भ्रष्टाचार के जाल में फंसा कानून

भष्टाचार हमारे लोकतंत्र की जड़ों को तेजी से कुतरता जा रहा है। भष्टाचार से निपटने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। इससे निपटने के कानूनी मशीनरी भी है। लेकिन भष्टाचार इन सब पर भारी पड़ रहा है। उसने कानून और कानूनी मशीनरी दोनों को अपने जाल में जकड़ लिया है। आम जनता का प्रशासन और सरकारी तंत्र पर से विश्वास डिग चुका है। यदि समय रहते समुचित कदम नहीं उठाए गए तो यहां भी मिस्र और लोबियो जैसी नौबत आ सकती है।

भ्रष्टाचार से निपटने के लिए बनाए गए कई कानूनों में सबसे महत्वपूर्ण हैं‡ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988, धन शोधन निरोधक अधिनियम 2002, और सूचना अधिकार कानून 2005। भ्रष्टाचार निरोधक कानून का प्रमुख उद्देश्य लोकसेवकों द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है। इस कानून में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से ली जाने वाली छूट या अन्य लाभों को गैर कानूनी घोषित किया गया है। इस कानून के तहत हर वर्ष सैकडों लोगों पर मुकदमे दर्ज किए जाते हैं। इसके बावजूद भ्रष्टाचार में निरंतर बढोत्तरी होती जा रही है। इस कानून से कोई नहीं डरता है। कारण यह है कि इसके अंतर्गत दर्ज Digital Marketing Company in Mumbai होने वाले मामलों में 90 प्रतिशत से अधिक आरोपी साक्ष्य के अभाव से छूट जाते हैं। बाकी 10 प्रतिशत मामलों में सजा होने में दशकों लग जाते हैं। मुकदमे का अंतिम फैसला होने तक अधिकतर अभियुक्त लोकसेवक या तो रिटायर हो चुके होते हैं या इस दुनिया से विदा हो चुके होते हैं। इनकी काली कमाई उनके और उनके परिवार के पास पूरी तरह सुरक्षित रहती है। इस कमाई का वे उपभोग करते हैं। बहुत हुआ तो दोषी पाए जाने पर दो-तीन साल जेल में रहना पड़ सकता है। इसे वे घाटे का सौदा नहीं मानते हैं।

भ्रष्टाचार विरोधक कानून की कमियों को दूर करने के लिए सन् 2002 में धन शोधन विरोधक कानून बनाया गया। इस कानून का घोषित उद्देश्य काले धन को सफेद करने की प्रक्रिया पर रोक लगाना है। इस कानून की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अभियुक्त के पास उपलब्ध काले धन की शुरू में ही कुर्की कर दी जाती है। इस काले धन का इस्तेमाल अभियुक्त नहीं कर पाता। यदि आरोप साबित हो गया तो आपको पूरी संपत्ति जब्त कर ली जाती है। इस कानून की दूसरी विशेषता यह है कि इसके तहत अपराध साबित करना अपेक्षाकृत आसान है। यदि अभियुक्त के पास उसकी ज्ञात आय से ज्यादा धन है तो यह मान लिया जा है कि best blog site वह इस कानून के तहत दोषी मान लिया जाता है। ऐसे में खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है। इसके अतिरिक्त इस कानून में जमानत के लिए भी कडे उपबंध किए गए हैं। कुछ गंभीर मामलों में केवल तभी जमानत दी जा सकती है, जब कोर्ट को भरोसा हो जाए कि अभियुक्त ने गुनाह नहीं किया है।

धन शोधन कानून भ्रष्टाचार से निपटने में एक कारगर हथियार साबित हो सकता था। लेकिन दुर्भाग्य से आज तक इस कानून का समुचित उपयोग ही नहीं हो पाया है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इसे लागू करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है और अभी तक सरकार इसको लागू करने के लिए पर्याप्त ढांचा ही नहीं विकसित कर सकी है। इस कानून को लागू करने के अधिकार का अभी तक विकेंद्रीकरण नहीं हो सका है। अत: राज्य स्तर पर इस कानून को लागू करने वाली एजेंसियां इसमें कोई दिलचस्पी ही नहा लेतीं।

भ्रष्टाचार से लड़ने में सूचना अधिकार कानून एक मजबूत लाठी हो सकता है। लेकिन नौकरशाही ने इसे कमजोर बनाने के लिए अभियान छेड़ रखा है। केंद्र सरकार इस कानून में संशोधन कर इसे भोथरा करना चाहती है। इस कानून का प्रमुख उद्देश्य सरकारी विभागों के कामों की जवाबदेही तय करना तथा सरकारी विभागों के कामों में पारदर्शिता लाकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है।

