संसद में ‘माननीय’ कहने योग्य बचे हैं नेता?

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भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हर व्यक्ति अपनी पसंद से अपना प्रतिनिधि चुनता है और वह प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की समस्या को लेकर संसद में सरकार के साथ या फिर विरोध में रहता है। संसद की कार्यप्रणाली के अनुसार सरकार और विपक्ष एक साथ आकर देश के विकास को लेकर…

सहिष्णुता मीडिया का गुण-धर्म

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समाज में जब कभी सहिष्णुता की चर्चा चलेगी तो सहिष्णुता के मुद्दे पर मीडिया का मकबूल चेहरा ही नुमाया होगा. मीडिया का जन्म सहिष्णुता की गोद में हुआ और वह सहिष्णुता की घुट्टी पीकर पला-बढ़ा. शायद यही कारण है कि जब समाज के चार स्तंभों का जिक्र होता है तो…

हिमालय क्षेत्र में प्रकृति संरक्षण एवं आपदा प्रबंधन

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पहाड़ी क्षेत्रों में बादल का फटना एवं भूस्खलन एक साधारण घटना है, लेकिन केदारनाथ क्षेत्र में इतनी बड़ी आपदा पहली बार हुई है। इसी तरह से बादल का फटना, भूस्खलन, नदी की धारा बाधित होना, अल्पकालिक झील का निर्माण, झील का ध्वस्त होना एवं त्वरित बाढ़ का आना एवं अवसाद के अपवहित होने की घटना पर गंगोत्री हिमनदीय क्षेत्र में शोध अध्ययन किए गए हैं।

राजनीतिक सामाजिक हालातों की चिंताजनक कहानी

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राज्य गठन के बाद उत्तराखंड को अटल सरकार ने दस साल के लिए औद्योगिक पैकेज दिया था। इसके तहत राज्य के मैदानी इलाकों में इंडस्ट्री तो आयी लेकिन पैकेज सब्सिडी अवधि खत्म होने के बाद उत्पादन ठप्प कर दिया। नतीजतन स्थानीय युवकों को रोजगार के संकट से गुजरना पड़ा और भू माफियाओं की दखलंदाजी बढ़ने से कृषि योग्य भूमि भी घटती चली गई।

स्वायत्त बहुजन राजनीति और कांशीराम की विरासत..

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क्या देश की संसदीय राजनीति में 'स्वायत्त दलित राजनीतिक अवधारणा' के दिन लद रहे है या राष्ट्रीय दलों में  दलित प्रतिनिधित्व की  नई राजनीति इसे विस्थापित कर रही है।कांग्रेस एवं भाजपा जैसे दलों में दलित नुमाइंदगी प्रतीकात्मक होने के आरोप के  साथ बहुजन राजनीति की शुरुआत हुई थी। बड़ा सवाल…

ऐसी राजनीति चिंतित करती है

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लखीमपुर खीरी और तिकुनिया गांव निश्चित रूप से कुछ समय तक अभी चर्चा में रहेगा। हालांकि कोई भी नहीं चाहेगा कि इस तरह की दर्दनाक घटना किसी क्षेत्र की चर्चा का कारण बने। आठ लोगों की जिस तरह मृत्यु हुई सामान्य स्थिति में दुःस्वप्नों में भी उसकी कल्पना नहीं की…

आरोप – प्रत्यारोप की राजनीति

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली दंगों को लेकर गृह मंत्री अमित शाह के काम-काज पर सवाल उठाया और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर उनका इस्तीफा मांगा था।

रसातल की ओर जाती राजनीति

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इससे पहले पीएम मोदी और शरद पवार की अलग-अलग मुद्दों को लेकर कई बार मुलाकात भी हो चुकी है। जिसके बाद दोनों नेताओ एक दूसरे की तारीफ भी की थी लेकिन फिलहाल हवा का रुख बदला-बदला सा नजर आ रहा है

भ्रष्टाचार के जाल में फंसा कानून

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भष्टाचार हमारे लोकतंत्र की जड़ों को तेजी से कुतरता जा रहा है। भष्टाचार से निपटने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। इससे निपटने के कानूनी मशीनरी भी है।

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