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हंगूल

हंगूल

by मारुती चितमपल्ली
in अप्रैल -२०१२, सामाजिक
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चरक संहिता में जंगलों में रहने वाले पशुओं को जा जांङ्गल मृग कहा गया है। सतरह कुरङ्ग मृग हैं‡ 1. उरण 2.त्रदण्य 3. एण 4. कालपुच्छक 5. कुरङ्ग . कोट्टकारक 7. गोकर्ण 8. चारुरक 9. पृषत 10. मृगमातृका 11. राम 12. वरपोत 13. शम्बर 14.

शरभ 15. शश 16. स्वदंष्ट्र 17. हरिण।
पृषत: शरभो राम: श्वदंष्ट्रो मृगमातृका।
शशोरणौ कुरङ्गश्च गोकर्ण: कोट्टकारक:॥
चारुष्को हरिणैणौ च शम्बर: कालपुच्छक:।

ऋष्यश्च वरपोतश्च विशेषा जङ्गाा मृगा:
चरक संहिता सूत्र स्थान 27,45‡46
‘राम’ नामक हरिण पर टीका लिखते समय गंगाधर कहते हैं राम: हिमालये महामृग:। कश्मीरी भाषा में उसे हंगूल अथवा कश्मीरी रेड डियर कहते हैं। लैटिन नाम है णन्ल्े ात्ज्प्ल्े ।
मृगपक्षीशास्त्र में हंसदेव ने उसके लक्षण निम्न दिए हैं‡

रामा मृगा: श्वेतरक्ता वयवा मंदपादका:॥
केचित्तात्वंत शृगाश्च दीर्घांगरुह संथुता॥
किंचित्स्थूलशरीराश्च वनवासैकलोलुपा:॥
स्थूलनाभीसमायुक्ता: शश्वत्सलिलपायिन:॥
वर्षातपादि भीताश्च ते भृरां शांतमानसा:॥

अर्थात राम मृग का शरीर तांबुल, सफेद रंग का होता है। पैर भारी होते हैं। उनमें से कुछ को तालू तक सिंग होते हैं। वे बालों से भरे, किंचित स्थूल व जंगल में रहने वाले होते हैं। उनकी बांबी स्थूल (आकार में कुछ बड़ी) होती है। बार‡बार पानी पीते हैं। धूप, बारिस से उन्हें डर लगता है। वे शांत प्रवृत्ति के होते हैं।

आधुनिक वैज्ञानिक उनका वर्णन करते हुए लिखते हैं कि हंगूल कश्मीर के उत्तरी इलाके में दााचिगम व उत्तर चम्बा व हिमाचल प्रदेश में दिखाई देते हैं।

वे अकेले या 2 से 18 हरिणों के झुंड में रहते हैं। शीत के दिनों में उनके बड़े झुंड तराई में आते हैं। नर के सिंग (हूता) मार्च महीने में गिर जाते हैं। सितम्बर तक वे कठिन हो जाते हैं। सितम्बर से अक्टूबर उनका प्रणयकाल (ल्ू) होता है। सशक्त और सामर्थ्यवान नर अनेक मादाओं को अपने कब्जे में लेता है। प्रतिस्पर्धी नर उन मादाओं को मुक्त कर अपने कब्जे में लेने का प्रयास करता है। ताकतवान नर अपने हरम की रक्षा करते हैं।

नवम्बर में जमीन जब पतझड़ से आच्छादित होती है तब नर ऊंचे पर्वतों के घासवाले मैदानों और अश्व फल (प्देा म्पेूहल्ू) के जंगलों की ओर प्रयाण करते हैं। शीत काल में वे तराई में आश्रय पाते हैं। वसंत ऋतु में घास में नए कोंपलें आती हैं तथा श्रीदारु (त्म्पे) वृक्षों में कलियों की बहार होती है। इस पर उनका भरणपोषण चलता है। मई में नए शावकों का जन्म होता है।

1640 में उनकी संख्या 3000 थी। 1970 में इस संख्या में 140 से 170 तक भारी कमी आई। उनके प्राकृतिक निवास का ध्वंस, पशु चराई, खेती के लिए जमीन पर अतिक्रमण इत्यादि कारणों से यह कमी आई। लेकिन घ्ळण्र्‍ की सफल योजना के कारण 1983 में उनकी संख्या में 482 तक वृध्दि हुई।

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Tags: foresthangulhindi vivekhindi vivek magazineindian subcontinentjunglekashmir stagsnowwild animal

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