मिशन शक्ति- नई सुरक्षा नीति

नये भारत में सुरक्षा तथा संरक्षण नीति केवल प्रत्यक्ष तथा घोषित युद्ध तक ही सीमित नहीं होगी। 21वीं सदी में ज्यादा खतरा अघोषित युद्ध, अपरोक्ष युद्ध, आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप से होगा। इसके लिए हमें एकीकृत व समग्र राष्ट्रीय रक्षा-प्रतिरक्षा के क्षेत्र पर अधिक ध्यान देना होगा।

मनुस्मृति के अनुसार किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था पर चार प्रकार से आघात हो सकता है:-

बाह्योत्विपत्ति बाह्य प्रतिव्यापा

इसका अर्थ है राष्ट्र पर होने वाले बाह्य आक्रमण, जिनकी मानसिकता, योजना तथा नियंत्रण बाहर से (शत्रु देश से) ही होता है। इसके उदाहरण हैं 1962 में चीन का आक्रमण, 1965 का पाकिस्तान-भारत युद्ध, 1971 का पाकिस्तान का युद्ध तथा 1999 का पाकिस्तान-भारत युद्ध आदि।

बाह्योत्विपत्ति अभ्यांतर प्रतिव्यापा

इसका अर्थ है राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा दुश्मन की आक्रमण में सहायता करना। भारत में ऐसे सक्रिय राष्ट्रद्रोही तत्व हैं, जो भारत में ही जन्मे तथा पनपे हैं, किन्तु बाह्य शत्रु को निमंत्रित करते हैं तथा आक्रमण में शत्रु की सहायता करते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1980 के दशक में पंजाब में भड़का आतंकवाद तथा कश्मीर में पाकिस्तान की मदद से भड़काया गया आतंकवाद है, जिसके दुष्परिणाम कश्मीर के स्थानीय निवासी तथा भारत सालों से भोग रहा है।

अभ्यांतर विपत्ति-बाह्य प्रतिव्यापा

अर्थात बाह्य शक्तियों द्वारा फैलाया गया आंतरिक विद्रोह। नगालैण्ड में 1963 से चलाया गया विद्रोहात्मक युद्ध (Insurgency in Nagaland Instigated in 1963), मिजोरम राज्य में फैलाया गया विद्रोहात्मक युद्ध, मणिपुर का विद्रोहात्मक युद्ध, असम में उल्फा तथा बोडो आतंकवादियों द्वारा फैलाया गया युद्ध, त्रिपुरा राज्य में फैलाया गया युद्ध। चीन, पाकिस्तान तथा यूरोपीय देशों की सहायता से स्थानीय विद्रोहियों द्वारा संचालित, निर्देर्शित गृह युद्ध की स्थिति। इस युद्ध में यूरोप से धर्म के नाम पर आर्थिक सहायता से संचालित व फैलाया गया युद्ध शामिल है, जो करीब 40 वर्ष तक चला व अभी भी कुछ विद्रोही तत्व वहां सक्रिय हैं।

अभ्यांतर विपत्ति- अभ्यांतर प्रतिव्यापा

अर्थात आंतरिक रूप फैलाया गया व पोषित बाह्य खतरा। जैसे कि 1967 से फैलाया गया नक्सलवाद, जो धीरे-धीरे बंगाल से लेकर बिहार-झारखंड-छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, विदर्भ, उड़ीसा तथा आंध्र प्रदेश तक फैल गया है। अब यह धीरे-धीरे शहरों में फैल रहा है। नक्सलवाद माओवाद कैसे बना? माओवादी विचारधारा आई कहां से? अब यह माओवाद विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों में फैल गया है तथा भारत तेरे टुकड़े होंगे इस विचारधारा को शिक्षित वर्ग में फैलाया जा रहा है!

