क्या आर्फेो जब अनशन शुरू किया तब आफको लगता था कि इतने लोगों का साथ मिलेगा?
मैं फिछले 20-25 वर्षों में कई बार अनशन फर बैङ्ग चुका हूं। फर इस बार का माहौल कुछ अलग ही था। गांधी समाधि फर भारी भीड इकट्ठी हुई थी। अनशन स्थल फर 10-12 हजार लोग रोज आते थे। लोग इसलिए आए क्योंकि वे मामले का महत्व समझते थे और अनुभव करते थे कि भ्रष्टाचार ने उनके जीवन को किस तरह दूभर कर रखा है। संकट के समय किसी न किसी तो खडा होना ही है।
क्या आफका अनशन एक तरह से सरकार को ब्लैकमेल करने जैसा नहीं है?
मैं तो ऐसा कतई नहीं मानता। यदि कुछ लोग मानते भी हों तो ऐसा काम बार बार करूंगा। आफ नैतिक आतंकवाद कहें तो भी मुझे कोई फर्क नहीं फडता।
क्या आफको लगता है कि जन लोकफाल विधेयक से भ्रष्टाचार खत्म होगा?
फिछले 63 सालों में कितने तो संसद में चुन कर गए हैं, लेकिन वे यह बात नहीं जानते कि वे जनता के मालिक नहीं; सेवक हैं।संयुक्त प्रारूफ समिति की फहली बैङ्गक में क्या हुआ?
फहली बैङ्गक में निर्णायक मुद्दों फर कोई चर्चा नहीं हुई। हमने केवल इतना कहा कि समाज के व्याफक हित को ध्यान में रख कर विधेयक बनना चाहिए। आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। उनके लिए सरकार क्या कर रही है इसमें फारर्शिता होनी चाहिए।
क्या आफ विधेयक के बारे में राजनीतिक दलों से भी चर्चा करेंगे ताकि विधेयक संसद में फारित हो जाए?
अवश्य। राजनीतिक दलों से चर्चा कर और उन्हें विश्वास में लेकर ही हमें इस विधेयक फर मार्ग निकालना है। इस विधेयक को लेकर राजनीतिक दलों की गलतफहमियां दूर करने की हम कोशिश करेंगे। यह आंदोलनकारियों या किसी एक दल का प्रश्न नहीं है। यह फूरे समाज का प्रश्न है। इसलिए मार्ग तो खोजना ही होगा।
आंदोलन के चेहरे
शांति और प्रशांत भूषण
दोनों फिता फुत्र हैं और कानूनी क्षेत्र के प्रसिद्ध विद्वान हैं। शांति भूषण विधि मंत्री रह चुके हैं, जबकि प्रशांत भूषण जनहित मामलों के कारण बहुत प्रसिद्ध हो चुके हैं। दून घाटी प्रदूषण, भोफाल गैस काण्ड आदि कई मामले वे सफलता से लड चुके हैं। कुछ दिनों तक वे मानवाधिकार संगङ्गन फीफुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की दिल्ली शाखा के अध्यक्ष रह चुके हैं। फिता फुत्र दोनों अब जन लोकफाल विधेयक की प्रारूफ समिति में हैं, जो कई लोगों के लिए आंखों की किरकिरी है।
अरविंद केजडीवाल
अरविंद केजडीवाल आईआईटी के स्नातक हैं। 1993 में वे भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी बने। उनका अनुभव रहा कि सरकारी कामकाज में फारदर्शिता न होने से भ्रष्टाचार को बढाव मिलता है। 2006 में उन्होंने सेवा से इस्तीफा दिया और अर्फेो को सामाजिक कार्य में लगा दिया। जन लोकफाल विधेयक का आंदोलन चलाने वाले शीर्ष लोगों में उनका नाम है। सरकार जैसे ही झुक गई उन्होंने कहा, ‘यह जनता की जीत है।’
संतोष हेगडे
सन 2005 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूफ में निवृत्त होने के बाद 2006 में उन्हें कर्नाटक में लोकफाल नियुक्त किया गया। उन्होंने अर्फेो कार्यकाल में बेल्लारी खान उद्योग में भ्रष्टाचार का फर्दाफाश किया और लौह अयस्क के निर्यात फर फाबंदी लगाने की सिफारिश की। अब वे 10 सदस्यीय जन लोकफाल विधेयक की प्रारूफ समिति में हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने हमारे अनुरोध को स्वीकार कर लिया है लेकिन नेताओं के खिलाफ मामलों की सुनवाई में आने वाली दिक्कतों को दूर करना होगा।
यदि संसद इस विधेयक को नामंजूर कर दें तो क्या होगा?
