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छोटे उद्योगों पर मंडराता संकट

छोटे उद्योगों पर मंडराता संकट

by अमरनाथ शर्मा
in अगस्त २०१९, उद्योग, सामाजिक
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इस समय छोटे और मंझोले उद्योग, जिन्हें एमएसएमई कहते हैं, अपने सबसे बुरे दिनों में चल रहे हैं। अगर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो इस क्षेत्र की कई कम्पनियां बंद होंगी। उनमें एनपीए बढ़ेगा। किसानों की तरह इनके  भी आत्महत्या करने के दिन आ जाएंगे।

हिन्दुस्तान की आत्मा उद्योगिक क्षेत्र में छोटे और मंझोले उद्योगों में बसती है, जिसे हम एमएसएमई कहतें हैं। हमारा सबसे बड़ा जीडीपी इसी सेक्टर से आता है। सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला भी यही एमएसएमई सेक्टर ही है।

जो सेक्टर उद्योगों का प्राण है, वही सेक्टर आज सबसे ज्यादा तकलीफ में है। आज वह सबसे ज्यादा नकदी की तरलता की समस्या से ग्रस्त है। उसका अच्छा-खासा चलता हुआ धंधा बंद होने के कगार पर है। जब तक आवक-जावक है तब तक ठीक है। जिसकी भी आवक-जावक अटकती है, वही इकाई कमाई होते हुए भी बंद हो जाती है। किसानों के कर्ज पर तो सबका ध्यान है, पर इन छोटे-छोटे उद्योगों पर हम उतना ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। पूर्व सरकारों ने एवं वर्तमान सरकार ने भी कई योजनाएं बना कर बैंकों को दी हैं, पर निचले स्तर तक कोई भी बैंक उस पैमाने पर काम करने में असफल रहा है।

भी बैंकों का समर्थन न के बराबर है। रिजर्व बैंक का भी राष्ट्रीय बैंक, निजी बैंक, एनबीएफसी, सहकारी बैंक और विदेशी बैंकों से कारोबार करने में भेदभावपूर्ण रवैया लग रहा है। यही एक बड़ा कारण है की देश बड़ी मंदी के दौर से गुजर रहा है।

हमारे प्रधान मंत्री जी ने छोटे उद्योगों के लिए एक मिनट में एक करोड़ तक के कर्ज की योजना इसी एमएसएमई को प्रोत्साहन देने के लिए लागू की थी।

वास्तव में करीब 10 सालों से एक योजना चल रही है, जिसे सीजीटीएसएमई  के नाम से जाना जाता है। पर प्रधानमंत्री जी की घोषणा के बावजूद बैंक यह ॠण या कोई अन्य ॠण भी जिस तत्परता या उत्साह से देना चाहिए वैसा नहीं दे रहे हैं। बैंकों के मन में जैसे एक अघोषित डर बैठ गया है। उनका व्यवहार ऐसा हो गया है मानो सभी कर्ज लेने वाले व्यापारी उनका पैसा डुबो ही देंगे।

एक सबसे बड़ा कुठाराघात किया है सेबी ने, जो शायद सरकार को भी समझ में नहीं आ रहा है। सेबी ने ज्यादातर मिडकैप और स्मालकैप को एएसएम (additional surveillance measure) में डाल दिया है। इसका नतीज़ा यह हुआ कि भारत की अर्थव्यवस्था, जो फरवरी 2018 तक चरम पर थी, आज सबसे निचले स्तर पर आ गई है। वर्ष 17-18 मे एसआईपी के माध्यम से म्यूच्युअल फंड में भारत के इतिहास में सम्भवत: अधिकतम पैसा आया, जिसके कारण मिडकैप और स्मालकैप में पैसा आया। निवेशक ने भी कमाया और व्यापार में भी पैसा आया। मगर अचानक सेबी के द्वारा लिए गए एक एएसएम के कदम ने फरवरी 2018 से लेकर आज तक कंपनियों की बाजार पूंजी कई लाख करोड़ तक कम हो गई। अर्थात लोगों की शुद्ध सम्पदा (नेटवर्थ) कई लाख करोड़ से कम हो गई।

आज किसी मिडकैप और स्मालकैप शेयर खरीदना हो तो 100% भुगतानपहले दलाल को करना होता है; जबकि पहले करीब 25% भुगतान में ही काम हो जाता था। और, अगर मिडकैप और स्मालकैप शेयर बेचना है तो पहले सारे शेयर दलाल के खाते में भेजने पड़ते हैं।