उपरोक्त आक्रमण पद्धति तथा उसके कारणों एवं परिणामों का यदि गहराई से अध्ययन तथा विश्लेषण करें तो एक सत्य सामने आएगा कि आंतरिक राष्ट्र विद्रोही तत्व, आंतरिक शत्रु सबसे ज्यादा घातक होता है। बाह्य शत्रु तो आक्रमण के बाद वापस चला जाता है परंतु आंतरिक शत्रु तथा शत्रुता कायम रहते हैं।

जो शत्रु भारत में भू-मार्ग से उत्तर भारत- अफगाणिस्तान- तत्कालीन पंजाब (आज का पाकिस्तान) से भारत में आक्रमण करने आए, हम पर आक्रमण किया, हम पर राज किया, हमारा शोषण किया तथा भारत से वापस चले गए। कुछ आक्रमणकारी भारत में ही स्थापित हो गए तथा भारत ने उन्हें अपना लिया। परन्तु जो आक्रमणकारी समुद्र मार्ग से भारत में आए उन्होंने न केवल हम पर शासन किया, हमारा शोषण किया, परंतु भारत छोड़ते समय हमें विभाजित कर गए और हमेशा-हमेशा के लिए पाकिस्तान के रूप में एक स्थायी शत्रु हमें दे गए तथा धर्म व समुदाय के माध्यम से हमें अपने ही राष्ट्र में विभाजित कर गए। इसके दुष्परिणाम हम स्वतंत्रता प्राप्ति से आज तक भोग रहे हैं और आने वाले भविष्य में भी हम भोगते रहेंगे। ये वही तत्व हैं, जो स्वतंत्र भारत में भारतीय भूमि पर पैदा हुए, यहीं पर बढ़ रहे हैं और इसी भारत को तोड़ने तथा बर्बाद करने का प्रयास कर रहे हैं। इनका भारत के विरूद्ध युद्ध घोष है, “जंग हमारी जारी रहेगी भारत तेरी बबार्र्दी तक।”

पाकिस्तान की भारत विरोधी मानसिकता से इन आंतरिक राष्ट्रद्रोहियों तथा भारतीय शत्रुओं की मानसिकता तथा विचारधारा ज्यादा खतरनाक है। इन पर हम मिसाइल या बम नहीं दाग सकते हैं, इनका सफाया हमें इनकी भारत विद्रोही मानसिकता को बदल कर ही करना होगा।

यदि भारत के विरुद्ध इन राष्ट्रद्रोहियों का नारा है, “जंग हमारी जारी रहेगी भारत तेरी बर्बादी तक” तो हमें एक नए भारत का निर्माण करने के लिए एक नया नारा तथा एक नई मुहिम चलानी पड़ेगी “सफाई हमारी जारी रहेगी राष्ट्रद्रोही मानसिकता की बर्बादी तक।” इसीलिए स्वच्छ भारत ही स्वस्थ भारत के रूप में परिवर्तित होगा। मानसिक स्वच्छता ही राष्ट्र स्वस्थता के रूप में परिवर्तित होगी। यह काम, यह अभियान केवल पत्रकारों के सामने, टी.वी कैमरों के सामने हाथ में माइक लेकर फोटो खिंचाने से नहीं होगा। इसके लिए हमें राष्ट्रद्रोही मानसिकता को अच्छी नीति, अच्छी शिक्षा, अच्छी शासन व्यवस्था देकर ही बदलना होगा। अन्यथा ये राष्ट्र विद्रोही तत्व भारत में ही आग लगा देंगे। यह बात सत्य होगी कि “घर को लगा दी आग घर के चिराग ने”। कश्मीर में आजादी की मांग के रूप में जो आग लगाई है उनमें केवल 243 परिवारों का नकारात्मक योगदान तथा नकारात्मक अभियान ही कारण है। इसमें कुछ मुख्यमंत्री, अनेक मंत्री, तथा हुर्रियत कांफ्रेंस के समस्त सदस्य हैं।

सन 2014 से भारत में एक पर्व का प्रारंभ हुआ है। इसका मुख्य लक्ष्य नए भारत का निर्माण करना है। 19वीं सदी सैन्य सत्ता, शारीरिक बल की सदी थी, 20वीं सदी आर्थिक बल की सदी थी, 21वीं सदी बुद्धि, ज्ञान बल की सदी है।

21वीं सदी ज्ञान की सदी है। इस सदी में नए भारत का निर्माण प्रारंभ हुआ है। बुद्धिमत्ता के आधार पर ही नया भारत बनेगा। इसीलिए हमें इन्द्र बनना पड़ेगा। धर्मेन्द्र, महेन्द्र, ज्ञानेंद्र, राघवेन्द्र, देवेंद्र तथा नरेंद्र। यही नए भारत का नेतृत्व तथा निर्माण करेंगे। करीब 130 वर्ष पूर्व, अमेरिका में एक व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने एक भविष्यवाणी की थी, “मैं भारत का पुनरुत्थान देख रहा हूं।”

