अलगाववादियों का विष वमन

अलगाववादी लोग और संगठन निरंतर भारत की एकताकी जडों को खोखला करने में लगे हुए हैं। भारत को जितना खतरा बाहर के आतंकवादियों से है उससे कहीं अधिक इन अलगावादियों से है, क्योंकि यही लोग उनको अंदर आने के लिये खुला रास्ता दे रहे हैं।
मेरी जान मेरी जान, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान!’ ‘हाफिज सईद का यह पैगाम, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान!’ जैसे नारे लगाते हुए और हाथ में पाकिस्तान का चांद सितारे वाला हरा झंडा लिए हजारों की संख्या में लोग सैयद अली शाह गिलानी का स्वागत करने के लिए खड़े थे। भीड में गिलानी साहब की उम्रवालों से लेकर, कॉलेज के नौजवान और स्कूल जानेवाले छोटे बच्चे भी थे। सैयद अली शाह कश्मीर का मशहूर अलगाववादी नेता है, जिसे अकसर भारत के खिलाफ जहर उगलते देखा गया है। गिलानी साहब लंबे समय के बाद कश्मीर घाटी में लौटे हैं तो जाहिर है उनका स्वागत जोश के साथ होना ही था। क्योंकि इस स्वागत की तैयारी उनकी अगली पीढी के अलगाववादी नेता मसरत आलम ने जो कर रखी थी। ये जनाब भी दो दिन पूर्व ही जेल छूट कर आए थे और भारत के खिलाफ बयानबाजी करने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिए गए।
ये मसरत आलम आखिर है कौन? मसरत आलम वह व्यक्ति है जिसने कश्मीर घाटी में पुलिस और सेना पर पत्थरबाजी करने की शुरुआत की थी और इसके लिये जेल की सजा भी काटी। लगभग ४४ वर्ष की अपनी आयु में से १७ साल उसने जेल में बिताये हैं। रैली के कुछ दिन पूर्व ही वह जेल से छूटकर आया था परंतु रैली में भारत विरोधी नारे लगाने और कश्मीर के नागरिकों को भडकाने के आरोप में उसे फिर से कैद कर लिया गया।
हालांकि इन लोगों पर इसका कोई असर नहीं होता। कश्मीर की कथित मुक्ति के ये पैरोकार खुद को तथाकथित क्रांतिकारी और भारत सरकार को अपनी दुश्मन समझते हैं। भारत से टूटने के लिए वे हर संभव कोशिशें कर रहे हैं। कश्मीर में अलगाववाद फैलाना, आनेवाली पीढ़ियों के मन में भारत के प्रति नकारात्मक सोच भरना, पाकिस्तानी आतंकवादियों की सहायता करना, भारत के अन्य स्थानों में रहनेवाले मुसलमानों को कश्मीर कथित मुक्ति और पाकिस्तान के समर्थन करने के लिए प्रेरित करना इत्यादि इनकी कोशिशों का अहम हिस्सा हैै।
अलगाववाद एक मानसिकता है। ‘पाकिस्तान डे’ पर घाटी में पाकिस्तानी झंडे फहराने वाली और पाकिस्तान के पहले प्रधान मंत्री जिन्ना के समर्थन में गीत गाने वाली आसिया इसका जीता जागता उदाहरण है। दुख्तरान-ए-मिल्लत नामक अलगाववादी महिलाओं का संगठन चलाने वाली आसिया ने भी मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में भड़काऊ बयान दिए थे। आसिया का पति भी ऐसे ही कारनामों के कारण जेल में बंद है।
भारत आज अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद से लड़ने के लिए पूरे विश्व को एक होने की गुहार लगा रहा है। परंतु दुनिया को आह्वान करने से पहले क्या अपने घर में पल रहे इन अलगाववादियों पर शिकंजा कसना आवश्यक नहीं है? ये अलगाववादी लोग भारत में बाहर से आनेवाले आतंकवादियों से भी ज्यादा खतरनाक हैं। जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद कर रहे हैं, जिस जहाज में सवार हैं उसे ही डुबोने पर आमादा हैं।
सब से बुरी बात तो यह है कि विभाजन से लेकर अभी तक इतने वर्षों में भी ये लोग समझ नहीं पाए कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और भारत के साथ रहने पर ही उनकी भी प्रगति संभव है। जिस पाकिस्तान में शामिल होने की ये लोग मांग कर रहे हैं वहां के हालात तो कहीं बदतर है। अपने ही बनाए और पाले-पोसे आतंकवादी संगठनों के भय के साये में पल रहे देश से क्या उम्मीद की जा सकती है? आतंकवाद के अलावा शायद ही किसी अन्य क्षेत्र में वह अग्रणी हो। फिर भी कश्मीरी अलगाववादी लोग कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने का हठ धरे बैठे हैं और उनके इस हठ का आधार केवल मजहब है। मुसलमान होने के नाते पाकिस्तान में शामिल होना उन्हें अपना हक लगता है।
