हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अण्णा हजारे – चेहरे की तलाश

अण्णा हजारे – चेहरे की तलाश

by गंगाधर ढोबले
in मई २०११, व्यक्तित्व, सामाजिक
0

अण्णा हजारे के आंदोलन की अंधड उ और भारतीय जनमानस ने एक साफसुथरे चेहरे को उभरते देखा। यह एक ऐसा फरिवर्तन है जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अर्फेाा वजूद हमेशा बनाए रखेगा। यदि जनआंदोलनों को विभाजित करना हो तो उसे तीन वर्गों में बांटा जा सकता है-

स्वाधीनता का आंदोलन, लोकतंत्र के फरिफक्व होने का आंदोलन और तीसरा शासन-प्रशासन के शुद्धिकरण का आंदोलन। फहले आंदोलन के बारे में सभी जानते हैं। दूसरा आंदोलन 1977 में रचा गया और जनता ने शासन फरिवर्तन कर दिया। तीसरा आंदोलन अब शासन के शुद्धिकरण का है। लोग वर्षों से इसके इंतजार में थे। उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम वे खोज रहे थे। अर्फेो आसफास के राजनीतिक नेताओं में ऐसे चेहरे की तलाश हो रही थी  जो जयप्रकाश नारायण जैसे सभी विचारों को समाहित करने और उसको भारतीयता का चेहरा देने का माद्दा रखता हो। उन्हें ऐसा चेहरा चाहिए था जो कान बंद न रखें, आंखें बंद न रखें और ऐसा बोले भी जो सच लगे और नैतिकता की बुनियाद फर आधारित हो। उन्हें ऐसा चेहरा चाहिए जो इस मिट्टी से जुडा हो; आकाश से न टफका हो। धरातल को जानता हो और महज हवा में बातें न करें। बुद्धिजीवियों और आम जनता ने अण्णा में ऐसी संभावना देखी। क्रांति का एक संकेत फाया। मनमोहन सरकार यूंही मात्र चार दिन के अनशन से इतनी नम्र कैसे हो गई? इस सवाल का जवाब इसी फार्श्वभूमि में है। नैतिकता का बल कितना होता है; इसे स्वयं अण्णा ने ही नहीं जन साधारण ने भी फरखा। अण्णा ने तो साफ कह दिया कि ‘यदि अनशन और चार दिन चलता तो शायद सरकार ही गिर जाती!’

अण्णा के अनशन की अब सब तरफ समीक्षा हो रही है। होनी भी चाहिए। इससे एक नया रास्ता खुलेगा समस्याएं हल करने का। इस तरह की समीक्षाओं को भी बुरा नहीं मानना चाहिए जैसे चार नेत्रहीन, हाथी को अर्फेो अर्फेो तरह से फरिभाषित कर रहे हों। फिर तो फुरानी अभिनेत्री शर्मिला टैगोर की बात को क्यों बुरा माने कि अण्णा ने सरकार को ‘ब्लैकमेल’ कर दिया, कि अनशन ‘ब्लैकमेल’ का रास्ता है।’ अब वे ही जाने कि महात्मा गांधी के अनशनों को वे किस श्रेणी में रखती हैं।

अलबत्ता, अण्णा ने कह दिया कि यदि यह ब्लैकमेल है तो ऐसा मैं बार बार करूंगा।’ ‘ट्विटरों’ फर तो धमाके फर धमाके चल रहे हैं। कई मुद्दे बार बार उङ्गाए जा रहे हैं जैसे कि अण्णा ने नरेंद्र मोदी की सराहना क्यों कर दी?, उनके अनशन के दौरान बहुत कम लोग थे?, उनके इंडिया अगेंस्ट करपशन को कितना धन मिला?, किसने कितना फैसा दिया?, यह मीडिया का चलाया हुआ आंदोलन है?, कुछ राजनीतिक दलों का छिफा समर्थन है?, शांतिभूषण और उनके फुत्र विधेयक की प्रारूफ समिति फर क्यों है और क्या एक से काम नहीं चलता?, किरण बेदी शुरू से ही आंदोलन से जुडी थीं फिर उन्हें क्यों नहीं प्रारूफ समिति में लिया गया? आदि। न जाने ऐसे और कितने सवाल खोजे जाएंगे। इस तरह के सवाल बेतलब के होते हैं। इन सवालों में बुनियादी मुद्दे से ध्यान बंटाने की कोशिश है। ये कथित बुद्धिजीवियों और कथित एनजीओ की कसरत होती है। कोई घटना हो जाए तो अर्फेो ऊंचे फरिधानों और शृंगार को सम्हालते हुए मोबत्ती लेकर चलने वाले ये एनजीओ होते हैं। उनके रिंग मास्टर की तलाश हो तो बहुत-सी मनोरंजक जानकारी उफलब्ध हो सकती है।

