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उपभोगशून्य स्वामी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

उपभोगशून्य स्वामी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

by हिंदी विवेक
in फरवरी 2020 - पर्यावरण समस्या एवं आन्दोलन विशेषांक, विशेष
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हिंदी विवेक मासिक पत्रिका द्वारा प्रकाशित कर्मयोद्धा ग्रंथ का विमोचन केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा किया गया।
प्रस्तुत आलेख इस अवसर पर उनके द्वारा दिए गए उद्बोधन का शब्दांकन है।

नरेन्द्र भाई के जीवन को यदि सरसरी दृष्टि से किसी को देखना हो तो उनका जीवन तीन हिस्सों में बांट सकते हैं। विचारधारा के आधार पर निस्वार्थ भाव से हजारों-हजारों कर्मठ/निष्काम कार्यकर्ताओं का निर्माण करने वाला एक व्यक्ति (नरेंद्र मोदी) जब राजनीति का एकमात्र अर्थ और राजनीति के अस्तित्व का एकमात्र कारण जब चुनाव व सत्ता प्राप्त करना रह गया था उस वक्त 87 में राजनीति में आए। और संगठन के आधार पर राजनीतिक पार्टी की कल्पना को पहली बार चुनावी सफलता में परिवर्तित करना, आइडियालॉजी के आधार पर चलने वाली पार्टी के विचारों के आधार पर पार्टी कों स्वीकृती दिलाना, यह पहली बार हुआ तब गुजरात में नरेन्द्र मोदी संगठन मंत्री थे। उनके जीवन का दूसरा हिस्सा 2001-2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री और तीसरा 2014 से 2020 तक भारत के प्रधानमंत्री का कार्यकाल है। इस नाते उन्होंने सिद्ध कर दिया दिया कि हमारे संविधान के स्पिरिट (भावना) के अनुसार किस प्रकार से शासन व्यवस्था बदल सकती है? हमारे संविधान के निर्माताओं की कल्पना का एक कल्याणकारी राज्य किस प्रकार से मल्टी-पार्टी डेमोक्रेटिक सिस्टम, पार्लियामेंट्री सिस्टम के माध्यम से हो सकता है? उसको एक आदर्श तरीके से इतने लंबे कालखंड में, 2001 से 2020 तक के कालखंड में उन्होंने सिद्ध करके दिखा दिया है। और उद्दिष्टोेंं की परिपूर्ति में जब नरेन्द्र भाई अपने जीवन की इतना ब़ड़ी यात्रा समाप्त करके आज एक वैश्विक नेता के मुकाम पर आकर खड़े हैं तो जब भी इसके बारे में बोलने वाला व्यक्ति पीछे मुड़ कर देखेगा तो उनका मूल्यांकन कैसे करेगा? समर्थ रामदास ने एक राजा की कल्पना की थी। इसको कोई अलग दृष्टि से ना ले। ‘उपभोग शून्य स्वामी’। स्वामी समर्थ के इस वाक्य का वर्तमान समय में कोई आदर्श उदाहरण है तो वह नरेन्द्र भाई मोदी हैं। जिसने शासन में रहते हुए शासन व्यवस्था के सूत्र संभालते हुए स्वयं के लिए कुछ भी उपभोग नहीं किया। सिर्फ देना ही देना, इस प्रकार से उन्होंने कार्य किया। एक उपभोगशून्य राजा की कल्पना को मोदी भाई ने चरितार्थ किया है। चाणक्य के नीति सूत्रों में जाकर जब हम देखते हैं ‘राजा प्रथमो सेवकः’ इस सूत्र को किसी ने चरितार्थ किया है तो वो नरेन्द्र मोदी जी ने किया।

