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भाजपा के हाथ से फिसलते राज्यों के बहाने

by अभिमन्यु कुमार
in राजनीति
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मार्च 2018 के बाद एक के बाद एक 5 बड़े राज्य भारतीय जनता पार्टी के हाथ से फिसल चुके हैं। मगर ध्यान देने योग्य बात यह है कि महाराष्ट्र छोड़कर राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और अब झारखण्ड राज्यों में कांग्रेस और उसके संगी-साथियों ने बहुमत लेकर भाजपा के हाथ से सत्ता छीन ली है। ये सभी राज्य हिंदी बेल्ट के हैं जो भारतीय जनता पार्टी का मजबूत गढ़ मानी जाती हैं। महाराष्ट्र में जरूर भाजपा को शिवसेना के विश्वासघात का शिकार होना पड़ा है। शिवसेना के प्रति भाजपा की सदाशयता खुद भाजपा पर ही भारी पड़ी है

मई 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी के संसद में पूर्ण बहुमत के साथ भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने देश-विदेश में जो ऊँचाइयाँ पायी हैं तथा देश की जिन जटिल समस्याओं का सफलतापूर्वक समाधान निकाला है वैसा इतिहास में दुर्लभ ही देखने को मिलता है। आज भारतीय जनता पार्टी के पास प्रधानमंत्री के रूप में ऐसा विचारवान, ऊर्जावान, संकल्पवान और कर्मशील नेता है जिसकी पुरजोर अपील देश भर में सुनी जाती है। इसके आलावा अमित शाह के अध्यक्षीय कार्यकाल में भाजपा न केवल विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनी वरन देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में भी विस्तार कर वह वास्तविक स्वरूप में भारत की अखिल भारतीय पार्टी बन गयी।

प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी पारी शुरू होने के बाद अब तक केवल 3 राज्य हरयाणा, महाराष्ट्र और झारखण्ड में विधानसभा चुनाव हुए हैं। पार्टी की आशानुरुप तीनों ही राज्यों में भाजपा ने 5 वर्ष तक स्थिर सरकार दी और हर प्रदेश में भाजपा की राज्य सरकारों ने पूर्ववर्ती सरकारों से बेहतर काम किया। परन्तु मुख्यमंत्री अपने-अपने प्रदेशों में मौजूद जातीय समीकरण साधने में पूरी तरह कामयाब न हो सके। परिणाम सामने है।  2019 के विधानसभा चुनाव में हालाँकि हरयाणा और महाराष्ट्र में भाजपा ने राज्य में सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा बरकरार रखा और हरयाणा में दुष्यंत चौटाला की नवोदित पार्टी के साथ मिलकर सरकार भी बना ली परन्तु झारखण्ड में पार्टी दूसरे नंबर पर खिसक गयी।