पुनरूत्थान उसका होता है, जिसे दबाया गया हो। इसीलिए “उत्तिष्ठ” शब्द का सार्थक प्रयोग होता है। स्वामीजी का नाम आचार्य नरेन्द्र था। एक नरेन्द्र ने भारत के पुनरुत्थान का स्वप्न देखा था। दूसरा नरेन्द्र उस स्वप्न को साकार करने में प्रयत्नशील है। स्वप्न वह नहीं जो हम सोते हुए देखते हैं। स्वप्न वह है जो हमें तब तक सोने नहीं देता जब तक हम उस स्वप्न को साकार नहीं कर लेते। नए भारत के निर्माण का स्वप्न साकार करने के लिए उचित नेतृत्व तथा एकीकृत तथा समग्र योगदान की आवश्यकता होगी।

हम सबको मिलजुलकर सार्थक कार्य करना होगा। तभी 2024 तक नए भारत के निर्माण का प्रथम चरण पूर्ण होगा। नए भारत के निर्माण की यात्रा लम्बी है परन्तु उसकी शुरुआत के लिए प्रथम कदम तो उठाना ही होगा।

राष्ट्रनीति तथा सामाजिक नीति का एक सिद्धांत है- “यदि आपको तेज चलना है तो अकेले चलो, परन्तु यदि आपको दूर तक लम्बी यात्रा करनी है तो सब एकसाथ मिलकर चलो।” एक सौ तीस करोड़ की आबादी के भारत की लम्बी यात्रा, भारत का नवनिर्माण सब के सहयोग से, अथक प्रयत्न से, एकत्र प्रयास से ही सफल होगा। इसीलिए भारत के नवनिर्माण का घोषवाक्य है, “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास।” विश्वासहीन समाज कभी एकसाथ नहीं होता, और इसीलिए उसका विकास नहीं होता। पाकिस्तान इसका जीता जागता उदाहरण है।

राज्यशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र तथा युद्धशास्त्र का सिद्धांत है, “संरक्षण शक्ति को राष्ट्रभक्ति का कवच होना आवश्यक होता है। परंन्तु राष्ट्रशक्ति को भी राष्ट्रभक्ति का अंत:करण होना आवश्यक होता है। इसीलिए वर्तमान भारतीय शासन ने “मिशन शक्ति” का अभियान चलाकर, मिशन शक्ति का प्रदर्शन करके विश्व के तीन शक्तिशाली देशों के साथ अपना स्थान बनाया है। विश्व, मानव समाज या दुश्मन, केवल शक्ति के आगे ही झुकते हैं। केवल भक्ति प्रदर्शन से ही विश्व पर प्रभाव नहीं पड़ता है। इसीलिए मिशन शक्ति नए भारत के निर्माण की ओर महत्वपूर्ण कदम है।

जब हम नए भारत की संरक्षण की चर्चा करते हैं तो हमें यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि संरक्षण तथा सुरक्षा में फर्क है। संरक्षण तथा सुरक्षा दोनों एक दूसरे की परिपूरक हैं, सम्बंधित हैं। कोई भी राष्ट्र संरक्षित होगा परन्तु संरक्षित राष्ट्र सुरक्षित नहीं हो सकता है। विश्व का सबसे सैन्य शक्तिशाली तथा संरक्षित देश भी अपने-आप को सुरक्षित नहीं रख सका। 9/11 का अमेरिका पर किया गया आतंकवादी आक्रमण इसका उदाहरण है। अमेरिका संरक्षित था और आज भी है, परन्तु अमेरिका आज भी सुरक्षित नहीं है। यही स्थिति यूरोप के अनेक देशों की है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन आदि सभी देश आतंकवाद का शिकार हुए। विश्व का सबसे शक्तिशाली सैन्य संगठन नाटो (NATO) यूरोप को सुरक्षित रखनें में असमर्थ साबित हुआ और आज भी है। रूस, चीन भी आतंकवाद तथा आंतरिक विद्रोह के शिकार हुए हैं। यह वास्तविकता तथा कटु सत्य भारत को हमेशा ध्यान में रखना होगा। अन्यथा आने वाली पीढ़ियां हमें तथा शासन व्यवस्था को कभी भी माफ नहीं करेगी।