नरेन्द्र मोदी जी के सक्रिय राजनीति में आने के पहले उनके परिवार और उनके जीवन के बैक ग्राऊंड को नहीं जानते हैं और नहीं समझते हैं तो शायद हम उनके जीवन का मूल्यांकन कदाचित गलत ही कर बैठे। गरीबी, अभाव, अवेहलना ये सब सहन करते -करते एक बच्चा राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ जुड़ता है और जब उसको काम करने का मौका मिलता है तब किसी भी प्रकार की समाज के प्रति कटुता पाले बगैर काम करता है इसका नरेंद्र भाई उदाहरण हैं। बच्चे को जब छोटी उम्र में अपमान सहन करना पड़ता है तो उसी समय उसकी मानसिकता की निर्मिति होती है। उसका स्वभाव बनने का वही समय होता है। गरीबी वाला जीवन, अभाव वाला जीवन, अस्वीकृती का जीवन, अपमान का जीवन बचपन में जीने के बाद भी जब उनको मौका मिलता है कि समाज को कैसे आगे लेकर जाना है तब तप, त्याग, तपस्या, समर्पण, राष्ट्रभक्ति और गरीब कल्याण के मूल्यों को समाज को देना यह बहुत बड़ी बात होती है। भारत के किसी गरीब बच्चों को यह कटुता जीनी न पड़े, सहन ना करना पड़े इसलिए नए भारत के निर्माण की दिशा में मोदी जी लगे हुए हैं। इन सारी बातों को जाने बिना हम मोदी जी का सही मूल्यांकन नहीं कर सकते।

जिसके जीवन में संतुष्टि है, जिसको ईश्वर ने सब कुछ दिया है वो समाज को देते है, उसका एक मूल्य होता है। और जिसने जीवन में गरीबी को सहा है, अभाव को सहा है, अपमान को सहा है, इसके बावजूद समाज को देने की भावना होती है तो प्रकृतिगत उसका उदात्त चरित्र होता है, तभी यह हो सकता है। अन्यथा यह नहीं हो सकता है। और उनके व्यक्तित्व को जानने के लिए, पहचानने के लिए उनके बैक ग्राऊंड को समझना बेहद जरूरी है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय की कल्पना को साकार करने में मोदी जी दिन -रात लगे हुए हैं। ऐसा बिरले ही लोग कर पाते हैं।

मैंने नरेन्द्र भाई को बेहद नजदीक से काम करते हुए देखा है और उनके साथ काम करने का भी ईश्वर ने मुझे बहुत मौका दिया है। मैं बहुत लंबे अरसे से पहले संघ के स्वयंसेवक के नाते, बाद में भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ता के नाते सब जगह उनके साथ काम करने का मुझे मौका मिला और उन्होंने जो काम किया है, उसे मैं बहुत नजदीक से देख पाया हूं।

जब गुजरात में उनको संगठन की जिम्मेदारी मिली वो कालखंड भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत कठिन समय था। हमारी 2 सीटें आई थीं। भविष्य के नाम पर आगे घनघोर अंधेरे के सिवा कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। पार्टी के गुजरात प्रदेश के बड़े-बड़े नेता हताश होकर बैठे थे। आशा ही खोकर बैठे कि भारतीय जनता पार्टी फिर से कभी खड़ी हो सकती है। और उस वक्त नरेन्द्र मोदी जी को गुजरात के संगठन मंत्री का दायित्व दिया गया। तब उन्होंने गुजरात के संगठन को फिर से खड़ा करने का प्रयास किया। दो मुद्दे उन्होंने सामने रखे- एक विचारधारा के आधार पर चलने वाला संगठन, और संगठन के आधार पर चुनाव जीतने वाली पार्टी। यदि आप आज भारतीय जनता पार्टी के विकास की यात्रा देखेंगे तो पता चलेगा कि जो विजय हमें पूरे देश में मिली, उसमें इन्हीं दो मुद्दों की अहम भूमिका रही।

