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अर्थव्यवस्था के लिये बेहतर वर्ष

अर्थव्यवस्था के लिये बेहतर वर्ष

by डॉ वसंत पटवर्धन
in आर्थिक, फरवरी-२०१२
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मुद्रा और मण्डी की स्थिति नया संवत्सर शुरु होने के बाद भी सुधरी नहीं है। जनवरी में यूरोपकी स्थिति उतनी डांवाडोल नहीं थी और अमेरिका भी धीरे-धीरे मंदी के दायरे से बाहर आ रहा है। यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने इटली, स्पेन और बेल्जियम देशों में 489 अरब पौंड याने 636 अरब डॉलर तीन वर्षीय अवधि के बाँडस बेचे और उतनी नगद उन्हें उपलब्ध कर दी। इसका नतीजा इतालकी, बाँडस का यील्ड 22 बेसिक पाइंटस से घट गया। दिसम्बर 21 से आरंभ एक पखवाडे में यह बदल हो गया है। इससे उत्तेजित होकर जर्मनी की चॅन्सेलर एंजेल मिकेल और फ्रान्स के प्रेसिडेंट सर्कोजी निकोलस की प्रस्तावित बैठक महत्वपूर्ण होगी। जर्मनी और नीदर्लंडस के सिक्योरिटी को भी जादा खरीददार मिले।

युरोपियन क्रेडिट बैंक (र्िंण्ँ) ने अपनी प्रमुख ब्याजदर एक फीसदी कर, बैकोंको ऋण लेने को आकर्षित किया है। ता कि वे यूरोप वे देशोंके ऋण दे दे। यह पैसा शायद बोंडस में आ रहा है। स्टॉक्स यूरोप 600 सूचकांक दिसम्बर से अबतक 5.6 फीसदी ऊंचा रहा है। फिर भी यूरो, येनकी तुलना में ग्यारह बरस के निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है।

यूरोप यह संरुट अब भारत को नया नहीं है। इसलिये यहां की अर्थव्यवस्था अब भारत की अर्थनीतिमें क्या सुधार होगा उस पर निर्भर होगी। हालांकि मल्टी बैंड रिटेल विदेशी दुकानों को 49 फीसदी निवेश सीमा देने मे शासन असफल रहा और जनलोकपाल विधेयक के बारे में संविधानिक संशोधन लाने पर तृणमूल कांग्रेस ने उसे विफल कराया। इससे सरकार की छबि अब लांछित हो गयी है।

सरकार ने अपनी ईमानदारी का सबूत देने के लिए अब सिंगल ब्रैंड विदेशी कंपनियों के भारत में सौ प्रतिशत निवेश करने की अनुमति, संसदसत्र समाप्त होने के बाद दी है। वैसे तो इन रिबॉक वोटंकी फ्राइड चिकन, अरिडास, मार्क ऐंड स्पेन्सर जैसी कपनियों को आज ही 49 फीसदी प्रत्यक्ष विदेश मुद्रा निवेश की सीमा है। उसे बढाकर सरकार ने कुछ खास रिआयत (सुविधा) नहीं दी है। बजट पेश करने बाद मल्टिबैंक में सभी पार्टियोंको विश्वास में लेकर शायद 51 फीसदी विदेश मुद्रा निवेशन की अनुमति दी जा सकती है।

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बहुत देर बाद कुछ विश्वास जगानेवाली बातें की हैं। प्याज, आलू, गेंहू, तरकारी, जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें कम होने लगी हैं। 21 दिसम्बर 2011 को समाप्त सप्ताह के दौरान खाद्य मुद्रा स्फीति घटकर शून्यसे नीचे(-) 3.36 फीसदी हो गयी है। दिन-ब-दिन इस में और सुधार हो जायेगा। खाद्य मुद्रा स्फीति आकलन का आधारवर्ष 2004-05 है। उसके बाद छह साल में पहली बार खाद्य मुद्रा स्फीति में सालाना स्तर पर गिरावट दर्ज हो गयी है। पिछले साल की समान अवधि में सरकारी सूत्रों के अनुसर यह करीब 21 फीसदी थी। लेकिन आम जनता ऐसे आकडो पर अब विश्वास नहीं रखती। शायद पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस इसका श्रेय लेगी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नजर हटाने में कामयाब होगी। वैसे तो अण्णा टीम ने भी किसी भी दास के विरुद्ध-खासकर कांग्रेस के विरुद्ध प्रचार न करने का निर्णय लेकर, सरकार को निश्चिंत कर दिया है।
कई विशेषज्ञोका मानना है कि खाद्य मुद्रास्फीति की गिरावट ध्यान में रखकर रिजर्व बैंक अब ब्याज दरे भी घटाने लगेगा। लेकिन रिजर्व बैंक रेत में सिर गाड कर बैठे ऊंट जैसा है। इस लिये जानवरी के अंत में आनेवाली साखनीति में ऐसा कुछ होने की संभावना नहीं है।

