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अण्णा का गांव

अण्णा का गांव

by डॉ. दिनेश प्रताप सिंह
in मई २०११, व्यक्तित्व, सामाजिक
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महाराष्ट्र का पूरा खानदेश क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा एक पिछड़ा क्षेत्र है । पानी के अभाव में खेती अच्छी तरह से नहीं हो पाती। उद्योग-धंधों का भी समुचित विकास नहीं हो पाया है। कोई व्यापारिक केंद्र भी इस क्षेत्र में नहीं है। परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियों की गुंजाइश कम ही है। अधिकांश भाग ग्रामीण होने के कारण शिक्षा का प्रसार भी महाराष्ट्र के अन्य भागों – पश्चिमी महाराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाडा तथा कोंकण की तुलना में कम हुआ है।

इसी क्षेत्र के नासिक मंडल में अहमदनगर जनपद है, जिसकी पारनेर तहसील का रालेगण सिद्धी गांव इन दिनों देश-विदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह वही आदर्श गांव है, जहां गांधीवादी समाजसेवक नागरिक अधिकारों के लिए सतत् संघर्ष करनेवाले और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक आंदोलन बन चुके किसन बाबूराव हजारे उपाख्य अण्णा हजारे निवास करते हैं।

पुणे से 87 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित रालेगण सिद्धी गांव जिस क्षेत्र में स्थित है; एक समय वह अहमदनगर क्षेत्र मुगल सल्तनत का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। औरंगजेब के दक्खन अभियान के समय उसका उसका पूरा सैन्य-संचालन अहमदनगर से ही होता था। यद्यपि यह क्षेत्र लंबे काल तक निजामों के आधिपत्य में भी रहा। राजनैतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण न होने के बावजूद इस भू-भाग पर कब्जा जमाने के लिए निजाम, आदिलशाह और मुगल सरदारों में संघर्ष होता रहता था। अधिकार किसी का भी रहा हो, मगर सबने इस क्षेत्र को लूटने का ही कार्य किया। इस क्षेत्र की समृद्धि के लिए आज तक शासन द्वारा कोई विशेष पहल नहीं की गयी।

खानदेश के अन्य गांवों की ही तरह रालेगण सिद्धी में भी गरीबी, अभाव, अशिक्षा, बेरोजगारी का बोलबाला था। वर्षा जल के अभाव में पीने तथा खेती के लिए पानी नहीं मिलता था। युवाओं में कोई जागरुकता नहीं थी। वे शिक्षा से विमुख होकर अपने भविष्य के प्रति उदासीन थे। उनमें शराबखोरी की लत लग गयी थी। कुल मिलाकर अकर्ण्मण्यता का वातावरण बन गया था। यह स्थिति सन् 1975 तक अर्थात स्वतंत्रता प्राप्ति के 28 वर्षों बाद तक बनी रही थी। इस अवधि में कई पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो गयीं; किंतु रालेगण सिद्धि सदियों पूर्व की स्थिति में जैसा था, वैसा ही बना रहा।

किसन बाबूराव हजारे सन् 1975 में सेना की नौकरी से अवकाश लेकर अपने गांव लौटे। वे अपने मन में अच्छे समाज की एक अच्छी छवि  लेकर लौटे थे। उनकी आंखों में आदर्श गांव का एक सपना था। ग्रामवासियों के लिए एक उत्कृष्ट कार्य-योजना थी और मन में उसे     पूरा करने का एक दृढ़-संकल्प था। अपने गांव लौटते समय उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर स्वामी विवेकानंद के आदर्शों पर चलते हुए समाज सेवा का जो व्रत धारण किया था, उसे पूरा करने के लिए वे प्राणपण से जुट गये। अण्णा हजारे पर संत ज्ञानेश्वर का बहुत प्रभाव है। उनके द्वारा दिखाये मार्ग को अपनाकर उन्होंने सर्वप्रथम युवकों को शराब के व्यसन से छुटकारा दिलाने के लिए शराबबंदी लागू की। वे जानते थे कि यदि युवा शक्ति को विकास कार्यों में लगाना है, तो उन्हें व्यसन-मुक्त होना होगा। कभी समझा-बुझा करके, तो कभी दंड देकर उन्होंने पूरा रालेगण सिद्धी को शराब-मुक्त गांव बना दिया। यह उनके स्वप्न के पूरा होने का पहला कदम था। इस कार्य में उनको गांववासियों का पूरा सहयोग मिला।

रालेगण सिद्धी अत्यल्प वर्षा वाला क्षेत्र है। जो थोड़ी बहुत वर्षा होती थी, वह भी सही नियोजन के अभाव में सारा-का-सारा वह पानी बहकर नष्ट हो जाता था। उसके भंडारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। अण्णा हजारे गांव के युवकों को साथ लेकर जल-भंडारण के लिए कुओं की खुदाई की। छोटे-छोटे मिट्टी के बांध बनाये,ताकि पानी बहकर दूर न जा पाये। सैकड़ों बांध बनने से पानी रिसकर भू-गर्भ में जाने लगा। जिससे वहां का जलस्तर ऊँचा हो गया। पीने के लिए कुओं और नलों में भरपूर पानी मिलने लगा। पानी की समस्या हल हो गयी। खेती के लिए जमा किये गये जल को नहर द्वारा खेतों तक पहुंचाया जाने लगा। श्रमदान द्वारा नहरों का निर्माण किया गया। सबके सामूहिक योगदान से एक समय का सूखाग्रस्त गांव लहलहा उठा। खेती से खूब अन्न मिलने लगा। लोग खुशहाल हो गये।