एक जमाने में हमें केवल हिंदी भाषी क्षेत्र की पार्टी माना जाता था। उसके बाद पश्चिम के कुछ राज्यों में हमारी सत्ता आ गई। तब कहते थे कि ये शहरों की पार्टी है लेकिन आज ऐसा कोई नहीं कह सकता। कश्मीर से कन्याकुमारी और कामाख्या से कच्छ तक समग्र भारत के अंदर आज भारतीय जनता पार्टी का झंडा फहरा रहा है। संगठन न केवल बूथ तक पहुंचा; न केवल प्रंचड सगठनात्मक शक्ति की निर्मिति हुई परंतु वह संगठन विचारधारा के आधार पर जीने वाले कार्यकर्ताओं का संगठन बना और संगठन के आधार पर विजय प्राप्त करने वाली पार्टी की निर्मिति हुई। गुजरात में नरेन्द्र भाई ने जो नींव डाली थी, वहीं आज देशभर में दिखाई पड़ती है।

गुजरात के अंदर सरकार बनी, सरकारें चलीं। गुजरात में भी उतार-चढ़ाव आए। स्वाभाविक रूप से नई पार्टी थी तो आना ही था। जब नरेन्द्र भाई को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया तब बड़ा बिकट समय था। इस वक्त सदी का सबसे विकराल भूकम्प गुजरात में आया था। भुकम्प से सारी व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो गईं। इससे हम उबरे भी नहीं थे कि दंगों का सामना भी नरेन्द्र मोदी सरकार को करना पड़ा। 2001 से 2014 की यात्रा समाप्त करके जब वो निकले तब सरकार कैसे चली? एक समविकास की कल्पना के साथ चलने वाली सरकार कैसी हो सकती है? इसका उदाहरण देखना है तो 2001 और 2014 की मोदी सरकार का विवेचन, विश्लेषण करना चाहिए। एक विकास का ऐसा मॉडल जो सर्व स्पर्शीय था। भौगोलिक और सामाजिक दृष्टि से भी समाविष्ट था। ये सर्वस्पर्शी -समावेशक मॉडल की शुरुआत नरेन्द्र भाई ने गुजरात के अंदर की। समविकास की कल्पना के साथ उन्होंने शुरू की हुई यात्रा जब वह 2014 में गुजरात छोड़ कर आए तब गुजरात के कोने-कोने में, हर गांव में पहुंची थी। हर घर तक बिजली पहुंची थी। हर क्षेत्र में पीने का पानी पहुंचा था। एक तरह से चाहे शहरी विकास हो, चाहे ग्रामीण विकास हो, चाहे आदिवासियों का कल्याण हो, चाहे दलितों का कल्याण हो, चाहे बच्चों को पढ़ाने के लिए विशेष प्रयत्न करने की बात हो, प्राथमिक शिक्षा, आरोग्य के क्षेत्र में, माता मृत्यु दर, बाल मृत्यु दर यानी हर एक क्षेत्र में आगे बढ़े हम। इस प्रकार के विकास का सम मॉडल गुजरात में मोदी जी ने सामने रखा।

भ्रष्टाचारशून्य शासन कैसा हो सकता है? उसकी भी नींव आधुनिक भारत के अंदर डालने का काम सर्वप्रथम मोदी जी ने गुजरात के अंदर किया।

मोदी जी के भारत का प्रधानमंत्री बनने के समय व्यवस्था भ्रष्ट हो चुकी थी। इंस्टीट्यूट तबाह हो गए थे। आप समझ कर चलिए एक खालीपन जैसी व्यवस्था पूरी भारत सरकार की थी। उस वक्त नरेन्द्र भाई ने काम हाथ में लिया। उस दिन से आज तक नरेन्द्र मोदी पर एक पैसे के भ्रष्टाचार का भी आरोप नहीं लगा है; जबकि पिछली यूपीए सरकार में 12 लाख करोड़ के घोटाले हुए थे। हम जैसे कार्यकर्ताओं के लिए भी यह गौरव का विषय है कि मेरी पार्टी ने, हमारी विचारधारा ने एक ऐसा व्यक्तित्व दिया है, जो देश को भ्रष्टाचारशून्य शासन दे सकता है।