रिजर्व बैंक कुछ करे या न करे, खाद्य मुद्रा स्फीतीकी गिरावटका और यूरोप मेें बदबती हुई स्थितिका कुछ असर शेयर बाजारपर हो गया है। फिर सूचकांक 16000 के ऊपर आया है। बैकोंके नतीजे अच्छे होने की संभावना से, इन शेअर में अच्छी बळात्तरी हुई है। इडसिंड बैक के दिसम्बर तिमाही के आकडे अच्छे निकले। निफ्टी भी 4860 स्तर पर आचुका है। कॅपिटल गुडस, रिअ‍ॅव्ही, धातु, ऊर्जा, ग्राहकोंपयोगी चीजें बनानीवाली कंपनियां, सार्वजनिक क्षेत्रकी कंपनियां, बैंक क्षेत्र के सब शेयर दिशा उछल रहे है। दिल्ली ऑटो एक्स्पो को सफलता नहीं मिली। इस लिये महिंद्र महिंद्र, बजाज ऑटो जैसे शेयर गिर गये हैं।

वर्ष 2011 में भारतीय मंडी पर अंतरराष्ट्रीय बाजारोंकी नकारात्मक खबरों के बढते प्रवाह की वजह और विनिमयदर मे गिरनेवाले रुपये की दाम को लेकर कई कारणोसे यहां अस्थिरता थी। 2012 मे शायद यह अस्थिरता कम होगी। अमरिका स्थिती सुधर रही है और बहुतसे विश्लेषण इसका फायदा भारतकी होगा ऐसा मानते है। मौजूदा कमजोरी हल्केहल्के कम हो जायेगी तो छोटे निवेशक बाजारमे फिर उतरेंगे। रिजर्व बैंक अपनी सुखनिद्रासे बाहर आकर, इन्प्लेशन (मुद्रस्फीती) के बजाज विकास के ओर ध्यान देगी तो स्थिती और मजबूत हो जायेगी।

दिसम्बर तिमाहीके कंपनीयोके बिक्री और मुनाफिके नतीजे आने लगे है। इंफोसिस की अक्टूबर-दिसम्बर तिमाही का शुद्ध लाभ (र्‍ाू झ्दर्िंग्ू) 33.25 प्रतिशत बढकर 2372 करोड रुपये रहा। इससे पूर्व वित्त 2010-11 की इसी तिमाहीका मुनाफा 1780 करोड रुपये रहा। याने इस तिमाहीकी वृद्धी अपेक्षासे बेहत्तर है। कंपनीकी एकीकृत आय इस वर्ष के इस तिमाही मे 9298 करोड रुपये थी, जो दिसम्बर 2011 के तिमाही मे 981.25 करोड रुपयेका शुद्ध लाभ समाया है। दिसम्बर 2010 के तिमाहीके 890.88 करोड रुपयेके तुलनामे यह 10.2 फीसदी ज्यादा है। इस वर्ष के इस तिमाही की कुल आमदनी 4472 करोड रुपये है, जो दिसम्बर 2010 के तिमाही के तुलना (3321 करोड रुपये) मे 34 फीसदी जादा है।

हिंडाल्कोकी सहयोगी कंपनी-कैनडा स्थित नॉव्हेलिस कंपनीको कोकाकोलाके कैनस (म्हे)की ऑर्डर मिल गयी है। नोव्हेंलंस और कोकाकोला की ँऊ कई बरस चल रहा था। लेकिन आपसकी सहमतीसे मुकद्दम खत्म कर दिया गया है।

दवाकी मशहूर कंपनी रैजबैक्सीने अमेरिकी दवा (वि खाद्य प्रशासन (ळएइ) के साथ तीन साल पुराने चलनेवाले कानूनी लडाईको समझौतेसे सुलझा लिया है। रैनबक्षी जुर्मानेके तौरपर 50 करोड डॉलर्स (2650 करोड रुपये) देने को राजी हो गयी। अब रैनबक्षीके 32 दवाईयोके नियतिपर लगे हुए रोक हटाए जायेंगे।

ऐसी बहुत वार्ताओसे शायद उत्तेजित होकर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहगार परिषद के अध्यक्ष, भूतपूर्व रिजर्व बैंक के गवर्नर सी. रंगराजनने भरोसा जताया है। कि 2011-12 के आर्थिक वर्ष के यह चौथे तिमही मे औद्योगिक उत्पादन जोरसे बढेगा। नवम्बर 2011 के प्रसिद्ध हुए आँकडे भी अक्टूबरकी तुलनासे अच्छे निकले है। आईआईपीमे नवम्बर 2011 के प्रसिद्ध हुए आंकडेभी अक्टूबरकी तुलनासे अच्छे निकले है। आईआईपीमे नवम्बर 2011 के दौरान 5.9 फीसदी बढोत्तरी देखने मिली है।