अक्टूबर 2005 में जब यह कानून लागू हुआ था तो इसे आम जनता के साथ साथ मीडिया के लिए भी एक कारगर हथियार माना गया था। कई जागरुक नागरिकों ने इस कानून का उपयोग करके सरकारी कामकाज को दुरुस्त करने की दिशा में सफलता की अनेक कहानियां भी लिखी हैं। Digital Marketing Company in Mumbai कई आर टी आई कार्यकर्ता इस प्रक्रिया में मारे गए और हिंसा का Digital Marketing Company in Mumbai  शिकार बने। एक कडवी सच्चाई यह भी है कि सरकारी अधिकारियों ने समय के साथ सीख लिया है कि इसके तहत आने वाली अर्जियों पर किस तरह गुमराह करने वाली सूचनाएं दी जा सकती हैं। इस कानून के तहत देश के शीर्ष सत्ता तंत्र से सूचना लेना आसान है, लेकिन धरातल पर शासन चला रहे जिला अधिकारियों से लेकर दरोगा और पटवारी से सूचनाएं मांगने में खतरे हैं, क्योंकि ऐसे लोग बेनकाब होने के खतरे से हिंसक हो रहे हैं। ये लोग सूचना कानून का उपयोग करने वालों पर हमले करवाने में भी हिचकते नहीं हैं।

उपयुक्त कानूनी ढांचे के अलावा भारत में स्वतंत्र न्याय पालिका केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी), महालेखा परीक्षक, मुख्य सूचना आयुक्त तथा सीबीआई जैसी संस्थाएं भी हैं। पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उसकी सक्रियता का ही नतीजा है कि टू जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला जैसे मामलों पर शिकंजा कसा जा सका है। लेकिन हमें यह कड़वी सच्चाई भी याद रखनी पडती है कि खुद न्यायपालिका के भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे होने की चर्चा भी गूंज रही है।

केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) तथा सीबीआई जैसी संस्थाओं ने भ्रष्टाचार से निपटने के मामलों में उच्चतम न्यायालय जैसी भूमिकाएं नहीं निभा रहे है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सीवीसी और सीबीआई में शीर्ष पदों पर की जाने वाली नियुक्तियों पर Digital Marketing Company in Mumbai केंद्र सरकार का एकाधिकार बना हुआ है। इन संस्थाओं में शीर्ष पदों पर नियुक्ति करते समय प्राय: योग्यता को ताक पर रख दिया जाता है। अक्सर ऐसे लोगों की नियुत्ति की जाती है जो सरकार की कमियों को नजरअंदाज कर सकें।केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रुप में पी जे थॉमस की नियुक्ति संबंधी विवाद के चलते इस संस्था की कलई आम जनता के सामने भी खुल कर सामने आ चुकी है। सीबीआई केंद्र सरकार की कठपुतली बन कर रह गई है। भ्रष्टाचार को उजागर करने के बदले उसे दबाने में सीबीआई की रुचि ज्यादा रहती है।

भारत में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए बनाए गए कानूनों और कानूनी मशीनरी की पोल भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोटों ंसे पूरी तरह उजागर हो जाती है। ट्रांस्परेंसी इंटरनेशनल की 2008 की रिपोर्ट के मुताबिक 180 देशों की सूची में ईमानदारी के मामले में हम 85 वें स्थान पर हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट भी हमारी कलई खोलती है। ग्लोबल भ्रष्टाचार बैरोमीटर 2007 के सर्वेक्षण के मुताबिक 10 प्रतिशत लोगों ने भ्रष्टाचार को नियति स्वीकार करते हुए यह मान लिया है कि आने वाले समय में भ्रष्टाचार में और बढोत्तरी होगी ।

दुर्भाग्य की बात है कि हमारे जनजीवन के हर हिस्से में भ्रष्टाचार व्याप्त हो चुका है। भारत में रिश्वतखोरी पर सर्वेक्षण करने वाली संस्था ट्रेस इंटरनेशनल ने जनवरी 2009 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में घुस के तौर तरीकों का व्यापक खुलासा किया है। इसके मुताबिक 91 फीसदी मामलों में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा अपना काम पूरा करने के लिए घूस मांगी। ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर की 2007 की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के लिए निर्धारित अधिकतम पाँच अंकों में पुलिस को 4.5 अंक दिए गए हैं। करीब 80 प्रतिशत लोगों ने कहा कि पुलिस में भ्रष्टाचार है। अधिकांश लोगों का कहना था कि पुलिस में प्रतिदिन भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है।