उबड़-खाबड़ क्षेत्र होने के कारण रालेगण सिद्धी में आवागमन के लिए रास्ते नहीं थे। वर्षाकाल में जल की पर्याप्त व्यवस्था होने के साथ ही पशुओं के लिए चारे की भी जरूरतें पूरी करने के लिए कार्य शुरू हुआ। अण्णा हजारे ने  पूरे गांव में घास काटने पर रोक लगाकर ’चाराबंदी ’ लागू कर दी। इससे दो लाभ हुए: एक तो लोग घास काटकर घर में नहीं रख पाते थे और पशुओं को चरने के लिए वर्ष भर घास मिलती और दूसरे वर्षा जल द्वारा जमीन का कटाव बंद हो गया। दुधारु पशुओं- गाय,भैंस,बकरी के लिए चारे की प्रचुरता के साथ ही कृषि कार्य में लगनेवाले बैल को भी चारे की कमी नहीं होने पायी।

इसके साथ ही अण्णा हजारे ने पर्यावरण संरक्षण हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने पेड़ काटने पर रोक लगाते हुए ’कुल्हाड़ी-बंदी’ लागू कर दी। पेड़ों को काटने के बजाय वृक्षारोपण पर जोर दिया। गांव की खाली पड़ी अनुपजाऊ तथा जंगली भू-भाग पर सघन वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाया। इनमें फलदार और छायादार दोनों तरह के वृक्ष हैं। इस समय रालेगण सिद्धी और इसके आस-पास के सभी गांवों में असंख्य तरह के वृक्ष भरे पड़े हैं। पर्यावरण की रक्षा का उनका यह कार्य प्रशंसनीय है।

पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के साथ ही जलावनी लकड़ी की कमी होने लगी। इसका विकल्प गोबर गैस के रूप में तलाशा गया। घर-घर में गोबर गैस प्लांट लगवाये गये। इससे रसोई के ईंधन के साथ  ही प्रकाश के लैंप की व्यवस्था हो गयी। रास्तों में प्रकाश के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है। मार्ग में हरेक बत्ती के लिए अलग-अलग सौर ऊर्जा पैनल लगे हैं। ऊर्जा उत्पादन, सदुपयोग और बचत तीनों ही दृष्टि से रालेगण सिद्धी एक आदर्श गांव है। सिंचाई के लिए नलकूप पवन ऊर्जा से चलाए जा रहे हैं। यह सारा कार्य सस्ती दर पर मिलने के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल भी है । इस समय वहां बिजली भी पहुंच गयी है।

वर्षाकाल में जलभराव के कारण रास्ते में चलना कठिन होने लगा, तो गांववासियों ने मिलकर रास्तों का निर्माण किया। मिट्टी डालकर सड़क बनाया और गांव के भीतर तथा गांव के बाहर आवागमन का मार्ग तैयार किया।

वर्तमान समय में रालेगण सिद्धी का कुल क्षेत्रफल 982.31 हेक्टेयर है। इसमें 394 मकान हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार वहां की कुल जनसंख्या 2,306 है, जिसमें 1265 पुरुष तथा 1,041 महिलाएं हैं।

अण्णा हजारे ने ग्रामीण विकास के लिए ’ हिंद स्वराज ट्रस्ट’ की स्थापना की। अपनी पूरी पैतृक संपत्ति गांव के विकास के लिए समर्पित कर दिया। सेना की नौकरी से प्राप्त 20 हजार रुपये गांव के ’ यादव बाबा के मंदिर’ के जिर्णोद्धार में लगा दिया। सन् 1975 में शुरू किये गये उनके कार्यों का फल जल्दी ही मिलने लगा। इन 36 वर्षो में ही रालेगण सिद्धी पूरे देश के लिए एक आदर्श गांव बन गया है। आज वहां अनाज का प्रचुर उत्पादन हो रहा है ,दूध उत्पादन हो रहा है। स्कूल बनने से निरक्षरता पूरी तरह से समाप्त हो गयी है। एक भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं है। अब कोई भूखा नहीं रहता। कोई गरीब नहीं है। एक अत्यंत पिछड़ा सूखाग्रस्त गांव विकसित, धनाढ्य और हरा-भरा हो गया है।

केवल रालेगण सिद्धी को ही नहीं,बल्कि पूरे महाराष्ट्र में ऐसे 300 गांवों को  अण्णा हजारे की अध्यक्षता में आदर्श-गांव बनाने की योजना शासन द्वारा तैयार की गयी। कमोवेश हरेक गांव लाभान्वित हुए ,किंतु रालेगण सिद्धी की बात निराली है। वह आदर्शों का आदर्श गांव बन गया है।

 

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