फेडरल स्ट्रक्चर को मजबूती देने का काम मोदी जी ने सरकार में आते ही किया। सरकार में आने के तुरंत बाद बजट का 40 फीसदी हिस्सा हमने राज्यों को दिया जो पहले केवल 30 फीसदी निर्धारित था। राज्यों के 10 फीसदी बजट ज्यादा देकर उन्हें उनके अधिकार दिए। ये संवैधानिक व्यवस्था है। टैक्स के अंदर राज्यों का हिस्सा है। हर राज्य अपना विकास मोॅडल स्वयं ही बनाएगा। मैं मानता हूं कि मोदी सरकार का यह बेहद अच्छा व प्रभावी कदम है। पंडित दीनदयाल जी का सपना था गरीब कल्याण का, अंत्योदय का। जो विकास की पंक्ति में अंतिम खड़ा है, उसे विकास की पंक्ति में जो पहला खड़ा है उसके बराबर लाना ही हमारा ध्येय है। 60 वर्षों की राजनीति के बाद भी पिछड़ों स्थिति क्या थी? गरीबों के पास न रहने को घर था, न चूल्हा था, न बिजली थी। न बैंक अकाऊंट था, न स्वास्थ्य की सुविधाएं थीं। एक पांच साल के कालखंड में ही देश के 60 करोड़ गरीबों के लिए, उसमें भी सबसे पहले 13 करोड़ लोगों को चूल्हा देने का काम भारतीय जनता पार्टी की नरेन्द्र मोदी सरकार ने किया और करोड़ों माता-बहनों को धुंआ मुक्त जीवन जीने का अवसर उपलब्ध कराया। यदि किसी पश्चिम के देश ने यह काम किया होता तो इसकी बहुत वाहवाही होती। लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार की इसके लिए चर्चा प्रशंसा भी नहीं हुई। इसका मुझे कोई गम भी नहीं है। क्योंकि यश-अपयश, इसके लिए काम करना यह भारतीय जनता पार्टी की संस्कृति है ही नहीं। उसके बाद ‘उजाला योजना’ अंतर्गत सबके घर में बिजली पहुंचाई। एलईडी बल्ब पहुंचाया। आज देश के 99 फिसदी घरों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है, जो आंकडा पहले 60 फीसदी से नीचे था। शौचालय लगभग शत-प्रतिशत लोगों के घर में बन गए हैं। एक नाबालिग लड़की को सुबह के समय खुले में शौच के लिए जाना पड़ता था। यह शर्मनाक लगता था। यह हम मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में रह कर अंदाजा नहीं लगा सकते। करोड़ों लोगों के समान जीवन जीने के लिए सभी को शौचालय देकर सराहनीय काम नरेन्द्र मोदी जी ने किया है। 8 करोड़ घरों में शौचालय देकर इस देश की मातृशक्ति- नारीशक्ति का सम्मान का प्रयास नरेन्द्र मोदी जी ने किया है।