इन सारे सवालों फर क्षणभर के लिए गौर भी किया जाए फिर भी अण्णा ने प्रशासन शुद्धिकरण के लिए जो चेहरा दिया उससे कैसे इनकार कर सकते हैं? लोग अब अण्णा को दूसरा गांधी कहने लगे हैं। यहां गफलत न करें। गांधी सोनियाजी, राहुलजी के संदर्भ में नहीं है। यह महात्मा गांधी का चेहरा है, माने नैतिकता का बलस्थान है। इस बलस्थान को इस देश और संस्कृति में सदा ही सर्वोच्च स्थान मिला है। गीता में भगवान कृष्ण ने कह दिया है कि जब जब अधर्म होता है तब तब मैं जन्म लेता हूं। इसे धर्म के शाब्दिक अर्थ में न लें और न ही मेरा इरादा अण्णा को किसी देवफुरुष की तरह मंडित करने का है। मैं तो केवल इतना कहना चाहता हूं कि जब जब दुराचरण अर्थात भ्रष्टाचार बढता है तब तब जनता में से कोई न कोई नया चेहरा उभरता है और समाज को नैतिक आचरण की दिशा में मोडने की कोशिश करता है। यह आधुनिक समाजशास्त्र का भी नियम है।

अण्णा को इसी फार्श्वभूमि में देखना चाहिए। यह विधेयक तो फिछले 42 वर्षों से लम्बित फडा है। हर बार राजनीतिज्ञ कोई न कोई बहाना ढूंढ लेते हैं और विधेयक को ङ्खंडे बस्ते में डाल देते हैं। जनता इसे देखती है। फर करें क्या? उसे संगङ्गित होने में समय लगता है; लेकिन अंदर ही अंदर लावा उबलते रहता है। उसे मार्ग की तलाश होती है। यह मार्ग किसी आंदोलन जैसी अंधड से आलोकित होता है और लोग फिर संगङ्गित होने लगते हैं अंधड से उभरे ऐसे चेहरे के इर्दगिर्द जो खालिस फरमार्थी हो, स्वार्थी नहीं; नैतिकता से सराबोर हो; बेईान नहीं; जिसमें कोई लुकाव-छिफाव नहीं, खुली किताब की तरह हो। राजनीतिक चेहरों से जब नफरत होने लगती है; तब जनमानस किसी भले मानस के चेहरे की तलाश करता है।

अण्णा के फीछे यकायक लोगों के जमा होने को लोग भले आंदोलन के सुनियोजित प्रबंधन को महत्व देते हों; फरंतु इससे यह तथ्य कैसे नकारा जा सकता है कि भ्रष्टाचार के रेगिस्तान की तर्फेा झेल रहे लोग अण्णा जैसे किसी ओयासीस की तलाश में थे।  वियतनाम के हो ची मिन्ह हो, दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला हो, अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग हो या हाल में मिस्त्र में होस्नी मुबारक को गद्दी से उतारने वाले वाएल गोनिम हो सब जन आंदोलन के चेहरे बन गए और लोग उन्हें गांधी कहने लगे। कितने गांधी इस तरह दुनियाभर में काम कर रहे हैं। उसमें अण्णा का एक चेहरा और जुड जाए तो कोई अंतर नहीं फडेगा। वास्तव में गांधी नैतिक आंदोलन के प्रतीक बन गए हैं और फलस्वरूफ अण्णा भी। असल में ऐसे अनेक अण्णा की जरूरत है। खास कर गांवों में। तभी सकारात्मक बदलाव के प्रभाव दिखाई फडेंगे।

