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 फिल्मों की अनोखी बारिश

 फिल्मों की अनोखी बारिश

by दिलीप ठाकुर
in जुलाई -२०१५, फिल्म
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हिंदी फिल्मों और बारिश का बहुत गहरा संबंध है। फिल्मों में आने के मौके इस ॠतु को गर्मी और ठंड की तुलना में कुछ ज्यादा ही मिले हैं।

‘परख’ के ओ….सजना बरखा बहार आई से लेकर ‘अजनबी’ के भीगी-भीगी रातों में मीठी-मीठी बातों में तक और ‘जैसे को तैसा’ के अबके सावन में भी गिरे से लेकर ‘मोहरा’ के टिप टिप बरसा पानी तक कई गीतों ने दर्शकों को खूब भिगोया है। हालांकि इनमें से अधिकांश गीतों में बारिश में भीगी नायिका के ग्लैमरस लुक को दिखाने का ही अधिक प्रयास हुआ है। हर फिल्मी दौर में नायिकाएं इस फिल्मी बारिश में सराबोर हुई हैं। लेकिन हिंदी फिल्मों ने बारिश को यहीं तक मर्यादित नहीं रखा। कई फिल्मों में बारिश ने अपने कुछ अलग रूप भी दिखाए हैं।

बिमल रॉय की दो बीघा जमीन बारिश पर आधारित अभी तक की सबसे बेहतरीन फिल्म कही जाती है। गांव में बारिश न होने के कारण सूखे की मार झेल रहे दंपति (बलराज साहनी-निरूपा रॉय) कोलकाता में रोजगार की तलाश में आते हैं। गर्मी की मार झेलता हुआ पति मानवरिक्शा चलाता है और जैसे-तैसे अपने परिवार का भरण-पोषण करता है। बारिश न होने कारण किसी परिवार की अवस्था कितनी बिकट हो सकती है यह देखकर मन उदास हो जाता है। एक सामाजिक समस्या को सामने लाने में यह फिल्म सफल साबित हुई है। फिल्मों के अध्ययन में इसका उल्लेखनीय स्थान है।

विजय आनंद के द्वारा निर्देशित ‘गाइड’ में भी राजू गाइड (देव आनंद) गांव में बारिश होने और किसानों को दिलासा देने के लिए दीर्घकालीन ध्यान करने का निर्णय लेता है। आखिरकार भगवान प्रसन्न होते हैं और बारिश होती है। परंतु दुर्भाग्य से राजू गाइड का निधन हो जाता है। वैसे तो यह फिल्म राजू गाईड और विवाहित रोजी (वहीदा रहमान) की नजदीकियों से बने संबंध पर आधारित है परंतु कथा मेघ दे पानी दे के रूप में बदलती है।

एम.एस. मैथ्यू निर्देशित ‘सूखा’ में ग्रामीण भाग में बरसात के मौसम में बारिश न होने के कारण सूखा पड़ता है। इस पर सामूहिक रूप से उपाय ढूंढने के स्थान पर कुछ स्थानीय महत्वाकांक्षी नेता राजनीति करते हैं। और एक भयानक वास्तविकता सामने आती है।

आशुतोष गोवारीकर निर्देशित ‘लगान’ में भी हमें बारिश की राह देखने वाले चिंतित किसान दिखाई देते हैं। बारिश भले ही हो जाए परंतु अंग्रेजों द्वारा लगाए गए तीन गुना लगान को हटाने के लिए वे अंग्रजों के साथ क्रिकेट खेलते हैं। रोमांचकारी खेल में किसानों की जीत होती है। सौ-सवा सौ साल पूर्व एक गांव में यह घटना घटित होती है।

बारिश की प्रतीक्षा करना हमारे ग्रामीण जीवन की भयानक वास्तविकता है। उस पर कथा-पटकथा रचकर हिंदी फिल्मवालों ने इसे वास्तविकता के करीब लाने का प्रयत्न किया है। इसे हिंदी फिल्म की अलग तरह की कलात्मकता कही जा सकती है।
अमोल पालेकर द्वारा निर्देशित थोड़ा सा रूमानी हो जाए में हमें जीने के सपने दिखाने वाला व्यक्ति दिखाई पड़ता है। पिल्म में नाना पाटेकर अलग अंदाज में नजर आतेे हैं। फिल्म में अभिनय के माध्यम से उन्होंने जो विश्वास जगाया है वह अत्यंत महत्वपूर्ण है। अमोल पालेकर की यह अंतरराष्ट्रीय दर्जेकी आशयपूर्ण फिल्म कही जा सकती है।

अनंत बालानी निर्देशित ‘चमेली’ में अनोखी बरसात देखने को मिलती है। मुंबई में एक रात को हो रही मूसलाधार बारिश से बचने के लिए फिल्म का सीधा-साधा सज्जन नायक राहुल बोस एक कोने में खड़ा हो जाता है। ठीक उसी समय उस इलाके में शरीर विक्रय करने वाली ‘चमेली‘(करीना कपूर) भी बारिश से बचने के लिए वहां पहुंचती है। बहुत देर तक बारिश न रुकने के कारण उन दोनों के बीच बातें शुरू होती हैं, पहचान होती है और कहानी की शुरुआत होती है। फिल्म की कहानी अच्छी थी। बारिश के कारण दो भिन्न-भिन्न स्वभाव के लोग साथ आते हैं। राहुल बोस का सहज सरल अभिनय और करीना कपूर का सौंदर्य दोनों के दर्शन इस फिल्म के माध्यम से होते हैं।

रणधीर कपूर की ‘हिना’ में बारिश ने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया है, जो अपनी मंगनी की शाम नायक (ॠषि कपूर) अपने कार्यालय से घर आने के लिए निकलता है, तभी अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है और दुर्भाग्य से वह दुर्घटना का शिकार हो जाता है। वह नदी में गिर जाता है और बहते हुए पाकिस्तान चला जाता है। उसकी याददाश्त भी चली जाती है। वह एक नया जीवन जीने लगता है। वह पाकिस्तान की एक लड़की ‘हिना’ (जेबा बख्तियार) से प्रेम करने लगता है। फिर एक बार मूसलाधार बारिश होती है और धीरे-धीरे उसकी याददाश्त वापस आ जाती है। उसे यााद आता है कि वह हिंदुस्तानी है। फिर क्या? प्यार को किसी भी देश धर्म पंथ की सीमा में नहीं बांधा जा सकता यह बताना ही इस फिल्म का उद्देश्य था। हालांकि शो-मैन राज कपूर का यह बहुत पुराना स्वप्न था। उन्होंने ‘हिना’ के दो गीतों का ध्वनि मुद्रण भी किया। राज कपूर के निधन के बाद रणधीर कपूर ने अपने पिता का यह सपना पूरा किया।

फिल्मों के नामों (बादल, बरसात, बरसात की एक रात) से लेकर कई अन्य दृश्यों में दर्शकों को बारिश ने भिगोया है। राजेश खन्ना ‘दो रास्ते’, ‘प्रेम कहानी’, ‘रोटी’, ’शहजादे’, ‘अजनबी’, ‘प्रेमनगर’, ‘अपना देश’, ‘छैला बाबू’, ‘कटी पतंग’ आदि अनेक फिल्मों में भीगते हुए दिखाई दिए। बारिश के अलग-अलग रंगों में भीगे हुए शायद वे अनोखे स्टार हैं।

Tags: actorsbollywooddirectiondirectorsdramafilmfilmmakinghindi vivekhindi vivek magazinemusicphotoscreenwritingscriptvideo

दिलीप ठाकुर

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