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राम मंदिर का निर्माण राष्ट्र के आत्मविश्वास का पुनर्जागरण

राम मंदिर का निर्माण राष्ट्र के आत्मविश्वास का पुनर्जागरण

by निमेश वहालकर
in अगस्त-सप्ताह एक, विशेष, साक्षात्कार
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अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर, 5 अगस्त को होने वाले उसके शिलान्यास, राम जन्मभूमि आंदोलन, और राम मंदिर को लेकर राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़े प्रश्नों पर राम जन्मभूमि न्यास के कोषाध्यक्ष गोविन्ददेव गिरी महाराज से ‘हिंदी विवेक’ से हुई प्रदीर्घ और सीधी बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण प्रस्तुत है।

लगभग बीते 5 दशकों से हिन्दू समाज का देखा गया स्वप्न अब पूरा होने जा रहा है। लेकिन इसके लिए हिन्दू समाज को बहुत बड़ा संघर्ष करना पड़ा। हजारों लोगों को अपना बलिदान भी देना पड़ा। अब जबकि राम मंदिर निर्माण होने की घड़ी समीप आ गई है। ऐसे में आपकी क्या मनोभावना है?

किसी इतिहासकार ने यह लिखा था कि हिन्दुओं के हजारों साल का इतिहास पराजय का है लेकिन यह सत्य नहीं है। यह सरासर झूठ है। हिन्दुओं के शौर्य, पराक्रम एवं विजय के इतिहास को सिद्ध करने के लिए स्वा. सावरकर ने मराठी में ‘सहा सोनेरी पाने’ (छह स्वर्णिम पृष्ठ) से ऐतिहासिक पुस्तक लिखी। जिससे यह स्पष्ट हुआ कि हमारा इतिहास पराजय का नहीं अपितु विजय का है। राम जन्मभूमि की बात करें तो राष्ट्र के प्राण आराध्य दैवत के रूप में श्री राम को हजारों वर्षों से पूजा जाता रहा है। उनकी ही जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त करने के बाद भी हिन्दू समाज ने लगातार संघर्ष जारी रखा। जब मंदिर ध्वस्त किया जा रहा था तब भी संघर्ष किया गया और उसके बाद भी पीढ़ी दर पीढ़ी हिन्दू समाज राम मंदिर स्थापित करने के उद्देश्य से संघर्षरत रहा। उसमें सम्पूर्ण हिन्दू समाज ने अपना योगदान व बलिदान दिया। सर्वप्रथम नागा साधुओं ने संघर्ष किया। इसके बाद क्षत्रिय राजाओं सहित रानियों ने भी युद्ध लड़ा। 1528 में मंदिर ध्वस्त होने के बाद से ही अब तक अनेकों बार लड़ाइयां लड़ी जा चुकी हैं। 500 वर्षो बाद ही सही लेकिन आख़िरकार हिन्दुओं के पराक्रम धैर्य की विजय हुई है। यह विजय भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता का विजयनाद है। यह हिन्दुओं के आत्मविश्वास और आत्मबल की हुंकार है कि दुनिया की कोई ताकत हमें परास्त नहीं कर सकती। अनेकानेक आक्रमण एवं अत्याचार सहने के बावजूद भारतीय समाज ने कभी हार नहीं मानी। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारतमाता जाग रही है। अब वह केवल जाग ही नहीं रही है बल्कि खड़ी हो रही है जिससे यह संकेत मिलता है कि हमारा भविष्य उज्ज्वल और विजयी है। मेरी दृष्टि में 5 अगस्त का कार्यक्रम यह केवल मंदिर का भूमिपूजन नहीं बल्कि राष्ट्र के आत्मविश्वास का पुनर्जागरण है। राष्ट्रीय चैतन्य का बिज फिर से रोपा जा रहा है। इसलिए यह स्वर्णिम दिवस ऐतिहासिक होगा।

आपका मानना है कि भगवान श्री राम केवल हिन्दुओं के देव नहीं हैं अपितु राष्ट्र के प्रतीक हैं, एक राष्ट्रपुरुष हैं। क्या इस पर अधिक प्रकाश डालेंगे?