हर व्यक्ति को अपना घर मिले इसके लिए हमने केवल कल्पना ही नहीं की बल्कि 2022 तक हम सभी को घर देकर इस योजना को साकार करेंगे। हरेक को बैंक अकाऊंट मिल चुका है। आयुष्यमान भारत योजना के तहत 5 लाख तक का स्वास्थ्य का सारा खर्च सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। टेस्टिंग, ऑपरेशन, ईलाज, दवा, देखभाल एवं घर पर जाने का 300 रुपया अलग से मरीजों को देने की सुविधा प्रदान की गई है। देश के 50 करोड़ को इस सुविधा से लाभान्वित करने का काम नरेन्द्र मोदी सरकार ने किया है। और अब फिर से आए हैं तो यह तय किया है कि 2024 से पहले हर घर में शुद्ध पीने का पानी पाईप लाइन से पहुंचाने का काम पूरा करेंगे। बहुत बड़ी योजनाएं व घोषणाएं किए बगैर काम को कैसे जमीन तक पहुंचाया जाता है उसका उत्कृष्ट उदाहरण नरेन्द्र मोदी जी ने किया। अंत्योदय की कल्पना पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने की थी, उसे साकार करने का काम नरेन्द्र मोदी जी ने किया है। ढेर सारे रिफार्म किए, मैं इसके विस्तार में जाना नहीं चाहता। आप कोई भी सरकार देख लीजिए- जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक- हर सरकार विवादों में घिरी रहीं। थोड़ा इंडस्ट्री के लिए करते थे तो कहते थे उद्योगपतियों की सरकार है। थोड़ा कृषि के लिए करते थे तो किसानों की सरकार है, सरकार उद्योग की ओर दुर्लक्ष्य करती है। नरेन्द्र मोदी ने इन विचारों को ही समाप्त कर दिया। किसानों की सरकार है या उद्योगपतियों की सरकार का विवाद खत्म कर दिया। सरकार ने किसानों और उद्योगपतियों दोनों का ही विकास किया है। दूसरा विवाद था शहर या गांव। शहर की सरकार है या गांव की सरकार है। उन्होंने एक मॉडल तैयार किया और बताया कि शहर स्मार्ट सिटी भी बन सकता है और आदर्श गांव भी बन सकता है। गांव के लोगों को सभी सुविधाएं उपलब्ध करा कर शहरों को भी अच्छा बनाया जा रहा है। तीसरा विवाद हमेशा ही रहा कि सरकार बाबू चला रहे हैं या चुने गए प्रतिनिधि चला रहे हैं। यह विवाद भी समाप्त किया। संविधान का प्रावधान है कि चुने हुए प्रतिनिधि नीति बनातेे हैैं और नीति को आमली जाना पहनाने का काम बाबू करते हैं।
देश की विदेश नीति को फिर से एक बार गढ़ने का काम भी नरेन्द्र मोदी सरकार ने किया। उन्होंने समानता के आधार पर विदेश नीति को चलाने का काम किया- चाहे वे भूटान में जाते हों, चाहे अमेरिका में जाते हों। जब वह भूटान में जाते हैं तो बड़े भाई का व्यवहार नहीं होता और अमेरिका में जाते हैं तब भी आंख में आंख डाल कर बात करने का साहस नरेन्द्र मोदी जी में है।
हमारी भारतीयों की कल्पना थी कि समानता के आधार पर विदेशी राष्ट्रों के साथ संवाद करना। कहीं किसी को छोटा भी न दिखाया और किसी से दबने की भी जरूरत नहीं है। इस नई विदेश नीति का आगाज नरेन्द्र मोदी जी ने किया।

उन्होंने एक महत्वपूर्ण काम किया है वो यह है कि भारतीयों को जगाने का उन्होंने कार्य किया। भारतवंशियों को जागरूक करने का काम भी उन्होंने किया। दुनिया में जहां-जहां गए, भारतीय मूूल के लोग जहां-जहां रहते हैं, वह लाखों की संख्या में आए और नरेन्द्र मोदी के समक्ष एकजुट होकर पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि दुनिया में फैले भारतवंशी एक बहुत बड़ी ताकत है। आज दुनिया इसे स्वीकार करती है। भारत के विकास में भी उन्हें सीधे जोड़ने का काम किया।

विदेश नीति और सुरक्षा नीति के घालमेल को मोदी जी ने समाप्त कर दिया। हकिकत में 2014 के पहले इस देश की कोई सुरक्षा नीति ही नहीं थी। विदेश नीति ही सुरक्षा नीति को ओवरलैप कर गई थी। शांति रखिए, ऐसा न करें, वैसा न करें ये करेंगे तो वो क्या सोचेंगे, इसका क्या कमेंट आएगा, उनका क्या रिएक्शन आएगा।

