आईएनएक्स मीडिया केस में वह मुख्य साजिशकर्ता और किंगपिन मालूम पड़ते हैं। न्यायालय ने कहा कि आईएनएक्स मीडिया मामला मनी लॉन्ड्रिंग का एक बेहतरीन उदाहरण है और उसकी प्रथम दृष्टया राय है कि मामले में प्रभावी जांच के लिए उनसे हिरासत में पूछताछ की जरूरत है। उन्होंने यह भी गौर किया कि जब कांग्रेस नेता को अदालत से राहत मिली हुई थी तो उन्होंने पूछताछ में जांच एजेंसियों को स्पष्ट जवाब नहीं दिया। न्यायालय में बहस के दौरान सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), दोनों ने ही चिदंबरम की अर्जी का इस आधार पर विरोध किया था कि उनसे हिरासत में पूछताछ जरूरी है क्योंकि वह सवालों से बच रहे हैं। ध्यान रखिए, आइएनएक्स मीडिया एक मामला है। चिदम्बरम एवं उनके परिवार पर अब कई मामले हो गए हैं।

पहले आईएनएक्स मामले को देखें। पीटर और इंद्राणी मुखर्जी की स्वामित्व वाली मीडिया कंपनी आईएनएक्स को 2007 में विदेश से 305 करोड़ रुपये मिलना था। इंद्राणी मुखर्जी ने 17 फरवरी 2018 को इकबालिया बयान में कार्ति को घूस देना स्वीकार किया। दोनों ने कहा है कि उन्होंने विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) से क्लियरेंस के बदले तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम के कहने पर उनके बेटे कार्ति को 7 लाख डॉलर (करीब 4.57 करोड़ रुपए) दिए थे। जैसा हम जानते हैं पीटर एवं इन्द्राणी अभी शिना वोरा हत्याकांड में जेल में बद हैं। सीबीआई ने कार्ति को उनके सामने बिठाकर पूछताछ की जिसमें भी इन्द्राणी से साफ कहा कि उन्होंनें उन्हें भुगतान किया। उस बयान में पूरी कहानी दर्ज है। पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने  प्रिवेन्शन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट के विभिन्न प्रावधानों के तहत कार्ति और अन्य पर 15 मई 2017 को मामला दर्ज किया था।

निदेशालय ने जानकारी सीबीआई को दी जिसके आधार पर सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की थी। उन पर आपराधिक साजिश रचने, धोखाधड़ी, रिश्वत लेने और अधिकारियों को अपने प्रभाव में लेने का आरोप है। सीबीआई ने साफ बताया है कि उसे कार्ति के कई कंपनियों से लिंक होने के सबूत मिले हैं। सीबीआई के पास वो ईमेल और इन्वॉइस हैं, जिनसे पता चलता है कि कार्ति की कंपनी एडवांटेज स्ट्रेटेजिक कन्सल्टेंसी प्राइवेट लिमिटेड (एएससीपीएल) को उसी दौरान पैसा दिया गया, जिस दौरान आईएनएक्स मीडिया की मदद की गई। कार्ति पर यह भी आरोप है कि उन्होंने इंद्राणी की कंपनी के खिलाफ कर का एक मामला खत्म कराने के लिए अपने पिता के रुतबे का इस्तेमाल किया। हालांकि आईएनएक्स मामले में दर्ज प्राथमिकी में पी चिदंबरम का नाम नहीं था।

लेकिन उन्होंने 18 मई 2007 की एफआईपीबी की बैठक में आईएनएक्स मीडिया में विदेशी निवेश को मंजूरी दी थी। कार्ति पर ये भी आरोप है कि उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग कानून की कार्रवाई से स्वयं को बचाने के लिए अपने कई बैंक खाते बंद कर दिए और कई खातों को बंद करने की कोशिश की। 28 फरबरी 2018 को सीबीआई ने कार्ति चिदम्बरम को गिरफ्तार किया था। 11 अक्टूबर 2018 को आइएनएक्स मीडिया मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने कार्ति चिदंबरम की संपत्तियों और बैंक जमा को जब्त किया। साफ है कि कार्ति की कंपनी ने गलत तरीके से कंसल्टेंसी के नाम पर घूस लेकर अपने पिता के वित्त मंत्री होने का लाभ उठाते हुए गलत तरीके से विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड की मंजूरी ली। सीबीआई ने एन्फोर्समेंट केस इन्फर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर), दर्ज की जो प्रवर्तन निदेशालय के समतुल्य एक पुलिस प्राथमिकी है। इसमें कार्ति चिदंबरम के साथ-साथ आईएनएक्स मीडिया के निदेशकों पीटर और इंद्राणी का भी नाम है। ईसीआईआर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (पीएमएलए) के तहत दर्ज की गई थी।

दूसरा मामला है एअरसेल-मैक्सिल का। 19 जुलाई 2018 को सीबीआई की ओर से दाखिल आरोप-पत्र में चिदंबरम और उनके बेटे को नामजद किया गया था। जांच एजेन्सियों ने कहा है कि मार्च 2006 में चिदंबरम ने मारीशस की ग्लोबल कम्यूनिकेशन सर्विसेज होल्डिंग्स लिमिटेड को विदेशी निवेश की मंजूरी दी थी। यह मैक्सिस की अनुवांशिक कंपनी है। मामले में 25 अक्टूबर 2018 को पूरक आरोप पत्र दाखिल किया गया। इसमें पी चिदम्बरम को आरोपित नंबर-1 बताया गया है। आरोप पत्र में कहा गया है कि पी चिदंबरम ने वित्त मंत्री रहते हुए गलत तरीके से विदेशी निवेश को मंजूरी दी। उन्हें 600 करोड़ रुपये तक के निवेश की मंजूरी देने का अधिकार था, लेकिन यह सौदा (एयरसेल-मैक्सिस डील) 3500 करोड़ रुपये निवेश का था। प्रवर्तन निदेशालय ने इसी मामले से जुड़े अपने अलग आरोप पत्र में कहा है कि कार्ति चिदम्बरम के पास से सील किए गए उपकरणों में से कई ई-मेल मिले हैं, जिनमें इस सौदे का जिक्र है।