चालू वर्ष पूरे होने मे ढाई महिने बाकी है। लेकिन आज की स्थिती देखे तो राजकोषीय घाटे का लक्ष्य बहुत पीछे है। निर्निवेशन से 40000 करोड रुपये जुटानेकी अर्थसंकल्पीय अपेक्षापर पानी फिर गया है। राजस्वमे घाटा देखकर अब वित्तीय तूट 5.6 फीसदीसे जादा होगी। यह कम करने के लिये, सरकार सार्वजनिक क्षेत्रोंकाी कंपनीयो मे हजारो करोड रुपये विनाउपयोग रहे है। इनमे ओएनजीसी 28000 करोडक, कोल इंडिया 45862 करोडक, सेल 177748 करोडक, पॉवर भिड 4886 करोड, नाल्को 3795 करोडक, गल 2595 करोडक और सरल इलेक्ट्रिलिकेशन 2867 करोडक रुपये पर बैठे हुए है। उसपर, इन कंपनीयोके शेअर्स, दूसरे सार्वजनिक कंपनीयोको खरीदने के लिये मजबूर कर, 25000 करोड रुपये से जादा रक्कम राजस्वमे लानेकी कोशीश कर रही है। लेकिन योजना आयोग इससे सहमत नही है। शासनकर्ताओमें कैसी दरारे है इसका यह और एक उदाहरण है। शायद सार्वजनिक कंपनीयोको आनेवाले दिनोमे, अतिरिक्त आंतरिम लाभांश देने को मी मजबूर किया जायेगा। लेकिन केंद्रशासन में तुरंत निर्णय लेने की क्षमता अब नही रही है। कैबिनेटकी सभाओमे कुछ नही होता है। भारत मे लोग अब इन मीटींग को ‘चायवाय’ की समाही बोलने लगे है।
2009-2010 ने सार्वजनिक उपक्रमोसे, लाभांश और मुनाफेके तौरपर राजस्वमे 21024 कोटी रुपये जुटे थे। राष्ट्रीकृत बैकोकी लाभांशसे और रिजर्व बैंकका पूर्ण मुनाफा केंद्र शासनको मिलने से 29223 करोड रुपये शासनको मिले थे। याने कुल मिलाके 50248 करोड रुपये अतिरिक्त रक्कम जमा हुई। इस वर्ष मे भी कमसे कम इतनी रकम मिलकर, राजस्व बढेगा। तेल और वायुकंपनीयोसे शासन को 5000 करोड रुपये मिलते है। शासन जो अनुदान देती है उसका थोडा हिस्सा उसे इस तरह वापस मिलता है।

बैंकोकी स्थितीपर अब नजर डाले तो क्या दिखता है? 30 दिसम्बर 2011 को समाप्त वर्ष की अवधि मे बैंको मे गैर खाद्य ऋण मे 16.1 फीसदी वृद्धी हुई। आनेवाले वर्ष में रिजर्व बैंक रेपो और रिव्हर्स रेपो दर घटाएगी तो गृहकर्ज और वाहनकर्ज सस्ते हो जायेंगे। इससे गैरखाद्य ऋणकी वृद्धी 18 या 19 फीसदी हो सकेगी। दिसम्बर 11 का बैकोका ऋण 44.99 लक्ष करोड रुपये था। दिसम्बर 2012 तक ऋणका ऑकडा 53.55 लक्ष करोड हो सकता है। दिसम्बर 2010 का बैंकोका ऋण 38.75 लक्ष करोड रुपये था। 2011 अंततक बैंकोकी डिपॉझिटस 59.89 लक्ष करोड रुपये जमा थे। इस वर्ष मे यह ऑकडा 70 लक्ष करोड की सीमा पार करेगा।

2012 मे टाटा स्टीलको कैनडा और मोझांबिकसे लाइमिट्टी (आर्यन ओर) मिल जाने की संभावना से उनका व्यय इस बारेमे कम होगा। लेकिन क्रूड मईंगा होने की भीती है। इराण से अमरिका और अन्य देशोने बखेडा शुरु किया है। उससे दुनियामे कुडकी पैदास कम होगी और भाव बढ जायेगा। लेकीन अन्य धातु सस्ते होने से इस मंडीकी स्थिती डावाडोल रहेगी।

फिर भी, 2012 साल, 2011 से अच्छा ही होने की संभावना है। व्याजदर बढानेसे बैंकोमे अनिवासी भारतीयोकी जादा रक्कम आयेगी। नवम्बर 2011 मे एनआरआय डिपॉझिटसमे 170 करोड डॉलर्स (8808 करोड रुपये) की वृद्धी हुई। अप्रैल 11 से यह रक्कम 640 करोड डॉलर्स हुई है। उससे डॉलर्सपर दबाब नही रहेगा। रुपैया 48 रुपये तक फिर (डॉलर के संदर्भ मे) सुधर सकता है। अगर शासन क्रियाशील हो जाये तो अर्थव्यवस्थाकी रफ्तार बढ सकती है।

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