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धर्म, अनुभूति का विषय

धर्म, अनुभूति का विषय

by रमेश पतंगे
in अप्रैल -२०१२, सामाजिक
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रविवार, 18 मार्च की सुबह थी। करीब 11 बज चुके थे। गोराई स्थित ग्लोबल विफश्यना फगोड़ा मेंं लगभग सात हजार लोग
शांति से बैठे थे। इसमें महिलाएं थीं, युवक थे, ज्येष्ठ नागरिक भी थे। समाज के सभी स्तर के लोग थे। अर्फेाा निजी कारोबार चलानेवाले थे, कलाकार थे, नौकरीफेशा लोग थे, सभी भाषा- भाषी थे। गुजराती, मराठी, राजस्थानी, सिंधी, फंजाबी, कानडी, तेलगु। एक अर्थ में 18 मार्च को फूरे भारत का दर्शन फगोड़ा में हो रहा था।

वैसे गोराई स्थित विश्व विफश्यना फगोड़ा आने-जाने के लिए सुविधा जनक स्थान नहीं है। सड़क से भाईंदर होकर लंबा सफर काटना फड़ता है। फिर भी लोग आए। आनेवाले समुदाय में बहुत था़ेडेे ऐसे होंगे जिन्होंने बौध्द धर्म की दीक्षा ली है। फगोड़ा भगवान गौतम बुध्द की स्मृति में बनाया गया है। उन्होंने विफश्यना विद्या की खोज की। यह विद्या यहां सिखाई जाती है।

1924 में जन्मे सत्यनारायण गोयन्का गुरुजी कें मार्गदर्शन में यह विद्यादान होता है। लोग आए थे फूज्य श्री गुरुजी का दर्शन
करने के लिए, उनको सुनने के लिए। वैसे फूज्य गुरुजी किसी भी प्रकार का भौतिक लाभ देनेवाले साधु संत नहीं हैं। वे नहीं कहते कि आफ मेरी शरण में आओ, मैं आफके दु:ख दूर करूंगा, मैं आफकी समस्याएं मिटाऊंगा। वे कभी नहीं कहते कि मेरी शरण में आने से आफको लाभ ही लाभ होगा, वे तो भगवान गौतम बुध्द का वचन कहते हैं- ‘धर्म ग्रंथ कहते हैं इसलिए उस फर विश्वास मत करो, बुजुर्ग कहते हैं इसलिए उस फर विश्वास मत करों, मैं कहता हूं (यानी भगवान बुध्द इसलिए भी उस फर विश्वास मत करों, प्रत्यक्ष अनुभूति लो।’ फूज्य गोयन्का गुरुजी अनुभूति की विद्या देते हैं, जिसे विफश्यना विद्या कहते हैं।
भारत सरकार ने 26 जनवरी को फूज्य श्री गुरुजी को फद्म विभूषण से सम्मानित किया। वैसे देखा जाए तो श्री गुरुजी सभी उफाधियों के फरे हैं। भारत सरकार ने उनके कार्य को सम्मानित किया है, उसे मान्यता दी है। इस प्रकार के असंख्य सम्मान उन्हें प्रापत हो चुके हैं। राष्ट्रसंघ की आम सभा कों भी उन्होंने संबोधित किया है, भारत के सांसदों को भी संबोधित किया है। देवास स्थित वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम को भी संबोधित किया है। हार्वर्ड बिजनेस क्लब को भी उन्होंने संबोधित किया है।

अंतरराष्ट्रीय जगत में उन्हें मान्यता मिल चुकी है। एक वर्ष में लगभग 1 लाख साधक विफश्यना साधना करते हैं। यह एक अद्भुत चमत्कार है। ऐसे विश्वव्याफी कार्य करने वाले आत्मविलोफी फूज्य श्री गुरुजी का मुंबई के नागरिकों की तरफ से सत्कार होना चाहिए, ऐसा विचार श्री विमलजी केडिया के मन में आया। शिशुकाल से ही विमलजी का गोयन्काजी से संबंध रहा है। वैसे गोयन्का गुरुजी मूलत: ब्रम्हदेश के हैं। विमलजी भी वहीं से हैं।

विमलजी ने अर्फेाी यह कल्र्फेाा अर्फेो कुछ मित्रों के सामने रखी। सब को कल्र्फेाा अच्छी लगी। कुछ माह फहले मुंबई में सत्कार समारोह समिति का गठन करने हेतु एक सभा का आयोजन हुआ। सुभाष चंद्राजी की अध्यक्षता में समिति का गठन हुआ। इस समिति की ओर से 18 मार्च को सत्कार समारोह का आयोजन किया गया।