कानून बनाना है तो भी चिंता, और देश की सुरक्षा करनी है तो वह भी एक चिंता। नरेन्द्र मोदी जी ने स्पष्ट कर दिया कि हम पर कोई हमला करेगा तो उसको जवाब दिया जाएगा। जब उरी और पुलवामा पर हमला हुआ उन्होंने दोनों बार सर्जिकल स्ट्राइक और एअर स्ट्राइक कर एक मजबूत राष्ट्र का संदेश दुनिया भर में दिया। जो भारत की सीमाओं का सम्मान नहीं करेगा उसे दंडित किया जाएगा। भारतीय सेना के जवानों पर हमला होगा तो हमलावरों को छोड़ा नहीं जाएगा। कई प्रकार की सुरक्षा नीतियों का आगाज नरेन्द्र मोदी जी ने दिया है।

कृषि के क्षेत्र में भी उन्होंने अमूलाग्र परिवर्तन किए हैं।
पार्टियों के घोषणापत्र केवल घोषणापत्र बन कर रह गए थे। मैं आपको दावे के साथ कह सकता हूं, 2014 का घोषणापत्र उठा कर देख लीजिए, भारतीय जनता पार्टी ने घोषणापत्र के 90 फीसदी से अधिक वादों का काम पूरा कर लिया है।

वर्षों से लंबित मुद्दे थे। जिन्हें छूने से भी लोग डरते थे। सब मानते थे कि लंबित मुद्दों का हल होना चाहिए। चाहे 370, 35ए हटाना हो, शरणार्थियों को नागरिकता देनी हो, श्रीराम मंदिर के मुद्दे पर स्पष्ट स्टैण्ड लेना है, ट्रिपल तलाक हटाना हो। इन सारे विवादित मुद्दों को छूने से डरते थे। नरेन्द्र मोदी जी ने स्पष्टता के साथ इन सारे मुद्दों पर स्टैण्ड लेकर 70 साल से लंबित समस्याओं को समाप्त कर दिया। एक प्रकार से घोषणापत्र को गंभीरता भी मिल गई। पत्रकार लोग यहां बैठे हैं। वे भी अब देखते हैं कि आपके घोषणापत्र में क्या लिखा हैं। कुछ चीजें मेरे भी ध्यान में नहीं रहतीं तो वे कहते हैं कि भाजपा के घोषणापत्र में लिखा है। इस प्रकार से घोषणापत्र को गंभीरता देने का काम लोकतंत्र के अंदर शासन के प्रहरी के नाते घोषणापत्र को देख पाए, ऐसी संस्कृति को लाने का काम मोदी जी ने किया है। 1968 से लेकर 2014 तक देश को 3 नासूरों ने तबाह किया है। तुष्टीकरण, जातिवाद और परिवारवाद। मोदी जी ने 2014 के बाद इन तीनों नासूरों को समाप्त करने का काम किया। देश ने भी इन तीनों नासूरों से मुक्ति के लिए 2014 में फिर से नरेन्द्र मोदी को समर्थन दिया और बहुमत से विजयी बनाया।

क्या होगा, कैसे होगा, करेंगे तो ये नाराज हो जाएंगे, वो नाराज हो जाएंगे। वोट बैंक नाराज हो जाएंगे, लोग वोट नहीं देगे। इन सारे प्रश्नों को साइड में रख कर लोगतंत्र के अंदर आमूलाग्र रिफार्म करने का काम नरेन्द्र मोदी जी ने किया। इसका परिणाम यह होगा कि यदि अर्थतंत्र के संबध में 10 साल बाद कोई पीछे मुड़ कर देखेगा तो उन्हें पता चलेगा कि 2014 से 2020 के दौरान मोदी जी ने जो रिफार्म किए थे, उसी के अच्छे फल आज मिल रहे हैं।

नरेन्द्र मोदी सरकार ने कभी भी कोई फैसला लोगों को अच्छा लगे इसलिए नहीं लिया। पहले की सरकारें लोगों को अच्छा लगे इसलिए फैसलें लेती थीं, क्योंकि उन्हें वोट बैंक का लालच था। नरेन्द्र मोदी ने लोगों के लिए अच्छा हो इसलिए फैसले किए हैं; न कि लोगों को अच्छा लगे इसके लिए। इसमें मूलभूत अंतर है। अपने ही लोगों से कटुता लेने का साहस करना बहुत बड़ी बात है और नरेन्द्र मोदी जी ने राजनीति में ऐसा किया है। बड़े समय के बाद देश को ऐसा नेता मिला है। जिसने देशहित में फैसले लेने का साहस किया।

