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मिथक टूटा, हैट्रिक हुई, परिवारवाद खत्म

मिथक टूटा, हैट्रिक हुई, परिवारवाद खत्म

by राजकुमार चौबे
in अप्रैल -२०१२, सामाजिक
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उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य जिन चार राज्यों में हाल में चुनाव हुए उनमें गोवा में भाजपा को अच्छी सफलता मिली, पंजाब में अकाली गठबंधन के साथ वह सत्ता में आई। उत्तराखंड में खंडूरी की छवि का उसे लाभ जरूर मिला लेकिन वह सत्ता के करीब आते‡आते रह गई। मणिपुर ऐसा इकलौता राज्य है जहां कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत हासिल हो गया। इस तरह पंजाब में मिथक टूटा, मणिपुर में इबोबी की हैट्रिक हुई, गोवा में परिवारवाद के खिलाफ वोट पड़े और उत्तराखंड दोलायमान स्थिति में है।

उत्तराखंड

उत्तराखंड में श्री रमेश पोखरियाल के मुख्यमंत्रित्व काल में भाजपा की सरकार पर लगे भ्रष्टचार के दाग को उनके बाद पदासीन मुख्यमंत्री बी. सी. खंडूरी ने अपनी अनुशासनप्रियता व स्वच्छ छवि से काफी हद तक धो डाला, हालांकि वे स्वयं कोटव्दार से हार गए। उन्होंने उत्तराखंड में लोकपाल विधेयक पारित करवाकर पूरे देश की प्रशंसा प्राप्त की। लेकिन पार्टी में अंतर्व्दंव्द के चलते उसे नुकसान पहुंचा। चुनाव के पहले दो‡दो राज्य प्रभारी बदले गए और तीसरे चुनाव प्रभारी श्री धर्मेंद्र प्रधान का भी यहां के आम कार्यकर्ताओं से कोई खास सम्पर्क नहीं था। लेकिन श्री खंडूरी के अनुशासनात्मक और ईमानदार शासन की वजह से भाजपा के 31 विधायक चुन का आए जो कि कांग्रेस विधायकों की संख्या से 1 कम है। कांग्रेस अपने 32 विधायकों के साथ बसपा के 3, उत्तराखंड क्रांति दल का एक और 3 निर्दलियों को लेकर सरकार बनाने की ओर अग्रसर है। टिहरी के सांसद उ.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री श्री हेमवती नंदन बहुगुना के पुत्र और उ.प्र. कांग्रेस की अध्यक्ष रीटा बहुगुणा के भाई श्री विजय बहुगुणा को पार्टी हाईकमान ने मुख्यमंत्री की कमान सौंपी है। उनके शप ग्रहण के समय ही पार्टी विधायकों का रोष सामने आ गया और दो तिहाई से अधिक विधायक इस समारोह में आए ही नहीं। मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में सतपाल महाराज, यशपाल आर्य, हरकसिंह रावत और केंद्रीय मंत्री हरीश रावत थे। हरक सिंह ने यहांत तक कह दिया कि यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी और भानुमति का पिटारा साबित होगी। श्री हरीश रावत ने नाराज होकर संसदीय कार्यमंत्री के रूप में अपना इस्तीफा प्रधान मंत्री को भेज दिया। वे सन 2002 के चुनावों के बाद भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन वरिष्ठ नेता श्री नारायण दत्त तिवारी को समर्थन देकर अपनी दावेदारी वापस ली थी। इस बार वरिष्ठाा, अनुभव और विधायकों के समर्थन के हिसाब से उनका दावा मजबूत था। उनके साथ इस समय लगभग 18 विधायक हैं। यदि कांग्रेस हाईकमान का रुख इसी तरह तानाशाहीपूर्ण और अडियल रहा और कांग्रेस में बगावत के शोले भड़क गए तो आगामी समय में सत्ता का सुख भाजपा के हिस्से में भी आ सकता है।

पंजाब

पंजाब में चुनाव के बादल छंट चुके हैां यहां के राजनीतिक आकाश पर सिर्फ एक बादल छाया हुआ है‡ प्रकाश सिंह बादल।
पंजाब का पिछले 46 साल का इतिहास रहा है कि हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन होता है। लेकिन इस बार यह मिथक टूट गया। पंजाब की जनता ने अकाली दल‡ भाजपा गठबंधन सरकार के विकास कार्यों को पसंद किया और इसे आगे बढ़ाने एक और मौका दे दिया। अकाली दल ने अपनी सीटें 49 से बढ़ाकर 56 कर ली जबकि भाजपा की संख्या 19 से घटकर 12 पर आ गई। कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण उसके बागी उम्मीदवार हैं। अकाली दल‡ भाजपा गठबंधन ने 13 सीटें मात्र 2000 वोटों के अंतर से जीतीं। उनमें से भी 7 सीटें 1000 से भी कम के अंतर से और दो सीटें तो 50 वोटों से भी कम अंतर से जीती हैं। अकाली दल के चुनाव प्रचार की बागडोर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के पुत्र सुखबीर सिंह बादल के हाथों में थी। मुख्यमंत्री बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल की पार्टी‡ पंजाब पीपल्स पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका। स्वयं मनप्रीत सिंह दो सीटों से खड़े थे। कांग्रेस में टिकट बंटवारे के समय भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा। यदि कांग्रेस को अगली लड़ाई जीतनी है तो उसे अपनी पार्टी के भीतरी अनुशासन को मजबूत बनाना पड़ेगा।