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हमारे लिए तो भगवान हैं ही लेकिन भारत में एक ऐसा वर्ग भी है जो श्री राम को भगवान के रूप में नहीं बल्कि महामानव के रूप में आदर सहित पूजते हैं, जैसे कि हमारे आर्य समाज बंधु। भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं जीवनदर्शन के भगवान श्री राम निर्विवाद रूप से आदर्श एवं प्रेरणास्रोत हैं। हिमाचल पर्वत से लेकर भारत के कोने – कोने में श्री राम को सम्मान की दृष्टि से स्मरण किया जाता है। रामराज सर्वोत्तम सुराज्य माना जाता है। उनके राज्य में कोई दुखी नहीं था, सभी सुखी और आनंदित थे। उन्होंने अपने राज में अखिल भारत का भ्रमण किया और सभी से प्रत्यक्ष आत्मीय संवाद स्थापित कर सात्विक शक्ति से आलोकित कर दिया। सात्विक शक्ति के जागरण रूपी दिव्य प्रकाश से सभी पाप रूपी अंधकार का नाश कर दिया। वह मानवता के प्रतीक रूप माने जाते हैं। वह बिना किसी भेदभाव के मानव मात्र सहित सभी प्राणियों से प्रेम करते हैं। धर्म की रक्षा के लिए कैसे प्रतिकार किया जाता है उसके वह मार्गदर्शक हैं। अन्याय पर न्याय, अधर्म पर धर्म की जीत का वह प्रतीक है। हजारों वर्ष बीत गए लेकिन आज भी उनकी यशपताका दुनियाभर में लहरा रही है। आज भी करोड़ों – करोड़ों लोग पूरी श्रध्दा विश्वास के साथ उनकी पूजा करते हैं। वह भारत के राष्ट्र पुरुष कहे जाते हैं। वह विश्व वंदनीय हैं। इसलिए अयोध्या में बनने वाला भव्य राम मंदिर पूरी दुनिया को मानवता का संदेश व प्रेरणा देगा। ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

आगामी 5 अगस्त को राम मंदिर का भूमिपूजन होने वाला है। इसके बाद बनाए जाने वाले राम मंदिर की विशेषता क्या होगी?

प्रयाग के कुंभ में कांची महाराज, देवराहा बाबा, अशोक सिंघल, महंत अवैद्यनाथ आदि सभी ने मिलकर जो राम मंदिर का प्रारूप तय किया था उसी के अनुरूप मंदिर का निर्माण होगा। यद्यपि मंदिर को आधुनिक रूप से और अधिक भव्य दिव्य बनाने के लिए कुछ परिवर्तन एवं सुधार किए गए हैं, जैसे हि मंदिर की ऊंचाई, चौड़ाई, लम्बाई पहले से अधिक बढ़ा दी गई है। मंदिर के शिखर की संख्या 3 से अब 5 कर दिए गए हैं। कोरोना वैश्विक महामारी के चलते कुछ बाधाएं आई हैं लेकिन राम मंदिर निर्माण में अब और अधिक देरी करना ठीक नहीं है। जल्द से जल्द श्री राम जी को भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित करना ही हमारा परम कर्तव्य है। यदि कोरोना महामारी का संकट नहीं होता तो 5 अगस्त भूमिपूजन का कार्यक्रम कुंभ मेले की तरह विराट होता। जिसमें देश विदेश से लाखों रामभक्तों का जन सैलाब उमड़ पड़ता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के करकमलों द्वारा भूमिपूजन किया जाएगा, यह हमारे लिए बेहद ख़ुशी की बात है। कोरोना का संकट ख़त्म होने के बाद राम मंदिर निर्माण में प्रत्येक भारतीयों को सहभागी बनाने के लिए लगभग 6 करोड़ परिवारों तक प्रत्यक्ष संपर्क अभियान चलाया जाएगा। सामान्य से सामान्य व्यक्ति मात्र 10 रूपये का दान स्वरूप योगदान दे सके इसके लिए विचार किया जा रहा है। बड़े – बड़े दान देने वाले लोग तो रहेंगे ही लेकिन इसके साथ ही प्रत्येक भारतीय इसमें अपना योगदान दे सके इसलिए 10 रूपये का दान भी हम स्वीकार करेंगे। मंदिर परिसर का विकास करते हुए हमारे पास उपलब्ध 70 एकड़ भूमि का विस्तार कर 108 एकड़ तक ले जाने पर विचार किया जा रहा है। आसपास रहने वालों से आग्रहपूर्वक निवेदन कर उनसे दान रूप में उनकी जगह लेकर या जरूरत पड़ने पर उनसे खरीदकर हम मंदिर परिसर को अधिक विस्तारित करना चाहते हैं। इसके बाद देश के हर प्रांत की शैली में यहां की वस्तुएं बनाई जाएंगी ताकि देश की सांस्कृतिक झलक अयोध्या में मिल सके। विशेषज्ञों से मिली जानकारी के अनुसार मंदिर का निर्माण कार्य 3 वर्षों के अंदर हो जाएगा लेकिन हम 3 वर्ष मान कर चलते हैं। 3 वर्ष से साढ़े 3 वर्ष की देर नहीं होगी, इसका हम ध्यान रखेंगे। तय समय सीमा में ही मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण हो जाएगा और भगवान श्री राम मंदिर के सिंहासन पर विराजमान होंगे।