एक देश एक चुनाव की कल्पना भारत के सामने उन्होंने रखी है। बार-बार होने वाले चुनाव देश के अर्थतंत्र को भी क्षति पहुंचाते हैं और देश के विकास की सुरक्षा में भी बाध्य उत्पन्न करते है। इस दिशा में भी काम करने की योजना बनाई जा रही है। फिर से गुजरात की तरह जन संवाद वाला मॉडल भी नरेन्द्र भाई ने अपनाया है।

शायद पहली बार आजादी के बाद देश को ऐसा प्रधानमंत्री मिला है कि शनिवार -रविवार आया नहीं और वह जनता के बीच गए नहीं। लाखों की भीड़ के साथ संवाद स्थापित कर मोदी जी ने इतिहास रचा दिया है। चाहे वह नॉर्थ ईस्ट हो, चाहे कश्मीर हो, चाहे लद्दाख हो, चाहे कन्याकुमारी में स्थित स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा के पास जाकर उनका ध्यान करना हो। भारत के कोने-कोने में हर जगह उनका प्रवास हुआ है और ये जनस्वीकृती इसी के माध्यम से आई है।

मैं आग्रहपूर्वक कहना चाहता हुू कि भारतीय भाषाओं के प्रति नरेन्द्र मोदी जी का जो समर्पण है। ऐसा प्रधानमंत्री दूरबीन लेकर ढूढ़ेंगे तो नहीं मिलेगा। दुनिया को आज हिंदी सुनने की आदत हो गई है। हिंदी भाषा सुनने समझने के लिए विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को अनुवाद की सहायता लेनी पड़ती है। किसी भी फोरम में वह जाए। निसंकोच फर्राटेदार हिंदी में भाषण कर उन्होंने अच्छी राष्ट्रभाषा, राज्यभाषा, भारतीय भाषाओं का सम्मान बढ़ाया है। मैं मानता हूं कि यह हमारा दायित्व था, संविधान ने भी इसकी पृष्टि की है। हमारी भाषाओं का संरक्षण करना हमारी संसद व विधानसभाओं का दायित्व है, कर्तव्य है। उस दायित्व की ओर ज्यादा लंबा भाषण किए बगैर कर्तृत्व से देश को प्रेरत करने वाला कोई नेता बड़े लंबे समय के बाद आया है तो वह नरेन्द्र मोदी है।

मित्रों, मोदी जी पर बहुत कुछ कहा जा सकता है लेकिन समय की भी मर्यादा है, इसलिए मेरे वक्तव्य को विराम देते हुए मैं केवल इतना ही कहना चाहता हूं कि नरेन्द्र मोदी जी बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं। एक कुशल संगठक हैं। एक कुशल और कठोर प्रशासक हैं। एक प्रकार से स्टेट्समैन भी हैं। एक लीडर सेेनापति के रूप में भी मैंने उनको देखा है। यदि सबको मिला कर देखते हैं तो समर्थ रामदास जी की जो कल्पना थी ‘उपभोगशून्य स्वामी’ इस कल्पना को नरेन्द्र मोदी जी ने चरितार्थ किया है।
मोदी जी की नए भारत की कल्पना को जनता ने भी स्वीकार किया है और ‘हिंदी विवेक’ ने अपने दशकपूर्ति वर्ष के मौके पर ‘कर्मयोद्धा’ ग्रंथ प्रकाशित कर उचित व सराहनीय कार्य किया है। इसलिए मैं पार्टी के अध्यक्ष के नाते उनको बहुत-बहुत साधुवाद देकर मेरी बात को समाप्त करता हूं। भारत माता की जय…

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