जिस तरह अकाली दल ने अपनी सरकार के पांच सालों के कामकाज को लोगों के सामने लाया उससे तो लगता है कि उन्हें अपने काम और काम के प्रचार पर पूरा विश्वास था। उनका यह अनुमान सही निकला कि लोग उनके विकास कार्यों को नजरअंदाज नहीं करेंगे। उसे इसी विश्वास के साथ आगे बढ़ते हुए अपनी अधूरी परियोजनाओं और विकास के कार्यों को पूरा करना है। वैसे भी उसकी भाजपा पर निर्भरता काफी कम हो गई है।

मणिपुर

सफलता की दृष्टि से देखें तो मणिपुर कांग्रेस के लिए सब से अच्छा राज्य साबित हुआ। भारत के इस सब से अशांत राज्य की जनता आतंकवाद, महंगाई, सशस्त्र सुरक्षा कानून, लगातार होते रहे बंद, नागा आतंकवादियों के होने वाले हमलों और आर्थिक नाकाबंदी को झेल रहे हैं। यहां का वैष्णव समाज अपने आपको असहाय महसूस कर रहा था। यहां तक कि मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के घर पर रॉकेट से हमला किया गया। इसके अलावा महंगाई का आलम यह था कि प्याज 40 रु. किलो, पेट्रोल 200 रु. लीटर और रसोई गैस 1000 रु प्रति सिलेंडर बिक रहा था। किसी भी कालाबाजारी को रोक पाना राज्य सरकार के बस के बाहर की बात थी।

इस सब शासकीय अकर्मण्यताओं के बावजूद इबोबी सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने अपना एकछत्री साम्राज्य कायम रखा। उसने 60 में से 42 सीटें जीत कर दो तिहाई बहुमत हासिल किया। यह हैट्रिक ही थी। मणिपुर के इतिहास में पहली बार त्रिशंकु सरकार नहीं बनी और इसका श्रेय भी इबोबी सिंह को ही जाता है। इस जीत के पीछे एक कारण प्रभावी विपक्ष का न होना भी है। प्रभावी विपक्ष के अभाव में मणिपुर की जनता ने बाहरी राज्य स्तरीय नेता ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के सात उम्मीदवारों को जिताया। यहां लोगों ने राज्य में स्थिरता के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार व्दारा यहां की कांग्रेस सरकार को अधिक से अधिक सहायता मिलने की उम्मीद में कांग्रेस को जिताया।

इस बार इबोबी सिंह को जनता की आशाओं पर खरा उतरते हुए आतंकवाद, लगातार बंद, नागा उग्रवादियों के हमलों और आर्थिक नाकाबंदी से जनता को निजात दिलाना पहली प्राथमिकता होगी। यही उनके लिए सब से बड़ी चुनौती है।

गोवा

गोवा विधान सभा चुनाव में 82 प्रतिशत मतदान हुआ। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि यह भारी मतदान निश्चित तौर पर गोवा की कांग्रेस‡राकांपा सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ रोष था।

आखिरकार, सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर भाजपा‡मगोपा ने गोवा की सत्ता हासिल कर ली। घोटालों और परिवारवाद के चक्कर में फंसी कांग्रेस‡राकांपा सरकार का अंत विधान सभा में सिर्फ 9 सीटों के रूप में हुआ। पिछली बार कांग्रेस की 16 सीटें थीं। राकांपा का एक भी उम्मीदवार इस बार नहीं जीता। पिछली बार उनके पास 3 सीटें थीं। गोवा सरकार में मंत्री रहे चर्चिल उलेमाओ के परिवार के चारों सदस्य चुनाव हार गए। गोवा के लोगों में परिवारवाद के खिलाफ पहली बार ऐसा रोष दिखाई दिया। लोगों ने भ्रष्टाचार में लिप्त पुराने दिग्गज विधायकों के बदले नए चेहरों को ज्यादा पसंद किया। भाजपा के टिकट पर इस बार कैथलिक उम्मीदवारों की जीत भी गोवा की राजनीति पर दूरगामी परिणामों की तरफ इशारा करती है। फिलहाल तो श्री मनोहर पर्रीक्कर के नेतृत्व में भाजपा के 21 विधायक मिलकर और मगोपा के 3 विधायक मिलकर गोवा में स्थिर सरकार देने की ओर अग्रसर है।

इस बार भाजपा को सुशासन का वादा निभाते हुए गोवा में अपनी जड़ें मजबूत करने का सुनहरा अवसर मिला है।
पंजाब: कुल सीटें 117
अकाली दल‡ 56 (+ 7)
भाजपा‡ 12 (‡7)
कांग्रेस‡ 46 (+2)
अन्य‡ 3 (‡2)
‡‡‡‡‡‡‡‡‡
उत्तराखण्ड: कुल सीटें 70
कांग्रेस‡ 32 (+11)
भाजपा‡ 31 (‡4)
अन्य‡ 7 (‡7)
‡‡‡‡‡‡‡‡‡‡‡
मणिपुर: कुल सीटें 60
कांगे्रस‡ 42 (+12)
तृणमूल कांग्रेस‡ 7 (+7)
राकांपा‡ 1 (‡4)
अन्य‡ 10 (‡15)
‡‡‡‡‡‡‡‡‡‡‡‡
गोवा: कुल सीटें 40
भाजपा‡ 21 (+7)
कांग्रेस‡ 9 (‡7)
अन्य‡ 10 (‡0)
‡‡‡‡‡‡‡‡‡‡‡‡

 

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Tags: congressgandhi familyhindi vivekhindi vivek magazineindian political newsindian politicianspolitics

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