मंदिर निर्माण और प्राणप्रतिष्ठा होने के उपरांत राम जन्मभूमि न्यास एवं तीर्थक्षेत्र न्यास की क्या भूमिका होगी?

राम जन्मभूमि न्यास ने उनके पास के सभी वस्तुएं, निधि आदि सभी चीजें हमें हस्तांतरित कर दी हैं। मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद उसे विसर्जित कर दिया जाएगा, ऐसा मुझे लगता है। मंदिर निर्माण का कार्य केवल 3 वर्षों का है। इसके बाद परिसर का विकास चलता रहेगा। मंदिर निर्माण होने के बाद विकास कार्य को और गति मिलेगी। इसलिए तीर्थक्षेत्र का काम भविष्य में भी निरंतर चलता रहेगा।

भूमिपूजन कार्यक्रम को लेकर अनेक राजनैतिक लोगों के द्वारा टिप्पणी की जा रही हैं। उदाहरण के रूप में दूरदर्शन पर इस कार्यक्रम का प्रसारण न किया जाए, कोरोना काल में यह कार्यक्रम किया जा रहा है, प्रधानमंत्री का इस कार्यक्रम में जाना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, इस तरह की अनेक बातें कही जा रही हैं। इस पर आपकी क्या राय है?

हमारे देश में एक विचारधारा ऐसी है जिसे हिन्दू संस्कृति अस्मिता का उभरना अखरता है। वह देश का भला नहीं चाहते। कभी कभी ये राष्ट्र विरोधी टुकड़े टुकड़े गैंग ऐसी बातें कहते हैं जैसे वह विदेशियों के प्रतिनिधि के रूप में काम कर रहे हो। इसमें लुटियंस गैंग, वामपंथी नक्सली, जिहादी, सेक्युलर गैंग, अवार्ड वापसी गैंग आदि शामिल हैं। उनकी विचारधारा ही देश के विपरीत है इसलिए वह ऐसे ही बोलते रहेंगे। उनकी बातों को ज्यादा महत्व देने की कोई जरूरत नहीं है, ऐसा मेरा मानना है। लाल कृष्णआडवाणी के द्वारा प्रयोग किए गए शब्द को सकारात्मक सेक्युलरिज्म की दृष्टि से देखना चाहिए। सभी का कल्याण करने वाले धार्मिक स्थल पर हमें आस्था पूर्वक जाने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए। ऐसी ही सरकार के लोगों की भी मानसिकता होनी चाहिए। इसलिए सर्वधर्म समभाव के दृष्टि से भी निर्माण कार्य का शुभारंभ करने जाने में किसी को क्या परेशानी है? दूसरी बात यह है कि इसमें धर्म का कोई संबंध नहीं है। हमारे राष्ट्र पर आक्रमण करने वाले लुटेरे आक्रांताओं ने हमारे पवित्र वास्तु स्थलों को नष्ट किया था। राष्ट्रीय अस्मिता का यह पुनरोद्धार है। इसलिए राष्ट्र पर आक्रांताओं द्वारा लगाए गए कलंक का परिमार्जन करना यह राष्ट्रीय उत्सव है। इस दृष्टि से मैं भूमिपूजन कार्यक्रम को देखता हूं।

भूमिपूजन कार्यक्रम में किसे आमंत्रित किया जा रहा है और किसे नहीं इस बारे में भी मीडिया में खूब सुर्खिया बन रही हैं। क्या सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों का आमंत्रित किया गया है या नहीं? प्रत्यक्ष रूप से किन किन हस्तियों को निमंत्रित किया गया है?