जिस कश्मीरियत की ये लोग बात करते हैं, उनका एक अहम हिस्सा कश्मीरी पंडित भी हैं। परंतु ये कश्मीरी पंडित तो इन लोगों को फूटी आंख नहीं सुहाते। जब से सरकार ने इनके पुनर्वसन के लिए नई कालोनियां बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया है, तब से तो इन अलगाववादियों के पेट में ज्यादा ही मरोड़ उठने लगी है।
किसी के हाथ में बंदूकें थमाने से कहीं खतरनाक काम है किसी के मन में बंदूकें उठाने की हद तक नफरत भर देना। क्योंकि मानसिक तैयारी न होने के कारण बंदूक थामने वाले हाथ तो एक बार कांप सकते हैं परंतु तैयार मन से थामी गई बंदूक कभी भी निशाना नहीं चूकती। कश्मीर में अलगाववादी इसी मानसिकता को तैयार कर रहे हैं। गिलानी के स्वागत के लिए आयोजित की गई रैली में स्कूल जाते छात्रों को लाने का क्या मकसद हो सकता है? यही कि उनके बढ़ते दिमाग में शुरू से ये बीज बोए जाएं कि भारत हमारा नहीं है, पाकिस्तान हमारा है। हमें अर्थात कश्मीरी मुसलमानों को कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने के भरसक प्रयास करने हैं। ये प्रयास केवल रैलियों तक ही सीमित नहीं हैं, ये सभी जानते हैं। विभाजन के समय की त्रासदी का केवल एक पहलू उन बच्चों के सामने रखकर, भड़काऊ भाषण देकर, भारतीय सेना के द्वारा किए जाने वाले तथाकथित अत्याचारों की कहानियां गढ़ कर बच्चों और युवाओं का ‘बे्रेनवॉश’ किया जा रहा है। जो काम सीमा के उस पार आतंकवादियों द्वारा किया जा रहा है वही सीमा के इस तरफ ये लोग कर रहे हैं। रही बात हाथ में बंदूकें थमाने की तो उस कमी को आतंकवादियों द्वारा पूरा कर दिया जाता है।
कश्मीर में राज्य सरकारों ने भी आज तक अलगाववादियों को दबाने के स्थान पर उनको खुली छूट ही दे रखी है। अब्दुल्ला सरकार का स्वयं का भी रुख अलगाववादियों से कुछ अलग नहीं रहा। बस, सत्ता हाथ में होने कारण वे इन लोगों की तरह कुछ खुले आम नहीं कर सकते थे। अब भाजपा के समर्थन के साथ आई मुफ्ती सरकार का भी इनके प्रति रवैया तेजतर्रार नहीं है। आलेख लिखने तक केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की फटकार के बाद राज्य की मुफ्ती सरकार ने गिलानी और मसरत आलम को फिर से गिेफ्तार जरूर कर लिया है परंतु वे जेल से छूटने के बाद फिर अपने काम को आगे बढाएंगे।
कश्मीर की राज्य सरकार में भाजपा की भागीदारी के बाद जनता ने यह उम्मीद की थी कि घाटी में शांति के साथ विकास की बयार आएंगी। परंतु मुफ्ती सरकार अभी भी अपने ही एजेंडों को लागू करने के लिए जोर लगा रही है और भाजपा को न चाहते हुए भी कई बातों पर समझौता करना पड़ रहा है। कांग्रेस मुक्त भारत के अभियान के तहत भाजपा कश्मीर की सत्ता में आने में तो सफल रही है परंतु कश्मीरी समस्याओं को निष्पक्ष भाव से सुलझाने और कश्मीरी लोगों का विश्वास प्राप्त करने के लिए उन्हें खासी मेहनत करनी पड़ेगी। दूसरी ओर कुछ कड़े नियमों का भी सख्ती से पालन होना जरूरी है। जिससे इन लोगों के दुस्साहस को नियंत्रित किया जा सके।
अलगाववाद उस विषैली परजीवी बेल की तरह है जो उसी वृक्ष को खोखला करती है जिस पर वह आश्रित है। इसलिए इसके पहले कि वह संपूर्ण वृक्ष को खोखला कर दे उसे समूल खत्म किया जाना आवश्यक है।
मो.: ९५९४९६१८४९

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