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टीना ने चोरी पकड़वाई…

टीना ने चोरी पकड़वाई…

by हिंदी विवेक
in कहानी
1
‘दरियां ले लोऽऽऽ, दरियांऽऽऽ, रंग-बिरंगी मजबूत टिकाऊ दरियां’।
जैसे ही टीना ने आवाज सुनी, वह बस्ता जस का तस छोड़कर बाहर की तरफ भागी।
अम्मा चिल्लाईं, ‘अरे कहां भाग रही है, पढ़ाई तो पूरी कर ले?’ परंतु टीना को तो भागना ही था दरीवाले की आवाज पर।
‘पता नहीं क्या हो गया है इस टीना को? दरीवाले की आवाज आती है तो सब काम छोड़कर भाग जाती है।’ अम्मा मन ही मन बुदबुदातीं। उन्होंने टीना के बापू से शाम को इस बाबत चर्चा की।
परंतु बाबू जमनालालजी ने हंसकर कहा, ‘तुम भी कहां की बातें ले बैठती हो, अरे बच्ची है, दरीवाले की आवाज सुनकर दरी देखने दौड़ जाती है तो इसमें क्या बुराई है? मैं भी तो बचपन में ठेले वालों की आवाज सुनकर खाने की थाली छोड़कर भाग जाता था।’
बात तो सच थी। वह भी तो जब छोटी थी तो आसमान में हवाई जहाज की आवाज सुनकर बाथरूम में से आधी नहाई ही बाहर दौड़ पड़ती थी। खैर, बात आई-गई हो गई।
दूसरे दिन मोहल्ले में हल्ला मचा कि रतनलालजी के घर में चोरी हो गई। पुलिस की गाड़ी हूटर बजाती हुई आई और चोरी वाले घर के सामने भीड़ लग गई। रतनलालजी एक दिन पहले ही से नागपुर गए थे और सुबह ही वापस आए थे। घर का सारा सामान उन्होंने बिखरा पाया और अलमारी का ताला टूटा पड़ा था। चोरों ने अलमारी की नकदी और सोने-चांदी के जेवरों पर हाथ साफ कर दिया था। पुलिस अपनी कागजी खानापूर्ति करके चली गई थी।
‘मैं जानती थी आज कहीं-न-कहीं चोरी होगी’, टीना धीरे-धीरे बड़बड़ा रही थी।
‘क्या कह रही है बिटिया, क्या बुदबुदा रही है?’ अम्मा नीलू ने प्रश्न किया तो वह बोली, ‘कुछ नहीं अम्मा, बाद में बताऊंगी।’
नीलू सोच रही थी कि टीना को जाने क्या हो गया है? कुछ तो बड़बड़ाती रहती है।
उस दिन रविवार था। जमनालालजी का आज अवकाश था। कभी-कभी वे अवकाश के दिन भी कार्यालय चले जाते थे। काम ही इतना ज्यादा था कि छुट्टी के दिन भी कार्यालय में बैठना पड़ता था किंतु आज उनका मूड था कि घर पर ही पत्नी और बच्चों के साथ रहकर वे थोड़ा मनोरंजन करें। खाना खाया और टीना के साथ लूडो खेलने बैठ गए।
अचानक दरीवाले की आवाज सुनाई पड़ी। टीना कुछ चौंकी और उठकर बाहर भागने लगी, परंतु कुछ सोचती हुई वापस पलटी और जमनालालजी से बोली, ‘बापू आज आप भी चलिए न दरीवाले को देखने।’
‘क्या, मैं चलूं, क्यों, क्या मैं बच्चा हूं?’ वे ठहाका मारकर हंसने लगे। ‘जा, तू ही जा, उस दरीवाले को देखने।’ इतने सारे प्रश्न सुनकर पहले तो वह कुछ नर्वस हुई किंतु तुरंत संभल गई।
‘नहीं बापू कुछ खास बात है, मैं आपको… कुछ बताना चाहती हूं।’ वह थोड़ा झिझकी और उनका हाथ पकड़कर बाहर खींचने लगी। आखिर जमनालालजी थे तो एक बेटी के बाप ही, उठकर खड़े हो गए।