नए भारत की एकीकृत एवं समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा तथा संरक्षण व्यवस्था का विचार करते समय हमें निम्नलिखित सुरक्षा आयामों को ध्यान में रखना होगा- सीमाओं की सुरक्षा, भारत भूमि की सुरक्षा, मानवीय सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा, अन्न तथा जल सुरक्षा, वातावरण की सुरक्षा, बाह्य हमले तथा युद्ध से संरक्षण एवं सुरक्षा, जल-थल-तथा आकाश की सुरक्षा, अंतरिक्ष सुरक्षा, मानसिक सुरक्षा, धार्मिक तथा सामजिक सुरक्षा।

21वीं सदी की वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए ही हमारे प्रधानमंत्री के नेतृत्व में 2014 से 2019 तक उपरोक्त सब सुरक्षा तथा संरक्षण विषयों पर ध्यान दिया जा रहा है। पानी तथा अनाज पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। नए आयोग बनाए गए हैं। मिशन शक्ति, चंद्रयान, मंगलयान, अंतरिक्ष सुरक्षा के लिए ही भेजे जा रहे हैं। स्वस्थ समाज, स्वस्थ भारत बनाएगा। शिक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। जब हमारी शिक्षण व्यवस्था विशेष स्तर की होगी, जब हम शिक्षा तथा शिक्षकों के रूप में ज्ञान का प्रसार करेंगे, ज्ञान का निर्यात करेंगे तभी भारत विश्व गुरू माना जाएगा। जब हम विज्ञान में खोज तथा अनुसंधान करेंगे तभी हम शस्त्र तथा युद्ध सामग्री का उत्पादन करेंगे और संरक्षण तथा सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होंगे। अभी हमें विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है। निर्भरता गुलामी का लक्षण होता है। गुलामी मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, औद्योगिक, व्यवसायिक तथा मनोवैज्ञानिक होती है। इसीलिए वर्तमान केन्द्र शासन भारत को विश्व समुदाय में एक शक्तिशाली, समर्थ, सुसंचालित, सार्थक, संगठित, सुसंरक्षित तथा सुरक्षित राष्ट्र बनाने के लिए प्रयासशील है। इस प्रयास में सफलता के लिए पूरे भारतीय समाज, जनमानस का सहयोग तथा योगदान आवश्यक होगा। हर बात हम शासन व्यवस्था तथा शासन पर नहीं छोड़ सकते हैं। हमारा भी कर्तव्य बनता है।

नये भारत में सुरक्षा तथा संरक्षण नीति केवल प्रत्यक्ष तथा घोषित युद्ध तक ही सीमित नहीं होगी। 21वीं सदी में ज्यादा खतरा अघोषित युद्ध (Undeclared war), अपरोक्ष युद्ध (Proxy war), आतंकवाद (Terrorism), अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप से होगा। पाकिस्तान में कौन शासन करेगा यह पाकिस्तान की जनता निश्चित नहीं करती। यह निर्णय विदेशों में किया जाता है। शक्तिशाली राष्ट्र पाकिस्तान का भविष्य निर्धारित करते हैं। पाकिस्तान की सेना के माध्यम से कार्यान्वित करते हैं। भारत में सत्ता तथा शासन कौन चलाएगा यह निर्णय हर पांच वर्ष में भारतीय जनमानस ही करता है। यही भारत की स्वतंत्रता तथा सार्वभौमिकता का प्रतीक है। सार्वभौमिक-सुरक्षित, संरक्षित भारत ही एक विश्व शक्ति माना जाएगा, स्वीकृत किया जाएगा।

किसीने बहुत ही अच्छा कहा है:-

है हमें गर प्यार तो हरदम ये कहना चाहिए,

मै रहूं, या ना रहूं भारत ये रहना चाहिए।

शत्रु से कह दो जरा सीमा में रहना सीख लें,

ये मेरा भारत अमर है ये सत्य सहना सीख लें

राष्ट्र की शक्ति को बढ़कर दिखाना चाहिए।

मैं रहूं या ना रहूं भारत ये रहना चाहिए।

 

                                                                                                                                लेखक वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ तथा फिन्स के अध्यक्ष हैं।

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