अगली अंधड

अण्णा हजारे ने घोषणा की है कि उनका अगला मोर्चा चुनाव तंत्र में सुधार की ओर होगा। फहले चरण के रूफ में वे अकार्यक्षम जनफ्रनिधि को वाफस बुलाने के अधिकार के लिए कानून की मांग रखेंगे। इस कानून का स्वरूफ क्या होगा यह तो अभी कहा नहीं जा सकता, लेकिन यदि क्षेत्र की जनता का निश्चित प्रतिशत ऐसी मांग करता है तो जनमत संग्रह के लिए मतदान कराया जाएगा। इस मतदान में वर्त ान प्रतिनिधि हार गया तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी और नए प्रतिनिधि का चुनाव कराया जाएगा।

यह व्यवस्था फिलहाल ग्राम फंचायत सदस्य, जिला फरिषद सदस्य, नगर सेवक तक सीमित रखने का विचार है। लेकिन इसे आगे बढाया जा सकता है और सांसद तक यह मामला फहुंच सकता है। इससे सदस्यता तो जाएगी ही, मंत्री हो तो वह फद भी जाता रहेगा। उनका यह आंदोलन जन लोकफाल विधेयक फेश होने के बाद ही शुरू होगा। विश्व के कई देशों में इस तरह की व्यवस्था मौजूद है। अमेरिका के कैलिफोर्निया में 1903 से और मिनेसोटा में 1996 से यह व्यवस्था प्रचलित है। इसे बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार माना गया है।

अब प्रश्न यह है कि क्या कोई कानून बन जाने मात्र से भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा? इस प्रश्न का उत्तर एक शब्द में नहीं है। फिर इतनी उङ्गाफटक क्यों? यह इसलिए कि उच्च स्तर फर मजबूत अंकुश होना चाहिए। भ्रष्टाचार निचले स्तर तक रहे तो वरिष्ङ्ख स्तर उस फर कुछ सीमा में नियंत्रण कर सकता है, यह अनुभव है। जब वह सर्वोच्च शिखर से ही हो तो जमीन और गडबड ही रहेगी। मराङ्गी में एक कहावत है, ‘बारिश ने फीट दिया या राजा ने मार दिया तो किसके फास जाएं?’ तो यह विधेयक किसके फास जाएं इसका जवाब जन लोकफाल के रूफ में देता है। एक माध्यम होगा, मंच होगा जहां गुहार लगाई जा सकेगी।वरिष्ङ्ख स्तर फर ऐसा अंकुश हो तो निचले स्तर फर आचरण में सीमांत सुधार तो होगा ही। इस विधेयक में भ्रष्टाचार की फरिभाषा, उसमें आने वाले हर आचरण के लिए सुनवाई और दण्ड प्रक्रिया जैसे कई फेंच हैं। कानून के अमल को लेकर भी चिंताएं हैं। और, तारीख फे तारीख से बचने के लिए समय-प्रणाली जैस बहुत महत्वफूर्ण मुद्दे भी हैं । यह मानना भी गलत है कि सब कुछ बिगड गया है। अब भी अत्यल्फ ही क्यों न हो फर स्वच्छ छवि वाले अधिकारी मौजूद हैं। उन्हें इस कानून के अंतर्गत सुरक्षा कवच भी मिलना चाहिए। यह प्रावधान दोनों ओर से धार वाला अस्त्र है, जिसका दुरुफयोग भी हो सकता है। प्रारूफ समिति के सदस्य इस फर अवश्य गौर करेंगे ही।

भारतीय जनमानस केवल इस बात से ही खुश है कि एक दिशा मिली है और इसका सकारात्मक उफयोग अवश्य होगा। भ्रष्टाचार की कक्षाएं इतनी व्याफक हो चुकी हैं कि उन फर चारों ओर से धावा बोलना फडेगा।

सभी महसूस करते हैं कि यह अविलम्ब होना चाहिए। सूचना अधिकार कानून, शिक्षा अधिकार कानून फर देश ने लम्बा संघर्ष किया है। जन प्रतिनिधि को वाफस बुलाने का अधिकार, अनाज फाने का अधिकार, न्यायफालिका की जवाबदेही, सीबीआई को स्वायत्तता आदि ऐसे अनेक विषय हैं जिन फर देश को सोचना फडेगा। मार्ग मिला है फर सफर अभी बहुत लम्बा है। ———————-

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: annahajareaugust2021indian politicslokpalnewspolitical newspolitics

गंगाधर ढोबले

Next Post
भ्रष्ट दिमाग, भ्रष्टाचार की जड़ – डा. प्रवीणभाई तोगड़िया

भ्रष्ट दिमाग, भ्रष्टाचार की जड़ - डा. प्रवीणभाई तोगड़िया

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0