‘कहां ले चलती है चल, ये लड़की भी…’ यह कहते हुए उसके पीछे चल दिए।
बाहर उन्हें वह दरीवाला दिखाई दिया। दूसरी गली की ओर वह मुड़ रहा था। टीना उन्हें घसीटकर दूसरी गली के किनारे तक ले गई। धीरे से बोली, ‘बापू यह गली तो आगे बंद है, इसमें से ही किसी घर में आज चोरी होगी।’
‘क्या पागलों-सी बातें करती है? क्या तू सीआईडी है? तुझे कैसे पता?’
‘बापू, मैं सच्ची कह रही हूं। इस गली का कोई घर मालिक जरूर ताला लगाकर बाहर गया होगा। उसके यहां चोरी होगी।’
जमनालालजी को याद आया कि इस गली में रहने वाले उसके एक मित्र रतनलालजी सुबह ही नागपुर एक विवाह समारोह में गए हैं।
उन्होंने पूछा, ‘तुमने यह कैसे अंदाज लगाया कि आज यहां चोरी होगी?’
‘बापू, मैं तीन माह से इस दरी वाले को देख रही हूं। जब भी यह आता है और जिस गली में जाता है, वहां चोरी होती है।’
‘मगर तुम गारंटी से कैसे कह सकती हो? अंदाज गलत भी हो सकता है। किसी पर शक करना…?’ वे वाक्य पूरा कर पाते, इसके पहले ही टीना चहक उठी।
‘बापू, अपने घर के सामने पुलिस अंकल रहते हैं, तो उन्हें बताने में क्या हर्ज है’, टीना ने अपनी छोटी-सी बुद्धि का गोला दागा।
शाम को जमनालालजी ने अपने पड़ोसी पुलिस इंस्पेक्टर शुक्लजी को टीना की बातों से अवगत कराया। उन्होंने सादी वर्दी में एक पुलिस वाले को उस गली के आसपास तैनात कर दिया। रात को तो कमाल ही हो गया। दो चोर रंगेहाथों घर के फाटक के भीतर घुसते हुए पकड़े गए।
दूसरे दिन उस दरीवाले को भी पकड़ लिया गया। थाने में ले जाकर जब उसकी पिटाई हुई तो उसने दो दर्जन चोरियों का खुलासा किया, जो पिछले तीन साल से शहर में हो रही थीं और पुलिस पकड़ने में नाकाम रही थी।
पुलिस इंस्पेक्टर शुक्ल ने टीना से पूछा, ‘बेटी, तुमने कैसे जाना कि इस दरीवाले का चोरियों से कुछ सबंध है?’
‘अंकल, अपने मुहल्ले में जब लगातार दो चोरियां हुईं तो मैंने अनुभव किया कि चोरी उसी दिन होती है, जब यह दरीवाला आता है। फिर अगली बार जब यह दरीवाला आया तो मैंने उसका चोरी से पीछा किया। उसी दिन उस गली में चोरी हुई, जिस गली में वह फेरा लगाने भीतर तक गया था। फिर तो यह निश्चित हो गया कि चोरी और इस दरीवाले के बीच कुछ तो संबंध है और मैं अपने बापू को साथ ले गई।’
टीना की सूझबूझ से चोरियों का भंडाफोड़ हो गया।
अब दरीवाला नहीं आता। आएगा कहां से? वह तो हवालात में है। टीना की अम्मा को भी अब टीना के बाहर भागने की चिंता नहीं सताती।

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Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywriting

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Comments 1

  1. Prabhudayal Shrivastava says:
    5 years ago

    इस कहानी के लेखक प्रभुदयाल श्रीवास्तव

    Reply

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