भाजपा कह सकती है कि ऐन मौके पर अगर आजसू से गठबंधन न टूटता तो झारखण्ड में परिणाम उसके पक्ष में होते।लेकिन महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद शिवसेना ने जिस प्रकार के तेवर अपनाये उनको देखते हुए सीट बँटवारे को लेकर आजसू द्वारा की जाने वाली अनुचित बार्गेनिंग की कोशिश राजनीति में दूर की कोड़ी नहीं कही जा सकती। फिर भी सवाल तो बनता है कि 5 साल तक किये गए विकास कार्य धरातल पर दिखने के बावजूद झारखण्ड में भाजपा दूसरे नंबर पर क्योंकर पहुंच गयी ? चूक कहाँ हो गयी? जिस प्रकार हरयाणा व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने पूरे कार्यकाल के दौरान अपनी कार्यशैली से जनता के बीच साफ-सुथरी छवि बनाये रखी क्या झारखण्ड के मुख्यमंत्री की छवि के बारे में भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पास वैसी ही जानकारी थी? क्योंकि झारखण्ड में सामान्यतयाः मीडिया सहित कोई भी मुख्यमंत्री की ईमानदारी की दुहाई नहीं दे रहा था।कोढ़ में खाज़ तब पैदा हो गयी जब सरयू राय जैसे स्वच्छ छवि रखने वाले नेता को टिकिट देते समय योग्य सम्मान नहीं दिया गया और उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया। आजसू से गठबंधन टूटने के बाद अन्य पार्टियों से आने वाले नेताओं को टिकिट थमाना भी कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आया। इस वजह से भी भाजपा को कई सीट पार्टी को गवांनी पड़ी।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने तक भारतीय जनता पार्टी कमोवेश मध्यम वर्ग की पार्टी मानी जाती थी। या यूँ भी कह सकते है कि भाजपा गरीबों की पसंददीदा पार्टी नहीं थी। लेकिन मोदी सरकार जिस प्रकार शुरुआत से ही गरीबों के सशक्तिकरण का बीड़ा उठा कर चली। उनके बैंक अकाउंट खुलवाये, 1 रुपया प्रति माह के प्रीमियम पर 2 लाख रूपये का दुर्घटना बीमा और 330 रुपया सालाना प्रीमियम पर 2 लाख रुपया का जीवन बीमा उपलब्ध कराया,सब्सिडी का पैसा सीधे उनके खाते में डाला, शौचालय बनवाकर उन्हें इज्जत बख्शी, मुफ्त बिजली और गैस कनेक्शन दिए, पक्के मकान दिये तो गरीबों ने भी उसे जी भरकर समर्थन दिया। परिणामस्वरूप देखते ही देखते देश के 21 राज्यों में भाजपा का परचम लहराने लगा। और देश की जनता ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अकेले भाजपा की झोली में 303 सीट डाल दीं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले और बाद में हुए राज्यों के चुनाव में उसी जनता ने भाजपा को विपक्ष में बैठा दिया। ऐसा तब हुआ जब इन सभी राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी की प्रत्येक जनसभा में जन सैलाब पुरे जोश-खरोश के साथ उमड़ता रहा। कल्पना की जा सकती है कि अगर राज्यों के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की ताबड़तोड़ जनसभाएं आयोजित न की गयी होती तो क्या परिणाम आते?

भारतीय जनता पार्टी एक गतिमान और उर्वरा राजनितिक दल है। पार्टी की रीति-नीति ऐसी है कि उसमें नेताओं की दूसरी/तीसरी पांत स्वतः ही तैयार होती रहती है।यही कारण है कि 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद एक के बाद एक देश के 21 राज्यों में भाजपा सत्तारूढ़ होती चली गयी। देश और दुनिया ने देखा कि इनमे से ज्यादातर राज्यों में भाजपा ने नये-नये कार्यकर्ताओं को राज्य सरकार की कमान सौंपी। लेकिन मार्च 2018 के बाद सिलसिला उलट गया। विपक्ष जब अपने अस्तित्व को बचाने के संकट से जूझ रहा हो। समाज में निहित स्वार्थी तत्वों को लगातार बरगलाने,उकसाने,भड़काने की राजनीति कर रहा हो। यहां तक कि उसे देश में अराजकता फ़ैलाने में भी कोई संकोच न हो। तब भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष की हर संभावित चुनौती से निपटने के लिए सदैव सन्नद्ध रहना होगा। संयोग से भाजपा के पास भाजपा कार्यकर्ताओं के आलावा ऐसे अनेक देव-दुर्लभ कार्यकर्ता उपलब्ध हैं जोकि देश भर में वर्षानुवर्ष समाज के विभिन्न वर्गों के बीच काम करने के कारण जनता की नब्ज अच्छी तरह पहचानते हैं। इसके बावजूद भाजपा के सामने कहीं न टिकने वाला विपक्ष यदि 5 बड़े राज्य एक के बाद एक भाजपा से झटक ले तो कैसे मान लिया जाये कि भाजपा में सब कुछ सामान्य चल रहा है?

भारतीय जनता पार्टी आजकल लगातार पॉलिटिक्स ऑफ़ परफॉरमेंस पर जोर दे रही है। इसके मायने क्या हैं? क्या भारतीय जनता पार्टी राज्य के मुख्यमंत्री की जन-छवि को पॉलिटिक्स ऑफ़ परफॉरमेंस का अवयव मानती है? यदि हाँ, तो मुख्यमंत्री की जन-छवि का आंकलन पार्टी किस आधार पर करती है? ये प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सामान्य जनधारणा है कि झारखण्ड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य भाजपा को मुख्यमंत्रियों की जन-छवि को लेकर ही खोने पड़े हैं। दूसरा पहलू है जन संवेदनाओं को पहचानना उन्हें अभिव्यक्ति देना और उनका समाधान ढूँढना। गुजरात में तीन लड़कों के कारण  पार्टी को जो लेने के देने पड़े हैं वह इसका जीता-जागता सबूत है। भारतीय जनता पार्टी के अधिकांश नेता चूँकि संगठन की उपज हैं, स्वभावतः उनसे इस पक्ष की थोड़ा अनदेखी हो जाती है। पार्टी को इस विषय पर यथोचित ध्यान देने की आवश्यकता है। विशेषकर तब जबकि भाजपा का स्टेटस जनमानस में शासक दल का हो गया हो। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का व्यवहार इस मामले में अपवाद स्वरुप हैं।