इन सभी को कार्यक्रम में बुलाने का विचार हमने पहले किया था लेकिन कोरोना काल के समय में अधिक संख्या में सभी को नहीं बुलाया जा सकता। राम जन्मभूमि आंदोलन में जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगा दी ऐसे लोगों को बुलाना आवश्यक है। साधु संतों और आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वालों की संख्या को देखते हुए किसी भी मुख्यमंत्री को इस समय बुलाना ठीक नहीं है। इसका आकलन करने के बाद किसी भी मुख्यमंत्री को निमंत्रण नहीं दिया गया। केवल उत्तर प्रदेश राज्य के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, स्थानीय विश्वविद्यालय के कुलगुरु आदि लोगों की उपस्थिति अपेक्षित है। उन्हें निमंत्रित किया गया है। इसके अलावा केवल पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा को निमंत्रण भेजा गया है।

राम मंदिर के भूमिपूजन का स्वरूप कैसा होगा?

हमारी पूजा अभी भी चल रही है। चैत्र शुद्ध प्रतिपदा से जन्भूमि पर लगातार पूजा जारी है। भूमिपूजन के स्वर्णिम दिन तक इस पूजा का समापन होगा। भूमिपूजन के दिन सुबह 9 बजे से विशेष पूजा शुरू होगी और दोपहर साढ़े 12 बजे खत्म होगी। प्रधानमंत्री करीब सवा 12 बजे जन्मभूमि पर भूमिपूजन के लिए आएंगे। वह हनुमानगढ़ी में हनुमान जी के दर्शन करेंगे। आज जहां पर रामलला विराजमान हैं उस अस्थायी मंदिर में जाकर वह दर्शन करेंगे। प्रधानमंत्री के हाथों वृक्षारोपण किया जाएगा। इसके बाद साढ़े 12 बजे तक प्रधानमंत्री पूजा में बैठेंगे। यह पूजा साधारणतया 20 मिनट में पूरी हो जाएगी और 12. 44 के करीब पूजा संपन्न होगी। मुहूर्त के दृष्टि से यह समय शुभ है। इसके बाद 12. 44 बजे प्राणप्रतिष्ठा का संकल्प लिया जाएगा। पूजा समाप्त होने के बाद प्रधानमंत्री राष्ट्र को शुभकामनाएं देते हुए संबोधित करेंगे। कुछ अन्य विशेष वक्ताओं के भी संबोधन होंगे। इनमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत शामिल हैं। न्यास की ओर से केवल हमारे अध्यक्ष नृत्यगोपालदास महाराज अपने विचार प्रकट करेंगे।

आजादी के बाद से अब तक लगभग 73 वर्ष के कालखंड को ध्यान में रखते हुए श्रीराम मंदिर के भूमिपूजन का क्या महत्व है?

श्री राम मंदिर के भूमिपूजन के इस ऐतिहासिक घटना के पूर्व सोमनाथ मंदिर स्थापना के समय भी विरोध के सुर उठे थे। जैसे आज कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री को भूमिपूजन कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए। उस समय तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने मंदिर के विरोध में भूमिका निभाई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद प्राणप्रतिष्ठा के लिए यजमान के रूप में जानेवाले थे तब नेहरू ने विरोध किया था। उनके विरोध को दरकिनार करते हुए राजेन्द्र बाबू वहां पर गए थे। इसलिए सोमनाथ के विध्वंस के बाद उसका पुनर्निर्माण महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। उसी तरह आज का भी राम मंदिर भूमिपूजन उससे भी अधिक ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण घटना है। क्योंकि राम जन्मभूमि के लिए जितना लम्बा संघर्ष करना पड़ा उतना सोमनाथ के लिए नहीं करना पड़ा था। विदेशी आक्रांताओं द्वारा हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों का ध्वस्त किया गया था और उसका फिर से पुनर्निर्माण करना हमारे राष्ट्र के लिए गौरव की बात है। राष्ट्रीय स्वाभिमान, आत्मसम्मान और राष्ट्रीय अस्मिता के लिए श्री राम मंदिर का पुनर्निर्माण बेहद महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक है। यह भारतीय संस्कृति के उत्थान का प्रतीक है।

रामजन्मभूमि आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले अशोक सिंघल जी के संदर्भ में आप क्या कहना चाहेंगे? इस स्वर्णिम पल को देखने के लिए अशोक जी होते तो आपको कैसा लगता?