पी चिदंबरम ने एयरसेल-मैक्सिस को विदेशी निवेश के अनुमोदन के लिए आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति को नजरअंदाज कर दिया था। मैक्सिस मलेशिया की एक कंपनी है, जिसका मालिकाना हक एक बड़े व्यवसायी टी आनंद कृष्णन के पास है। एयरसेल को सबसे पहले एक एनआरआइ सी शिवसंकरन (शिवा) ने प्रमोट किया था। वर्ष 2006 में मैक्सिस ने एयरसेल की 74 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली थी। सी शिवसंकरन ने शिकायत दर्ज करते हुए सीबीआई को बताया था कि उन पर मैक्सिस को अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए दबाव बनाया गया था। कार्ति के खिलाफ एयरसेल मैक्सिस के मामले में सीबीआइ ने 2011 और प्रवर्तन निदेशालय ने 2012 में ही प्राथमिकी दर्ज की थी। किंतु उस समय यूपीए सरकार के कारण मामला आगे नहीं बढ़ सका।

तीसरा मामला आयकर विभाग का है। 11 मई 2018 को आयकर विभाग ने चिदंबरम, कार्ति, पत्नी नलिनि और बहू श्रीनिधि के खिलाफ काला धन कानून 2015 जिसे इंपोजिशन ऑफ टैक्स ऐक्ट भी कहते हैं, के तहत चेन्नई के विशेष न्यायालय में चार आरोप पत्र दायर किया। इसमें आरोप लगाया गया कि चिदंबरम एवं उनके परिवार ने अपने आयकर रिटर्न में विदेशी संपत्तियों और निवेश का खुलासा नहीं किया। आयकर विभाग पहले नोटिस जारी करता है। जब जवाब नहीं मिलता तो कानूनी कार्रवाई आरंभ करता है। आरोप पत्र दायर करने का क्रम उसके बाद आता है। चौथे मामले की तो जांच भी शुरु नहीं हुई है। जिस दिन यानी 16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव का परिणाम आ रहा था उन्होंने 80 : 20 स्वर्ण योजना का लाभ  निजी कंपनियों को पहुंचाने का आदेश पारित कर दिया। यह योजना चालू खाते का घाटा कम करने के नाम पर लाई गई थी जिसमें सोना आयात करने वाली कंपनियों के लिए 20 प्रतिशत जेवर के रुप में निर्यात करना आवश्यक था।

अगस्त 2013 में जब यह योजना लाई गई तो इसमें केवल सरकारी कंपनियों को सोने का आयात की इजाजत दी गई थी जबकि चिदम्बरम ने सात निजी कंपनियों को योजना में लाभ देने का आदेश दिया था जिनमें गीतांजलि और फायर स्टार शामिल थीं। यानी मेहुल चौकसी इससे लाभान्वित होने वालों में से है। पांचवें की जांच चल रही है। ईडी ने चिदंबरम को यूपीए के कार्यकाल में हुए विमानन घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया है। मामला अरबों रुपये के विमानन सौदे से एयर इंडिया को हुए वित्तीय घाटे और अंतरराष्ट्रीय विमानन कंपनियों को हवाई स्लॉट के निर्धारण में अनियमितता से जुड़ा हुआ है। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय लौबिस्ट दीपक तलवार को गिरफ्तार कर संपतितियां तक न्यायालय के आदेश से कुर्क कर चुकी है।

वह संप्रग सरकार के कार्यकाल में अमीरात, एयर अरेबिया और कतर एयरवेज जैसी एयरलाइनों को अनुचित लाभ पहुंचाने तथा उनसे अवैध धन पाने के लिए नेताओं और अन्य जनसेवकों तथा नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधिकारियों के साथ लॉबिंग में संलिप्त रहा। इसके द्वारा उसने  इन एयरलाइनों के लिए अनुकूल यातायात अधिकार हासिल किए जिससे सीधी क्षति एअर इंडिया को हुई। यह नागरिक उड्डयन क्षेत्र का बहुत बड़ा भ्रष्टाचार है जिसने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को क्षति पहुंचाई। इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी छानबीन में शेल कंपनियां बनाकर विदेशों में संपत्तियां बनाने की फेरिस्त भी नोट किया है। इस मामले में पिता-पुत्र से पूछताछ शुरु होगी।

चिदम्बरम एवं उनके परिवार पर इतने सारे मामले हवा में तो नहीं बनाए गए हैं। सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय एवं आयकर विभाग के अधिकारियों को चिदम्बरम परिवार की उंची हैसियत का अंदाजा है। उन्हें पता है कि अगर उन्होंने ठोस सबूत के बिना उन पर हाथ डाला तो फिर उनको लेने के देने पड़ेंगे। सभी मामलों का फैसला न्यायालय को ही करना है। इसलिए यह मानने का कोई कारण ही नहीं है कि जांच एजेंसियों ने दुर्भावना से कार्रवाई की है। आम आकलन में भी चिदम्बरम परिवार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग कर वित्तीय भ्रष्टाचार किया जाना साफ दिखाई दे रहा है।

 

Leave a Reply