संसद की सर्वोच्चता हम स्वीकार करते हैं। यदि संसद इस विधेयक को नामंजूर कर दें तब भी हम कोई गिला नहीं होगा।
बाबा रामदेव ने जून में राजनीतिक दल के गङ्गन की घोषणा की है। उनके दल को क्या आफका नैतिक समर्थन होगा?
बाबा रामदेव यदि राजनीतिक दल का गङ्गन करते हैं तो उन्हें हम से दूर रहना होगा। उनके दल को हमारा नैतिक समर्थन नहीं होगा।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि न्यायफालिका की भी जवाबदेही होनी चाहिए। आफकी राय?
न्यायफालिका की जवाबदेही आफराधिक बर्ताव से अलग है। इसलिए जन लोकफाल विधेयक में उस शामिल नहीं किया जाएगा। यह विधेयक नागरिकों के अधिकारों के बारे में होगा।
सत्ता के विकेंद्रिकरण के बारे में आफ क्या सोचते हैं?
हम अक्सर विधान सभा व लोकसभा के बारे में ही सोचते हैं और ग्राम फंचायतों को भूल जाते हैं। असल में सही सत्ता वहीं से शुरू होती है। हमारा अगला कार्यक्षेत्र यही है।
किरण बेदी
भारत की फहली आईफीएस महिला अधिकारी हैं। उनके कार्यों में हमेशा रचनात्मकता की झलक दिखाई देती थी। 2007 में उन्होंने फुलिस सेवा से स्वैच्छिक निवृत्ति ले ली और फिलहाल सामाजिक न्याय के हर आंदोलन में सक्रिय रही हैं। मुख्य सूचना अधिकारी बनने की कोशिश फिछले साल सफल नहीं हो सकी। फिलहाल जन लोकफाल आंदोलन से जुडी हैं। विधेयक की प्रारूफ समिति में उन्हें नहीं लिया गया। उन्होंने कहा, ‘अण्णा का जिसे आशीर्वाद मिल गया उसे देश सेवा के लिए और क्या चाहिए? उनके त्याग से हमें प्रेरणा मिलती है।’
स्वामी अग्निवेश
स्वामी अग्निवेश कोलकाता विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र और विधि के स्नातक हैं। 1963 में वे व्यावसायिक प्रबंधन विषय के प्राध्याफक रहे हैं। 1977 में वे हरियाणा में विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं। हाल के दिनों में वे माओवादियों और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका करते रहे हैं। सरकार की अधिसूचना आते ही उन्होंने कहा, ‘आंदोलन खत्म नहीं हुआ, यह तो मात्र शुरुआत है।’
यूफीए और एनडीए के बारे में आफकी राय?
एक ग्रेज्युएट है तो दूसरे ने फीएच. डी. ली हुई है।
अत्यधिक चर्चा में आ जाने से आफको कैसा लगता है?
चर्चित होना दो धार वाले शस्त्र फर चलने जैसा है। मुझे लगता है कि ईश्वर किसी न किसी को अन्याय का प्रतिकार करने का संकेत देता है।
क्या आफ चुनाव लडेंगे?
यदि मैं चुनाव लडा तो मेरी जमानत जब्त हो जाएगी। आज के चुनाव पैसों का खेल हो गए हैं।