राम मंदिर का पुनर्निर्माण ही जिनके जीवन की अभिलाषा थी, उसे ही जिन्होंने अपने जीवन का सर्वोच्च ध्येय बना लिया था। उनके जीवन का पल – पल, क्षण – क्षण केवल राम मंदिर के चिंतन, मनन और मंदिर निर्माण को पूर्ण करने की दिशा में ही समर्पित था। रामकाज के लिए वह कितने आतुर थे यह हमने करीब से देखा और अनुभव किया है। यदि आज वह यहां होते तो पूरे देश को बहुत अधिक आनंद होता, उसे शब्दों में बयां करना किसी के लिए संभव नहीं है। अशोक जी हम सभी को बहुत याद आ रहे हैं और उनकी कमी भी महसूस हो रही है। अशोक जी एक महापुरुष थे। उन्होंने अपना सर्वस्व राम जन्मभूमि के लिए न्योछावर कर दिया। अशोक जी केवल राम मंदिर को भगवान का का काम नहीं मानते थे बल्कि इससे एक बहुत बड़ा राष्ट्रकार्य सिद्ध होगा, ऐसा उनका मानना था।

राम जन्मभूमि आंदोलन के समय की ऐसी कौन सी घटना या प्रसंग का उल्लेख करना चाहेंगे जो आपके ह्रदय के बहुत करीब है?

ऐसे 2 प्रसंग मुझे याद आ रहे हैं। मैं उद्दुपी स्थित धर्मसंसद में उपस्थित था और वहां पर संस्था के तत्कालीन प्रमुख परमहंस रामचन्द्रजी महाराज का वक्तव्य चल रहा था। उस समय वह बहुत ही भावुक हो गए थे। उस समय राम मंदिर निर्माण की बात तो दूर थी, राम मंदिर का ताला भी नहीं खोला गया था। उन्होंने व्यासपीठ से यह घोषणा की कि आगामी होली के पर्व तक मंदिर का ताला नहीं खोला गया तो मैं आत्मदहन कर लूंगा। उनका इतना आक्रोश व उग्र रूप देखकर हम सभी स्तब्ध हो गए थे। उसी तरह सरकार भी स्तब्ध व भयभीत हो गई थी। इसके बाद प्रशासन ने तुरंत मंदिर का ताला खोल दिया। दूसरा प्रसंग यह है कि जब कार सेवकों पर गोलीबारी हुई और उसमें कोठारी बंधुओं का बलिदान हुआ। इसके बाद जब हम उनके माता पिता से भेंट करने के लिए गए तब उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि भगवान राम की सेवा करते हुए हमारे रामदास गए। इसका हमें गर्व है। जिस दिन सर्वोच्च न्यायालय से राम मंदिर पर निर्णय आने वाला था उस दिन संयोग से मैं कोलकाता में ही था। आज इस दुनिया में कोठारी बंधु के माता – पिता नहीं हैं। कोठारी बंधु की बहन से भेंट करने के लिए हमारे लोग उनके घर गए थे तब उनके आनंद और दुख का मिश्रित भाव उफान पर आ गया। उस समय भी उन्होंने राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का सपना साकार होने और उसके लिए मेरे बंधुओं का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने का आनंद व्यक्त किया था। लोग कितने उच्च कोटि का त्याग व बलिदान कर सकते हैं? यह अनुभव मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी।

एक आखिरी प्रश्न है कि राम जन्मभूमि का मामला सुलझ गया, राम मंदिर के निर्माण हेतु ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। इसके बाद काशी और मथुरा के विषय में आने वाले समय में हमारी क्या भूमिका रहेगी?

वर्तमान समय में मैं राम जन्मभूमि न्यास का कोषाध्यक्ष हूं इसलिए मैं राम के काम में ही रमा हुआ हूं। यद्यपि आपके द्वारा उपस्थित गए प्रश्न की ओर हमारा समाज एवं हम सभी अनदेखी नहीं करेंगे। उसे भूलेंगे नहीं। इतना ही आज मैं कहना चाहता हूं।

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निमेश वहालकर

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