अण्णा हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल कानून की मांग के लिए छिडा आंदोलन और उसे मिल रहा जन समर्थन इस बात का पुख्ता सबूत है कि अब आम जनता भ्रष्टचार को सहन नहीं कर पा रही है। उसके धीरज का बांध टूटने लगा है। पिछले 44वर्षों से लोकपाल की मांग उठती रही है। इसके लिए एक दर्जन से अधिक बार संसद में विधेयक भी लाए गए लेकिन वह कानून का रूप नहीं ले सका। अब अण्णा के जंतर-मंतर पर अनशन पर बैठने के बाद सरकार और उनके बीच लोकपाल Digital Marketing Company in Mumbai विधेयक तैयार करने के लिए समझौता हुआ है। लेकिन पांच मंत्रियों और समाज के पांच प्रतिनिधियों वाली इस समिति के लिए विधेयक का प्रारूप तैयार करना नाकों चने चबाने जैसा कठिन साबित होने की संभावना है। संयुक्त समिति के समक्ष लोकपाल की शक्ति एवं स्वरुप, Digital Marketing Company in Mumbai उसके अधिकार क्षेत्र, जांच और शिकायतों के निपटारे, कार्रवाई करने की क्षमता और भ्रष्टाचार का भंडाफोड करने वालों को संरक्षण देने वाले विषयों का समाधान ढूंढना चुनौतीपूर्ण साबित होगा। विधेयक का प्रारूप 30 जून तक तैयार करके उसे संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाना है। समिति गठित होने से पहले लोकपाल विधेयक के संबंध में सरकार ने जो प्रारूप बना रखा था उसके अनुसार आम जनता से शिकायत प्राप्त होने पर भी लोकपाल स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई शुरू नहीं कर सकते हैं। वहीं समाज के प्रस्ताव में कहा गया है कि लोकपाल को स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने का अधिकार होगा तथा उसे इस संबंध में किसी से अनुमति प्राप्त करने की जरूरत नहीं होगी। सरकार के प्रस्ताव में कहा गया है कि लोकपाल के दायरे में सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री ही आएंगे। विदेश और सुरक्षा मामलों में प्रधान मंत्री के खिलाफ जांच Digital Marketing Company in Mumbai नहीं की जा सकेगी। चूंकि भ्रष्टाचार से जुड़े अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के मामलों को अलग करके नहीं देखा जा सकता है अत: ऐसी स्थिति में सीवीसी और लोकपाल दोनों इन मामलों को देखेंगे। दूसरी ओर अण्णा हजारे की ओर से तैयार प्रस्ताव में कहा प्रस्ताव में कहा गया है कि लोकपाल के दायरे में राजनीतिज्ञ, अधिकारी और न्यायाधीश भी आएंगे। सीवीसी और संपूर्ण सरकारी सतर्कता तंत्र लोकपाल में समाहित होगा। सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक लोकपाल चयन समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्रा, संसद के दोनों सदनों के नेता, दोनों में विपक्ष के नेता, कानून मंत्री और गृह मंत्री होंगे जबकि अण्णा हजारे के प्रस्ताव में कहा गया है कि चयन समिति में न्यायिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, नोबेल एवं मैगसेसे जैसे पुरस्कार प्राप्त लोग शामिल हैं। इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है, कि लोकपाल को भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने और उन्हें बर्खास्त करने का अधिकार होगा। लोकपाल को न्यायाधीशों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करने का अधिकार होगा। वहीं सरकार के प्रस्ताव में लोकपाल के दायरे में नौकरशाह और न्यायाधीश नहीं आएंगे।

समाज के प्रस्ताव में आरोपियों से भ्रष्टाचार के कारण सरकार को हुए नुकसान की वसूली करने का प्रावधान बनाने पर जोर दिया गया है। इसमें भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने वाले लोंगों को पर्याप्त संरक्षण दिए जाने का भी उल्लेख किया गया है। सरकार के प्रस्ताव में लोकपाल को सलाहकार निकाय बताया गया है जो कि मामले की जांच करने बाद समुचित प्राधिकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंग। समाज के प्रारूप में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि लोकपाल सलाहकार निकाय नहीं होगा। उसे सरकार के किसी भी सेवक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार होगा। एफआईआर दर्ज करने और आपराधिक मामला चलाने का भी उसे अधिकार होगा। सरकारी प्रस्ताव में लोकपाल के सदस्यों की संख्या तीन प्रस्तावित की गई है। तीनों सदस्य रिटायर्ड न्यायाधीश होंगे जबकि समाज के प्रस्ताव के अनुसार Digital Marketing Company in Mumbai  लोकपाल में 10 सदस्य होंगे जिनमें चार कानून के पृष्ठभूमि से होंगे, लेकिन उनका न्यायाधीश होना जरूरी नहीं होगा।

लोकपाल विधेयक के मसौदे पर इन महत्वपूर्ण चुनौतियों के बावजूद संयुक्त समिति के सह अध्यक्ष शांतिभूषण यह उम्मीद जता रहे हैं कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाला यह विधेयक आम सहमति से पारित हो जाएगा। देश के बुध्दिजीवियों में इस बात पर आम सहमति बनती जा रही है कि महज लोकपाल कानून बन जाने से भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा। ऐसे में पूरे देश के समक्ष भ्रष्टाचार रोकने के सक्षम और कारगर उपायों को ढूंढने और उन्हें लागू करने की चुनौती है। और इसी पर देश Digital Marketing Company in Mumbai  में लोकतंत्र का भविष्य निर्भर करेगा।

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