सेबी के इस एक कदम का चौतरफा असर हुआ और बाजार से पूरी तरलता गायब हो गई।

कुछ कम्पनियों के लिए एएसएम ठीक था पर सेबी ने गेहूं के साथ में घुन को भी पीस डाला। मेरिट वाली कम्पनियां भी अपने सबसे निचले स्तर पर आ गईं।

निफ्टी वीेकली ले आए। बैंक निफ्टी ले आए। अब केवल सटोरिए कमा रहे हैं और आम जनता खो रही है। असर यह हुआ कि सारा पैसा बाजार से गायब हो गया। जनता त्राहि-त्राहि करने लगी। उसका सबसे बड़ा असर एमएसएमई पर ही आया। न ही सरकार को कोई फायदा हुआ, न ही जनता को। केवल सटोरियों ने पैसे बनाए।

तीसरा बड़ा कारण सीबिल और क्रिसिल हैं। आज से 5 या 10 साल पहले के व्यवहार के कारण सिबिल में अगर कुछ गड़बड़ है तो बैंक उसे भी रिकॉर्ड में रखती है। कई बार बैक भी जब गड़बड़ होता है तो सिबिल रिपोर्ट करती है परंतु ठीक होने पर नहीं करती। छोटे व्यापारियों को इसकी पूर्ण जानकारी न होने के कारण वे मार खाते हैं। और, एमएसएमई के लिए क्रिसिल तो समझ के बाहर की बात है।

आज एमएसएमई में बैंक उनके कर्ज को केवल पुनर्गठित (रीस्ट्रक्चर) कर दें तो 90% एमएसएमई की समस्याओं का निवारण हो जाएगा और उनका ज्यादातर पैसा नहीं डूबेगा। परंतु अभी जिस तरह से बैंक एमएसएमई से व्यवहार कर रहे हैं, उससे उनके डूबने की संभावना ज्यादा है।

एक तरफ तो हम कई कानूनों को आसान बना रहे हैं। दूसरी तरफ कम्पनी कानून में नए-नए परिपत्रों के माध्यम से एमएसएमई कम्पनियों पर कुठाराघात कर रहे हैं।

कोई माने या ना माने लेकिन इस समय एमएसएमई क्षेत्र अपने सबसे बुरे दिनों में चल रहा है। अगर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में एमएसएमई क्षेत्र की कई कम्पनियां बंद होंगी। वास्तव में यह शुरू हो चुका है। एमएसएमई में एनपीए बढ़ेगा। किसानों की तरह इनके  भी आत्महत्या करने के दिन आ जाएंगे। ऐसी कई बातें है जिसके कारण आज एमएसएमई में व्यापक मंदी का दौर दिखाई दे रहा है।

आइए अब हम कुछ उपायों की भी बात कर लें:-

1) एनबीएफसी और निजी बैंकों के पास जितनी ॠण योजनाएं (लोन प्रोडक्ट) हैं वे सभी सहकारी बैंकों और राष्ट्रीय बैंकों को भी रिजर्व बैंक द्वारा देने की इज़ाजत दी जाए।

2) सिबिल का तरीका ठीक करने की जल्द जरूरत है।

3) एमएसएमई से क्रिसिल की भूमिका खत्म की जाए।

4) सेबी द्वारा लागू किया गया एएसएम, कुछ कम्पनियों को छोड़ कर बाकी सभी के लिए तुरंत प्रभाव से हटा दिया जाए।

5) एमएसएमई को कार्यशील पूंजी प्रदान करने के लिए कुछ नियम सरल किए जाए और कर्ज की प्रक्रिया जल्दी करने की हिदायत दी जाए।

6) वर्तमान कर्ज को पुनर्रचित करने के लिए लागत आधार पर अनुमति दी जाए।

7) एसएसमई प्लेटफॉर्म पर कम्पनियों के शेयर लाने पर एनएसई और बीएसई में सरकार की भागीदारी की जाए। जिससे एमएसएमई  को प्रोत्सहान मिलेगा।

8) निफ्टी वीकली और बैंक निफ्टी तुरंत प्रभाव से खत्म किया जाए।

9) छोटी निजी कम्पनियों को पहले की तरह कम्पनी कानून के तहत विशेष सुविधाएं दी जाए।

10) करीब तीन वर्ष के लिए एनपीए तीन महीने से बढ़ा कर 9 महीने कर दिए जाए। और बाद में धीरे-धीरे 9 महीने से 3 महीने पर वापस लाया जाए।

ऐसे कई कारण और उपाय भी हैं जिनसे एमएसएमई को बचाने और उनके एनपीए कम करने के लिए बड़े पैमाने पर विचार विर्मश करने की जरूरत है।

 

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