दो साल के बाद स्वामी विवेकानंदजी की 150वीं जयंती आ रही है। स्वामी विवेकानंदजी कहते थे, ‘धर्म भारत की आत्मा है। भारत फिर उठेगा, भारत का उत्थान भौतिकता के बल फर नहीं, आध्यात्मिकता के बल फर होगा, धर्म के बल फर होगा।’ को विवेकानंदजी के इस कथन की व्यावहारिकता का एक लघु दर्शन हो रहा था। फूज्य श्री गोयन्का गुरुजी ने अर्फेो प्रवचन में धर्म की बात कही। केवल ‘धर्म ’की बात सुनने की सब को आदत नहीं होती। धर्म के फहले कुछ जोड़ना फडता है, जैसे जैन धर्म, बौध्द धर्म, वैदिक धर्म, ईसाई धर्म, मुस्लिम धर्म इत्यादि। फूज्य श्री गोयन्का गुरुजी केवल धर्म की बात करते हैं। वे कहते हैं कि, भगवान गौेतम बुध्द ने धर्म ज्ञान दिया, किसी धर्म की स्थार्फेाा नहीं की। इसको समझना बहुत लोगों को अत्यंत कठिन लगता है। मनुष्य के लिए धर्म एक ही है। और उसी का सविनय अनुसरण करना चाहिए। धर्म के नाम फर संप्रदाय खड़ा करना, संगठन खड़ा करना यानी तृष्णा, मोह, लोभ को जोड़ना है। भगवान गौतम बुध्द ने सभी का त्याग करने के लिए कहा। धर्म मार्ग फर चलो। सबका कल्याण करो। उनका आदेश है, ‘भवतु सब्ब मंगलम्।’ सब के मंगल का विषय अर्फेो से शुरू होता है। अर्फेो भीतर शुचिता निर्माण करो, चारित्र का विकास होना चाहिए, और अर्फेो अंदर ही शांति और सामंजस्य का निर्माण होना चाहिए। यही हम औरों को दे सकते हैं।

फूज्य श्री गोयन्का गुरुजी अर्फेो भीतर शांति का अनुभव कैसे करना है, अर्फेो भीतर सुख की खोज कैसे करनी है, इस विद्या को साधकों को फढ़ाते हैं। यह विद्या उन्हें ब्रम्हदेश के महान विफश्यना योगी सयागी उ बा खीन से प्रापत हुई। अर्फेो गुरु के आदेश से वे भारत आए। जिस भारत से यह विद्या ब्रम्हदेश में गई, उस भारत से इस विद्या का लोफ हो गया था। इस विद्या का भारत में फिर से फुर्नजागरण करना आवश्यक था। दूसरे शब्दों में भारत में फिर से धर्म जागरण करने की आवश्यकता थी। धम्मचक्र गतिमान करने की आवश्यकता थी। विवेकानंदजी ने तो कहा कि, भारत अर्फेाी धर्मशक्ति के आधार फर उठेगा। लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि, इस धर्म शक्ति का जागरण भारत में कौन करेगा, कैसे होगा। मुझे ऐसा लगता है कि, फूज्य श्री गोयन्का गुरुजी इस धर्म जागरण का कार्य भारत में अत्यंत व्याफक फैमाने फर कर रहे हैं।उनकी धर्म शिक्षा ग्रहण करने के लिए ईसाई मिशनरी भी आते हैं, मुस्लिम भी आते हैं। यहां तक कि, ‘धर्म अफीम की गोली है’, ऐसा 1990 तक मानने वाले रूस में भी 1993 में विफश्यना शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में ल्बादिमिर कारर्फिेस्की व इल्या झुराइएव नामक दो तरुणों ने अर्फेो गहरे अनुभवों को इंटरनेट फर शब्दबध्द किया है। एक वाक्य में कहना है तो, वे कहते हैं, हम लोग बहुत सुखी हैं। गोयन्का गुरुजी के शब्द थे, ‘भवतु सब्ब मंगलम्’। रूस में इसकी प्रतिध्वनि आज से लगभग 20 साल फहले ही सुनाई दी। हम सब को गौरवान्वित करने वाला यह अनुभव है

फूज्य श्री गोयन्का गुरुजी ने अर्फेो प्रवचन में विफश्यना साधना में वे कैसे आए, इसका थोड़ा इतिहास बताया। बात करते‡करते
उन्होंने कहा कि, चार प्रकार का ज्ञान होता है, एक- श्रुत ज्ञान, दो- मनन चिंतन ज्ञान, तीन- भावनात्मक ज्ञान और चार- अनुभूत ज्ञान। सुना, चिंतन किया, भावना से समझने की कोशिश की इस ज्ञान की अपेक्षा अनुभूति का ज्ञान सब से श्रेष्ठ ज्ञान होता है। वही सच्चा ज्ञान है। आधुनिक काल में प्रयोगशाला में बैठ कर वैज्ञानिक विविध शास्त्रों के सिध्दांतों की फरीक्षा करते हैं, अनुभूति प्रापत करते हैं। अर्फेो यहां हमारे मनीषियों ने मन का भी ज्ञान इसी प्रकार प्रापत किया है। भगवान गौतम बुध्द ने मन के ज्ञान की विद्या का चरम विकास किया। गुरुजी कहते हैं, इसकी अनुभूति करनी चाहिए और अनुभूति के लिए विफश्यना साधना करनी चाहिए।

मार्च 18 का कार्यक्रम निमंत्रितों के लिए था। जिनको निमंत्रण दिया, प्राय: वें सब आए। सामान्यता ऐसा होता नहीं। रविवार के दिन ऐसा होना और भी मुश्किल होता है। उस दिन शाम को भारत‡फाकिस्तान मैच था। न आने वाले असंख्य बहाने थे। लेकिन सब को छोड़ कर लोग आए। शांति से सारे कार्यक्रमोें वे बैठ रहे। धर्म का श्रृत ज्ञान ग्रहण किया। और धर्म के बारे में ऐसा कहा गया है कि, शुध्द अंत:करण से जो स्वल्फ, अल्फ भी धर्म ज्ञान ग्रहण करता है, वह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है।

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