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहते अमित शाह ने कई बार सार्वजनिक तौर पर दोहराया है कि आगामी कम से कम 30 वर्ष तक देश के सभी राज्यों में भाजपा की सरकार बनेगी। इसका रोडमैप बताते हुए उन्होंने कहा  कि भाजपा आने वाले हर चुनाव में 50% से अधिक वोट पाने का लक्ष्य लेकर काम करेगी। फिर गड़बड़ कहाँ है? इसका सटीक आँकलन तो भारतीय जनता पार्टी को ही करना होगा। मगर यदि लोगों की माने तो भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं सहित संसद से लेकर ग्रामसभा तक जनप्रतिनिधियों की भाषा, भाव-भंगिमा, आचरण और व्यवहार पर विशेष ध्यान देना होगा। विनम्रता, वाणी में संयम और जनसंवेदनशील आचरण के बगैर कोई भी राजनितिक दल लोकतंत्र में लम्बे समय तक सत्ता में नहीं बना रह सकता। विडम्ब्ना यह है कि प्रधानमंत्री मोदी के बार-बार चेताने के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं आ पा रहे।

सफलता नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाती है। उत्साह से जब नेताओं और कार्यकर्ताओं के गुणधर्म में वृद्धि होती है तब सफलता टिकाऊ होती है। आज भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सर्वस्वीकार्यता बन चुकी है। उसके बावजूद भाजपा के कितने नेता और कार्यकर्ता उनका अनुसरण करते दिखाई पड़ते हैं? मुंबई से प्रकाशित हिंदी विवेक मासिक पत्रिका ने दशकपूर्ति वर्ष के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर ‘कर्मयोद्धा’ नामक ग्रंथ का प्रकाशन किया है जिसका विमोचन 7 जनवरी 2020 को महाराष्ट्र सदन, नई दिल्ली में भारत के गृहमंत्री अमित शाह के हाथों सम्पन्न हुआ। उस पवन अवसर पर मुझे भी उपस्थित रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उक्त अवसर पर नरेंद्र मोदी के जीवन पर अपने विचार व्यक्त करते समय गृहमंत्री अमित शाह ने एक बहुत ही नायाब किन्तु 100 % सटीक शब्द का उपयोग किया। उन्होंने प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी को ‘उपभोगशून्य’ राजनेता बताया। बात दिल को छू गयी। एक शब्द में अमित शाह ने नरेंद्र मोदी के पूरे जीवन को चित्रित कर दिया।

भारत ऋषि-मुनियों का देश है। त्याग, तपस्या और समाज के प्रति पूर्ण समर्पण आज भी भारत की आबोहवा में रचा-बसा है। जिसका भी जीवन भारत की इस प्राणवायु से संचारित होता दिखाई देता है भारत के लोग उसे अपने दिलो-दिमाग में बैठा लेते हैं। अगर भारतीय जनता पार्टी भारत को दुनिया का सिरमौर देश बनाने के लिए लम्बे समय तक शासन-सूत्र अपने हाथों में रखना चाहती है तो उसे  हर राज्य में ”उपभोगशून्य’ राजनेताओं की मिसाल कायम करनी होगी। ताकि त्याग, तपस्या और समाज के प्रति पूर्ण समर्पण की प्रतिछाया हर राज्य में लोगों के सामने प्रत्यक्ष दिखाई दे सके। भारतीय जनता पार्टी के पास यही वो ब्रह्मास्त्र है जिसकी काट देश की अन्य किसी भी राजनीतिक पार्टी के पास न तो आज है और न कल हो सकती है। भारतीय जनता पार्टी से देश को बड़ी उम्मीदें हैं।अतः शक्तिशाली, समृद्ध, सम्पन्न और सुखी भारत बनाने के लिए भाजपा को जनता की हर कसौटी पर खरा उतरने के लिए कमर कसनी ही होगी।

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