रामकुमार सर ने दोषी सर से कहा, ‘‘दोषीजी विद्यार्थियों में आपकी बड़ी साख और इलाके में अच्छी जान-पहचान है। हमें भी दो-चार अच्छे ट्यूशन दिलवा दो तो हमारी जिंदगी की गाड़ी भी पटरी पर आ जाए।’’ दोषीजी मैथ्स और साइंस पढ़ाते हैं। इसमें शक नहीं कि दोषीजी अच्छा पढ़ाते हैं लेकिन हैं मस्तमौला किस्म के इंसान। समय की पाबंदी उन्हें अपनी गिरफ्त में नहीं ले पाती लेकिन दोषीजी जब भी पढ़ाने जाते हैं एक घंटे की बजाय डेढ़-दो घंटे पढ़ाना उनके लिए सामान्य सी बात है। दोषीजी ने रामकुमार सर से कहा, ‘‘रामकुमारजी मैं एक जगह दो बच्चों को मैथ्स और साइंस पढ़ाता हूं। उन्हें एक इंग्लिश और सोशल साइंस ट्यूटर की भी जरूरत है। मैं आपको उनसे मिलवा देता हूं। उम्मीद है वहीं आपकी बात बन जाएगी।’’
अगले दिन दोषीजी रामकुमारजी को भी साथ लेते गए। बच्चे ही नहीं उनके पैरेंटस भी बहुत भले थे। रामकुमारजी ने कहा कि मैं एक-दो दिन बच्चों को पढ़ा देता हूं। आप देख लीजिएगा। यदि आपको ठीक लगे तो मैं नियमित रूप से पढ़ाने आ जाया करूंगा। बच्चों के पिता ने कहा कि जब दोषीजी आपको लेकर आए हैं तो देखना क्या है? आप आज से ही पढ़ाना शुरू कर दीजिए। दोषीजी तो कई सालों से पढ़ा ही रहे हैं। हमारे बच्चे भी इनसे बहुत खुश रहते हैं। हमारे यहां किसी तरह की कोई बंदिश भी नहीं है। दोषीजी भी अपनी मर्जी से आते-जाते हैं। किसी दिन नहीं भी आएं तो कोई बात नहीं। यह सुनकर रामकुमारजी ने कहा, ‘‘दोषीजी ये बहुत ख़राब बात है आपकी। जब ये लोग पूरे पैसे देते हैं तो आपको भी रोज़ आना चाहिये। गर्मी हो या सर्दी, आंधी हो या तूफान, मैंने आज तक ट्यूशन पर कभी नागा नहीं की।’’
यह सुनकर दोषीजी भला क्या कहते? खून का घूंट पीकर रह गए बेचारे। रामकुमारजी ने उसी दिन से पढ़ाना शुरू कर दिया। एक सप्ताह तक काफी कुछ पढ़ा दिया। एक सप्ताह बाद ही महीने की आख़िरी तारीख थी। बच्चों के पिता ने कहा, ‘‘दोषीजी रामकुमारजी कह रहे हैं कि बच्चे मैथ्स और साइंस में बहुत ही कमजोर हैं। वो कह रहे हैं कि इंग्लिश और सोशल साइंस के साथ-साथ वो मैथ्स और साइंस भी पढ़ा देंगे तो बच्चे मैथ्स और साइंस में भी होशियार हो जाएंगे। अच्छे नंबरों की भी गारंटी दे रहे हैं। बच्चे तो आपको नहीं छोड़ना चाहते पर रामकुमारजी नहीं मान रहे हैं।’’ इतना कहकर पिछले महीने के ट्यूशन के पैसे उन्होंने दोषीजी के सामने रख दिये और उठकर अंदर चले गये।